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१०. चउरंग-भावण-संधि [कर्ताः जिनप्रभ सरि (?)
रचना-समय : ई. स. १३०० पूर्व ]
ध्रुवक सिरि-वीर-जिणेसर नमिय-सुरेसर पाय-जुयल पणमेवि जिय चउरंगिय भावण सिव-मुह-कारण अणुदिणु भाविसु एरिसिय ॥१
[१] संसार-रन्नि जीवा भमांत सामग्गि य दुल्लह माणुसत्ति दिट्ठतिहिं चुल्लगमा[इ]एहि सिद्धंत-भणिय भाव-सुइएहिं' जह चक्कि-गेहि भोयणु दियस्प्त मुंजेवि भरहि वारउ न तस्स मह दिव्व-भावि सो कह वि हुज्ज तह वि हु न अधमु नर-भव लहिग्ज १ वर-दिन्नई पासई चाणगस्स । न पडंति तत्थ भन्नह नरस्स पुन्नेण होइ एरिसु कयावि नर-जम्मु न लब्भइ निय-सहावि सिद्धत्थ-पत्थु भरहस्स धन्नु मो.स 3 नारि कारिउं विभिन्नु पारेइ कह वि सा कम्म-जोइ नवि हीण-धम्मु पुणु मणुय होइ थंभह सयं सिउं इक्क दाँउ थेर-निव-पुत्तु जइ जिणइ राउ पावइ सु रज्ज जइ सुह-तिसीउ तह होइ नरत्तणु पुणु ल्हसोउ १० बहु-मूल्ल-रयण वाणिय-सुएहिं विक्किय वणिय देसागएहि पुण मेलिऊण जइ इंति गेहि उत्पत्ति होइ नवि मणुय-देहि १२ रज्जट्ठ सुमिणि पिक्स्वइ मयंकु पविसंतु वयणि किं पुण वि रंकु एवं पि हुज्ज सुकयाणुभावि माणुस्स-जम्मु न लहइ तहावि १४ चक्कऽट्ठ-उवरि पुत्तलिय-अक्खि न हु विज्झइ तह विणु नर णिदक्खि विधेइ कोइ अह एग-चित्तु नर-बुदि न पावइ सुकय-रितु सेवाल-छाहिय जोयण-लक्खि दहि कुम्मु तुट्ट-विवरस्स लक्खि तं छिड्ड लहइ जइ पुणु भमंतु नवि लब्भइ पुणवि माणुसत्त जुग-समिल दो वि पुवावरम्मि खित्ता भमंति सायर जलम्मि "जुग-विवरि समिल पविसइ कयावि उप्पज्जइ जोउ न मणुय-भावि जह रयण-थंभु चुन्निउ सुरेण मेरूवरि नलिय हुम्मिउ मुहेण तब्भाव-करण तह पुग्गलाण
न हु मणुय-भावु पावा उलाण __ अशुद्ध मूल पाठ : 1 भवंति 2 सुइमेहिं 3. ०च्छाहिय 4. कम्मु 5. ग
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