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[ कर्ता : रत्नप्रभसूरि
इह अस्थि नयरि नामिण अवंति
तह ताण पुरउ सुपयट्ट नट्ट कणकण-कण किंकिणि सहि जा हसइ सव्वि पुर-पायडेहि वर-कय-झलक्किर- कुंभ-वार अणुरत्त-चित्त जा हाव-भाव घरि बार हट्टि जहि सेउ संति गउरवियहिं निय निय-मग्गि लग्ग
जहि सिप्प महानइ' तिहुयण विक्खाई
५. अवंतिसुकुमाल - संधि
सिरि- अज्ज - सुहत्थि सुहत्थि तित्थु अविचलिय- चारु- दस- पुव्य-धारि जीवंतसामि पडिमाए पायसंघाडउ पेसिउ पुरिहिं सामि सामंत-मंति-सत्थाह- गेहि सत्थाहि अस्थि भद्दाऽभिहाण जं अज्ज - सुहत्थिहि उवगरेइ उवगरिय गरुय घर घंघसाल तस पाण- बीयपसु-पंडगाइ
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धत्ता
अणुदिणु पवई सच्चिय खाई
रचना - समय : ई. स. ११८२ ]
[ १ ]
जहिं तुंग चंग चेंइय सहति
चच्चर चउक्क चउहट्ट हट्ट मरु-लहरि - पहल्लिर - पल्लवेहि तह तज्जइ सज्जिय-धयवडेहि पसरत-नेत - दिप्पंत - तार कुणइ व्व नियंती बहु-पयाच सूरिहिं पहावि पहवइ न मंति परिय- पहाव दंसण समग्ग
तुंग-तार- पायार-तलि लोइय- तित्थु पसत्थु कलि ॥ ९
[२]
पत्तउ पवित्तु जंगमु जु तित्थु विहरंतु अणिस्सिय सुह-विहारि पंकय-पणाम-सेवा-सुहाय
वर वसहि जाहि जोयहि सुठामि सो मग्गइ सूरिहिं वसहि देहि गिह दाविय तीए महप्पमाण तं लेहु तुम्हि इय बज्जरेइ ज - जुयलिहि ताहि महा-विसाल परिचत गुरु सा कहिय जाइ
1. L महासइ 2. L तलु 3. L जि 4 L सावि 5 L सुठावि
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