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________________ संधिकाव्य समुच्चय महुर-नरिंदि दंड-अणगारिहिं सिरु छिन्नलं तरवारि-पहारिहिं तह वि ति अप्पमत्त निय-सत्तहिं कह वि न चित्ति चुक्क सतत्तहिं जइ वि तिव्व तणि वेयण ढुक्कइ तह' वि मुणिंदु न झाणह चुक्कइ जं किर एहु मह कारणि बंभणु अहह होइ दुग्गइ-दुक्खिंधणु घत्ता इय भावण-जुत्तह तसु गुणवंतह मुणिहिं देह-चाएण सहुं केवल संजायउ . मोक्खु वि आयउ सुर करंति निव्वाण-महु ॥११ [१२] अह उग्गउ पुव्व-गिरिदि भाणु गय-मुणिहि जेब तं' दिव्व-नाणु हरि हरिसिउ देवइ-देवि-जुत्तु संचलिउ भाय-वंदण-निमित्तु अंतरपहि पेक्खइ फट्ट-चीरु अइ-चिरतर-जर-जज्जर-सरीरु सिरि करिवि इट्ट दूरह वहंतु निय-ताय-हेउ देउलु करंतु सयमेव देवि साहेज्जु तासु निप्पाइउ हरि तं सुहकलासु जाइवि नमेवि सिरि-नेमिनाहु पुच्छइ कहिं अच्छइ नवउ साहु पभणइ जिणिंदु गोविंद तेण परमप्पउ पाविउ खम-गुणेण वउ लेवि देवि निसि काउसग्गु स सहिंसु अग्गि-उग्गोवसग्गु जह इह उविति तइं रायमग्गि साहिज्जु दियह दिन्नउ निसगि तह तासु सीसि जालंति जलणु दिन्नउ 'दुजम्मि तं सिद्धिकरणु पत्ता पुच्छिउ दामोदर बहु-दुह-निब्भरि किं करि मई सो जाणिवउं जंपइ जायव जिणु पई पिक्खेविण जासु सीसु फुड फुट्टिवउं ॥११ [१३] परमेसरु पणमेवि जणद्दणु पिउवणि पत्तउ कय-अक्कंदणु गयसुकुमाल-काउ गय-जीविउ पेक्खइ पुहविहिं पडिउ पलीविउ व्हाण-विलेवण-पूय पयावइ तसु सयमेव ससोगु करावइ 1. P तह वि एउ मज्झु. मणि खुडुक्कइ । 2. P तं जेव 3. P नेमनाहु 4. P इय 5. L सोहिज्ज 6. L निसग्गु 7. L. डजम्मि 8. L किव किर सइ 9. L तं जिणु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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