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संधिकाव्य-समुच्चय
घत्ता कहि केण निमित्तिण कन्ह पयत्तिण । अह कन्हि वि वासिउ' कज्जु पयासिउ
पई हउ सुमरिउ रत्ति-दिणु देवइ देवउ पुत्त-रिणु ॥११
[८]
भणइ देउ हरि होसइ बालउ देवइ-देविहिं सव्व-गुणालउ पुणु जोव्वण-भरि नेमि-जिणेसहं पासि दिक्ख लेसइ सिय-लेसहं इय भणेवि सुरु गउ सुरवासह हरि वि पत्तु निय-रज्ज-विलासह अवसरि सुविणउ देवइ देक्खइ मुहि मयगलु पविसंतउ लक्खइ समइ बालु सुकुमाल सुलक्खणु देवइ-देविहिं जाउ वियक्खणु बद्धावणउं काराविउ केसवि निय-अणुजाय-भाय-जम्मूसवि घर-दुवार-सोहहिं 'सुविसालहिं उब्भिय-तोरण-वंदुरवालहिं वर-नवरंग-रत्त'-पट्टसुय विसहि सुवासिणि अक्खवत्त-जुय ठावि ठावि सुय-माइय" गिज्जहिं चट्टहिं' चोट्टहिं चोप्पड दिज्जहिं पाउल मंगल राउलि वच्चहिं फिरि फिरि वार-विलासिणि नच्चहिं
१०
घत्ता
घण-तूराडंबरि अइसय-सुंदरि वित्तउ वद्धावणय-रसु अह सुमिणायत्तउ नामु निरुत्तउ दिन्नउ गयसुकुमालु तसु" ॥११
[९] सुरगिरि-सिरग्गि जिव कप्परुक्षु तिव वड्ढइ बालु विसाल-सुक्खु खेलावइ देवइ खेल्लणेहिं बोल्लावइ लल्लुर-वयणुलेहिं परिसीलिय-अविकल-कल-कलाउ संपत्त° पुन्न-तारुन्न-भाउ परिणेइ कुमरु अइसय-सुरूय मा-उवरोहि दुमयराय-धूय अणुरूवु पभावइ तासु नामु निय-हत्थि भल्लि जा करइ कामु तह सोम-सम्म दिय-अंग-जाय सोमाभिहाण विहियाणुराय खत्तिय-कलत्त-संभव सुवन्न परिणीय तेण अवरा वि कन्न अह तम्मि चेव ‘समयम्मि सामि विहरंतु पत्तु पुर-नगर-गामि
1. L भासिउ 2. P सुविणं 3. L सलक्खणु 4. P सुविलासहिं 5. P घट्टसुय 6. L माइए 7. L वह चोहिहिं 8. L तहिं 9. Lखेलावइ 10. L संपुन्न
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