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भूमिका
संधि ६-१०
संधि ६ थीं १० ना रचयिता जिनप्रभसूरि आगमिकं गच्छना आचार्य हता. तेमना गुरु नाम देवभद्रसूरि हतुं.' आ देवभद्रसूरिए सं. १२५० ( ई. स. १९९४) मां अंचलगच्छनो त्याग करी नवो आगमिक या त्रिस्तुतिक नामे ओळखातो गच्छ स्थाप्यो हतो.
आ जिनप्रभसूरए प्राकृत, अपभ्रंश, अने प्राचीन गुर्जरभाषामा घणी नानी नानी कृतिओ रची होवानुं जणाय छे. तेओनी कर्मभूमि गुजरात होय तेम लागे छे तेमणे केटलीक कृतिओ शत्रुंजय गिरि पर रहीने रची होवानी नोंध छे. पांच संधि उपरांत तेमनी नीचेनी सूचि मुजबनी कृतिओ उपलब्ध छे
ज्ञानप्रकाशकुलक, चतुर्विधभावनाकुलक, युगादिजिनकुलक, सुभाषितकुलक, धर्माधर्मविचार कुलक, आत्मसंबोधकुलक, गौतमचरित्र कुलक, भवियचरिउ, भक्षियकुडु बचरिउ, मल्लिचरिउ, वइरसोमिचरिउ, जंबुचरिउ, सुकोशलचरिउ, महावीरचरिउ, छप्पनदिक्कुमारीजन्माभिषेक, पार्श्वनाथजन्माभिषेक, जिन जन्ममह, जिनस्तुति, नेमिनाथ जन्माभिषेक, नेमिनाथ रास, चाचरिस्तुति, गुरुस्तुतिचा चरि, अंतरंगविवाह, मोहराजविजयोक्ति, सर्व - चैत्यपरिपाटी-स्वाध्याय वगेरे.
पांच संधिमांधी १. मयणरेहा संधि अने २ नमयासुंदरि संधि-ए बेनो रचना - समय संधिना अंते कविऐ जणावेल छे, क्रमे स. १२९७ ( ई. स. १२४१ ) अने स. १३२८ (इ. स. १२७२). बाकीनी संधिओ पण आ गाळानी ज होवा संभव छे. कविनो कवनकाळ आम घणो विशाळ जणाय छे.*
संधि - ११
आ संधिना कर्ता विनयचन्द्रसूरि ईस्त्रीसननी तेरमी सदीमां थई गया. तेमना गुरुनु नाम रत्नसिंहसूरि हतुं .
विनयचन्द्रसूरि बहुभाषाविद् विद्वान कवि हता. तेमणे १. मुनिसुव्रतस्वामिचरित २. पर्युषण कल्पनिरुक्त (र. सं. १३२५) ३. दिपालिका कल्प (२. सं. १३४५) ए त्रण संस्कृत ग्रंथो उपरांत प्राचीन गुजरातीमां पण केटलीक लघु कृतिओ रची हती. जेमां उवएसमाल कहाण - छप्पय अने २, नेमिनाथचउपई बन्ने प्रकाशित थयेल छे." तदुपरांत एक 'बाबत रास' नामक रचना पण एमना नामे मळे छे. ६
'काव्यशिक्षा' कार विनयचन्द्रथी प्रस्तुत कवि जुदा छे. जो के तेओ समकालीन हता. विनय चन्द्रसूरिनो समय सं. १२८५ थी १३४५ (ई. स.१२२९ थी १२८९) मनाय छे." 'आनन्द संधि' नी रचना आम ई. स. १२८९ पूर्वेनी छे.
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१. पत्तनस्थप्राच्यजैनभाण्डागारीयग्रंथसूची, भा. १, गा० ओ० सीरीझ - ७६, १९३७.
२. पट्टावली - समुच्चय भा-२, संपा. दर्शनविजयजी, अमदावाद, १९५०, पृ. १६२. ३. जैन गुर्जर कविओ, मो० द० देशाई, भा-१, पृ. ७९.
४. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मो. द. देशाई, पेरा० ६०७.
५. प्राचीन गुर्जर काव्य-संग्रह, संपा. ची. डा. दलाल, वडोदरा, १९२०, पृ. ८ थी २६ ६. तेरमा चौदमा शतकना त्रण प्राचीन गुजराती काव्यो, संपा. डो. ह. चू. भायाणी, मुंबई,
१९५५, पृ.१३.
७. जैन परम्परानो इतिहास, त्रिपुटि मुनि, भा. २, पृ. ३०८
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