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संधिकाव्य-समुच्चय
अह विहसिउ सेणिउ नरवरिंदु तं सव्वु सच्चु जइ कहइ मुणिंदु ति-पयाहिण वंदिउ भाव-जुत्तु संतेउरु निवु निय-ठाण पत्तु २२ मुणि निरइयार-चारित्तजुत्तु विहरेइ महीयलि सारसत्तु इय भवह भावु जाणिउ निरुत्तु भो भविय कुणउ अप्पं पवित्तु २४
- घत्ता एवं संखेविहिं विहि-विक्खेविहिं मुणि-सेणिअ उल्लाव-जुउ संबंधु सुअक्खिउ जं किंचि वि लक्खिउ महनिगंथज्झयण-सुउ ॥२५
चारु-चउ-सरण-गमणो दाणाइ-सुधम्म-पत्त-पाहेओ । सीलंगरहारूढो जिणपह-पहिओ सया सुहिओ ॥२६
अंतः ।। अनाथि-संधि समत्ता ॥
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