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९. नमयासुंदरि-संधि [कर्ता: जिनप्रभसूरि
रचना-समय : ई. स. १२७२]
ध्रुवक अज्ज वि जस्स पहावो वियलिय-पावोय अखलिय-पयावो । तं वद्धमाण-तित्थं नंदउ भव-जलहि-बोहित्थं ।।१
पणमिवि पणइंदह वीर-जिणिदह । चरण-कमल सिव-लच्छि -कुलु । सिरि-नमया-सुंदरि गुण-जल-सुरसरि किंपि थुणिवि लिउं जम्म-फलु ॥२
[१] सिरि-वद्धमाण-पुरु अस्थि नयरु तहि संपइ नरवइ धम्म-पवरु तहिं वसइ सु-सावगु उसहसेणु अणुदिणु जसु मणि जिणनाह-बयणु २ तब्भज्ज-वीरमइ-कुक्खि जाय ।
दो पवर पुत्त तह इक्क धूअ सहदेव-वीरदासाभिहाण " रिसिदत्त पुत्ति गुण-गण-पहाण न हु देइ सिठि मिच्छत्तिआण रिसिदत्त इब्भ-पुत्ताइयाण अह कूववंद-नयरागएण
परिणिअ कवड-वर-सावएण वणिउत्त-रुद्ददत्ताभिहेण
तहि पत्त चत्त-धम्मा कमेण अम्मा-पिईहि परिवज्जिआइ हुउ पुत्तु महेसरदत्तु ताइ पुरि वद्धमाणि सहदेव-घरणि सुंदरि नमया-नइ-न्हाण-करणि उपन्नु मणो[२] हु पिअयमेण गंतूण तत्थ पूरिउ कमेण । गन्माणुभावि तहि 'रहिउ चित्तु सह-देविहिं नमयापुरु स-वित्तु ताह' कारिउ जिण-चेइउ पवित्तु मिच्छत्त-राय-जयपत्तु पत्तु . १२ अह नमयासुंदरि सुंदरीइ
धूआ पसूअ गुण-सुंदरीइ लावन्न-रूव-निरुपम-कलाहिं तहि वद्धइ नमया निम्मलाहि १४ 'पिअ-माइ-पमुहु सयलु वि कुटुंबु आणाविउ तहिं पुरि निविलम्बु उच्छाहिउ रिसिदत्ताइ पुत्तु ववसाइ महेसरदत्तु पत्तु १६
अशुद्ध मूल-पाठः 1. मिच्छत्तीआण 2. उपन्नु 3. पूरीउ 4. रहीउ 5. चेईउ 6. सुंदरीअ 7. पीअ
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