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संधिकाव्य-समुच्चय कय-सत्त-रूवु किर कन्हु एसु सिविच्छ-सुलंछिय-वच्छदेसु हउं बाल-कालि अइमुत्ति वुत्त जीवंत जगुत्तम अट्ठ पुत्त ता होहि महारा अंग-जाय ते छा वि साहु निरु कन्ह-भाय हय-विहि-विलासि केणावि पत्त तहिं सुलस-नाग-मंदिरि सुगत्त पसरुट्ठिय जाइवि जिण-रागासि सो 'पुच्छिउमिच्छइ नाण-रासि निय-पाणि-परिट्ठिय-कंकणेण किर कांई करेवउं दप्पणेण रवि-उग्गमि देवइ पत्त देवि जिण-नाह-पासि रहि आरुहेवि पणमित्तु पुरटिठय सा सुनाणु बोलावइ अवसरि भुवण-भाणु
घत्ता
ससुरासुर-परिसहिं देवइ आमंतिवि
धम्मुक्करिसहिं गुरु अणुचितिवि
तसु टगमग-जोयंतियहि सामि पयंपइ दय-उदहि ॥११
पई धम्मसीलि* चितिउ "जु चित्ति तं सच्चु चेव न हु का वि भंति ते पुत्त तुज्झ हरिणेगमेसि संचारिय अवसरि सुलस-रेसि मय-वच्छहि ताहि छ अंग-जाय तुह अप्पिय कंसह मारणाय निय-तणय-विओग-विवाग-गम्मु तुह फलिउ एउ किउ सइ जु कम्मु ४ पइं पुव्व-भवंतरि रयण-रत्त अवह रिय सवक्किहिं आसि सत्त तहिं ठावि मुक्क वर-काचखड सुसरिक्ख-रूव' कारिवि अखंड विलवंतियाए तसु ताह मज्झि पई एक्कु तमप्पिउ सुगुण-मज्झि । इय सत्त-रयण-चोरिक्क-तणउ पई पत्तउ फलु मण-दुक्खु घणउ ज खणिण पुणऽप्पिउ रयणु एगु तिणि हरि जणेइ तुह सुहु अणेगु इय सुणिवि देवि देवइ निरुत्तु महु-महुरु नेमि-जिणनाह-वृत्तु जिण-दंसिय बंदइ ते सुसाहु उरुरुहिहिं झरतिहिं पय-पवाहु
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घत्ता अह सा ते वंदइ मुणि अभिणंदइ धन्न पुन्न जगि तुम्हि पर अरु मज्झ विसारी बहु-गुण धारि 1°कुक्खि सलक्खण पुत्त1 धर ॥१२
1. P पुच्छिसुमिच्छइ 2. P देवए 3. L धम्मु करेसहिं 4. L धम्मशील 5. P जं 6. L अवर वि सु० 7. P रुवाकारि अखंड 8. P उररु० 9. L तुम्ह 10. L कुक्षि सलक्षण 11. P पुत्त
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