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[ कर्ता : जिनप्रभसूरि
निरुवम-नाण-निहाणो दुग्गइ-दार-पिहाणो जिण धम्मो सुमरवि जिण सासणु सुह-निहि सासणु भणिसु संखेविहिं तमविक्रखेविहि
भो भविय सुणउ भरहद्ध - खिति मणिरह भिहाणु तहिं अस्थि राउ तसु भज्ज महासइ मयणरेह चदजसु नामि तहं सुउ पवित्तु सा चंद- सुमिण सूइउ सुगब्भु जिण-पूअण - आगम-सवण इच्छ इत्थतरि मणिरहि मयणरेह सा भणइ नरीसर तुह न जुचु तसु हूउ पाविट्ठह दुट्ठ-भाउ उज्जाण-ठीउ भज्जा समेउ हाहावु उठिउ तहिं महंतु समाइ - गुणिहिं सम्मत्तु देइ खामाविय सयल वि जीव-जाइ सो उ पंचम देव - लोइ
मणरेहए एउ जाणिउ अवी- कयली-हरि
६. मयण रेहा - संधि
तउ अंग- पखालणि सरखरम्भि विज्जाहरि घरिया तक्खणेण
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रचना - समय : ई. स. १२४१]
ध्रुवक
पसम- पहाणो विवेय- संनिहाणो as सुह- कम्मो ॥ सिरि-नमि - महरिस मणि धरिउ मयणरेह - महासइ - चरिउ ||
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जं वित्तु सुदंसणपुरि पवित्ति जुवराउ लहुउ जुगबाहु भाउ वर - रूव-सीलि जगि लद्ध-रेह अन्नाय - अविहि-वल्ली - लवित्तु पुण धरइ पवर- पुन्निहिं पगब्भु सा पूरिय पइणा बहु-विहिच्छ भोगत्थिण पत्थिय भव- अणेह एयारि वुत्तुं पाव-पत्तु जं मारउं लहु जुगबाहु भाउ असिणा हउ निग्विणि वर - विवेउ अह मयणरेण बोहेइ कंतु सो देस-विरइ भावेण लेइ परमिट्ठ- सरतह आउ जाइ इंदह सामाणिउ बंभ- लोइ
घत्ता
मणु समि आणिउ पसरियकरि-हरि
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गहिया जल-करिहिं करेण तम्मि वेयदि नीय गिहिणी मणेण
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तसु ठाणह नीहरइ लहु पसवइ सुपुन्नेहिं सहु ।। १५
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