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३. गयसुउमाल-सधि
रचना-समय : ई. स. १९८२)
[कर्ता : रत्नप्रभसूरि
आसि नयरि बारवइ पसिद्धिय साव-सुवन्न सुवन्न-समिद्धिय जा जोयण बारह दीहत्तणि सक्कि कराविय नव-पिहुलत्तणि २ जहिं धण-कणय-कोडि सज्जिज्जहिं दाणि मणोरह जणह न पुज्जहिं भेरि-सद्द-निदारिय-रोगिहि धन्नंतरि मन्नियइ न लोगिर्हि करइ तत्थु(? रज्जु) 'राणि-वरण-सारउ नारायणु नारीहिं पियारउ चाव-चाय-चारहडि-अचुक्कउ कुनय-कुसंग-कलकिहि मुक्कउ जसु निरु निवसइ नेमि भडारउ माणसि हंसु जेम्व जयसारउ खायग-सम्म-दिट्ठि-सुविसिट्ठउ नेमि जिणेसरि* जो उवइट्ठउ सच्चहा अवरु रुप्पिणी राणी सयलंतेउर-मज्झि पहाणी विहरंतउ सिरि-नेमि-जिणेसरु तहिं कयाइ "पत्तउ परमेसरु
पत्ता कुलसेल-जिणंतह गिरि-उज्जिंतह लक्खारामि समोसरणु तक्खणि तियसिदिदि किउ सच्छंदिहिं भव-भयत्त-" जंतुहं सरणु ॥११
[२] किय देव-देवि देसण सुचंग नर-अमर-असुर-राएक्क-रंग खणि मुणिहिं जाय विहरणह वार अणुसरहिं साहु-जण घर-दुवार अह देवइ-देविहिं दुन्नि पुत्त विहरंत भवण"-अंगणि पहुत्त "बिहु ताह अणीयजसो ति पढमु महसेणु बिइज्जउ पोढ-पसमु "ते साहु-सीह पिक्खेवि बे वि निय-अंगि माइ देवइ न देवि । सा देइ सिंह-केसर रसाल नव-लड्डुय गडडुय जिंव विसाल ६ विहरावि जाव देवइ बइट्ठ जइ-जुयल अन्न तावहिं पविट्ठ मुणि अजियसेणु गुणगण-समग्गु अरु निहयसेणु अणुमग्ग-लग्गु ८
1. L गणि 2. L भराडउ 3. L जेव 4. L णेसर 5. P पत्तु 6. P जंतुह 7. P बिहि 8. L नहसेणु 9. P तो
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