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________________ ११५ अणाहि-महरिसि- संधि भणिउं मई वहउ मा को वि मणि गव्वयं अवर नं ओसहं जेण मह दुह गयं ६ नाव जीवं च सेवेमि तं 'ओसहं सव-सावज्ज-जोगे य वज्जियमहं: करि पसाउ य मुक्कलहुं मह बंधवा लेमि जिम दिक्ख महवयह चत्तासया ८ नेह-नियलाई भंजेमि गुरु दुक्खिमा चत्त-संगो य कय जलं व कुक्षिणा (१) गहिवि जिण-*दिक्ख दस-भेउ जई-धम्मो समीई-गुत्तिय-उत्त समभावो १० पुढवि जल जलण वाउ य वणकाइणं बि-त्ति य चउरिदि-पंचिंदिय-पाणिणं . जाउ हउं नाहु अपाण अन्नु वि जणे वसुह विहरंतु संपत्त तव काणणे १२ घत्ता कम्मह खय-रणु भव-दुह-वारणु सरणु सहायउ रायवर जिण-वयणु सुगंतह चरणु धरंतह अप्प इ अप्पउ नाह वर ॥१३ अप्पा च नरय-गइ-दुक्खु देइ अप उ सासय-सुहि मुक्खि नेहि अप्पउ नंदणवणु कामघेणु निय-अप्प दुटु अरु सुठु सयणु २ बंधइ अणवट्ठिउ असुह-कम्म अप्पा सुपइट्ठइ करइ धम्मु विसु अमीउ सहोयरु सत्तु लोइ भव-मुर्ख-हेउ सुणि जेम होइ जे गहवि दिक्ख महवयई लेवि सामन्नु धरहिं अंगीकरेवि रस-गिद्धि न अप्पउ वसि करंति बंधेवि कम्मु भव-दुह सहति उवउत्त न जे इरिया यं भास । न हु वज्जइ बायालीस दोस मायाण-समीई नोसग्गयाहिं ते मूढ न जिण-मग्गेण जाहिं चिरु लिंगु धरहि तव-नियम-हीण अप्पं च किले सहि मूढ दीण । 13 उस्मुत्त कहहिं कुडो कहाहिं वीससिय जंतु लिउ नरय जाहिं कोऊहन जो जोइस सुमिण मंत लक्षण य कुहेडय विज्ज तंत आवजहि गारव-गिद्ध जि जणु दुहि पत्तइ ते न हु "हुति सरणु १२ घत्ता न वि करइ त केसरि विसु मरि अहि करि नवि वेयालु न जल-जलणु दय-खति-विवग्जिउ अप्पु न निजिउ करइ जु जीवह दुद्र-मणु ॥१३ 1. उसहं 2. हिक्ख 3. जय-धम्मउ 4. समीय 5. बाऊ य 6. सन्नु 7. मुक्खु 8. अगी. 9. इ 10. ०मीय 11. जांएहिं 12. उसत्त 13. हति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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