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घत्ता
अंतरंग-संधि लोहेण वि जंपिउ कपिऊण
'मह सुणह परक्कमु करवि मूण । मई नासिउ कोणि उ चंड राउ मउं कवण मत्त पुण ए वराउ' १६ . कंदप्पु भणइ पयडंत दप्पु
'नीसत्त तुम्हि सवि करउ चुप्पु हउं इणिसु ते उ जिम गरुडु सप्पु 'मउं अग्गलि संधइ कवणु कप्पु' १८ इंदिय पभणई 'करि सामि कम्म(ज्ज) होहामु अणिदिय अम्हि अज्म(न)' मग्गंति हत्थ जोडिवि पमाय 'अम्हे पहु लेसिउं पहिल घाय' २० जंपति विसय भय-भंति-चत्त 'तिणि मिलियई कहिसु सव्वि वत्त' नव नोकसाय बुल्लई सताण 'सकसाय अम्हि तसु हरउं पाण' २२ उवसग्ग-परीसह कहण लग्ग 'रणखित्ति न केण वि अम्हि भग्ग' इय सुणिवि सुहड रिवु हणण-सक्क मोहेण वजाविय गमण-ढकक २४ अट्ठ वि मय-मयगल गुडिय मत्त कुमणोरह-रह बहु-वेगि जुत्त पक्वरिय आस मण-वेग-तुल्ल संनद्ध-बद्ध हुअ सुहड-मल्ल संचलिउ मोहु निय-बलि समग्गु छाइउ रएण आयास मग्गु निय-विसय-संधि जाएवि सिन्नि __ आवास दिन्न बहु-मग्ग-खिन्नि २८ सिरि-जिणवर-रायह मुक-विसायह सेण वि अभिमुह संचलिय रण-समउ पडिक्खई सत्थ निरिक्खई सीमा-संधिई दल रहिय ॥३०
. [९] जिण-मूलि पत्तु अह मिच्छ-मंति पभणइ 'हउं पेसिउ नीइवंति तुह पासि संधि-करणट्ठि मोहि तुह कवणु कज्ज कंधई विरोहि २ दिणि दिणि मह निंदसि जं सगन्वु तं खमिउ अम्हि पुण अप्पि भव्वु' इणि अवसरि पभणिउ सम्म-मंति 'तुह सामि कडक्खिउ खलु कयंति ४ सो नोइवमिउ तई भणिउ जुत्तु जिण-पासि पडिउ तह तुम वि मत्तु खमवंत तुम्हि जिणि हीण-सत्त बहुवम नामं तु असज्ज पत्त ६ जिणु अप्पइ न हु निय-सरण-पत्तु तं करउ तुम्हि जं तुम्ह जुत्तु' मह कहिउ तेण तं मोह-अग्गि उत्पडिय वेगि फुड सुहड-वरिंग ८ अह खवग-सेणि-रणतूर-भार
जिण-सत्ति-अणाहय-सह-फार भरि अंबर वज्जिय अइ-गभीर तिणि कंपिय सयल वि मोह वीर १० जा वज्जि तहिं संगाम तूरु
ता मिलिय दुन्ह-वाहिणीइ पुरु तहिं 'झिल्लई रंगि कसाय धीर घण-रोस-ताव-संकुल-सरीर ।
___ 1. B चुन्नु 2. B मूळ 3. अंतः A. इति अष्टमोधिकारः ॥ B. इति मोहसेनाजिनसेना-चलनो नाम अष्टमोऽधिकारः ॥4. B. वग्गि 5. B. वजिउ 6. B जिल्लई
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