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संधिका व्य-समुच्च य
१. रिसह-पारण-संधि [कर्ता : रत्नप्रभसरि
रचनासमय : ई. स. १९८२ ]
[ध्रुवक ] जं किर पाव-पंकु पक्खालइ __ भवियह मोक्ख-सोक्खु दिक्खालइ संधिबंध-संबंध-रवन्न
चरिउ तं रिसह-जिणिदह वन्नउं
[१] दाहिण-भरहखंड-चूडामणि साव-सुवन्न नाइ सोयामणि अस्थि अउज्झ नामि सुपसिद्धी नयरि पउर-धण-धन्न-समिद्धी पढम-राय-कारणि काराविय मणि-कंचणिहिं सक्कि संपाइय सिहर-चारु-चेइयहर-चंगी सयल-विलासि-लोय-नव-रंगी' सरल-पियाल-वणुज्जल-बाडी' जिव जहिं तेव तरुणि' परिवाडी गय-वाहण हय-साहण हिंडहिं ईसर-लोय तहा वि ज मंडहिं
।३
घत्ता
जिण-मंदिर-उब्भड धुव्विर-धयवड रणझणंत-किकिणि-रविण जा गव-निरंतर हसइ गुणुत्तर सक्क-नयरि निय-विह विण°
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[२] 1°कुलगर-नाहि-पुत्तु तं पालइ रिसह-नरिंदु सुरिंदु व लालइ 11पढमु जु नय-निहि पढमु पयावइ जण-ववहारु पहिल्लउ दावइ घरिणी घणुज्जल-पेम-गहिल्ली12 तासु सुमंगल-नामि पहिल्ली अवर वि आसि सुनदं सु-राणी सयलंतेउर-मज्झि पहाणी 1. L कंकु 2. L मोक्खु सुक्खु 3. L सोवन्न 4. L यउज्झ 5. L चेईहरि चंगी 6. L विलास लोयण नव० 7. L० ज्जय वाडी 8. P जहिं तरुणि तब परि० 9. Lवेहविण 10. P कुलारु 11. P पढमुज्जनय० 12. L प्रेम गहि. 13. L मज्झ
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