Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
माणु ज्जोयो जीवा जैन विद्यालयो. श्रीमहावीरडी
प्रकाशक अपभंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
राजस्थान
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
सादर भेंट जैन विद्या संस्थान समिति
डॉ.
कमलचन्द सोगाणी
(पूर्व प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र) सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर
प्रकाशक
अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान
दिगम्बर जैन प्रतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
राजस्थान
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, श्रीमहावीरजी-322220 (राजस्थान)
0 प्राप्ति-स्थान 1 जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी 2. अपभ्रंश साहित्य अकादमी
दिगम्बर जैन नसियां भट्टारकजी सवाई रामसिंह रोड, जयपुर-302004
0 प्रथम बार, 1996, 1100
- मूल्य
पुस्तकालय संस्करण 85/विद्यार्थी संस्करण 70/
0 मुद्रक
मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस 6-7, गीता भवन, आदर्श नगर जयपुर-302004
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
विषय
अभ्यास संख्या
पृष्ठ संख्या
अभ्यास की आधार-पुस्तक
एवं पाठ संख्या
प्रारम्भिक
प्रकाशकीय
वर्तमानकाल
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 1-8
विधि एवं प्राज्ञा
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 9-16
अकर्मक क्रिया
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-17
प्रावृत्ति
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 1-17
प्रावृत्ति
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 1-17
भविष्यत्काल
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 18-25
प्रावृत्ति
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 1-25 अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-27
सम्बन्धक भूत कृदन्त
हेत्वर्थक कृदन्त
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-28 अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 27-28
10.
प्रावृत्ति
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
विषय
पृष्ठ संख्या
अभ्यास संख्या
अभ्यास की प्राधार-पुस्तक
एवं पाठ संख्या
39
46
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 29-30 अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-31 अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 33-34
13.
51
14.
पुल्लिग प्रकारान्त संज्ञा (एकवचन) पुल्लिग प्रकारान्त संज्ञा (बहुवचन) नपंसकलिंग अकारान्त संज्ञा (एकवचन) नपुंसकलिंग अकारान्त संज्ञा (बहुवचन) स्त्रीलिंग प्राकारान्त संज्ञा (एकवचन) स्त्रीलिंग प्राकारान्त संज्ञा (बहुवचन) प्रावृत्ति
56
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-35
15.
61
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 37-38
16.
66
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-39
17.
भूतकालिक कृदन्त, कर्तृवाच्य
76
19.
वर्तमान कृदन्त
85
20.
भूतकालिक कृदन्त, भाववाच्य
अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-19-39 अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-41 अपभ्रंश रचना सौरम पाठ-42 अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-44 अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ 1-44 अपभ्रंश रचना सौरभ पाठ-48 अपभ्रंश रचना सौरम पाठ-46
21.
आवृत्ति
97
22.
विधि कृदन्त, भाववाच्य
100
23.
अकर्मक क्रिया, भाववाच्य ।
103
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
विषय
पृष्ठ संख्या
अभ्यास संख्या
अभ्यास की आधार-पुस्तक
एवं पाठ संख्या
24.
106
25.
109
26.
114
27.
116
28.
119
29.
121
30.
124
प्रावृत्ति
अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ 41-48 संज्ञा द्वितीया-एकवचन, बहुवचन अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ 50-51 सकर्मक क्रिया
अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ-52 संज्ञा, सकर्मक क्रिया
अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ-54 संज्ञा
अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ 54 और 58 संज्ञा सकर्मक क्रिया
अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ 53-54 कृदन्त, कर्मवाच्य, तृतीया अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ 56-61 विविध कृदन्त
अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ-63 संज्ञा, चतुर्थी, षष्ठी
अपभ्रंश रचना सौरभ एकवचन, बहुवचन
पाठ 65-68 संज्ञा, पंचमी, सप्तमी
अपभ्रंश रचना सौरभ एकवचन, बहुवचन
पाठ 70-76 प्रेरणार्थक प्रत्यय
अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ-77 स्वार्थिक प्रत्यय, विविध सर्वनाम, अपभ्रंश रचना सौरभ अव्यय
पाठ 78-80 अनियमित कर्मवाच्य
31.
128
129
131
133
35.
136
36.
138
37.
अनियमित भूतकालिक कृदन्त
142
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
विषय
अभ्यास संख्या
पृष्ठ संख्या
38.
वाक्य-रचना
151
अभ्यास की आधार-पुस्तक
एवं पाठ संख्या अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-12 अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-9 अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-1
39.
वाक्य-रचना
153
40.
वाक्य-रचना
156
41.
वाक्य-रचना
157
अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-5
वाक्य-रचना
158
अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-13
43.
वाक्य-रचना
अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-10
161
44.
वाक्य-रचना
162
अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-14
45.
वाक्य-रचना
165
अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-17
168
172
व्याकरणिक विश्लेषण-पद्धति अपभ्रंश कथा (अमंगलिय पुरिसहो-कहा) अपभ्रंश कथा (विउसीहे पुत्तबहूहे कहाणगु) अन्वय
184
49.
190
अपभ्रंश काव्य सौरभ पाठ-12
192
50. 51.
छंद अलंकार
214
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
पृष्ठ संख्या
अभ्यास की प्राधार-पुस्तक
एवं पाठ संख्या
225 251
अभ्यास संख्या 52. छंद 53. संज्ञारूपों के प्रत्यय परिशिष्ट
अंक-योजना मॉडल प्रश्नपत्र 1, 2 शुद्धि-पत्र
260 262 274
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
आरम्भिक
'अपभ्रश अभ्यास सौरभ' अपभ्रंश अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है ।
यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजन के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया । प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्रोत बनी। अतः हिन्दी एवं अन्य सभी उत्तर भारतीय भाषाओं के विकास के इतिहास के अध्ययन के लिए अपभ्रंश भाषा का अध्ययन प्रावश्यक है। अनेक कारणों से अपभ्रंश के अध्ययनअध्यापन की उचित व्यवस्था न हो सकी। परिणामतः अपभ्रंश का अध्ययन अत्यन्त दुग्कर हो गया।
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित 'जनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। हमें यह लिखते हुए गर्व है कि प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी के सतत सहयोग से डॉ. सोगाणी ने नियमित कक्षाओं एवं पत्राचार की स्वनिर्मित योजना के माध्यम से अपभ्रंश व प्राकृत के अध्ययन-अध्यापन के द्वार खोलने का एक अनूठा कार्य किया है। अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम में अपभ्रंश का अध्यापन मुख्यतः पत्राचार के माध्यम से किया जाता है। 'अपभ्रंश अभ्यास सौरम' में पत्राचार के अभ्यासों का संकलन है । इस पुस्तक के प्रकाशन से अध्ययनार्थी अपभ्रंश भाषा को सीखने में अधिक समय दे सकेंगे और विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय इस पुस्तक को पाठ्यक्रम में लगाकर विद्यार्थियों को सुविधापूर्वक अपभ्रंश का अध्यापन करा सकेंगे।
___'अपभ्रंश अभ्यास सौरम' पुस्तक के लिए हम डॉ. कमलचन्द सोगाणी के आभारी हैं। पुस्तक प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के कार्यकर्ता एवं मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस धन्यवादाह हैं।
कपूरचन्द पाटनी
मन्त्री
नरेशकुमार सेठी
अध्यक्ष
प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
(i)
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशकीय
अपभ्रंश भारतीय प्रार्य - परिवार की एक सुसमृद्ध लोकभाषा रही है । इसका प्रकाशित अप्रकाशित विपुल साहित्य इसके विकास की गौरवमयी गाथा कहने में समर्थ है । स्वयंभू, पुष्पदन्त, धनपाल, वीर, नयनन्दि, कनकामर, जोइन्दु, रामसिंह, हेमचन्द्र, रइधू श्रादि अपभ्रंश भाषा के अमर साहित्यकार हैं । कोई भी देश व संस्कृति इनके आधार से अपना मस्तक ऊँचा रख सकती है । विद्वानों का मत है— " अपभ्रंश ही वह आर्यभाषा है जो ईसा की लगभग सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक सम्पूर्ण उत्तर भारत की सामान्य लोक-जीवन के परस्पर भाव-विनिमय और व्यवहार की बोली रही है ।" यह निर्विवाद तथ्य है कि अपभ्रंश की कोख से ही सिन्धी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, बिहारी, उड़िया, बंगला, असमी, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी आदि आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है । इस तरह से राष्ट्रभाषा का मूल स्रोत होने का गौरव अपभ्रंश भाषा को प्राप्त है । यह कहना युक्तिसंगत है - " अपभ्रंश और हिन्दी को सम्बन्ध प्रत्यन्त गहरा और सुदृढ़ है, वे एक-दूसरे की पूरक हैं । हिन्दी को ठीक से समझने के लिए अपभ्रंश की जानकारी आवश्यक हो नहीं, अनिवार्य है ।" डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार"हिन्दी साहित्य में ( अपभ्रंश की ) प्राय: पूरी परम्पराएँ ज्यों की त्यों सुरक्षित हैं ।" अतः राष्ट्रभाषा हिन्दीसहित आधुनिक भारतीय भाषाओं के सन्दर्भ में यह कहना कि अपभ्रंश का अध्ययन राष्ट्रीय चेतना और एकता का पोषक है, उचित प्रतीत होता है ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अपभ्रंश भाषा को सीखना - समझना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इसी बात को ध्यान में रखकर 'अपभ्रंश रचना सौरभ' व 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' नामक पुस्तकों की रचना की गई थी । इसी क्रम में 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ' प्रकाशित है । 'प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ' प्रकाशन - प्रक्रिया में है ।
अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर द्वारा मुख्यतः पत्राचार के माध्यम से अपभ्रंश का अध्यापन किया जाता है । 'अपभ्रंश रचना सौरभ' पर आधारित अभ्यास हल करने के लिए अध्ययनार्थियों को भेजे जाते हैं । इस तरह से अध्ययनार्थी क्रम से अपभ्रंश व्याकरण-रचना का ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम होते हैं । किन्तु अभ्यासों को
(ii)
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
भेजने में बहुत समय खर्च हो जाता है और अध्ययनाथियों को व्याकरण-रचना के अभ्यास के लिए कम समय मिल पाता है। अत:-(1) इस कठिनाई को दूर करने के लिए सभी अभ्यासों को एक पुस्तक का रूप देकर 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ' पुस्तक प्रकाशित की जा रही है । यह पुस्तक सभी अध्ययनार्थियों को प्रारम्भ में ही भेज दी जायेगी और अध्ययनार्थी इन अभ्यासों को निर्दिष्ट योजनानुसार हल करके भेजते रहेंगे । समय जो अभ्यासों को भेजने में लग जाता था, वह अपभ्रंश भाषा को सीखने में लग सकेगा। (2) दूसरी कठिनाई और अनुभव की गई-कई विश्वविद्यालय अपभ्रंश भाषा सिखाने का कार्य प्रारम्भ करना चाहते हैं। उन विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' के पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना सुविधाजनक नहीं होता है। वे विश्वविद्यालय इस पुस्तक को पाठ्यक्रम में लगाकर प्रध्यापन का कार्य अपने ही स्थान पर कर सकते हैं ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि 'अपभ्रंश अभ्यास सौरम' से अपभ्रंश अध्ययनअध्यापन के कार्य को गति मिलेगी और 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी अपने उद्देश्य की पूर्ति में द्रुतगति से अग्रसर हो सकेगी।
. पुस्तक के प्रकाशन की व्यवस्था के लिए जैन विद्या संस्थान समिति का प्राभारी हूँ । अकादमी के कार्यकर्ता एवं मदरलैंड प्रिंटिंग प्रेस धन्यवादाह हैं ।
वीर निर्वाण दिवस कार्तिक कृष्ण अमावस्या वीर निर्वाण संवत् 2523 दिनांक 11-11-96
डॉ. कमलचन्द सोगारणी
संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति
(iii)
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास 1
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । पुरुषवाचक सर्वनामों एवं
क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए
1. वह हंसता है। 2. वे दोनों नाचती हैं। 3. तुम छिपते हो। 4. मैं रूसता हूँ। 5. वे दोनों जागती हैं। 6. हम सब सोते हैं। 7. तुम सब जीते हो । 8. वे सब ठहरती हैं। 9. मैं नहाता हूँ। 10 वह होती है। 11. तुम दोनों हंसते हो। 12. हम सब नाचते हैं। 13. वे सब छिपते हैं। 14. तुम रूसते हो। 15. मैं जागता हैं। 16. वह सोता है। 17. वे सब जीते हैं। 18. मैं ठहरता हूँ। 19. वे नहाती हैं। 20. तुम सब होते हो। 21. तुम नाचते हो। 22. वे सब हँसती हैं। 23. वह छिपती है। 24. वे सब रूसते हैं । 25. तुम जागते हो। 26. तुम सब सोते हो। 27. मैं जीता है। 28. हम सब ठहरते हैं। 29. वह नहाती है। 30. वे दोनों होती हैं। 31. मैं हँसता हूँ। 32. तुम सब नाचती हो। 33. हम छिपते हैं। 34. वह रूसती है । 35. हम सब जागते हैं। 36. मैं सोता हूँ। 37. वह जीती है । 38. तुम ठहरते हो। 39. हम दोनों नहाते हैं। 40. मैं होती हूं। 41. तुम हँसते हो। 42. वह नाचता है । 43. मैं छिपती हूँ। 44. हम सब रूसते हैं । 45. तुम दोनों जागते हो। 46. वे सब सोती हैं। 47. हम दोनों जीते हैं। 48. वह ठहरती है । 49. तुम सब ठहरते हो। 50. तुम नहाते हो। 51. हम हंसते हैं । 52. मैं नाचती हूँ। 53. तुम दोनों छिपते हो। 54. तुम सब रूसते हो । 55. वह जागती है। 56. तुम सोते हो। 57. तुम जीते हो। 58. तुम दोनों ठहरते हो। 59. तुम दोनों नहाते हो। 60 हम सब होते हैं ।।
उदाहरणवह हंसता है=सो हसइ/हसेइ/हसए ।
नोट ---इस अभ्यास-1 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ
1 से 8 का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) निम्नलिखित क्रियाओं के वचन के अनुरूप पुरुषवाचक सर्वनाम लिखिए
15.
18.
27.
1. "णच्चहिं 4. .."रूसइ 7. ""लुक्कहु 10. ..."जग्गसि 13. ""णच्चमो 16. ..."हामो 19. ""लुक्केइ 22. "जीवित्था 25. ""णच्चेमि 28. .."जीवेइ 31. ..."जग्गिरे 34. .."लुक्कसि 37. ..."जग्गमो 40 .."हसहि 43. .."होम 46. ..हाहु 49. ""लुक्कम 52. ""होहिं 55. "सयेइ 58. ..."सयन्ते
2. ""जग्गउं 5. .."ठाउं 8. ''हाहुं 11. ..."सयए 14. ..."रूसह 17. ..."सयामि 20. ""ठाइ 23. ..."जग्गन्ते 26. ..."रूसेसि 29. ."होहि 32. ..."रूसमि 35. .."णच्चसे 38. .."रूसहु 41. ""लुक्कित्था 44. ""रूसहि 47. ..."पच्चइ 50. ""सयहु 53. ''" णच्चन्ते 56. हाइत्था 59. .."ठाहिं
3. "सयहि 6. ""हसहुं 9. .. जीवमि 12. ... होमि
""लुक्कन्ति
... जीवसे. 21. ""हसमु 24. "ण्हामु
. "सय 30. ''स यहुं 33. .."हसहि 36. .. सयइ
..."जीवमु 42. ... ठासि
..."जीवहिं
""हसए
..'जग्गन्ति 54. "हाह 57. ""रूसन्ति 60. ..."जीवह
39.
48
51..
उदाहरणता/ते रगच्चहि ।
हउँ जग्गरं ।
तुहुँ सयहि ।
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग) निम्नलिखित पुरुषवाचक सर्वनामों के अनुरूप कोष्ठक में दी गई नियात्रों के
वर्तमानकाल में क्रिया-रूप के सभी विकल्प लिखिए1. अम्हे (हस)
2. तुडं (सय) 3. सो (गच्च)
4. हउं (रूस) 5. तुम्हे (लुक्क)
6. ते (जग्ग) 7. अम्हइं (जीव)
8. सा (हा) 9. ता (ठा)
10. तुम्हइं (हो) 11. अम्हे (लुक्क)
12. ता (रूस) 13. हउं (णच्च)
14. सो (जग) 15. तुहं (जीव)
16. अम्हइं (हा) 17. ता (हो)
18. तुम्हइं (सय) 19. ते (लुक्क)
20. तुम्हे (रूस) 21. अम्हे (पच्च)
22. हउं (जग्ग) 23. सो (जीव)
24. तुहुं (हा) 25. अम्हइं (हो)
26. ता (हा) 27. तुम्हइं (हस)
28. ते (ठा) 29. ते (सय)
30. तुम्हे (हस)
-
उदाहरणअम्हे हसहुँ हसम/हसमो/हसमु ।
-
(घ) निम्नलिखित वर्तमानकालिक क्रियाओं के पुरुष, वचन एवं उनके मूलरूप
लिखिए1. गच्चहिं 2. सयहि
3. रूसइ 4. जग्गेमि 5 सयित्था
6. जीवए 7. रूस 8. लुक्कन्ति
9. हससि
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
3
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
10. ठाइ 13. जीवहु 16. जीवसे 19. होहि 22. हामि 25. रूसहि 28. लुक्किरे
11. ण्हामु 14. रूसन्ते 17. लुक्कमि 20. णच्चए 23. हसहु 26. णच्चसि 29. होसि
12. सयसे 15. जग्गेसि 18. हसेइ 21. जीवामि 24. ठाहुं 27. हसह 30. ठामु
उदाहरण---
मूलरूप
णच्चहिं
पुरुष अन्यपुरुष
वचन बहुवचन
अ
गच्च
(च) निम्नलिखित के सर्वनाम शब्द लिखिए1. उत्तम पुरुष प्रथमा बहुवचन ।
2. मध्यम पुरुष प्रथमा बहुवचन । 3. अन्य पुरुष प्रथमा बहुवचन (पुल्लिग)। 4. उत्तम पुरुष प्रथमा एकवचन । 5. अन्य पुरुष प्रथमा एकवचन (पुल्लिग)। 6. मध्यम पुरुष प्रथमा एकवचन । 7. अन्य पुरुष प्रथमा बहुवचन (स्त्रीलिंग)। 8. अन्य पुरुष प्रथमा एकवचन
__ (स्त्रीलिंग)।
उदाहरणउत्तम पुरुष प्रथमा बहुवचन-अम्हे अम्हई
(छ) निम्नलिखित सर्वनामों के पुरुष, विभक्ति, वचन एवं लिंग लिखिए1. अम्हे
2. ते ___ 3. तुम्हे 4. अम्हई
5. तुहूं
6. ता
4 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. हर्ड 10 सा
8. तुम्हई
9. सो
उदाहरण--
पुरुष अम्हे उत्तम पुरुष
वचन
विभक्ति प्रथमा, द्वितीया
वचन बहुवचन
लिंग तीनों लिंग
-
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
5
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-2
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए। पुरुषवाचक सर्वनामों एवं
त्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए----
1. वे दोनों नाचें। 2. हम सब सोवें। 3. वह हँसे। 4. तुम सब जीवो । 5. मैं रूसं। 6. तुम छिपो। 7. वे दोनों जागे । 8. वे सब ठहरें। 9. वह होवे। 10. तुम दोनों हंसो। 11. हम सब नाचें। 12. मैं नहाऊँ। 13. तुम रूसो। 14. वे सब छिपें । 15. वह सोए। 16. मैं जागू। 17. वे सब जीवें । 18. वह नहावे । 19. मैं ठहरूँ। 20. तुम सब होवो। 21. वे सब हंसें । 22. तुम नाचो। 23. वह छिपे । 24. तुम जागो। 25. वे सब रूसें। 26 मैं जीवं। 27. तुम सब सोवो। 28. हम दोनों ठहरें। 29. वे सब होवें। 30. वे दोनों ठहरें। 31. मैं हँसं। 32. तुम दोनों नाचो। 33. हम सब छिपें। 34. वह रूसे । 35. हम सब जागें। 36. मैं सोवू । 37. वह जीवे। 38. तुम ठहरो। 39. हम सब नहावें। 40. मैं होऊँ। 41. वह नाचे । 42. तुम हँसो। 43. मैं छिपूं। 44. वे सब सोवें । 45. हम सब हंसें। 46. तुम दोनों जागो। 47. वे सब रूसें। 48. वह ठहरे। 49. तुम सब ठहरो। 50. तुम नहावो। 51. हम दोनों रूसें। 52. तुम सब छिपो। 53. मैं नाचूं। 54. तुम सब रूसो। 55. वह जागे। 56. तुम सोवो । 57. तुम जीवो। 58. तुम दोनों ठहरो। 59 तुम सब नहावो । 60. हम सब होवें।
उदाहरण - वे दोनों नाचें=ते/ता णच्चन्तु/गच्चेन्तु ।
(ख) निम्नलिखित क्रियाओं के अनुरूप पुरुषवाचक सर्वनाम लिखिए - 1. .."हसि 2. ...'जग्गेउ
3. ' होउ
नोट-इस अभ्यास-2 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ
9 से 16 का अध्ययन करें।
6
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
4. ""सयसु 7. ""जीवन्तु 10. .."जग्ग 13. .."सयेन्तु 16. .."रूसहि 19. ""लुक्केमो 22. ""सयेमु 25. ..."रूसमो 28. .."सयह 31. .."सयमो 34. ".."हाहि 37. .."होसु 40. ... हन्तु 43. ... हाह 46 ""होमु 49. ""जग्गमु 52. ""हससु 55. ""लुक्कि 58. ... रूस
5. ...गच्च मो 8. ""हसेमु 11. ""ठामु 14. .."हाइ 17. .."जीवउ 20. ..."ण्हामु 23. ..."जीवेहि 26. " ठाउ 29. . पच्चन्तु 32. .."ठाह 35. ""ठाइ 38. ."णच्चेउ 41. .."सयि 44. ..."जीव 47. ..."ठामो 50. ..."सयेउ 53. ... हाउ 56. "ठाहि 59. "" होन्तु
6. " रूसह 9. .."लुक्केह 12. ..."णच्चसु 15. ""हसमो 18. 'होए 21. .."जग्गे 24. ""लुक्क उ 27. ... जग्गेमो 30. .."होमो 33. ""लुक्क 36. "" रूसमु 39. ""जग्गन्त 42. .." हसह
5. ""लुक्के मु 8. .."णच्चि 51. ..."जीवु 54. ""रूसेन्तु 57. ""ठासु 60. ""सयु
उदाहरण
तुहुं हसि ।
सो/सा जग्गेउ ।
सो/सा होउ ।
(ग) निम्नलिखित पुरुषवाचक सर्वनामों के अनुरूप कोष्ठक में दी हुई क्रिया के विधि
एवं प्राज्ञा के रूप के सभी विकल्प लिखिए1. तुहुँ (सय) 2. हउँ (रूस) 3. तुम्हे (लुक्क) 4. अम्हे (इस)
5. सो (रगच्च) 6 अम्हइं (जीव)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
7
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. ते (जग्ग) 10. ता (ग) 13. ते (सय) 16. सो (जग्ग) 19. ता (हो) 22. अम्हे (गच्च) 25. सो (जीव) 28. ते (ठा)
8. सा (हा) 11. तुम्हे (हस) 14. हउं (गच्च) 17. तुहं (जीव) 20. तुम्हइं (सय) 23. तुम्हे (रूस) 26. तुहुँ (हा) 29. तुम्हइ (हस)
9. तुम्हइ (हो) 12. अम्हे (लुक्क) 15. ता (रूस) 18. अम्हइं (हा) 21. ते (लुक्क) 24. हउं (जग्ग) 27. अम्हइं (हो) 30. ता (ठा)
उदाहरणतुहुं सयि/सये सयु/सय/सयहि/सयेहि/सयसु/सयेसु ।
(घ) निम्नलिखित विधि एवं प्राज्ञा की क्रियाओं के पुरुष, वचन, मूलरूप एवं प्रत्यय
लिखिए1. जीवेमु 2. जग्गउ
3. सयि 4. रूसामो 5. ठाहि
6. णच्चह 7. लुक्केन्तु 8. होमु
9. हसहि 10. व्हाइ 11. जगमो
12. सयेउ 13. लुक्के 14. णच्चेमो
15. रूसेसु 16. होउ 17. हसन्तु
18. जीव 19. सयेह 20. रूसेन्तु
21. लुक्केह 22. होसु 23. ठामो
24. रगच्चेहि 25. होह 26. ण्हाए
27. हसमु 28. सयसु
29 ठान्तु→ठन्तु 30. जग्गु
उदाहरण
प्रत्यय
पुरुष उत्तम पुरुष
वचन एकवचन
मूलरूप जीव
जीवेमु
8
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-3
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । पुरुषवाचक सर्वनामों एवं
क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए
1. मैं भिड़ता हूँ। 2. वह कलह करता है। 3. तुम थकते हो। 4. वे छटपटाते हैं। 5. तुम सब शरमाते हो। 6. हम सब गिरते हैं। 7. वे दोनों रोते हैं। 8. तुम दोनों डरते हो। 9. हम दोनों कांपते हैं। 10. मैं मरता हूँ। 11. वे लड़ते हैं । 12. वह मूच्छित होता है। 13. तुम कूदते हो। 14. हम सब प्रयास करते हैं। 15. वे दोनों खेलते हैं । 16. तुम सब उठते हो । 17. हम दोनों घूमते हैं । 18. वे सब उछलते हैं। 19. तुम सब खुश होती हो । 20. वह बैठती है। 21. मैं थकता हूँ। 22. वे सब लड़ती हैं। 23. हम सब डरते हैं । 24. तुम कांपती हो। 25. वे दोनों शरमाती हैं। 26. तुम दोनों प्रयास करते हो। 27. हम दोनों बैठते हैं । 28. तुम सब कलह करते हो। 29. हम सब मूच्छित होती हैं। 30. मैं छटपटाती हूँ। 31. तुम शरमावो। 32. मैं बैर्छ । 33. वह डरे। 34. तुम दोनों भिड़ो। 35. हम दोनों खेलें। 36. वे दोनों उठे। 37. तुम सब उछलो । 38. हम सब घूमें। 39. वे सब कूदें। 40. तुम प्रयास करो। 41. वह थके। 42. मैं गिरूं। 43. तुम सब छटपटाम्रो । 44. हम दोनों प्रयास करें। 45. वे सब खुश होवें। 46. तुम दोनों मूच्छित होवो। 47. वे दोनों कांपें । 48. हम सब मरें। 49. वह खेले । 50. तुम सब लड़ो। 51. वह बैठे। 52. तुम दोनों उठो । 53. मैं कूदूं। 54. हम सब खुश होवें। 55. तुम सब प्रयास करो। 56. वे दोनों उछलें । 57. हम दोनों भिड़ें। 58. तुम दोनों शरमावो । 59. वे सब डरें। 60. वह घूमे ।
उदाहरणमैं भिड़ता हूँ-हउं भिडउं/मिडमि/भिडामि/भिडेमि ।
नोट-इस अभ्यास-3 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ-17
का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
9
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) निम्नलिखित क्रियाओं के अनुरूप पुरुषवाचक सर्वनाम लिखिए
1. ""लज्जहुं 4. ..."कलहइ 7..."पडेमु 10. ..."घुमेह 13. ..."उज्जमम 16. ""मरामि 19. 'जुज्झह 22. ""अच्छड़े 25. ""कलहहि 28. ..."उट्ठन्ति 31. ''मुच्छमु 34. .." खेलमो 37. .."उल्लसेमु 40. ..."भिडामो 43. ..."उछु 46. ... थक्क 49. .."रूवमो 52. ''"कलहेउ 55. "खेलहि 58. .."तडफडमु
2. ""रूवित्था 5. ""थक्कउ 8. ""उट्ठहु 11. ..."भिडमि 14. ""उल्लसह 17. ..."खेलन्ते 20. ""मुच्छसे 23. .."थक्किस्था 26. .."डरइ 29. .."तडफडमि 32. ..."जुज्झि 35. .."मरह 38. ..."उज्जमे 41. ""घुमेह 44. ""पडमु 47. .."कलहह 50. .."लज्जहि 53. ""जुज्झेह 56. .."डरामो 59. .."लज्जह
3. "डरहि 6. ...."अच्छहिं 9. ."तडफडसि 12. ..."उच्छलन्ति 15. .."कंपए 18. ""कुल्लमो 21. ""लज्जहिं 24. ..."रूवउं 27. ..."पडम 30. .."घुमेमो 33. ""कुल्लउ 36. ""कंपंतु 39. ..."उच्छलेउ 42. "" तडफडेन्तु 45. ..."अच्छउ 48. ""डरन्तु 51. ""भिडेमु 54. ""उल्लसेन्तु 57. ""घुमसु 60. ""डरेसु
उदाहरण - अम्हे अम्हइं लज्जहुं।
तुम्हे/तुम्हइ रूवित्था।
तुहुं डरहि ।
10
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
( 4 ) निम्नलिखित पुरुषवाचक सर्वनामों के अनुरूप कोष्ठक में दी हुई क्रियाओं के वर्तमानकाल के तथा विधि एवं श्राज्ञा के रूप सभी विकल्पों में लिखिए
वर्तमान काल
विधि एवं श्राज्ञा
1. श्रम्हे (जुज्झ )
2. सो ( कुल्ल )
3. तुम्हे (खेल)
4. म्हई (लज्ज )
5. ता (पड )
6. श्रम्हे ( तडफड )
7. हजं (रूव)
8. तुहुं (मर)
9. ता ( कलह )
10. ते (डर)
11. अम्हे (उज्जम)
12. सो कंप)
13. म्हई (भिड )
14. तुम्हई (मुच्छ)
15. ते (उच्छल)
16. तुहुं (उच्छल )
17. हडं ( रूव )
18. ते (डर)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
19. सा ( कलह )
20. तुम्हइं ( थक्क )
21. ता ( श्रच्छ )
22. सो (उट्ठ)
उदाहरण -
वर्तमानकाल - म्हे जुज्झहु /जुज्झमु /जुज्झम / जुज्झमो |
23. अम्हई (तडफड )
24. तुम्हई (घुम)
25. तुम्हे (उज्जम)
26. हउं (उल्लस)
27. तुहुं ( कंप)
28. ता (खेल)
विधि एवं प्रज्ञा - तुहुं उच्छलि / उच्छले / उच्छलु/उच्छल / उच्छल हि/उच्छले हि / उच्छल सु/उच्छले सु ।
]
29. ते (कुल्ल
30. तुम्हे ( जुज्झ )
(घ) निम्नलिखित क्रियानों के पुरुष, वचन, मूलरूप, प्रत्यय एवं काल लिखिए
1. डरहि
2. कलहहुं
4. अ
5. तडफड उ
3. थक्कइ
6. मिहि
[ 11
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. उच्छलसि 10. खेलह 13. मुच्छेसि 16. घुमन्तु 19. लज्जउ 22. मुच्छन्तु
8. उल्लसमो 11. कुल्लामि 14. लज्जमु 17. पडमु 20. कुल्लमो 23. लज्जेमो
9. कंपेइ 12. जुज्झन्ति 15. रूवए 18. उज्जमह 21, लज्जि 24. उज्जमेसि ।
उदाहरण
पुरुष वचन डरहि मध्यम पुरुष एकवचन कुलहहुँ उत्तम पुरुष बहुवचन
मूलरूप डर कलह
प्रत्यय हि हुं
काल वर्तमान, विधि. वर्तमान
12 1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-4
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए। पुरुषवाचक सर्वनाम एवं
क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए1. तुम दोनों खुश होवो। 2. वे सब रोते हैं । 3. मैं बैठता हूँ। 4. हम दोनों डरते हैं। 5. वह हँसता है। 6. तुम सब सोवो। 7. वे सब शरमाते हैं । 8. तुम छटपटाते हो। 9. मैं जागती हूँ। 10. हम सब ठहरें। 11. वह कांपती है। 12. तुम नहावो । 13 तुम सब नाचो । 14. हम दोनों होते हैं । 15. वे दोनों मरते हैं। 16. तुम घूमो। 17. वह ठहरता है। 18 मैं रूसता हूँ। 19. हम सब प्रयास करें। 20. तुम सब खेलो। 21. वह छिपे । 22. वे सब जीते हैं। 23. तुम कूदते हो। 24. मैं उछलूं । 25. हम सब सोवें । 26. तुम दोनों थकते हो । 27. वह उठे। 28. वे दोनों कलह करते हैं। 29. मैं लड़ती है। 30. हम दोनों मच्छित होते हैं। 31. वह कलह करता है। 32. हम सब ठहरें । 33. तुम सब रोते हो। 34. वे सब बैठे। 35. हम दोनों जागें। 36. वे सब डरते हैं। 37 मैं हसू । 38. वह गिरता है । 39. तुम शरमाते हो। 40. तुम कूदो। 41. वे दोनों छटपटाते हैं। 42. मैं नहाता हूँ। 43. तुम सब भिड़ते हो। 44. तुम सब हंसो। 45. वह मरती है। 46 वे सब होवें। 47. वह नाचती है। 48. मैं घूमता हूँ। 49. तुम प्रयास करो। 50. वह खेलती है। 51. तुम सब छिपो। 52. वे सब मूच्छित होते हैं। 53. वह खुश होवे। 54. तुम सब उठते हो। 55. मैं कूदूं। 56. वे सब लड़ती हैं। 57. हम दोनों जीवें। 58. तुम सब बैठो। 59. हम सब खुश होते हैं । 60. वे सब घूमें।
उदाहरणतुम दोनों खुश होवो तुम्हे/तुम्हइं उल्लसह उल्लसेह ।
नोट-इस अभ्यास-4 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ
1 से 17 का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[ 13
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) निम्नलिखित क्रियानों के वचन के अनुरूप पुरुषवाचक सर्वनाम लिखिए
1. ""हसामो 4..."लज्जह 7..." खेलइ 10. .."जीवसि 13. .."डरमि 16. ""जग्गित्था 19. ..."उच्छलामि 22. ""जुज्झहु 25. ..."थक्कमो 28. ..."कंपेइ 31. ""सये 34. ""ठाइ 37. .."लज्जइ 40. ... खेल 43. ...."भिडउं 46. ""जुज्झिरे 49. ""हामि 52. ""लुक्कमु 55. .."घुमेमो 58. भिडित्था
2. .."कलहि 5. "उट्ठन्तु 8. "उल्लसेह 11. ""होहुं
14. ... हाहि . 17. ""कलहन्ति
20. ... सयम 23. ""उज्जमेन्तु 26. ..."पडेमि 29. ""रूससु 32. '''कुल्लेउ 35. ""जग्गमु 38. ""उट्ठह 41. ""पडए 44. "तडफडेइ 47. ""उज्जमु 50. ""उच्छलेउ 53. ..."थक्कहि 56. ""मुच्छसि 59. ""हसेसु
3. ..."णच्चमु 6. ""ठामु 9. .."स्वयं 12. .." अच्छहि 15. ..."मुच्छए 18. ...घुमि 21. ""लुक्कउ 24. .."तडफडसे 27. .. भिडसि 30. .. मरन्ते 33. ""हसेमु 36. ""रणचाहिं 39. .."होउ 42 ..."अच्छन्तु 45. .."कंपह . ."उल्लसहुं
"जीवह 54. .."डरेन्तु
..' कलहइ ..." रूसेमो
57. "
उदाहरणअम्हे/अम्हई हसामो।
तुहं कलहि।
___14 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग) निम्नलिखित पुरुषवाचक सर्वनामों के अनुरूप कोष्ठक में दी गई क्रियाओं के
निर्देशानुसार वर्तमानकाल (व.) तथा विधि एवं प्राज्ञा (वि.) के रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. अम्हे (हस) (व.)
16. सो (रूव) (व.) 2. सो (कुल्ल) (वि)
17. हउं (लुक्क) (वि.) 3. तुहं (उज्जम) वि.)
18. तुम्हई (हो) (वि.) 4. ते (भिड) (वि)
19. अम्हे (खेल) (ब) 5. हउं (कंय) (व.)
20. तुहुँ (हा) (प.) 6. तुम्हे (जीव) (वि.)
21. ते (घुम) (वि.) 7. तुम्हइं (ठा) (वि.)
22. ता (रूस) (व.) 8. सा (गच्च) (व)
23. सो (मर) (व.) 9. अम्हई (उल्लस) (वि.) 24. अम्हई (जग्ग) (वि.) 10. ता (लज्ज) (व.)
25. सा (डर) (व.) 11. सो (तडफड) (व.)
26. तुहुँ (थक्क) (व.) 12. तुहुँ (सय) (वि.)
27. ते (अच्छ) (वि.) 13. तुम्हे (कलह) (व)
28. तुम्हे (पड) (व.) 14. ते (उच्छल) (व)
29 हउं (जुज्झ) (वि.) 15. सा (उट्ठ) (वि)
30. तुहं (मुच्छ) (व.)
उदाहरणअम्हे हसहुं/हसमु/हसम/हसमो ।
(घ) निम्नलिखित क्रियाओं के पुरुष, वचन मूलरूप, प्रत्यय एवं काल लिखिए1. हसहुँ 2. अच्छहि
3. लज्जइ 4. घुमउं 5. उट्ठ
6. खेलह 7. उल्लसन्तु 8. लज्जमो
9. लुक्कि
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 15
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
10. जीवउ 13. जुज्झहिं 16. कंपसि 19. उज्जमेसु 22. उच्छलित्था 26. होम 28. तडफडेइ
11. पडमि 14. ठासु 17. तडफडए
20. मुच्छेसि ____23. णच्चन्ति
26. रूवन्ते 29. रगच्चमु
12. जग्गहु 15 रूसेमि 18. सयेह 21. कुल्लमो 24. व्हाइरे 27 लुक्क 30. लज्जउ ।
उदाहरण
पुरुष हसहं उत्तम पुरुष
वचन बहुवचन
मूलरूप हस
प्रत्यय हुं
काल वर्तमान
16 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-5
(क) निम्नलिखित वर्तमानकानिक वाक्यों को शुद्ध कीजिए । सर्वनाम के अनुरूप क्रिया
के शुद्ध रूप के सभी विकल्प लिखिए1. हउं रूसहिं । 2. तुहं हसउं । 3. सो ठामि। 4. अम्हे हसह। 5. तुम्हे हसहि । 6. ते ठामो। 7. ता ठाइ।
8. तुम्हइं थक्कहि। 9. ते मरइ । 10. हउं लज्जमो। 11. तुहुं पडित्था । 12. सो खेलन्ति । 13. अम्हई उट्ठसे। 14. सा घुमन्ति । 15. तुहुं ठाइ ।
-
उदाहरणहउं रूसउं/रूसमि/रूसामि/रूसेमि ।
(ख) निम्नलिखित वर्तमानकालिक वाक्यों को शुद्ध कीजिए। क्रिया के अनुरूप पुरुष
वाचक सर्वनाम के शुद्ध रूप के सभी विकल्प लिखिए1. हउं लज्जहुँ। 2. अम्हे रुवउं । 3. तुम्हे रुवमि । 4. सो डरहु ।
5. ता पडमो। 6. तुम्हई उट्ठइ । 7. अम्हई उच्छलहि । 8. हडं कंपित्या। 9. तुहुँ मरन्ते । 10. तुम्हे मरइ। 11. तुम्हे ठासि। 12. हउं कुल्लहिं । 13. तुम्हे व्हामु। 14. अम्हे होहु । 15. तुहं मुच्छेइ ।
उदाहरणअम्हे/अम्हई लज्जहुँ ।
नोट-इस अभ्यास-5 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ
1 से 17 का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 17
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग) निम्नलिखित विधि एवं प्राज्ञावाचक वाक्यों को शुद्ध कीजिए। सर्वनाम के
अनुरूप क्रिया के शुद्ध रूप के सभी विकल्प लिखिए1. हउं पडउ । 2. तुई रुवमो।। 3. सो थक्कि । 4. अम्हे हसहि । 5. तुम्हई डरन्तु । 6. अम्हई कंपह। 7. सा घुमि । 8. ता खेलमो।
9. ते मरहि । 10. हर्ष उल्लस । 11. तुहुं कुल्लेमो। 12. तुम्हे मुच्छसु । 13. ते भिडउ। 14. अम्हइं जुज्झेन्तु । 15. तुम्हइं ठामो ।
उदाहरणहउं पडमु/पडे ।
(घ) निम्नलिखित विधि एवं प्राज्ञावाचक वाक्यों को शुद्ध कीजिये। क्रिया के अनुरूप
पुरुषवाचक सर्वनाम के शुद्ध रूप के सभी विकल्प लिखिए1. हडं लज्जमो । 2. तुहुँ रुवउ । 3. अम्हे हसेह । 4. तुम्हे डरामो। 5. तुम्हइं लुक्केमो। 6. ते अच्छउ । 7. सो उट्ठह ।
8. ता होह। १. अम्हई ठन्तु । 10. तुम्हे हस । 11. अम्हे पडसु । 12. सो होह। . 13. ते होमो। 14. हउं लुक्कि। 15. हउं तडफड ।
उदाहरणअम्हे/अम्हई लज्जमो।
18 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-6
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । पुरुषवाचक सर्वनामों एवं क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए
3. वह ठहरेगा | 7. वह हँसेगी । 11. मैं जीखूंगा
112. तुम सब
1. तुम नाचोगे । 2. हम दोनों जीवेंगी । 5. तुम सब सोवोगे । 6. वे सब रूसेंगी । 9. हम सब जागेंगे । 10. वह नहावेगा । नाचोगे । 13. वे सब ठहरेंगी । 14. हम सब छिपेंगे। 16. तुम रूसोगे । 17. मैं हँसूंगी । 18. तुम सब होवोगे । 20. हम सब नहावेंगे । 21. वह नाचेगी । 22. तुम दोनों ठहरूंगा | 24. वह छिपेगा । 25. हम सब सोयेंगे | 27. वे सब हँसेंगे। 28. मैं होखूंगा । 29. वह जागेगी । 31. वह बैठेगा । 32. हम शरमायेंगे | 35. तुम खेलोगी । 36. तुम सब कूदोगे । 37. वह उठेगी । उछलेंगे 139. वे सब खुश होंगे । 40. मैं प्रयास करूंगी । 41 42. वह घूमेगी । 43. तुम सब डरोगे । 44. वह छटपटावेगा । 45. वे सब रोवेंगे। 46. मैं खुश होऊँगी । 47. वे सब भिड़ेंगे । 48. वे दोनों काँपेगे । 49. वह मरेगा । 50. मैं लडूंगी। 51. तुम बैठोगे । 52. वह 53. हम सब लड़ेंगे | 54. तुम सब गिरोगे । 55. मैं खेलूंगा । 59. वह
15. वह सोवेगी 1 19. वे सब जागेंगे । जीवोगे । 23. मैं 26. तुम सब रूसोगे । 30. तुम नहावोगे । 33. वे लड़ेंगे । 34. मैं गिरूंगा ।
38. हम सब
तुम थकोगे ।
शरमायेगी ।
। 58. हम दोनों उठेंगे |
कूदेंगे | 57. तुम कूदोगे 60. तुम सब प्रयास करोगे ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
8.
उदाहरण
तुम नाचोगे == तुहुं णच्चेस हि / गच्चे ससि / णच्चेस से / चिहिहि / च्चि हिसि /
चिचहिसे ।
4. मैं छिपूंगी ।
तुम होवोगे ।
नोट - इस अभ्यास - 6 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 18 से 25 का अध्ययन करें ।
56. वे सब खुश होगा ।
[
19
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) निम्नलिखित क्रियाओं के अनुरूप पुरुषवाचक सर्वनामों के सभी विकल्प लिखिए
1. ""हसेसहि 4. ..."जीवेसउं 7. ""उच्छलेसहि 10. .."कंपेसमि 13. ""लज्जिहिहि 16. .."जुज्झिहिउं 19. ""घुमिहिसे 22. ..."उठ्ठिहिमि 25. ""हासइ 28. ..."उज्जमेसउं 31. ""कुल्लेसमि 34. ""पडेसए 37. ..."उच्छलेसए 40. ""हसेसहि 43. ""रुविहिहुँ 46. ""धुमेसह 49. .."मरिहिम 52. ""होहिन्ति 55. ..."उल्लसिहिम 58. .."कलहेसहु
2. ""लज्जेसहुं 5. .."डरेसहु 8. ""जुज्झेसमो
11. "सयेसह ____14..."खेलेसमु
17. ""ण्हाहिहु 20. ."भिडेसम 23. ..."उल्लसेसइत्था 26. ..."कलहिहिहुं 29. ""पडिहिह 32. ..."जग्गेसहि 35. .."तडफडेसमि 38. "थक्किहिहि 41. .. गच्चेसहु 44. .."अच्छिहिइ 47. ""तडफडेसहि 50. ....हसिहिए 53. ""अच्छिहिहु 56. ""जीविहिए 59. ""रूसेसहिं
3. ..."खेलेसइ 6. ""जग्गेसहि 9. ""थक्केसए 12. ""ठासहिं 15. ..."मिडिहिहि 18. ..."लुक्केसन्ति 21. ""कुल्लिहिए 24. "होहिहि 27. ""सयेसइ 30. ..."रूसिहिन्ति 33. .."उठिहिमो 36. ""उज्जमेसमि 39. ""मुच्छेसहुं 42. ..."ठाहिसि 45. ""मुच्छिहिउँ 48. ....भिडेससि 51. ""णच्चेसमि 54. .."कपिहिसि 57. ""डरिहिउं 60. ""हासमि
उदाहरण1. तुहुं हसेसहि ।
2 अम्हे अम्हई लज्जेसहुँ ।
20 ]
! अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग) निम्नलिखित पुरुषवाचक सर्वनामों के अनुरूप कोष्ठक में दी गई क्रियाओं के
भविष्यत्काल के सभी विकल्प लिखिए1. अम्हे (हस)
2. सो (कुल्ल) 3. तुहुं (उज्जम)
4. ते (भिड) 5. हउं (कंप)
6. तुम्हे (जीव) 7. तुम्हइं (ग)
8. सा (पच्च) 9. अम्हइं (उल्लस)
10. ता (लज्ज) 11. सो (तडफड)
12. तुहुँ (सय) 13. तुम्हे (कलह)
14. ते (उच्छल) 15. सा (उट्ठ)
16. सो (रुव) 17. हउं (लुक्क)
18. तुम्हई (हो) 19. अम्हे (खेल)
20. तुहुँ (हा) 21. ते (धुम)
22. ता (रूस) 23. सो (मर)
24. अम्हइं (जग्ग) 25. सा (डर)
26. तुहुं (थक्क) 27. ते (अच्छ)
28. तुम्हे (पड) 29. हउं (जुज्झ)
30. तुहं (मुच्छ)
उदाहरणअम्हे हसेसहुं/हसेसमो/हसेसमु/हसेसम/हसिहिहुं/हसि हिमो/हसिहिमु/हसि हिम ।
(घ) निम्नलिखित क्रियाओं के पुरुष, वचन, मूलरूप, प्रत्यय एवं काल लिखिए1. घुमेसउं 2. लज्जेसइ
3. उल्लसेसहि 4. हसेसहुं 5. अच्छेसहि
6. उट्ठेसहु 7. लुक्केससि 8. खेलेसमि
9. जीवेसए 10. पडेसमि 11. जग्गेसह
12. जुज्झेसन्ति
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 21
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
13. ठासहि
16. तडफडeिs
19. मुच्छिहिहु
22. णच्चिहिन्ति
25. रुविहिमो
28. कल हिहिसि
उदाहरण
घुमेसउं
22 ]
14. रूसेसमो
17. सयेसइत्था
20. कुल्लि हिउं
23. हासह
26. लुक्कि हिथा
29. भिडिहिहं
पुरुष
उत्तमपुरुष
वचन
एकवचन
15 कंपिहिहि
18. उज्जमेसमु
21. उच्छलिहिहं
24. होस मि
27. डरिहिम
30. ठाहिर
मूलरूप घुम
प्रत्यय काल भविष्य.
सउं
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास 7
(क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए। पुरुषवाचक सर्वनामों एवं
क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए
1. मैं हँसू । 2. मैं कूदता है। 3. मैं प्रयास करूंगा। 4. तुम दोनों बैठो। 5. तुम सब काँपते हो। 6. तुम सब जीवोगे । 7. वह ठहरे। 8. वह नाचती है। 9. वह खुश होवेगा। 10. हम सब सोयें। 11. हम सब शरमाते हैं । 12. हम सब छिपेंगे। 13. तुम उछलो। 14. तुम छटपटाते हो । 15. तुम कलह करते हो। 16. वे सब उठे। 17. वे सब रोती हैं । 18. वे सब होवेंगे। 19. मैं खेलूं। 20. मैं नहाता हूँ। 21. मैं घूमूंगी। 22. तुम सब जागो। 23. तुम सब रूसते हो। 24. तुम सब मरोगे। 25. वह जागे । 26. वह डरती है। 27. वह थकेगा । 28. हम सब बैठे। 29. हम सब गिरते हैं। 30. हम सब मूच्छित होते हैं। 31. मैं हसंगी। 32. मैं कूदूं। 33. तुम सब बैठोगे । 34. वे सब कापते हैं। 35. वह जीवे । 36. तुम ठहरो । 37. वे सब नाचें। 38. तुम सब खुश होवो। 39. हम सब सोयेंगे। 40. वे सब शरमायेंगे। 41. मैं छिपूं। 42. वह तड़फड़ाता है। 43. वे दोनों कलह करते हैं। 44. तुम उठो। 45. वह रोती है । 46. हम सब होवेंगे। 47. तुम सब खेलो। 48. वे सब नहावें । 49. मैं घूमूं। 50. तुम जागते हो। 51. वह रूसती है। 52. वे दोनों मरते हैं। 53. मैं डरूंगी। 54. तुम सब थकते हो। 55. मैं बलूंगा। 56. वे सब गिरते हैं। 57. वह मूच्छित होती है। 58. तुम प्रयास करो । 59. वह नाचेगा । 60. हम दोनों प्रयास करेंगे।
उदाहरणमैं हंसू=हउं हसमु/हसेमु ।
नोट-यह अभ्यास-7 हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 1 से 25
का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम 1
[
23
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) निम्नलिखित क्रियाओं के अनुरूप पुरुषवाचक सर्वनामों के सभी विकल्प लिखिए
1. ""होसहिं 4. ""उल्लसेसइ 7..."रुवहिं 10. ..."णच्चइ 13. ""उट्ठन्तु 16. ""ठाउ 19. ""उल्लसेह 22. ""जीवेउ 25. ""कुल्लेमु 28. . थक्केसए 31. ""पडेसम 34. ""हामि 37. ""जग्गह 40. ""णच्चिहिइ 43. ....पडन्ते 46. ""डरिहिमि 49. .."घुममु 52. ""होहिहुं 55. ""उट्ठ 58. ""लुक्केमु
2. .."कलहहि 5. ""जीवेसहु 8. .."तडफडसि 11. ""कंपहु 14. ""उच्छलि 17. .."अच्छइ 20. "णच्चेन्तु 23. ""कंपन्ति 26. ""हसेसमि 29. .."मरेसइत्था 32. ""डरेद 35. .."अच्छामो 38. .."खेलमु 41. ""मुच्छए 44. "अच्छिहउं 47. .."मरिरे 50. .."ण्हन्तु 53. ..."रुवेइ 56. ... कलहन्ते 59. 'लज्जेसन्ति
3. "लुक्केसहुं 6. ""उज्जमेसउं 9. ." लज्जहुं 12. ""कुल्लउं 15. ..."सयमो 18. ""हसमु 21. .."ठाउ 24. ...अच्छेसह 27. ""मुच्छमो 30. ""घुमिहिउं 33. .."रूसित्था 36. ..."जग्गेउ 39. ..."उज्जमिहिहं 42. .."उज्जमे
.."थक्कित्था
""रूसए 51. ""खेलह 54. "उज्जमु 57. ..."तडफडए 60. .."सयिहिम
उदाहरण1. ते/ता होसहि ।
2. तुहुं कलहहि ।
24
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग) निम्नलिखित पुरुषवाचक सर्वनामों के अनुरूप कोष्ठक में दो हुई क्रियाओं के
निर्देशानुसार वर्तमान (व.), विधि एवं प्राज्ञा (वि.) तथा भविष्यत्काल (भ.) के रूप सभी विकल्पों में लिखिए
1. अम्हे (हस) (व.) 3. हउँ (जुज्झ) (वि.) 5. ते (अच्छ) (वि.) 7. सा (उर) (व.) 9. सो (मर) (भ.) 11. ते (घुम) (वि.) 13. अम्हे (खेल) (व.) 15. हउं (लुक्क) (भ.) 17. सा (उट्ठ) (वि.) 19. तुम्हे (कलह) (व.) 21. सो (तडफड) (भ.) 23. अम्हइं (उल्लस) (वि.) 25. तुम्हइं (ठा) (व.) 27. हउँ (कंप) (भ.) 29. तुहुं (उज्जय) (वि.)
2. तुहूं (मुच्छ) (भ.) 4. तुम्हे (पड) (व.) 6. तुहं (थक्क) (भ.) 8. अम्हई (जग्ग) (वि.) 10. ता (रूस) (व.) 12. तुहुँ (हा) (भ.) 14. तुम्हइं (हो) (वि.) 16. सो (रुव) (व.) 18. ते (उच्छल) (भ.) 20. तुहुं (सय) (वि.) 22. ता (लज्ज) (व.) 24. सा (रगच्च) (भ.) 26. तुम्हे (जीव) (वि.) 28. ते (भिड) (व.) 30. सो (कुल्ल) (भ.)
उदाहरणअम्हे हसहुंहसमु/हसम/हसमो।
(घ) निम्नलिखित क्रियानों के पुरुष, वचन, मूलरूप, प्रत्यय एवं काल लिखिए1. कुल्लमो
2. मुच्छेसि 3. उज्जमेसहि 4. सयेह
5. तडफडए 6. कंपेसहु
अपभ्रंश अम्यास सौरम ]
[
25
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. रूसेमि 10. जग्गहु 13. लुक्कि 16. खेलह
19. लज्जइ
8. ठासु 11. पडमि 14. लज्जमो 17. उछ 20. अच्छहि 23. णच्चन्ति 26. रुवन्ते 29. णच्चिहिहिं
9. जुज्झसहुं 12. जीवेसइ 15. उल्लसेसहि 18. घुमेस 21. हसेसन्ति 24. हाहिहु 27. लुक्केसमो 30. लज्जसे
22. लज्जउ 25. होम 28. तडफडेइ
उदाहरण--
पुरुष वचन कुल्लमो उत्तमपुरुष बहुवचन
मूलरूप कुल्ल
प्रत्यय काल मो वर्तमान, विधि
26 }
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-8 (क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । पुरुषवाचक सर्वनाम,
सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) एवं क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए1. वह रोकर सोता है। 2. तुम उछलकर कूदो । 3. मैं खेलकर खुश होऊंगी। 4. वे कलह करके छिपते हैं। 5. वह नाचकर थकती है। 6 हम डरकर रोते हैं। 7.वे सब कांपकर मरते हैं। 8. तुम गिरकर उठते हो। 9. मैं हंसकर जीती हूँ। 10. वह छटपटाकर मरती है। 11. वे दोनों कूदकर मरती हैं । 12. तुम दोनों भिड़कर रोते हो । 13.वह शरमाकर नाचती है । 16. तुम घूमकर सोवो । 15. हम सब थककर सोयें। 16. वे प्रयास करके उछलेंगे। 17. मैं सोकर उलूंगी। 18. वह लड़कर गिरता है । 19. तुम सब खुश होकर खेलो। 20. वह रोकर मूच्छित होती है। 21. वे दोनों बैठकर उठेंगे। 22. मैं खुश होकर घूमंगी। 23. वह मूच्छित होकर मरती है। 24. तुम ठहरकर बैठो। 25. वे सब जीकर खुश होती हैं । 26. वह नहाकर सोवे । 27. तुम खुश होकर खेलो। 28. वह छिपकर रोती है। 29. तुम हँसकर जीवो। 30. वह प्रयासकर नाचता है।
उदाहरणवह रोकर सोता है =सो रुवि/रुविउ/रुविवि/रुववि/रुवेवि/रुवेविण रुवेप्पि/
रुवेप्पिणु सयइ/सयेइ/सयए ।
(ख) निम्नलिखित संबंधक भूतकृदन्तों का प्रयोग करते हुए अपभ्रंश में वाक्य बनाइए ।
इच्छानुसार पुरुषवाचक सर्वनाम का प्रयोग करते हुए उसके अनुरूप कोष्ठकों में दी हुई क्रियाओं के निर्देशानुसार कालों में सभी विकल्प लिखिए1. हसेप्पिणु (जीव) वर्तमान 2. उठेप्पि (खेल) विधि एवं प्राज्ञा 3. जुज्झि (मर) भविष्यत्काल 4. उच्छलिउ (कुल्ल) विधि एवं प्राज्ञा
नोट-इस अभ्यास-8 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ
27 का अध्ययन करें ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[ 27
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
5. लुक्के वि (रुव) वर्तमानकाल 7. घुमेविणु (सय) विधि एवं प्राज्ञा 9. डरिवि (रुव) वर्तमानकाल
28
11. सयवि ( उट्ठ) भविष्यत्काल 13. रुविउ ( मुच्छ) वर्तमानकाल 15 खेलि ( उल्लस) वर्तमानकाल 17. तडफडवि (मर) भविष्यत्काल 19. जीवेवि ( उल्लस) वर्तमानकाल 21. भिडेविणु ( रूव ) भविष्यत्काल 23. कुल्लेवि (मर) वर्तमानकाल 25. णच्चि (उल्लस) भविष्यत्काल 27. उल्लसेपि ( उज्जम ) वि. एवं प्रा. 29. लज्जि (हम) वर्तमानकाल
उदाहरणसाहसेप्पणु जीवइ / जीवेइ / जीवए ।
( ग - 1 ) निम्नलिखित सर्वनामों के अनुरूप कोष्ठक में दी गई क्रियाओं में से किसी एक क्रिया में सम्बन्धक भूतकृदन्त ( पूर्वकालिक क्रिया) के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । सभी विकल्प लिखिए -
]
1. सो (डर, रुव)
3. ते ( तडफड, मर )
5. अम्हे ( जीव, उल्लस )
7. तुहुं (पड, उट्ठ)
9. सा (लज्ज, गच्च)
6. उज्जमेवि (उच्छल ) भविष्यत्काल 8. कलहेपि ( लुक्क ) वर्तमानकाल 10. उल्लसि (खेल) विधि एवं आज्ञा 12. हाएप्पि ( सय ) विधि एवं प्राज्ञा 14. ठाइउ ( अच्छ) विधि एवं आज्ञा 16. पडवि (रुव) वर्तमानकाल 18. क्किवि ( सय ) विधि एवं आज्ञा 20. लज्जवि (उल्लस) वर्तमानकाल 22. जग्गवि ( उ ) विधि एवं प्राज्ञा 24. मुच्छि ( पड) वर्तमानकाल 26. रूसिवि ( सय) वर्तमानकाल 28. कंपेप्पिणु (पड ) वर्तमानकाल 30. डरवि ( जग्ग) वर्तमानकाल
2. हउं (हस, जीव )
4. सो (जुज्झ, पड)
6. तुम्हे (भिड, रुव)
8. सा ( मुच्छ, मर )
10. सो ( णच्च, थक्क )
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणसो डरि/डरिउ/डरिवि/डरवि/डरेवि/डरेविणु/डरेप्पि/डरेप्पिणु रुवइ/रुवे इ/रुवए ।
(ग-2) निम्नलिखित सर्वनामों के अनुरूप निदिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में
सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए । सभी विकल्प लिखिये1. तुहुं (उच्छल, कुल्ल) 2. तुम्हे (उल्लस, खेल) 3. हउं (ठा, अच्छ)
4. सो (हा, सय) 5. तुहं (घुम, सय)
6. ते (उज्जम, कुल्ल) 7. हवं (खेल, सय)
8. ता (उल्लस, जीव) 9. तुम्हे (खेल, अच्छ) 10. सो (उज्जम, खेल)
उदाहरण
उच्छलि /उच्छलिउ/उच्छलिवि/ तुहं उच्छल वि/उच्छलेवि/उच्छले विणु/
उच्छलेप्पि/उच्छलेप्पिणु
कुल्लि /कुल्ले/कुल्लु/कुल्ल कुल्लहि/कुल्लेहि/कुल्लसु कुल्लेसु ।
(ग-3) निम्नलिखित सर्वनामों के अनुरूप निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में
सम्बन्धक भूतकृदन्त (पर्वकालिक क्रिया) के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में भविष्यकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । सभी विकल्प लिखिए1. हउ (खेल, उल्लस)
2. ते (उज्जम, उच्छल) 3. ता (लज्ज, णच्च)
4. सो (मुच्छ, मर) 5. अम्हइं (अच्छ, उट्ठ)
6. तुम्हे (धुम, उल्लस) 7. हउँ (सय, उट्ठ)
8. सा (हस, गच्च)
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[
29
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
9. ते (उज्जम, खेल)
10. तुहं (उच्छल, कुल्ल)
उदाहरणहउँ खेलि/खेलिउ खेलिवि/खेलवि/खेलेवि
खेलेविणु/खेलेप्पि/खेलेपिणु
उल्लसेसउँ/उल्लसेसमि/ उल्लसिहिउं/उल्लसि हिमि ।
(घ) निम्नलिखित सम्बन्धक भूतकृदन्तों (पूर्वकालिक क्रियाओं) के मूलरूप एवं
उनके प्रत्यय लिखिए1. लज्जिउ
2. घुमि
3. अच्छेविणु 4. डरिवि
5. कलहेवि 6. थक्के प्पिणु 7. उठेप्पि
8. खेलवि
9. हसि 10. जग्गिदि
11. कुल्लिउ 12. उच्छलेवि 13. सयेविणु
14. जीवेप्पिणु
15. कपेवि 16. ठाइउ
17. तडफडि 18. रुविवि 19. पडवि
20 भिडेप्पि 21. उज्जमेरिपणु 22. उल्लसेवि 23. उल्लसेविणु 24. णच्चिउ 25. रूसवि
26. लुक्केप्पि 27. जीवेप्पि 28. व्हाएवि
29. होएविणु 30. मरिउ
उदाहरण
प्रत्यय
लाज
मलाप
मूल रूप लज्ज
प्रत्यय
लज्जिउ
इउ
30
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-9
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिये । पुरुषवाचक सर्वनाम,
हेत्वर्थक कृदन्त एवं क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिये
1. वे सब खुश होने के लिए जीते हैं। 2. तुम जागने के लिए प्रयास करो। 3. हम सब सोने के लिए थकेंगे। 4. वह नाचने के लिए उठती है। 5. वह मरने के लिए कूदता है। 6. तुम उछलने के लिए प्रयास करो। 7 वे दोनों थकने के लिए घूमते हैं। 8. वह मरने के लिये छटपटाता है। 9. तुम दोनों नाचने के लिए उठो। 10. वह लड़ने के लिए मिड़ती है। 11. वे सब सोने के लिए उठे। 12. वे सब जागने के लिए प्रयास करते हैं। 13. वह रोने के लिए छिपता है। 14. तुम खेलने के लिए प्रयास करो। 15. हम सब खुश होने के लिए घूमेंगे । 16 वह कलह करने के लिए भिड़ता है । 17. तुम थकने के लिए घूमो। 18. वे सब घूमने के लिए खुश होवेंगे । 19. तुम सब खुश होने के लिए जीओ। 20. तुम कूदने के लिए उठो। 21. वह खेलने के लिए रूसती है। 22. तुम हंसने के लिए नाची। 23. वह स्नान करने के लिए ठहरेगा। 24. वे सब नाचने के लिए प्रयास करेंगी। 25. तुम सब बैठने के लिए ठहरो। 26. हम सब जीने के लिए खुश होवेंगे । 27. वे लड़ने के लिए छिपते हैं। 28. वे दोनों खेलने के लिए खुश होवेंगी। 29. वह कूदने के लिए ठहरे । 30. वे सोने के लिए रोते हैं ।
उदाहरणवे सब खुश होने के लिए जीते हैं =ते उल्लसेवं/उल्लसण/उल्लसणहं/उल्लसहिं/
उल्लसेवि/उल्लसेविणु/उल्लसेप्पि/उल्लसेप्पिणु जीवहिं/जीवन्ति/ जीवन्ते/जीविरे ।
नोट - इस अभ्यास-9 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 28 का
अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
31
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
निम्नलिखित हेत्वर्थक कृदन्तों का प्रयोग करते हुए अपभ्रंश में वाक्य बनाइये । इच्छानुसार पुरुषवाचक सर्वनाम का प्रयोग करते हुए उसके अनुरूप कोष्ठकों में दी हुई क्रियानों के निर्देशानुसार कालों में सभी विकल्प लिखिये –
1. खेलण (रूस) वर्तमानकाल
3. थक्के (घुम) भविष्यत्काल 5. जग्गगह (उज्जम) विधि एवं प्राज्ञा 7. उच्छलेवि (उज्जम) विधि एवं प्राज्ञा 9. जुज्त्रं (भिड ) वर्तमानकाल 11. घुमेविणु (उल्लस) भविष्यत्काल 13. णच्चणहं (उट्ठ) विधि एवं आज्ञा 15. कुल्लरण (ठा) विधि एवं आज्ञा 17. रुवेवि ( लुक्क ) वर्तमानकाल 19. गच्चेवं (लज्ज) भविष्यत्काल 21. हाएवं (च्छ) विधि एवं प्राज्ञा 23. लुक्केप्पि (उज्जम) भविष्यत्काल 25. जीवेपणु (उज्जम) भविष्यत्काल 27. थक्के त्रिणु (च्च) भविष्यत्काल 29. थक्के विणु (च्च) वर्तमानकाल
उदाहरण-
सो खेल रूसइ / रूसेइ / रूसए ।
( ग - 1 ) निम्नलिखित क्रियाओं में से
32 1
किसी एक में हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग करते हुए दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । कृदन्त एवं क्रिया के सभी विकल्प लिखिये -
1. अम्हे (उल्लस,
जीव )
2. ते ( कलह, भिड )
2. कलह रहि (अच्छ) वर्तमानकाल 4. उल्लसेवि (जीव ) वर्तमानकाल 6. मरण हि (कुल्ल ) वर्तमानकाल 8. उल्लसेपि (घुम) भविष्यत्काल 10. सप्पिणु ( उट्ठ) विधि एवं आज्ञा 12. पडण (कुल्ल) वर्तमानकाल 14. सयेवं ( रुव) वर्तमानकाल 16. जीवेपि ( उल्लस) भविष्यत्काल 18. सयेविणु (ठा) विधि एवं आज्ञा 20. उट्ठर हं (उज्जम) वर्तमानकाल 22. उल्लसह (खेल) विधि एवं प्रज्ञा 24. ठारण (प्रच्छ) विधि एवं आज्ञा 26. जुज्झेवि (उट्ठ) वर्तमानकाल 28. सुप्पि ( थक्क) विधि एवं आज्ञा 30. कुल्लेविणु ( उट्ठ) भविष्यत्काल
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
3. ता (थक्क, घुम) 5. सा (गच्च, उट्ठ) 7. ता (खेल, रूस) 9. सा (उट्ठ, उज्जम)
4. हउं (जग्ग, उज्जम) 6. सो (मर, कुल्ल) 8. तुहुं (सय, रुव) 10. तुम्हई (पड, कुल्ल)
उदाहरणअम्हे उल्लसेवं/उल्लसण/उल्लसण/उल्लसणहिं/उल्लसेवि/उल्लसेविणु/उल्लसेप्पि/
उल्लसेप्पिणु जीवहुं/जीवमु/जीवम/जीवमो ।
(ग-2) निम्नलिखित क्रियानों में से किसी एक में हेत्वर्थक कृदन्त का प्रयोग कीजिए
तथा दूसरी क्रिया में सर्वनामों के अनुरूप विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । कृदन्त व क्रिया के सभी विकल्प लिखिए1. ते (घुम, उल्लस)
2. तुहुँ (ण्हा, ठा) 3. अम्हे (जीव, उल्लस) 4. ता (थक्क, घुम) 5. तुम्हइं (लुक्क, उज्जम) 6. सा (थक्क, णच्च) 7. सो (कुल्ल, उट्ठ)
8. ता (णच्च, लज्ज) 9. ता (उल्लस, घुम)
10. हर्ड (खेल, ठा)
उदाहरणते उल्लसेवं उल्लसण/उल्लसणहं/उल्लसहिंउल्लसेवि/उल्लसेविणु/उल्लसेप्पि/
उल्लसेप्पिणु घुमन्तु/घुमेन्तु ।
(ग-3) निम्नलिखित क्रियाओं में से किसी एक में हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग
कीजिए तथा दूसरी क्रिया में सर्वनामों के अनुरूप भविष्यत्काल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । कृदन्त एवं क्रिया के सभी विकल्प लिखिये1. ते (जग्ग, उज्जम) 2. तुम्हइं (सय, उट्ठ) 3. तुहुँ (कुल्ल, ठा)
4. सो (ण्हा, अच्छ)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 33
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
5. सा (णच्च, उट्ठ) 7. तुम्हे (हस, गच्च) 9. तुहं (सय, थक्क)
6. ता (उल्लस जीव) 8 अम्हई (अच्छ, ठा) 10. हउं (उच्छल, उज्जम)
-
उदाहरणते जग्गेवं/जग्गण/जग्गणहं/जग्गणहिं/जग्गेवि/जग्गेविणु/जग्गेप्पि/जग्गेप्पिणु
उज्जमेसहि। उज्जमेसन्ति/उज्जमिहिहिं/उज्जमिहिन्ति ।
(घ) निम्नलिखित हेत्वर्थक कृदन्तों की मूलक्रिया एवं उनके प्रत्यय लिखिए1. हसणहं 2. लज्जेवि
3. घुमण 4. रुवेवं 5. तडफडण
6. कलहणहिं 7. उठेप्पि 3. अच्छेप्पिणु
9. पडेवं 10. मुच्छण 11 भिडणहं 12. जुज्झणहि 13. उच्छलेप्पि 14. सयेविणु 15. कुल्लेवि 16. उज्जमेप्पिण 17. खेले
18. रणचण 19 उल्लसहिं 20. मरेप्पि
21. जीवेवं 22. कंपण
23. लुक्केवि 24. ठाण 25. रूसणहं
26. जग्गणहिं 27. व्हाएवं 28. जीवेविणु 29. होण
30. सयेवं
-
उदाहरण
मूलक्रिया हस
प्रत्यय अणह
हसणहं
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-10 (क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए । पुरुषवाचक सर्वनाम,
सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया), हेत्वर्थक कृदन्त एव क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए1. तुम खुश होकर जीनो। 2. वह नाचने के लिए उठती है । 3. वे सब उछलने के लिए प्रयास करेंगे। 4. तुम घूमकर थकते हो। 5. वह मरने के लिए कूदता है। 6. तुम सब हंसकर खेलो। 7. हम सब जागकर उठते हैं। 8. मैं खेलकर प्रसन्न होती हूँ। 9. वह नाचने के लिए शरमाएगी। 10. तुम सब ठहरकर स्नान करो। ।। मैं घूमने के लिए उलूंगी। 12. वह कांपकर मूच्छित होता है। 13 वे दोनों लड़ कर मरेंगे। 14 तुम दोनों बैठने के लिए ठहरो। 15. वे दोनों लड़कर तड़फड़ाते हैं। 16. मैं हँसकर जीतूंगी। 17. वह शरमाकर नाचेगी। 18. तुम रूसकर सोते हो। 19. वे जागने के लिए प्रयास करें। 20. वे सब घूमने के लिए प्रसन्न होवेंगी। 21 . तुम उठने के लिए ठहरो। 22. वह रोकर सोवेगी। 23. हम सब प्रसन्न होने के लिए घूमेंगे । 24. वे सब लड़ने के लिए छिपते हैं। 25. तुम स्नान करके सोवो। 26. तुम नाचकर थकते हो। 27. वे सब बैठकर खेलें। 28. तुम उठने के लिए जागो । 29. मैं सोने के लिए उठती हैं। 30. वह खुश होकर घूमेगी।
उदाहरणतुम खुश होकर जीयो तह उल्लसि/उल्लसिउ/उल्लसिवि/उल्लसवि/उल्लसेवि/
उल्लसेविणु/उल्लसेप्पि/उल्लसेप्पिणु जीव/जीवि/जीवे/
जीवु/जीवहि/जीवेहि/जीवसु/जीवेसु । (ख) निम्नलिखित कृदन्तों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए। इच्छानुसार पुरुष
वाचक सर्वनाम का प्रयोग करते हुए निर्देशानुसार कालों में क्रिया के सभी विकल्प लिखिए1. उल्लसि (जीव) विधि एवं आज्ञा 2. णच्चणहं (लज्ज) भविष्यत्काल 3. कंपिवि (मुच्छ) वर्तमान काल 4. हसवि (खेल) विधि एवं आज्ञा
नोट-इस अभ्यास-10 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 27
28 का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 35
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
5. घुमहिं (उल्लस) भविष्यत्काल 7. हसण ( उट्ठ) वर्तमानकाल 9. उल्लसेवं (घुम) भविष्यत्काल 11. सवि ( उट्ठ) वर्तमानकाल 13. उट्ठे विणु (जग्ग) विधि एवं आज्ञा 15. ठाअवि (पहा ) विधि एवं आज्ञा 17. जग्गेविणु ( उट्ठ) वर्तमानकाल 19. ज्जिवि (च्च) वर्तमानकाल 21. उज्जमण ( उट्ठ) विधि एवं आज्ञा 23 जीवण ( उज्जम ) भविष्यत्काल 25. लुक्कवि (च्छ) विधि एवं श्राज्ञा 27. थक्केपि (घुम) भविष्यत्काल 29. तडफडेपिणु (मर) भविष्यत्काल
36
उदाहरण
तु
उल्लसि जीवि / जीवु / जीवे / जीव / जीव हि / जीवेहि / जीवसु / जीवेसु ।
( ग - 1 ) निम्नलिखित क्रियाओं में से किसी एक क्रिया में सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) या हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरो क्रिया में सर्वनाम के अनुरूप वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए । सभी विकल्पों का प्रयोग कीजिए
1. सो ( लज्ज, णच्च)
3. हउं ( खेल, उल्लस )
5. ते (मर, कुल्ल)
7. तुम्हे ( उल्लस, घुम ) 9. सो ( कलह, रुव)
]
6. हाइ ( सय ) विधि एवं प्राज्ञा 8 खेलि ( उल्लस) वर्तमानकाल 10. अच्छे प्पि (खेल) विधि एवं आज्ञा 12. रुवेपिणु ( सय) भविष्यत्काल 14. मरेवं ( कुल्ल) वर्तमानकाल 16. उच्छलणहि (उज्जम) भविष्यत्काल 18. उट्ठा (ठा) विधि एवं आज्ञा 20. जुज्झेविणु (मर) भविष्यत्काल 22. घुमि (ठा ) भविष्यत्काल 24. कलहिवि (रुव) वर्तमानकाल 26. खेलणहं (रूस) वर्तमानकाल 28. पडिउ ( रुव) वर्तमानकाल
30. उल्लसेवि ( णच्च) विधि एवं आज्ञा
उदाहरण
सो लज्जि / लज्जिउ / लज्जवि / लज्जिवि / लज्जे वि/लज्जेविणु/लज्जेपि / लज्जे पिणु
गच्चइ / गच्चेइ / णच्चए |
2. सा ( जुज्झ, मर)
4. तुहुं (सय, उट्ठ)
6. अम्हे ( खेल, अच्छ) 8. ता (कंप, मर )
10. तुहुं (पड, रुव)
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग-2) निम्नलिखित क्रियाओं में से किसी एक में सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक
क्रिया) या हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में सर्वनाम के अनुरूप विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए। सभी विकल्प लिखिए1. सो (खेल, उज्जम)
2. तुहुँ (ठा, अच्छ) 3. हउं (खेल, सय)
4. ता (उल्लस, जीव) 5. ते (कुल्ल, उज्जम)
6. ते (जग्ग, उज्जम) 7. तुम्हइं (हा, सय)
8. तुहं (उट्ठ, जग्ग) 9. सा (अच्छ, खेल)
10. तुम्हे (हस, खेल)
उदाहरणसो उज्जमि/उज्जमिउ/उज्जमवि/उज्जमिवि/उज्जमेवि/उज्जमेविणु/उज्जमेप्यि/ उज्जमेप्पिण खलउ/खेलेउ।
(ग-3) निम्नलिखित क्रियानों में से किसी एक में सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक
क्रिया) या हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में सर्वनाम के अनुरूप भविष्यत्काल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए। सभी विकल्पों का प्रयोग कीजिए1. ते (उच्छल, उज्जम) 2. हउं (खेल, उल्लस) 3. अम्हे (उल्लस, घुम) 4. सा (णच्च, लज्ज) 5. तुहुं (उच्छल, कुल्ल) 6. ता (सय, उट्ठ) 7. तुम्हइं (हा, सय) 8 हउं (हस, जीव) 9. सो (मुच्छ, मर)
10. सा (उल्लस, णच्च)
उदाहरण - ते उच्छलि/उच्छलिउ/उच्छलवि/उच्छलिवि/उच्छलेवि/उच्छले विण/उच्छले प्पि/
उच्छलेप्पिणु उज्जमेसहि/उज्जमेसन्ति/उज्जमिहिहिं/उज्जमिहिन्ति ।
-
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 37
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
(घ) निम्नलिखित कृदन्तों की मूलक्रिया, प्रत्यय एवं कृदन्त का नाम लिखिए1. हसि 2 घुमेवं
3. मुच्छिउ 4. सयेवि 5. ठावि
6. तडफडण 7. जुज्झिवि 8 गच्चणहं
9. उठेविणु 10. कुल्लाहिं 11. रूसवि
12. पडेप्पि 13. खेलवि 14. लुक्किउ
15. मरेवं 16. अच्छि 17. कंपण
18. थक्किवि 19. जग्गेपि 20. व्हायण
21 कलहवि 22. उल्लसणह 23. डरिवि
24 जीवेवि 25. उज्जमणहिं 26. होएप्पिणु
27. रुवण 28. उच्छलि 29. मिडण
30. लज्जेविणु
उदाहरण
हसि
मूलक्रिया हस
प्रत्यय इ
कृदन्त सम्बन्धक भूत कृदन्त
-
38
]
[ अपभ्रंश अभ्याम सौरभ
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-11
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, कृदन्त एवं क्रियारूपों
के सभी विकल्प लिखिए - 1. कुत्ता भोंकता है। 2. ऊंट नाचता है। पुत्र प्रसन्न होवे। 4. मनुष्य बूढ़ा होता है। 5. समुद्र सूखेगा। 6. मामा उठे। 7. अग्नि जलेगी। 8. राक्षस मरे। 9 वस्त्र सूखता है। 10. संसार नष्ट होगा। 11. शास्त्र शोभे । 12. गर्व गलता है। 13. ससुर बैठे। 14 मित्र खुश होवेगा। 15. सूर्य उगता है। 16. रत्न शोभता है। 17. दु:ख गले । 18. सिंह बैठता है । 19. मकान गिरेगा। 20 व्रत टूटता है । 21. समुद्र फैले । 22. दादा थकेगा। 23. पोता घूमे। 24. गर्व नष्ट हो। 25. राम प्रसन्न होता है। 26. बालक रूसेगा । 27. अपयश फैलता है । 28. पुस्तक गिरती है। 29. पिता उठता है । 30. देवर घूमे । 31. परमेश्वर प्रसन्न होवे । 32. कुप्रा सूखेगा । 33. नरेश जीवे । 34. राजा हंसता है। 35. हनुमान कूदता है। 36. मृत्यु होती है । 37. हवा फैलती है । 38. पानी झरेगा। 39. बाप जीवे । 40. पानी झरकर लुढ़कता है । 41 मनुष्य पैदा होकर मरता है । 42. दादा जीने के लिए प्रसन्न होवे : 43. बालक सोने के लिए रोता है। 44. सूर्य उगकर शोभेगा। 45. मामा प्रसन्न होकर बैठे। 46. सर्प उड़कर गिरेगा। 47. पोता नाचने के लिए उठे। 48. पुत्र कलह करके शरमायेगा। 49. ऊंट थकने के लिए नाचेगा । 50. देवर घूमने के लिए उठे । 51. रत्न गिरकर टूटता है। 52. पिता जगकर डोलता है। 5 3. घर गिरकर नष्ट होगा। 54. पुस्तक जलकर नष्ट होती है। 55. कुत्ता भोंककर बैठता है । 56. व्रत टूटकर गलता है। 57. राक्षस मरने के लिए कूदेगा। 58. पानी फैलकर सूखेगा ।
उदाहरणकुत्ता भोंकता है=कुक्कुर कुक्कुरा/कुक्कुरु/कुक्कुरो बुक्कइ/बुक्के इ/बुक्कए ।
नोट -इस अभ्यास-11 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 29
30 का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
39
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) नीचे प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में क्रियाएं दी गई हैं । अकारान्त
पुल्लिग संज्ञाओं में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्देशित कालों में वाक्य बनाइए । सभी विकल्प लिखिए1. नरिंद (हस) वर्तमानकाल 2. पुत्त (हरिस) विधि एवं प्राज्ञा 3. सायर (सुक्क) भविष्यत्काल 4. गव्व (गल) वर्तमानकाल 5. ससुर (बइस) विधि एवं प्राज्ञा 6. मित्त (उल्लस) भविष्यत्काल 7. दुज्जस (पसर) वर्तमानकाल 8. दिअर (घुम) विधि एवं प्राज्ञा 9. बालन (कंद) भविष्यत्काल 10. रणर (जर) वर्तमानकाल 11. माउल (उ) विधि एवं प्राज्ञा 12. घर (पड) भविष्यत्काल 13. पड (सुक्क) वर्तमानकाल 14. पिप्रामह (बल) वर्तमानकाल 15. दिवायर (उग) भविष्यत्काल 16. वय (तुट्ट) वर्तमानकाल 17. परमेसर (हरिस) विधि एवं आज्ञा 18. करह (पला) भविष्यत्काल 19. कुक्कुर (बुक्क) वर्तमानकाल 20. गंथ (जल) वर्तमानकाल 21. जगेर (सय) भविष्यत्काल 22. पोत्त (खेल) भविष्यत्काल 23. रहुणन्दण (हरिस) वर्तमानकाल 24. आगम (सोह) विधि एवं प्राज्ञा 25. सप्प (उड्ड) वर्तमानकाल 26. भव (खय) वर्तमानकाल 27. कूव (सुक्क) भविष्यत्काल 28. रयण (उपज्ज) वर्तमानकाल 29. राय (उज्जम) विधि एवं प्राज्ञा 30. हणुवन्त (कुल्ल) वर्तमानकाल 31. हुअवह (जल) भविष्यत्काल 32. मारुप (डुल) वर्तमानकाल 33. कियंत (हो) भविष्यत्काल 34. सीह (ब इस) वर्तमानकाल 35. दुह (नस्स) विधि एवं प्राज्ञा 36. बप्प (जीव) वर्तमानकाल 37. सलिल (णिज्झर) भविष्यत्काल 38. रक्खस (मर) भविष्यत्काल 39. सलिल (लुढ) वर्तमानकाल
उदाहरणनरिंद/नरिंदा/नरिंदु/नरिंदो हसइ/हसे इ/हसए ।
40
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग-1) नीचे प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं।
सज्ञानों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए और दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए। संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. कुक्कुर (बुक्क, बइस) 2. पियामह (घुम, उट्ट) 3. रयण (पड, तुट्ट)
4. जणेर (जग्ग, कुल्ल) 5. पोत (थक्क, घुम)
6. घर (जल, पड) 7. वय (गल, नस्स)
8. रहुणन्दरण (हरिस, बइस) 9. पड (जल, खय)
10. दिवायर (सोह, उग)
उदाहरण - कुक्कुर कुक्कुरा) बुतिक/बुक्कि उ/बुक्किवि/बुक्कवि बइस इ/बइसेइ/ कुक्कुरु/कुक्कुरो बुक्के वि बुक्के विणु/बुक्के रिप/बुक्के प्पिणु बइसए ।
(ग-2) नोचे प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए और दूसरी क्रिया में विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. णर (जीव, हरिस) 2. करह (थक्क, गच्च) 3. दिग्रर (घुम, उ8)
4. जणेर (हरिस, अच्छ) 5. रयण (सोह, उपज्ज) 6. सलिल (सुक्क, णिज्झर) 7. माउल (कुल्ल, उज्जम) 8. नरिंद (हरिस, बइस) 9. बालन (णच्च उट्ठ) 10. पोत (खेल, उज्जम)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
41
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणगर/गरा/ हरिसि/हरिसिउहरिसवि/हरिसिवि णरु/णरो हरिसेवि/हरिसेविणु/हरिसेप्पि/हरिसेप्पिणु
जीवउ/जीवेउ ।
-
(ग-3) नीचे प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए और दूसरी क्रिया में भविष्यत्काल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए1. पुत्त (कलह, लज्ज) 2. रक्खस (कुल्ल, मर) 3. सप्प (उड्ड, पड)
4. सलिल (पसर, सुक्क) 5. दिवायर (सोह, उग्ग) 6. पड (जल, नस्स) 7. मारुन (पसर, उड्ड) 8. दुक्ख (उपज्ज, खय) 9. बालम (रुव, सय)
उदाहरणपुत्त/पुत्ता/ कलहि/कलहिउकलहवि/कलहिवि लज्जेस इ/लज्जेसए। पुत्तु/पुत्तो कलहेवि/कलहेविणु/कलहेप्पि/कलहेप्पिणु लज्जिहिइ/लज्जिहिए ।
(घ) नीचे प्रकारान्त संज्ञाएँ विभक्ति-प्रत्ययसहित दी गई हैं। उनके पुरुष, वचन,
मूलसंज्ञा, लिंग एवं प्रत्यय लिखिए1. नरिंदु 2. करहो
3. हणुवन्ता 4. पोत्त 5. कुक्कुरु
6. गव्वा 7. मित्तो 8. बालम
9. पिग्रामहो 10. णरा 11. सप्पु
12. भव 13. सायरो 14. हुप्रवहु
15. पड
42 }
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
16. सीहा 19. प्रागमु 22. रक्खसु 25. गामु 28. घरो
17. रयणु 20. मारुन 23. दुक्खा 26. राया 29. वयु
18. दिप्ररो 21. कियंता 24. बप्पो 27. दुज्जसु 30. माउल
उदाहरण---
पुरुष नरिंदु अन्यपुरुष
वचन एकवचन
मुलसंज्ञा नरिंद
लिंग पुल्लिग
प्रत्यय उ
नोट-अभ्यास-10 तक वाक्य-रचना सर्वनाम शब्दों के आधार पर की गई है। सर्व
नाम शब्दों के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' का निर्देशानुसार उपयोग करें
सर्वनाम शब्द 1. उतम पुरुष तीनों लिंगों के लिए देखें पाठ-83, पृष्ठ संख्या 184, अम्ह
(मैं) सर्वनाम शब्द । मध्यम पुरुष तीनों लिंगों के लिए देखें पाठ-83, पृ. सं. 184, तुम्ह (तुम) सर्वनाम शब्द । अन्य पुरुष पुल्लिग के लिए देखें पाठ-83, पृ. सं. 172, त (वह) सर्वनाम
शब्द ।
अन्य पुरुष नपुंसकलिंग के लिए देखें पाठ-83, पृ.सं. 172, त (वह) सर्वनाम शब्द । अन्य पुरुष स्त्रीलिंग के लिए देखें पाठ-83, पृ. सं. 173, ता (वह) सर्व
नाम शब्द ।
अभ्यास-11 से वाक्य-रचना संज्ञा शब्दों के आधार पर की गई है। इसके लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' का निर्देशानुसार उपयोग कीजिए । सभी संज्ञा शब्दों का पुरुष, लिग व अकारान्त आदि के अनुसार वर्गीकरण इस प्रकार हैसंज्ञा शब्द - सभी तरह के संज्ञा शब्द 'अन्य पुरुष' के अन्तर्गत आते हैं ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 43
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
2.
3.
4.
5.
7.
44
8.
9.
पाठ 29 में दिए गए सभी संज्ञा शब्द अकारान्त पुल्लिंग हैं। इन सभी के रूप पाठ -- 83, पृष्ठ संख्या 164 में दिए गये अकारान्त पुल्लिंग शब्द 'देव' के अनुसार चलेंगे ।
6
पाठ 58 (1) में दिए गए सभी संज्ञा शब्द इकारान्त नपुंसकलिंग हैं । इन सभी के रूप पाठ - 83, पृष्ठ संख्या 167 पर दिए गए इकारान्त नपुंसकलिंग शब्द 'वारि' के अनुसार चलेंगे ।
]
पाठ 33 में दिए गए सभी संज्ञा शब्द प्रकारान्त नपुंसकलिंग हैं । इन सभी के रूप पाठ - 83, पृष्ठ संख्या 166 में दिए गए अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द 'कमल' के अनुसार चलेंगे ।
पाठ 37 में दिए गए सभी संज्ञा शब्द आकारान्त स्त्रीलिंग हैं । इन सभी के रूप पाठ:- 83, पृष्ठ संख्या 168 पर दिए गए आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'कहा' के अनुसार चलेंगे ।
पाठ 54 (1) में दिए गए सभी संज्ञा शब्द इकारान्त पुल्लिंग हैं । इन सभी के रूप पाठ - 83, पृष्ठ संख्या 164 पर दिए गए इकारान्त पुल्लिंग शब्द 'हरि' के अनुसार चलेंगे ।
पाठ 54 (2) में दिए गए सभी संज्ञा शब्द उकारान्त पुल्लिंग हैं । इन सभी के रूप पाठ- 83, पृष्ठ संख्या 165 पर दिए गए उकारान्त पुल्लिंग शब्द 'साहु' के अनुसार चलेंगे ।
पाठ 58 (2) में दिए गए सभी संज्ञा शब्द उकारान्त नपुंसकलिंग हैं । इन सभी के रूप पाठ - 83, पृष्ठ संख्या 167 पर दिए गए उकारान्त नपुंसकलिंग शब्द 'महु' के अनुसार चलेंगे ।
पाठ 58 (3) में दिए गए सभी संज्ञा शब्द इकारान्त स्त्रीलिंग हैं । इन सभी के रूप पाठ - 83, पृष्ठ संख्या 168 पर दिए गए इकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'मइ' के अनुसार चलेंगे ।
पाठ 58 ( 4 ) में दिए गए सभी संज्ञा शब्द ईकारान्त स्त्रीलिंग हैं। इन सभी के रूप पाठ - 83, पृष्ठ संख्या 169 पर दिये गये ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'लच्छी' के अनुसार चलेंगे ।
[ अपभ्रंश ग्रभ्यास सौरभ
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
10. पाठ 58 (5) में दिए गए सभी संज्ञा शब्द उकारान्त व ऊकारान्त स्त्रीलिंग
शब्द हैं । इन सभी के रूप पाठ-83, पृष्ठ संख्या 169 पर दिए गए उकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'धेणु' तथा पृष्ठ संख्या 170 पर दिए गए. ऊकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'बहू' के अनुसार चलेगे।
11. पाठ 58(6) में दिए गए सभी संज्ञा शब्द ईकारान्त व ऊकारान्त पुल्लिग शब्द
हैं । ईकारान्त पुल्लिग संज्ञा शब्दों के रूप पाठ-83, पृष्ठ संख्या 165 पर दिए गए ईकारान्त पुल्लिग शब्द 'गामरणी' के अनुसार चलेंगे। ऊकारान्त पुल्लिग सज्ञा शब्दों के रूप पृष्ठ संख्या 166 पर दिए गए ऊकारान्त पुल्लिग शब्द 'सयंभू' के अनुसार चलेंगे।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ 1
[
45
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-12
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, कृदन्त एवं क्रिया-रूपों
के सभी विकल्प लिखिए1. कुत्ते भोंकते हैं। 2. ऊंट नाचते हैं । 3. पुत्र प्रसन्न होवें। 4. मनुष्य बूढ़े होते हैं। 5. समुद्र सूखेगे। 6. मेघ गरजते हैं। 7. राक्षस मरें। 8. वस्त्र सूखते हैं। 9 शास्त्र शोभे । 10. मित्र खुश होवेंगे। 11. रत्न शोभते हैं। 12. सिंह बैठेंगे । 13. मकान गिरते हैं। 14. पोते घूमें। 15. बालक रूसेंगे। 16. शास्त्र नष्ट होते हैं । 17. पुस्तकें गिरती हैं। 18. कुएँ सूखेंगे। 19. राजा हंसते हैं । 20. व्रत शोभते हैं । 21. राक्षस डरते हैं । 22. दुःख गलें । 23. पुत्र जीवें। 24. सर्प उड़ेंगे। 25. मामा उठे। 26. राक्षस मूच्छित होंगे । 27. मनुष्य प्रयास करें। 28. बालक रोते हैं । 29. नरेश प्रसन्न हों: 30. मेघ फैलेंगे। 31. मकान जलेंगे । 32. पुस्तकें नष्ट होवेंगी। 33. पुत्र कांपते हैं । 34. व्रत टूटते हैं। 35. राक्षस भागेंगे । 36. कुत्ते लड़ते हैं । 37 राजा मूच्छित होते हैं । 38. बालक कूदते हैं। 39. पोते उछलें। 40. मनुष्य लड़ते हैं । 41. बालक सोने के लिए रोते हैं। 42. मामा प्रसन्न होकर बैठें। 43. सांप उड़कर गिरेंगे। 44. पुत्र कलह करके शरमाएंगे। 45. पोते नाचने के लिए उठे । 46. ऊँट नाचकर थकेंगे। 47. रत्न गिरकर टूटते हैं। 48. घर जलकर गिरेंगे। 49. कुत्ते भोंककर लड़ते हैं। 50. राक्षस मरने के लिए कूदेंगे। 51. पुत्र प्रसन्न होकर जीवें । 52. मनुष्य पैदा होकर मरते हैं। 53. बालक उछलकर कूदें। 54. पोते नाचने के लिए प्रयास करें। 55. राजा प्रसन्न होकर बैठे। 56. राक्षस मूच्छित होकर मरेंगे। 57 बालक मागकर खेलें। 58. पूत्र नाचकर थकते हैं।
उदाहरणकुत्ते मोंकते हैं =कुक्कुर कुवकुरा बुक्कहिं बुक्क न्ति/बुक्कन्ते। बुविकरे ।
नोट-इस अभ्यास-12 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 31
का अध्ययन करें।
___46 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) नीचे प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में क्रियाएं दी गई हैं । संज्ञाओं में
प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट कालों में वाक्य बनाइए । संज्ञा व क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए1. नरिंद (हस) वर्तमानकाल 2. पुत्त (हरिस) विधि एवं प्राज्ञा 3. सायर (सुक्क) भविष्यत्काल 4. गव्व (गल) विधि एवं प्राज्ञा 5. मित्त (उल्लस) भविष्यत्काल 6. दिअर (घुम) वर्तमानकाल 7. बालअ (कंद) भविष्यत्काल 8. रणर (जर) वर्तमानकाल 9. माउल (उ8) विधि एवं प्राज्ञा 10. घर (पड) भविष्यत्काल 11. पड (सुक्क) वर्तमानकाल 12. वय (तुट्ट) वर्तमानकाल 13. करह (पला) भविष्यत्काल 14. कुक्कुर (बुक्क) वर्तमानकाल 15. गंथ (जल) वर्तमानकाल 16. जगेर (सय) भविष्यत्काल 17. पोत्त (खेल)विधि एवं प्राज्ञा 18. आगम (सोह) विधि एवं प्राज्ञा 19. सप्प (उड्डु) वर्तमानकाल 20. कूव (सुक्क) वर्तमानकाल 21. रयण (उपज्ज) वर्तमानकाल 22. राय (उज्जम) विधि एवं प्राज्ञा 23. सीह (बइस) वर्तमानकाल 24. दुह (नस्स) विधि एवं प्राज्ञा 25. रक्खस (मर) भविष्यत्काल 26. करह (गच्च) वर्तमानकाल 27. रयण (सोह) भविष्यत्काल 28. णर (उज्जम) विधि एवं प्राज्ञा 29. गंथ (नस्स) भविष्यत्काल 30. पुत्त (कंप) वर्तमानकाल 31. राय (हरिस) विधि एवं प्राज्ञा 32. दुह (गल) भविष्यत्काल 33. घर (जल) वर्तमानकाल 34. सप्प (वल) भविष्यत्काल 35. पोत्त (कुल्ल) विधि एवं प्राज्ञा 36. पुत्त (उच्छल) विधि एवं प्राज्ञा 37. मित्त (उ8) विधि एव प्राज्ञा 38. माउल (डर) वर्तमानकाल . 39. रक्खस (मुच्छ) भविष्यत्काल
उदाहरणनरिंद/नरिंदा हसहि/हसन्ति/हसन्ते/हसिरे ।
अपभ्रंश अभ्यास सोरम ]
[ 47
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग-1) मोचे प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं।
संज्ञाओं में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियात्रों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए। संज्ञा,क्रिया एवं कृदन्तरूपों के सभी विकल्प लिखिए1. कुक्कुर (बुक्क, बइस)
2. रयण (पड, तुट्ट) 3. घर (जल, पड)
4. पोत (थक्क, घुम) 5. वय (गल, नस्स)
6. पड (जल, खय) 7. बालय (सय, कंद)
8. णर (उपज्ज, मर) 9 पुत्त (णच्च, थक्क)
10. रक्खस (मर, कुल्ल) उदाहरणकुक्कुर/कुक्कुरा बइसि/बइसिउ/वइसवि/बइसिवि/बइसेप्पि/बइसेप्पिणु बइसेवि बइसे विणु बुक्क हिं/बुक्कन्ति/बुक्कन्ते/ब विकरे ।
(ग-2) नीचे प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्तरूपों के सभी विकल्प लिखिए1. णर (जीव, हरिस)
2. करह (थक्क, णच्च) 3. दिअर (घुम, उट्ट)
4. रयण (सोह, उपज्ज) 5. पोत्त (गच्च, उट्ट)
6. माउल (कुल्ल, उज्जम) 7. नरिंद (हरिस, बइस) 8. बालन (णच्च, उट्ठ) 9. पोत्त (खेल, उज्जम)
10. बालअ (पला, खेल) उदाहरणगर/गरा हरिसेवं/हरिसण/हरिसणहं/हरिसणहिं/हरिसेप्पि/हरिसेप्पिणु/ हरि सेवि/हरिसेविण जीवन्तु/जीवेन्तु ।
-
48 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग-3) नीचे प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं ।
संज्ञाओं में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से कसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में भविष्यत्काल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्तरूपों के सभी विकल्पों का प्रयोग कीजिए - 1. पुत्त (कलह, लज्ज)
2. रक्खस (कुल्ल, मर) 3. सप्प (उड्डु, पड)
4. पड (जल, नस्स) 5. दुक्ख (उपज्ज, खय) 6. बालम (रुव, सय) 7. करह (णच्च, यक्क) 8 रयण (पड, तुट्ट) 9. बालअ (पला, खेल)
उदाहरण
पुत्त/पुत्ता कलहि/कलहिउ कलहिवि/कलहवि/कलहेवि/कल हेविण कलहेप्पि/ कलहेप्पिणु लज्जेसहि लज्जेसन्ति/लज्जिहिहि/लज्जिहिन्ति ।
7. बालन
(घ) नीचे प्रकारान्त संज्ञाएँ प्रत्ययसहित दी गई हैं, उनके पुरुष, वचन, मूलसंज्ञा, लिंग
एवं प्रत्यय लिखिए1. नरिंद 2. करह
3. पोत्ता 4. कुक्कुर 5. गव्वा
6. मित्त 8. पियामहा
9. पर 10. सप्पा 11. भव
12. सायरा 13. हुअवह
15. सीहा 16. हणुवन्ता 17. रयणा
18. दिअर 19. अागमा 20. मारुन
21. कियंता 22. रक्खसा 23. दुक्ख
24. बप्पा
14. पड
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 49.
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
25. गाम 28. घर
26. राया 29. वय
27. दुज्जसा 30. माउल
उदाहरण
पुरुष नरिंद अन्य पुरुष
वचन
प्रत्यय
वचन बहु/एक
मूलसंज्ञा लिंग नरिंद पुल्लिग
प्रत्यय शून्य
50
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-13 (क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए। प्रकारान्त नपुंसकलिंग
संज्ञारूपों, क्रिया एवं कृदन्तरूपों के सभी विकल्प लिखिए1. धन बढ़ता है। 2. धान उगेगा। 3. मद्य छूटे। 4. शासन फलेगा। 5. व्यसन नष्ट होवे । 6. गठरी लुढ़कती है। 7. सुख बढ़े। 8. दूध टपकेगा । 9. दुःख घटे । 10. राज्य प्रयत्न करें। 11. यौवन खिलता है। 12. सदाचार शोभे । 13 आकाश गंजता है। 14. वैराग्य • बढ़े। 15. नागरिक सोयेगा। 16. विमान उड़े। 17. कागज सूखता है । 18. छींक कम होती है । 19. राज्य भूल करता है। 20. सत्य खिले । 21. लकड़ी जलेगी। 22. पानी टपके । 23. गीत गूंजे । 24. जुना छूटे । 25. घास उगती है। 26. पानी टपकता है । 27. भोजन कम होवे । 28. भय नष्ट होवे । 29. रक्त टपकता है। 30. मरण सिद्ध होता है । 31. खेत जलता है । 32. वस्त्र सूखेगा । 33. काठ जलती है । 34. भोजन बढ़ेगा। 35. घी तपे। 36. सिर दुखता है। 37. धान उगे । 38. जंगल नष्ट होता है। 39. सदाचार शोभता है। 40. वस्त्र जलेगा। 41. पानी टपकेगा। 42. रूप खिलकर प्रकट होता है। 43. धागा गलकर टूटता है। 44. नागरिक जागने के लिए प्रयत्न करे। 45. विमान ठहरकर उड़ेगा। 46. राज्य फैलने के लिए झगड़ा करता है। 47. नागरिक ठहरकर उपस्थित होगा। 48. गीत गूंजकर प्रकट होवेगा। 49. नागरिक कूदने के लिए प्रयास करें। 50. मन लालच करने के लिए क्रीड़ा करता है । 51. शासन प्रयत्न करने के लिए उत्साहित होता है। 52. ज्ञान बढ़कर प्रकट होवे। 53. नागरिक जागने के लिए प्रयत्न करेगा। 54. घान उगकर बढ़ता है। 55. मन खेलने के लिए रमे। 56. धन झगड़ने के लिए होता है। 57. धागा टूटकर नष्ट होवेगा। 58. दूध टपककर फैलता है। 59. कर्ज घटकर नष्ट होता है। 60. नागरिक प्रसन्न होने के लिए खेलता है ।
उदाहरणधन बढ़ता है=धण/धरणा/घणु वड्ढइ/वड्ढेइ/वड्ढए ।
नोट-इस अभ्यास-13 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 33
34 का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 51
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) नीचे प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में क्रियाएं दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्देशानुसार कालों में वाक्य बनाइए । सज्ञा एवं क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए1. पत्त (सुक्क) वर्तमानकाल
2. सील (सोह) विधि एवं प्राज्ञा 3. सासण (पसर) भविष्यत्काल 4. धण (वड्ढ) वर्तमानकाल 5. मज्ज (छुट्ट) विधि एवं प्राज्ञा 6. खीर (चुअ) भविष्यत्काल 7. जोवण (विप्रस) वर्तमानकाल 8 वेरग्ग (वड्ढ) विधि एवं प्राज्ञा 9. एयरजण (सय) भविष्यत्काल 10. छिक्क (घट) वर्तमानकाल 11. विमाण (उड्ड) विधि एवं प्राज्ञा 12. धन्न (उग) भविष्यत्काल 13. शह (गुंज) वर्तमानकाल
14. रज्ज (उज्जम) विधि एवं प्राज्ञा 15. सोक्ख (वड्ढ) विधि एवं प्राज्ञा 16. पोट्टल (लुढ) वर्तमानकाल 17. रज्ज (चुक्क) वर्तमानकाल 18. वत्थ (सुक्क) भविष्यत्काल 19. लक्कुड (जल) भविष्यत्काल 20. वसण (नस्स) विधि एवं प्राज्ञा 21. तिण (उग) वर्तमानकाल 22. मय (खय) विधि एवं प्राज्ञा 23 गाम (वस) भविष्यत्काल 24. रत्त (चुअ) वर्तमानकाल 25. जून (छुट्ट) विधि एवं प्राज्ञा 26. वत्थ (सुक्क) वर्तमानकाल 27. भोयण (वड्ढ) भविष्यत्काल 28. गाण (गुंज) विधि एवं प्राज्ञा 29. मरण (सिज्झ) वर्तमानकाल 30. कट्ठ (जल) वर्तमानकाल 31. घय (तव) वर्तमानकाल 32. धन्न (उग) विधि एवं आज्ञा 33. वत्थ (जल) भविष्यत्काल 34. खेत्त (नस्स) वर्तमानकाल 35. वण (जल) वर्तमानकाल 36. उदग (चुप्र) वर्तमानकाल 37. पोट्टल (लुढ) भविष्यत्काल 38. विमाण (उड्ड) वर्तमानकाल 39. सोक्ख (वड्ढ) भविष्यत्काल . 40. णयरजण (जगड) वर्तमानकाल
-
उदाहरणपत्त/पत्ता/पत्तु सुक्कइ/सुक्के इ/सुक्कए ।
52 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग-1) नीचे प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं ।
सज्ञानों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निदिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए और दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए। संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. सुत्त (गल, तुट्ट) 2. रूव (विप्रस, फुर) 3. रज्ज (चुक्क, खिज्ज) 4. मण (लोभ, कील) 5. धन्न (उग, वड्ढ) 6. धरण (जगड, हव) 7. खीर (चुअ, पसर) 8. रिण (घट, नस्स) 9. सासण (चे?, उच्छह) 10. णयरजण (हरिस, खेल)
उदाहरण
सुत्त सुत्ता/सुतु गलि/गलिउ/गलवि/गलिवि/गलेवि/गलेविणु/गले प्पि/गलेप्पिणु तुट्टइ/तुट्टेइ/तुट्टए ।
(ग-2) नीचे प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं।
संज्ञामों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कही हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए और दूसरी क्रिया में विधि एव प्राज्ञा क प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । सज्ञा, क्रिया एवं कृवन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिये1. णयरजरण (जागर, चेट्ट) 2. णाण (वड्ढ, फुर) 3. मण (खेल, रम)
4. सासण (वड्ढ, पसर) 5. धन्न (उग, सोह) 6. मज्ज (छुट्ट, नस्स) 7. सच्च (फुर, सोह) ४. णयरजण (ठा, विज्ज) 9. कम्म (घट, नस्स) 10. विमारण (उड्ड, सोह)
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[ 53
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणणयरजण/णयरजणा/णयरजणु जागरेवं/जागरण/जागरणहं/जागरणहिं। जागरेवि जागरेविण जागरेप्पि/जागरेप्पिणु चे?उ/चेठेउ ।
(ग-3) नीचे प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कही हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में भविष्यकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिये1. विमाण (चिट्ठ, उड्ड)
2. णयरजण (जागर, उज्जम) 3. सुत्त (तुट्ट, नस्स)
4. गाण (गुंज, फुर) 5. एयरजण (विज्ज, बइस) 6. वरण (जल, खय) 7. तिरण (उग, वड्ढ)
8. उदग (चुअ, पसर) 9. सील (फुर, नोह)
10. रज्ज (पसर, वड्द)
उदाहरणविमाण/विमाणा/विमाणु चिट्ठि चिट्ठिउ/चिट्ठवि/चिट्ठिवि/चिठेवि चिठेविणु/ चिठेप्पि/चिठेप्पिणु उड्डेस इ/उड्डेसए/उड्डिहिइ/उड्डिहिए ।
1. धणु
(घ) नोचे प्रकारान्त संज्ञाएं प्रत्ययोंसहित दी गई हैं, उनके पुरुष, वचन, मूलसंज्ञा, लिंग एवं प्रत्यय लिखिए2. मरण
3. खेत्ता 4. सासण 5. पत्तु
6. सोक्खा 7. सील
8. ण यरजम 9. भयु 10. वेरग्गु 11. रत्ता
12 मज्जु 13. सुत्ता
14. विमारणा 15. रज्ज
54
1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
16. छिक्कु 19. तिणु 22. जोव्वणु 25. असणु 28. बीन
17 लक्कुडु 20. भोयणा 23. कम्मु 26. वत्थ 29. रिणु
18. उदगा 21. सुह 24. णारणा 27. कट्टा 30. सिर
उदाहरण--
पुरुष घणु अन्यपुरुष
वचन एकवचन
मूलसंज्ञा धरण
लिंग नपुंसकलिंग
प्रत्यय 'उ'
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
|
55
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास 14
(क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्तरूपों
के सभी विकल्प लिखिए1. धन बढ़े। 2. व्यसन नष्ट होते हैं । 3. · गठरियां लुढ़कती हैं। 4. कागज जलते हैं । 5. राज्य प्रयत्न करते हैं । 6. नागरिक सोयेंगे । 7. विमान उड़ें । 8. कागज सूखते हैं। 9. छींके कम होती हैं। 10. लकड़ियां जलेंगी। 11. नागरिक अफसोस करते हैं। 12. गीत गूंजेंगे। 13. राज्य भूल करते हैं। 14. कागज सूखें। 15. जंगल नष्ट होते हैं। 16. धागे कम होते हैं । 17. भय नष्ट होंगे। 18. धान उगते हैं। 19. व्यसन नष्ट हों। 20. गीत गूंजते हैं। 21. गठरियां लुढ़कें । 22. धान उगेंगे। 23. नागरिक प्रयत्न करें। 24. लकड़ियां जलती हैं। 25. जंगल जलते हैं। 26. गठरियाँ लुढ़केंगी। 27. धान उगें । 28. जंगल नष्ट होंगे। 29. भय नष्ट हो। 30. विमान पड़ते हैं । 31. नागरिक भागे । 32. शासन फैलें। 33. विमान उड़ेंगे । 34. घागे टूटते हैं। 35. वस्त्र जलते हैं। 36. नागरिक कूदते हैं। 37. खेत नष्ट होते हैं । 38. राज्य सोहें। 39. बीज उगते हैं । 40. घागे गलकर टूटेंगे। 41. नागरिक भूलकर अफसोस करते हैं। 42. बीज बढ़ने के लिए उगेंगे। 43. धान उगकर बढ़ते हैं। 44. नागरिक जागने के लिए उत्साहित होते हैं। 45. लकड़ियां जलने के लिए नष्ट होती हैं । 46. गीत गूंजकर प्रकट होते हैं। 47. कर्ज घटकर नष्ट होंगे। 48. गठरियां लुढ़ककर गिरती हैं। 49, राज्य उत्साहित होकर प्रयत्न करते हैं। 50. नागरिक नाचने के लिए उठे। 51. राज्य फैलने के लिए झगड़ा करते हैं। 52. नागरिक उपस्थित होकर प्रसन्न होंगे। 53. विमान गिरकर नष्ट होते हैं। 54. नागरिक प्रयास करके खेलें। 55. विमान ठहरकर उड़ेंगे। 56. बीज उगकर बढ़ते हैं। 57. लकड़ियां जलकर नष्ट होंगी।। 58. नागरिक कूदकर भागते हैं। 59. वस्त्र गलकर नष्ट होते हैं।
नोट-इस अभ्यास-14 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 35
का अध्ययन करें।
56
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरण
धन बढ़े = धरण / धणा / धरण इं/ धरणाई वड्ढन्तु / वड्ढेन्तु ।
(ख) नीचे प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में क्रियाएं दी गई हैं। संज्ञानों में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट काल में वाक्य बनाइए । संज्ञा एवं क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए
1. विमाण ( उड्डु) विधि एवं आज्ञा 3. धरण (वड्ढ ) विधि एवं प्राज्ञा 5. रज्ज ( चेट्ठ) विधि एवं आज्ञा 7. लक्कुड (जल) भविष्यत्काल 9. पत्त (सुक्क ) विधि एवं आज्ञा 11. गारण (गुंज) भविष्यत्काल 13. धन्न ( उग) वर्तमानकाल 15. वसरग (नस्स) विधि एवं प्राज्ञा 17. पोट्टल ( लुढ) विधि एवं प्राज्ञा 19. भय ( खय) भविष्यत्काल 21. रज्ज (चुक्क) वर्तमानकाल 23. धन्न ( उग ) भविष्यत्काल 25. लक्कुड (जल) वर्तमानकाल 27. पोट्टल (लुढ) भविष्यत्काल 29. बरण ( खय) भविष्यत्काल 31. विमाण ( उड्ड) वर्तमानकाल 33. रायरजरण (पला ) विधि एवं आज्ञा 35. सुत (तुट्ट) वर्तमानकाल 37. णयरजण (कुल्ल ) विधि एवं आज्ञा
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
2. वसण (नस्स) वर्तमानकाल
4. पोट्टल (लुढ) वर्तमानकाल 6. णयरजण (लोट्ट) विधि एवं आज्ञा 8. णयरजण ( खिज्ज) विधि एवं आज्ञा 10. छिक्क (घट) वर्तमानकाल 12. वत्थ ( सोह) विधि एवं प्राज्ञा 14. खेत (वड्ढ) भविष्यत्काल 16. गाण (गुंज) वर्तमानकाल 18. पत्त (सुक्क) वर्तमानकाल 20. णयरजण (खिज्ज) वर्तमानकाल 22. सोक्ख (वड्ढ ) विधि एवं आज्ञा 24. णयरजण (चेट्ठ) वर्तमानकाल 26. णयरजरण (वस) भविष्यत्काल 28. धन्न ( उग ) विधि एवं आज्ञा 30. भय (नस्स) विधि एवं प्राज्ञा 32. सासण ( पसर) विधि एवं प्राज्ञा 34. विमाण ( उड्डु) भविष्यत्काल 36. वत्थ (जल) वर्तमानकाल 38. खेत्त (नस्स) वर्तमानकाल
[
57
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
39. मज्ज (नस्स) विधि एवं प्राज्ञा 40. बीअ (उम्ग) भविष्यत्काल उदाहरणविमारण/विमारणा/विमाणइ/विमाणाई उड्डन्तु/उड्डेन्तु ।
(ग-1) नीचे प्रकारान्त नपंसकलिंग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं।
संज्ञाओं में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियानों में से किसी एक क्रिया में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी त्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. धन्न (उग, वड्ढ)
2. एयरजण (चुक्क, खिज्ज) 3. गाण (गुंज, फुर)
4. पोट्टल (लुढ, पड) 5. रज्ज (पसर, जगड)
6. विमाण (पड, नस्स) 7. बीअ (उग, वड्ढ)
8. णयरजण (कुद्द, पला) 9. वत्थ (गल, खय)
10. णयरजण (हरिस, विज्ज)
उदाहरण - धन्न/धन्ना/धन्नई/धन्नाइ उगि/उगिउ/उगवि/उगिवि/उगेवि/उगेविणु/उगेप्पि/ उगेप्पिणु वड्ढहिं/वड्ढन्ति/वड्ढन्ते/वड्ढिरे ।
(ग-2) नीचे प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं।
संज्ञाओं में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निदिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर बाक्य बनाइए । सज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिये1. णयरजण (णच्च, उट्ठ) 2. वसण (छुट्ट, नस्स) 3. भय (नस्स, पला)
4. गाण (गुंज, पसर) 5. विमाण (चिट्ठ, उड्ड)
6. एयरजण (जागर, चेट्ट)
58 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. सासण (वड्ढ, पसर) 9. रज्ज (वस, पसर)
8. धन्न (उग्ग, सोह) 10. खीर (चुअ, पसर)
उदाहरणगयरजण/रणय रजणा/एयरजण इं/णयरजणाई उदि/उट्टिउ/उट्टवि/उद्विवि/ उठेवि/उठेविणु/उठेप्पि/उठेप्पिणु गच्चन्तु/णच्चेन्तु ।
(ग-3) नीचे प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निदिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त (पर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में भविष्यत्काल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये। सज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. विमाण (चिट्ठ, उड्ड)
2. णयरजण (ठा, विज्ज) 3 गाण (गुंज, फुर)
4. रिण (घट नस्स) 5. सुत्त (गल, तुट्ट)
6. बीअ (वड्ढ, उग) 7. लक्कुड (जल, नस्स)
8. माण (विप्रस, फुर) 9. णयरजण (जागर, चे?) 10. वसण (छुट्ट, नस्स)
उदाहरणविमाण/विमाणा/विमाणइं/विमाणाई चिट्ठि/चिट्ठिउ/चिटुबि/चिट्ठिवि चिठेत्रि/चिठेविणु/विठेप्पि चिठेप्पिणु उड्डेसहि/उड्डेसन्ति/उड्डिहिहिं / उडिहिन्ति ।
(घ) नीचे प्रकारान्त संज्ञाएं प्रत्ययों-सहित दी गई हैं। उनके पुरुष, वचन, मूलसंज्ञा,
लिंग एवं प्रत्यय लिखिए1. घण 2. खेत्ता
3. सासण 4. पसाई 5. लक्कुड
6. सोक्खाई
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[ 59
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. यरजरगा
10. वसरणई
13. भोयर इं
16. बी
19. पोट्टलाई
22. वत्थई
25. धरण
28. पोट्टला
उदाहरण
धण
60 1
-
पुरुष अन्यपुरुष
8. रज्जाई
11. रत्ता
14. णाणइं
17. सासणई
20. छिक्का
23. कम्मा
26. सासणा
29. छिक्क इं
वचन एकवचन / बहुवचन
9. भयई
12. तिपाई
15. सुत्त
18. गारगाई
21. धन्नाई
24. गरजणाई
27. रज्जा
30. वत्था
मूलसंज्ञा लिंग नपुंसकलिंग धण
प्रत्यय
शुन्य
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-15
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्तरूपों के सभी विकल्प लिखिए
1 माता प्रसन्न होती है । 2. श्रद्धा बढ़े । 3. शिक्षा फैलेगी । 4. बहिन छीजती है। 5. भूख शान्त होवे । 6. वाणी थकती है। 7. मदिरा छूटे । 8. प्यास लगेगी । 9. प्रज्ञा प्रकट होती है । 10. बेटी प्रसन्न हो । 11. नदी सूखेगी । 12. लक्ष्मी घटती है । 13. प्रज्ञा सिद्ध हो । 14. अभिलाषा शान्त होगी । 15. गुफा नष्ट होगी । 16. पत्नी डरती है | 17. वाणी प्रकट होवे । 18. दया छूटती । 19. गंगा फैलती है। 20. प्रतिष्ठा बढ़े । 21 परीक्षा होगी । 22. प्यास लगती है। । 23. स्त्री उत्साहित हो । 24 सीता देर करेगी । 25. नींद घटे | 26. महिला तप करे । 27. पुत्री खांसती है । 28. प्रशंसा फैलेगी । 29. खड्डा बढ़ता है । 30. यमुना सूखेगी । 31. बुद्धि खिले । 32 पुत्री वमन करती है । 33. कन्या बाल उखाड़ेगी । 34. बेटी नीचे आती है । 35. तृष्णा घटे । 36. रात्रि सोने के लिए होती है । 37. नर्मदा फैलेगी। 38. शोभा बढ़े | 39. पुत्री सांस लेवे । 40. सीता शोभती है । 41. शोभा नष्ट होती है । 42 पुत्री डरकर सोती है । 43. बहिन शान्त होकर बैठे। 44. ननद घूमने के लिए रुकेगी । 45 पुत्री गिड़गिड़ाकर रोती है । 46. शिक्षा बढ़कर फैले । 47. कन्या देरी करके नीचे आती है । 48. बेटी बाल उखाड़कर रोती है । 49. पत्नी ठहरकर सोए । 50. माता वमन करके शान्त होती है । 51. स्त्री उत्साहित होकर प्रयत्न करे । 52. तृष्णा घटकर शान्त हो । 53. ननद छीजकर कूदती है। 54 पुत्री बैठने के लिए रुके । 55. लक्ष्मी बढ़कर शोभे । 56. कन्या रोकर देर करती है । 57. पुत्री खेलने के लिए खुश होवेगी । 58. बहिन खुश होकर घूमेगी । 59. कन्या सोने के लिए उठे। 60. बहिन खांसकर वमन करती है ।
नोट - इस अभ्यास-15 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 37-38 का अध्ययन करें ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
----
]
[ 61
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणमाता प्रसन्न होती है = माया/माय हरिसइ/हरिसेइ/हरिसए ।
(ख) नीचे आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दो गई हैं ।
संज्ञाओं में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट काल में वाक्य बनाइए। संज्ञा एवं क्रिया-रूपों के सभी विकल्प लिखिए
1. गंगा (पसर) वर्तमानकाल
2. जाया (बिह) वर्तमानकाल 3. सद्धा (वड्ढ) विधि एवं आज्ञा 4. सिक्खा (पसर) भविष्यत्काल 5. वाया (थक्क) वर्तमानकाल 6. पण्णा (सिज्झ) विधि एवं प्राज्ञा 7. करुणा (फुर) भविष्यत्काल 8. कमला (घट) वर्तमानकाल 9. धूया (हरिस) विधि एवं प्राज्ञा 10. ससा (छिज्ज) वर्तमानकाल 11, अहिलासा (उवसम) भविष्यत्काल 12. माया (उल्लस) वर्तमानकाल 13. वाया (फुर) विधि एवं प्राज्ञा 14. परिक्खा (हव) भविष्यत्काल 15. निसा (लग्ग) वर्तमानकाल 16. महिला (उच्छह) विधि एवं प्राज्ञा 17. कन्ना (चिराव) भविष्यत्काल 18. गिद्दा (घट) विधि एवं प्राज्ञा 19. सुया (खास) वर्तमानकाल 20. महिला (चे?) विधि एवं प्राज्ञा 21. सरिया (सुक्क) भविष्यत्काल 22. गड्डा (वड्ढ) वर्तमानकाल 23. मेहा (विप्रस) विधि एवं प्राज्ञा । 24. तणया (वम ) वर्तमानकाल 25. नणन्दा (ऊतर) भविष्यत्काल 26. तण्हा (घट) विधि एवं प्राज्ञा 27. धूश्रा (लुंच) वर्तमानकाल 28. सुया (उस्सस) विधि एवं प्राज्ञा 29. गुहा (नस्स) भविष्यत्काल 30. सोहा (खय) वर्तमानकाल 31. मइरा (छुट्ट) विधि एवं प्राज्ञा 32. पइट्ठा (वड्ढ) विधि एवं प्राज्ञा 33. सीया (ऊतर) वर्तमानकाल 34. प्राणा (फुर) वर्तमान काल 35. जरा (वड्ढ) वर्तमानकाल 36. जउणा (सुक्क) भविष्यत्काल 37. कहा (हव) भविष्यत्काल 38. कलसिया (चुअ) वर्तमानकाल
62
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
39. सझा (हो) भविष्यत्काल
40. निसा (हव) वर्तमानकाल
उदाहरण-- गंगा/गंग पसरइ/पसरेइ/पसरए ।
(ग-1) नीचे प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिये
1. सुया (बिह, लोट्ट) 3. कन्ना (चिराव, ऊतर) 5. माया (वम, उवसम) 7. ससा (खास, वम) 9. जाग्रा (उस्सस, थंभ)
2. नगन्दा (गडयड, रुव) 4. धूप्रा (लुंच, रुव) 6. कन्ना (उवसम, उवविस) 8. महिला (छिज्ज, कुद्द) 10. झुपडा (वस, हो)
उदाहरण
सुया/सुय बिहि/बिहिउ/बिहवि/बिहिवि/बिहेवि/बिहेविणु/बिहेप्पि/ बिहेप्पिणु लोट्टइ/लोट्टेइ/लोट्टए ।
(ग-2) नीचे प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. ससा (उवसम, उवविस) 2. सिक्खा (वड्ढ पसर) 3. जापा (चिट्ठ, लोट्ट)
4. महिला (उच्छह. चेट्ठ)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 63
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
5. तण्हा (घट, उवसम) 7. कन्ना (लोट्ट, उट्ठ) 9. ससा (हरिस, ऊतर)
6. तणया (उवविस, धंभ) 8. कमला (वड्ढ, सोह) 10. धूप्रा (थंभ, कील)
उदाहरण
ससा/सस उवसमि/उवसमिउ/उवसमवि/उवसमिवि/उवसमे वि/उवसमे विणु/ उसमेप्पि/ज्वसमेप्पिषु उवविसउ/उवविसे उ ।
(ग-3) नीचे प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं।
संज्ञाओं में प्रथमा एकवचन का प्रयोग करते हए निर्दिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में भविष्यत्काल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. घूमा (थंम, चेट)
2. सुया (कील, हरिस) 3. जात्रा (बिह, पला)
4. महिला (चुक्क, खिज्ज) 5. ससा (हरिस, घुम)
6. नणन्दा (जगड, कुद्द) 7. कन्ना (चिराव, ऊतर) 8. झुपडा (वस, हो) 9. करुणा (सोह, फुर)
10. माया (लोट्ट, चेट)
उदाहरण
घूमा/धूम थंभेवं/थं मण/थंभणहं/ थंभण हिं/थंभेवि//थंभेविणु/थंभेप्पि/ थंभेप्पिणु चेह्रसइ/चेढेसए/चेट्टिहिइ/चेट्ठिहिए ।
(घ) नीचे प्राकारान्त संज्ञाएँ प्रत्ययों-सहित दी गई हैं। उनके पुरुष, वचन मूलसंज्ञा.
लिंग एवं प्रत्यय लिखिए1. परिक्खा
2. सस
3. माया 4. करुण
5. वाय
6. प्राणा
64 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. सम्मय
10.
गुहा
13. महिला
16. कह
19. तण्हा
22. सरि
25. जरा
28. जाना
उदाहरण
परिक्खा
पुरुष अन्यपुरुष
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
8. भुक्खा
11. मइर
14. तिस
17. गंग
20. सोहा
23. नरणन्दा
26. णिद्दा
29. सद्ध
वचन
एकवचन
9. कलसिय
12. घू
15. निसा
18. हिलासा
21. भुंपडा
24. सीय
27. पसंसा
30. मेहा
मूलसंज्ञा
परिक्खा
प्रत्यय
लिंग स्त्रीलिंग शून्य
[ 65
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-16
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंस में रचना कीजिए। संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त.
रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. माताएँ प्रसन्न होती हैं । 2. शिक्षाएं फलेंगी। 3. बहिनें छीजती हैं । 4. अभिलाषाएं शान्त होंगी।। 5. बेटियां प्रसन्न होवें। 6. गुफाएं नष्ट होंगी। 7 पत्नियां डरती हैं। 8. परीक्षाएं होंगी। 9. स्त्रियां उत्साहित होवें । 10. कन्याएं देर करेंगी। 11. पुत्रियां खांसती हैं। 12. स्त्रियां तप करें। 13. खड्डे बढ़ते हैं । 14. पुत्रियां बमन करती हैं। 15. बेटियां बाल उखाड़ेंगी। 16. ननदें नीचे पाती हैं। 17. पुत्रियां सांस लेवें। 18. माताएं बैठती हैं । 19. वारिणयां सिद्ध होती हैं । 20. झोंपड़ियां शोमती हैं। 21. परीक्षाएं होती हैं। 22. पुत्रियां बैठती हैं। 23. नदियां सूखती हैं। 24. महिलाएं प्रयत्न करती हैं। 25. वाणियां प्रकट हों। 26. बहिनें ठहरेंगी। 27. पुत्रियां क्रीड़ाकर प्रसन्न होंगी। 28. बहिनें खेलने के लिए झगड़ती हैं । 29. कन्याएं भागकर थकती हैं। 30. माताएं प्रसन्न होकर जीवें। 31. स्त्रियां थककर सोवें । 32. पुत्रियां नाचकर थकेंगी। 33. बहिनें शान्त होकर बैठे। 34. बेटियां प्रसन्न होकर ठहरेंगी। 35. शिक्षाएं बढ़कर फैलें। 36. कन्याएं उरकर नीचे आती हैं । 37. बेटियां बाल उखाड़कर रोती हैं। 38. माताएं वमन करके शान्त होती हैं । 39. पत्नियां सोने के लिए ठहरें। 40. स्त्रियां उत्साहित होकर प्रयत्न करें। 41. तृष्णाएं घटकर शान्त होवें। 42 पुत्रियां डरकर सोती हैं। 43. ननदें घूमने के लिए उठेगी। 44. पुत्रियां रुककर बैठे। 45. कन्याएं रोकर देर करती हैं। 46. बहिनें खांसकर वमन करती हैं। 47. पुत्रियां सोने के लिए रोती हैं । 48. माताएं जीने के लिए प्रयत्न करें। 49. पुत्रियां खेलने के लिये खुश होवेंगी। 50. कन्याएं नाचकर थकती हैं। 51. माताएं शान्त होकर बैठे। 52. बहिनें सोकर उठें। 53. ननदें थकने के लिए घूमें । 54. बहिनें जागने के लिए प्रयास करें। 55. कन्याएं सोने के लिए उठेंगी। 56. पुत्रियां नाचने के लिए प्रयास करती हैं । 57. बहिने खुश होकर घूमेंगी ।
नोट- इस अभ्यास-16 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 39 का
अध्ययन करें।
___ 66 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
58. पुत्रियां खेलने के लिए कूदेंगी। 59. कन्याएं मूच्छित होकर मरती हैं । 60. बहिनें घूमने के लिए रुकें ।
उदाहरण
माताएं प्रसन्न होती हैं = माया / माय / मायाप्रो / मायभो / मायाउ / मायउ हरिस हि / हरिसन्ति / हरिसन्ते / हरिसिरे ।
(ख) नीचे श्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में क्रियाएँ दी गई हैं । श्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञानों में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट कालों में वाक्य बनाइये | संज्ञा एवं क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए -
1. धूग्रा ( ऊतर) वर्तमानकाल 3. सिक्खा ( पसर) भविष्यत्काल 5. सुया ( लुंच ) विधि एवं प्राज्ञा 7. परिक्खा (हव) भविष्यत्काल 9. ससा (थंभ ) भविष्यत्काल 11. कन्ना ( पला) विधि एवं श्राज्ञा 13. माया (वम) वर्तमानकाल 15. जाश्रा ( उवविस) विधि एवं आज्ञा 17. सरिश्रा (सुक्क ) भविष्यत्काल 19. सुया ( गडयड ) वर्तमानकाल 21. माया () विधि एवं प्राज्ञा 23. जात्रा (जागर) विधि एवं आज्ञा 25. नरन्दा (चिराव) भविष्यत्काल 27. कन्ना ( उवविस) वर्तमानकाल 29. माया ( खिज्ज) वर्तमानकाल 31. तरया (ऊतर) विधि एवं आज्ञा
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
2. महिला (हरिस) विधि एवं आज्ञा 4. माया ( हरिस) वर्तमानकाल
6. भुंपडा (सोह) वर्तमानकाल 8. तणमा ( खास ) वर्तमानकाल 10. नन्दा (उस्सस) भविष्यत्काल 12. वाया (फुर) विधि एवं आशा 14. गुहा (खय) भविष्यत्काल 16. वाया (सिज्भ) वर्तमानकाल 18. अहिलासा ( उवसम ) वि. एवं आ. 20. कलसिया ( लुढ) वर्तमानकाल 22. ससा (जगड ) भविष्यत्काल 24. कन्ना (छिज्ज) वर्तमानकाल 26. परिक्खा (हव) वर्तमानकाल 28. सुया ( बिह) भविष्यत्काल 30. धूम्रा (कंद) वर्तमानकाल 32. सरिया (सुक्क ) वर्तमानकाल
[ 67
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
33. अहिलासा (वड्ढ) वर्तमानकाल 35. ससा (हरिस) विधि एवं प्राज्ञा 27. महिला (विज्ज) भविष्यत्काल 29. नणन्दा (चुक्क) वर्तमानकाल
34. कलसिया (तुट्ट) भविष्यत्काल 36. सुया (थंभ) विधि एवं प्राज्ञा 28. कन्ना (लोम) वर्तमानकाल 40. धूमा (उच्छह) विधि एवं प्राज्ञा
उदाहरणधूमा/धूम/धूघाउ/धूअउ/धूप्रायो/धूप्रमो ऊतरहिं ऊतरन्ति/ऊतरन्ते/ऊतरिरे ।
(ग-1) नीचे प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए। संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए - 1. ससा (कील, जगड)
2. कन्ना (बिह, ऊतर) 3. धूआ (लुंच, कंद)
4. माया (वम, उवसम) 5. सुया (बिह, लोट्ट)
6. नगदा (छिज्ज, कंद) 7. तणया (कंद, चिराव) 8. झुपडा (वस, हो) 9. महिला (थंभ, उवविस) 10. कन्ना (णच्च, थक्क)
उदाहरणससा/सस/समायो/ससो/ससाउ/ससउ कीले/कीलण/कीलणहं कीलणहि। कीलेवि/कीलेविण कोलेप्पि/कीलेप्पिणु जगडहिं/जगडन्ति/जगडन्ते जगडिरे ।
(ग-2) नीचे प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं।
संज्ञानों में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निनिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए। संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. माया (हरिस, जीव) 2. जाग्रा (लोट्ट, चिट्ठ)
68 ]
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
3. ससा ( जागर, चेट्ठ)
5. सुया (थंभ, उवविस)
7. सिक्खा (वड्ढ, पसर)
9 ससा ( उवसम, उवविस)
उदाहरण
माया / माय / मायाउ / मायउ / मायाओ / माय हरिसिवि / हरिसेवि / हरिसेविणु / हरिसेप्प / हरिसेपिशु
4. नन्दा ( थक्क, घुम)
6. तण्हा (घट, उवसम)
8. माया (उच्छह, चेट्ठ) 10. धूम्रा ( रम, कील)
( ग - 3 ) नीचे श्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाएँ तथा कोष्ठक में दो क्रियाएँ दी गई हैं । संज्ञानों में प्रथमा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए और दूसरी क्रिया में भविष्यत्काल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए | संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए
1. कन्ना ( लोह, उट्ठ)
2. ससा ( हरिस, घुम )
3. धूम्रा (कील, रम )
4. सिक्खा (वड्ढ, पसर )
5. गुहा ( जल नस्स )
7. जाग्रा ( बिह, पला )
9. भुंपडा (वस, हो)
उदाहरण
कन्ना / कन्न / कन्नाउ / कन्नड / कन्नाश्रो / कन्नम्रो लोट्टेवि / लोट्टेविणु/लोट्टेप्पि / लोट्टेप्पिणु उद्विहिन्ति ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
हरिसि / हरिसिउ / हरिसवि / जीवन्तु / जीवेन्सु ।
6. सुया (लुंच, कंद)
8. महिला (जागर, उट्ठ) 10. नरन्दा (जगड, कंद)
(घ) नीचे श्राकाशन्त संज्ञाएँ प्रत्ययसहित दी गई हैं । उनके पुरुष, वचन, मूलसंज्ञा, लिंग एवं प्रत्यय लिखिए
1. सीवा
2 परिक्खउ
लोट्टि / लोट्टिउ / लोट्टवि/लोट्टिवि/ उट्ठे सहि / उट्ठेसन्ति / उट्टिहिहि /
3 मायाओ
[ 69
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
4. कहाउ 7. गंगाओ 10. निसाउ 13. झुपडाओं 16. जाग्राउ 19. पसंसानो 22. सीयानो 25. सुयाउ 28. मायउ
5. तरण यो 8. नगन्दा 11. सरिम 14. कलसिय 17. गुहनो 20. धूप्रमो 23. झुपडा 26. वायाप्रो 29. सिक्खायो
6. अहिलास 9. महिल 12. सिक्खउ 15. गड्डाउ 18. कन्नाउ 21. महिलाओ 24. ससउ 27. सरिअउ 30. निसा
उदाहरण
पुरुष अन्यपुरुष
वचन
मूलसंज्ञा लिंग प्रत्यय एकवचन, बहुवचन सीया स्त्रीलिंग शून्य
सीया
-
-
-
-
-
70 1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-17
(क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों
के सभी विकल्प लिखिए - 1. ऊंट बैठता है । 2. विमान उड़े। 3. परीक्षा होवेगी। 4. कुत्ता भोंकता है । 5. शासन फैले। 6. कन्याएं नाचेंगी। 7. पुस्तकें जलती हैं। 8. सुख बढ़े। 9 बहिन वमन करती है। 10. राजा प्रसन्न होवे। 11. गठरी लुढ़कती है। 12. छोटे घड़े टूटते हैं। 13. पोता प्रसन्न होवे । 14. नागरिक जागेगे । 15. लक्ष्मी बढ़ती है। 16 मेघ गरजते हैं। 17. वैराग्य बढ़े। 18. अभिलाषाएं शान्त होंगी। 19. वस्त्र सूखता है। 20 रूप खिलेगा। 21. शिक्षा फैलेगी। 22. मामा उठे। 23. पानी टपकता है। 24. नदियां सूखेंगी । 25. अपयश फैलता है। 26. दुःख घटे। 27. गुफाए नष्ट होंगी। 28. व्रत शो मते हैं। 29. ज्ञान सिद्ध हो । 30. बहिने ठहरेंगी। 31. पुत्र कांपता है। 32. सदाचार शोभे। 33. प्यास लगेगी। 34. राक्षस मरे। 35. बीज उगेंगे । 36. महिलाएं उत्साहित हों। 37. सिंह भागते हैं। 38. सत्य खिले । 39. वाणो थकती है। 40. राक्षस कूदकर मरते हैं 41. नागरिक जागने के के लिए प्रयत्न करेगा । 42. पुत्री बाल उखाड़कर रोती हैं । 43. बालक रोकर सोयेंगे । 44. विमान ठहरकर उड़ेगा । 45. तृष्णा घटकर शान्त होवे । 46. सूर्य उगकर सोहता है । 47. मनुष्य जीने के लिए प्रयास करें। 48. पुत्रियां खेलने के लिए खुश होंगी। 49. मामा थककर बैठते हैं। 50, धागा गलकर टूटता है। 51. कन्या देरी करके नीचे आती हैं। 52. रत्न गिरकर टूटेगा। 5 3. राज्य फैलने के लिए झगड़ा करता है । 54. वेटी ठहरकर उठेगी। 55. पुस्तकें जलकर नष्ट होती हैं। 56. नागरिक प्रयास करके खेलें। 57 बहिन खुश होकर घूमेगी। 58. सर्प दरकर मागते हैं। 59. माताएं जीने के लिए प्रयत्न करें।
उदाहरणऊँट बैठता है=करह करहा/करह/करहो अच्छइ/अच्छेइ/अच्छए ।
नोट -इस अभ्यास-17 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 29 से
39 तक के पाठों को दोहराएं।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 71
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ख ) नीचे संज्ञाएं तथा कोष्ठक में क्रियाएं दी गई हैं । निर्दिष्ट काल व किसी भी वचन
में वाक्य बनाइए । संज्ञा एवं क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए -
1. कुक्कुर ( बुक्क) वर्तमानकाल
3. सिक्खा ( पसर) भविष्यत्काल 5. लक्कुड (जल) विधि एवं आज्ञा 7. परिक्खा (हव) भविष्यत्काल 9. पुत्त ( कुट्ट) वर्तमानकाल 11. सलिल (चुअ ) विधि एवं आज्ञा 13. घर (पड) वर्तमानकाल 15. मेहा (विस) भविष्यत्काल 17. रज्ज ( चेट्ठ) विधि एवं आज्ञा 19. माउल (पला ) वर्तमानकाल 21. कमला (घट) वर्तमानकाल 23. वेरग्ग (वड्ढ) विधि एवं प्रज्ञा 25. हु वह (जल) भविष्यत्काल 27. तिसा ( लग्ग ) भविष्यत्काल 29. विमारण (उड्डु) वर्तमानकाल 31. वाया (सिज्झ ) वर्तमानकाल 33. महिला (उच्छह) विधि एव प्रज्ञा 35. बी (उग्ग) भविष्यत्काल
37. दुज्जस (पसर) वर्तमानकाल
39. करह (गच्च) वर्तमानकाल
उदाहरण -
कुक्कुर / कुक्कुरा/ कुक्कुरु / कुक्कुरो बुक्कइ / बुक्के इ / बुक्कए ।
72 ]
2. पत्त (सुक्क ) विधि एवं श्राज्ञा 4. पोत ( गच्च) वर्तमानकाल 6. अहिलासा ( उवसम) भविष्यत्काल 8. वत्थ (सुक्क ) विधि एवं श्राज्ञा 10. माया (थंभ ) भविष्यत्काल 12. वय (गल ) वर्तमानकाल 14. सासण ( पसर) विधि एवं श्राज्ञा 16. मेह (गज्ज) वर्तमानकाल 18. कन्ना ( चिराव) भविष्यत्काल 20. जोव्वण (विश्रस ) वर्तमानकाल 22. दुक्ख (गल ) विधि एवं आज्ञा 24. पण्णा (सिज्भ) विधि एवं श्राज्ञा 26. रज्ज (उच्छह) भविष्यत्काल 28. मेहा (विश्रस ) वर्तमानकाल 30. आगम ( सोह) विधि एवं प्राज्ञा 32. णयरजण (चेट्ठ) विधि एवं प्राज्ञा 34. गर (उज्जम) भविष्यत्काल 36. गुहा (नस्स) भविष्यत्काल 38. सील (सोह) विधि एवं प्राज्ञा
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ग - 1 ) नीचे संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं । संज्ञाओं में कहीं एकवचन, कहीं बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियाओं में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त ( पूर्वकालिक क्रिया) के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए और दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए | संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त रूपों के सभी विकल्प लिखिए
-
1. कुक्कुर ( बुक्क, उवविस)
3. ससा ( खास, वम )
5. गारण (गुंज, फुर )
7. दिर (वल, उवविस)
9. भुंपडा (वस, हो)
उदाहरण
कुक्कुर / कुक्कुरा/कुक्कुरु / कुक्कुरो वि/केपि / बुक्केप्णुि
1. रहुणन्दण (हरिस, अच्छ )
3. गारण (गुंज, फुर )
5. ग्राम (वस, पसर)
7. जर (हस, जीव ) 9. ससा ( उवसम, उवविस)
( ग - 2 ) नीचे संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं। संज्ञानों में कहीं एकवचन व कहीं बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए और दूसरी क्रिया में विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये | संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिये
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
2. सलिल ( चुम पसर )
4. गर (उपज्ज, मर )
6. सुया ( लोट्ट, कंद )
8. वय (गल, नस्स)
10. वसण ( छुट्ट, नस्स )
बुक्कि / बुक्किउ / बुक्कवि / बुक्किवि / बुक्के वि / उवविसइ / उवविसेइ / उत्रविसए ।
2. रज्ज ( पसर, सोह)
4. महिला (उच्छह, चेट्ठ)
6. वसर (छुट्ट, नस्स )
8. दिवायर (सोह, उग )
10. सिक्खा (वड्ढ, पसर )
[ 73
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरण
रहुणन्दण/रहुणन्दणा/रहुणन्दणु/रहणन्दणो हरिसि/हरिसिउ/हरिसवि हरिसिवि/हरिसेवि/हरिसेविणु/हरिसेप्पि/हरिसे पिणु अच्छउ/अच्छेउ ।
(ग-3) नीचे संज्ञाएं तथा कोष्ठक में दो क्रियाएं दी गई हैं। संज्ञानों में कहीं
एकवचन व कहीं बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रियानों में से किसी एक में कहीं सम्बन्धक भूतकृदन्त के, कहीं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए तथा दूसरी क्रिया में भविष्यकाल के प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए। संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए - 1. सुत्त (गल, तुट्ट)
2. रयण (पड, तुट्ट) 3. विमाण (ठा, उड्डु)
4. धूमा (थंम, चिट्ट) 5. सुया (खेल, रम)
6. ससा (हरिस, कील) 7. घर (पड, नस्स)
8. उदग (सुक्क, रिणज्झर) 9. गंथ (जल, नस्स)
10. महिला (उच्छह, चे?)
उदाहरणसुत्त/सुत्ता/सुत्तु गलि/गलिउ/गलवि/गलिवि/गलेवि/गलेविणु/गलेप्पि/ गलेप्पिणु तुट्टेसइ/तुट्टेसए/तुट्टिहिइ/तुट्टिहिए ।
(घ) नीचे प्रत्ययों-सहित संज्ञाएँ दी गई हैं, उनके पुरुष, वचन, मूलसंज्ञा, लिंग एवं
प्रत्यय लिखिए1. सोक्खई
2. ससा
3. पुत्तो 4. विमाणु
5. तणयाउ 6. क्या 7. रज्जाई
8. माय
9. सप्पु 10. लक्कुडु
11. मेहामो 12. आगमो 13. सासरणा
14. परिक्खा 15. परमेसरो
74
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
16. छिक्कु 19. वत्थई 22. भोयणु 25. खेत्तु 28. सायरा
17. सुयो 20. पारण 23. राया 26. करुणा 29. धणइ
18. रयणा 21 दुज्जसु 24. सरियउ 27. भवो 30. उदग
उदाहरण
पुरुष सोक्खइं अन्यपुरुष
वचन
प्रत्यय
वचन
मलसंज्ञा लिम
प्रत्यय
बहुवचन
सोक्ख
नपुंसकलिंग
इं
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
75
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-18
भूतकालिक कृदन्त
अभ्यास 1 से 17 में आप वर्तमानकाल, विधि एवं प्राज्ञा, भविष्यत्काल तथा संबंधक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) एवं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों से परिचित हो चुके हैं । किन्तु भूतकाल की क्रियाओं के लिए अपभ्रंश में वर्तमानकाल, विधि एवं प्राज्ञा तथा भविष्यत्काल की तरह प्रत्ययों का विधान नहीं है । अतः भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का ही प्रयोग किया जाता है । अभ्यास हल करने से पूर्व 'अपभ्रंश रचना सौरभ' पाठ-41 (भूतकालिक कृदन्त) का अध्ययन करें।
'अपभ्रंश रचना सौरभ' में पुरुषवाचक सर्वनामों का प्रयोग करते हुए उदाहरणस्वरूप वाक्य नहीं दिए गए हैं। अतः इन्हें यहां समझाने का प्रयास किया गया है।
भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय हैं-प्र/य । प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाने पर 'हस' क्रिया का रूप बनता है-हसिग्र/हसिय । भूतकालिक कृदन्त के रूप पुल्लिग सर्वनाम के साथ 'देव' के समान तथा स्त्रीलिंग सर्वनाम के साथ 'कहा' के अनुसार चलेंगे।
(i) पुल्लिग एकवचन देव/देवा/देवु/देवो → हसिग्र/हसिया/हसि उ/हसियो (ii) पुल्लिग बहुवचन देव/देवा → हसिग्र/हसिमा (iii) स्त्रीलिंग एकवचन कहा/कह → हसिया/हसिन (iv) स्त्रीलिंग बहुवचन कहा/कह/कहाउ/कहउ/कहानो/कहो → हसिया
हसिन/हसिपाउ/हसिपउ/हसिआरो/हसियो (i) मैं हँसा-यहां पुरुषवाचक सर्वनाम, पुल्लिग एकवचन का है । अत:
'हस' क्रिया का भूतकालिक कृदन्त बनाकर इसके रूप पुल्लिग में 'देव' के अनुसार एकवचन में चलाने होंगे
नोट-इस अभ्यास-18 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 41
का अध्ययन करें।
76 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
हउँ हसिग्र/हसि प्रा/हसि उ/हसिमो (यहां 'हउ' सर्वनाम पुस्लिग प्रथमा एकवचन है)।
(ii) मैं हंसी-यहाँ पुरुषवाचक सर्वनाम स्त्रीलिंग एकवचन का है । अतः
कृदन्त के रूप स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार एकवचन में चलाने होंगेहउं हसिपा/हसिन (यहां 'हर्ड' सर्वनाम स्त्रीलिंग प्रथमा एकवचन है)
(iii) हम हंसे -यहां पुरुषवाचक सर्वनाम पुल्लिग बहुवचन का है। अतः
कृदन्त के रूप पुल्लिग में 'देव' के अनुसार बहुवचन में चलाने होंगेअम्हे/अम्हई हसिम/हसिमा (यहां 'अम्हे/मम्हई' सर्वनाम पुल्लिग प्रथमा बहुवचन है)।
(iv) हम सब हंसी-यहां पुरुषवाचक सर्वनाम स्त्रीलिंग बहुवचन का है।
अतः कृदन्त के रूप स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार बहुवचन में चलाने होंगेअम्हे/अम्हई हसिमा/हसिग्रहसिग्राउ/हसिपउ/हसियानो/हसिअप्रो (यहां 'अम्हे/अम्हई' सर्वनाम स्त्रीलिंग प्रथमा बहुवचन है)
इसी प्रकार
5. तुम हसे - तुहं हसिम/हसिया/हसिउ/हसिप्रो। 6. तुम हंसी -तुहुं हसिमा/हसिन । 7 तुम सब हंसे -तुम्हे/तुम्हई हसिम/हसिना । ४. तुम सब हंसी- तुम्हे/तुम्हइं हसिमा/हसिम हसिग्राउ हसिमड/हसिनाप्रो/
हसिप्रो। 9. वह हंसा सो हसिप/हसिया/हसिउ/हसियो । 10. वह हँसी -सा हसिना/हसिन । 11. वे सब हंसे --ते हसिप्र/हसिया । 12. वे सब हंसी -ता हसिया/हसिग्न/हसिग्राउ/हसिप्रउ/हसियानो/हसिप्रनो।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
77
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क-1) निम्नलिखित क्रियाओं से भूतकालिक कृदन्न बनाइए । तत्पश्चात् उनमें प्रका
रान्त पुल्लिग संज्ञानों के समान प्रथमा एकवचन के प्रत्यय लगाइए1. हस 2. सय
3. णच्च 4. रूस 5. लुक्क
6. जग्ग 7. जीव
9. हरिस 10. गल
8. कंद
उदाहरण
भूतकालिक कृदन्त
अकारान्त पुल्लिग संज्ञानों के समान प्रथमा एकवचन हसिन हसिमा/हसियो/हसिउ/हसिय/हसिया/ हसियो/हसियु
हस हसिग्र/हसिय
(क-2) निम्नलिखित क्रियानों से भूतकालिक कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उनमें
अकारान्त पुल्लिग संज्ञाओं के समान प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय लगाइए1. गच्च 2. खय
3. जल 4. सोह 5. सुक्क
6. पला 7. ठा
बुक्क
9. उग 10. नस्स
उदाहरण
भूतकालिक कृदन्त
अकारान्त पुल्लिग संज्ञाओं के समान प्रथमा बहुवचन गचिमणच्चिया/च्चिय/च्चिया
गच्च रणच्चिमणच्चिय
(क-3) निम्नलिखित क्रियाओं से भूतकालिक कृदन्त बनाइए। तत्पश्चात् उनमें
प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञानों के समान प्रथमा एकवचन के प्रत्यय लगाइए1. वड्ढ 2. विग्रस
3. मुंज
___78
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
5. जागर
6. विज्ज 9 चुक्क
7. छुट्ट
8. वस
10. खिज्ज
उदाहरण
भूतकालिक कृदन्त
अकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाओं के समान प्रथमा एकवचन वड्ढि प्र/वड्ढिा /वड्ढिउ
वड्ढ वढिअ/वड्ढिय
(क-4) निम्नलिखित क्रियाओं से भूतकालिक कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उनमें प्रका
रान्त नपुंसकलिंग संज्ञाओं के समान प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय लगाइए1. विप्रस 2. हो
3. लुंच 4. खास
5. उवसम 7. ऊतर 8. तुट्ट
9. उडु 10. वल
-
-
उदाहरण
भूतकालिक कृदन्त
प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाओं के समान प्रथमा बहुवचन विअसिग्र/विअसिना/विअसिमई/विप्रसिपाई
विग्रस दिमसिन
(क-5) निम्नलिखित क्रियाओं से भूतकालिक कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उन्हें
प्राकारान्त बनाकर स्त्रीलिंग बनाइए। फिर उनमें प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं के समान प्रथमा एकवचन के प्रत्यय लगाइए1. उट्ठ 2. ठा
3. हस 4. लज्ज 5. अच्छ
6. मिड 7. मर 8. खेल
9. कुल्ल 10 सय
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
79
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणभूतकालिक कृदन्त आकारान्त रूप प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं
के समान प्रथमा एक वचन उ? उद्विश्र/उट्ठिय उट्ठिा/उट्ठिया उट्टिा/उट्टिा/उट्टिया/उट्ठिय
(क-6) निम्नलिखित क्रियाओं से भूतकालिक कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उन्हें प्राका
रान्त स्त्रीलिंग बनाइए। फिर उनमें प्राकारान्त संज्ञाओं के समान प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय लगाइए1. जग्ग 2. छिज्ज
3. बिह 4. ऊतर 5. थंभ
6. उस्सस 7. हव 8. उच्छह
9. चेट्ठ 10. रम
उदाहरणभूतकालिक कृदन्त आकारान्त रूप आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं
के समान प्रथमा बहुवचन जग्ग जग्गिय/जग्गिय . जग्गिया/जग्गिया जग्गिया/जग्गिय/जग्गियाउ/
जग्गिाउ/जग्गियाअो/ जग्गियो
(ख) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए। संज्ञाओं व सर्वनामों के
लिंग व वचन के अनुरूप (पु. व नपु. में) अकारान्त तथा (स्त्री. में) प्राकारान्त संज्ञाओं के प्रत्ययों से भूतकालिक कृदन्त बनाकर उसके सभी विकल्प लिखिए1. राजा हँसा । 2. पुत्र उठा । 3. व्रत गला । 4. रत्न गिरा । 5. अग्नि जली। 6. अपयश फैला । 7. पुस्तक नष्ट हुई। 8. बालक रोया। 9. हनुमान कूदा। 10 राक्षस मरा । 11. मेघ गरजे। 12. राजा हंसे । 13. पुत्र उठे । 14. व्रत गले । 15. रत्न गिरे। 16. वस्त्र सूखे । 17. गांव बसे । 18. पोते बैठे । 19. विमान उड़ा। 20. शासन फैला । 21. राज्य बढ़ा। 22. गठरी
80 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
लुढ़की । 23. सदाचार प्रकट हुआ । 24. रूप खिला । 26. जंगल नष्ट हुआ । 27 उड़े | 30. कागज सूखे । जलीं । 34. व्यसन छूटे ।
सिर दुखा । 31. सुख बढ़े। 35 वस्त्र सूखे ।
25. लकड़ी जली । 28. सत्य खिला । 29. विमान 32. राज्य फैले । 33. लकड़ियां 36. धागे टूटे । 37. गीत गूंजे ।
38. खेत शोभे । 39. परीक्षा हुई । 40. बहिन रुकी। 41. झोंपड़ी शोभी ।
45. यमुना फैली ।
।
49. पुत्रियां बैठीं ।
42. शिक्षा फैली । 43. नदी सूखी । 44. बेटी सोयी । 46. पत्नी डरी। 47. पुत्री ठहरी । 48 प्रशंसा फैली 50. परीक्षाएं हुईं। 51. बहिनें रूकीं । 52. शिक्षाएं फैली । 53. बेटियाँ सोयीं । 54. पुत्रियां जागीं । 55. नदियां सूखीं । 56. अभिलाषाएं बढ़ीं । 57. झोंपड़ियां बसीं । 58. गुफाएं नष्ट हुईं। 59. मैं जागा । 60. वह ठहरा । 61. तुम प्रसन्न हुए । 62. मैं बैठी 1 63. तुम सोये | 64. वह हँसी । 65. मैं भागा 1 65. वह मुड़ा । 67. तुम उठे । 68. वह खेला । 69. हम सब जागे । 70. वे सब ठहरे। तुम सब प्रसन्न हुए। 72. हम दोनों बैठे । 73. तुम सब सोये 174. वे 77. तुम दोनों उठे ।
71
सब कूदे | 75. हम दोनों भागे । 76. वे दोनों मुड़े । 78. वे सब खेले ।
उदाहरण
राजा हंसा = नरिद / नरिदा /नरिदु/नरिदो हसिन / हसिना / ह सिउ / हसिनो |
( ग - 1 ) नीचे दी गई पुल्लिंग संज्ञाओं का ( कर्ता-रूप में) प्रथमा एकवचन या बहुवचन में प्रयोग कीजिए, कोष्ठक में दी गई क्रियाओं का भूतकालिक कृदन्त के रूप में प्रयोग कीजिए, मध्य में दी गई क्रियाश्रों में सम्बन्धक भूतकृदन्त अथवा हेत्वर्थक कृदन्त का कोई एक प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये । सज्ञा एवं भूतकालिक कृदन्त रूपों के सभी विकल्प लिखिये -
1. कुक्कुर बुक्क ( अच्छ) 3. गंध
'जल ( नस्स)
5. पोत्त
गच्च ( उट्ठ)
7. जर जागर ( डुल ) 9. दुह गल (नस्स )
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
2. पुत्तविह (कंद)
4. मित्त हरिस (जीव )
6. रयपड ( तुट्ट)
8. करह थक्क ( णच्च ) 10. वय तुट्ट (गल )
[ 81
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणकुक्कुर/कुक्कुरा/कुक्कुरु/कुक्कुरो बुक्कि अच्छिा/अच्छिया/अच्छिउ/अच्छियो ।
(ग-2) नीचे दी गई नपुंसकलिंग संज्ञानों का (कर्ता-रूप में)प्रथमा एकवचन या बहुवचन
में प्रयोग कीजिए, कोष्ठक में दी गई क्रियानों का भूतकालिक कृदन्त क रूप में प्रयोग कीजिए, मध्य में दी गई क्रियानों में सम्बन्धक भतकृदन्त अथवा हेत्वर्थक कृदन्त का कोई एक प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये। संज्ञा एवं भूतकालिक कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. विमाण""उड्ड (थम) 2. सासण""पसर (वड्ढ) 3. लक्कुड""नस्स (जल) 4. णयरजण"कुद्द (पला) 5. सुत्त""गल (तुट्ट) 6. पोट्टल " लुढ (पड) 7. घय"चुप (पसर) 8. भय..."खय (पला) 9. बी."उग (वड्ढ) 10. रिण "घट (नस्स)
उदाहरणविमाण/विमाणा/विमाणु उड्डिउ थंभिप्रथंभिश्रा/यभिउ ।
(ग-3) नीचे दी गई स्त्रीलिंग सज्ञाओं का (कर्ता-रूप में) प्रथमा एकवचन या बहुवचन
में प्रयोग कीजिए, कोष्ठक में दी गई क्रियानों का भूतकालिक कृदन्त के रूप में प्रयोग कीजिए, मध्य में दी गई क्रियानों में सम्बन्धक भूतकृदन्त अथवा हेत्वर्थक कृदन्त का कोई एक प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइये। संज्ञा एवं भूतकालिक कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. सीया " थक्क (लोट्ट) 2. घूमा "बिह (कंद) 3. ससा""णच्च (थक्क) 4. महिला"डर (पला) 5. तणया"लुंच (रुव) 6. जाग्रा""उवसम (उवविस) 7. तण्हा घट (नस्स) 8. झुपडा वस (हव)
82
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
9 पसंसा"वड्ढ (पसर)
10. कन्ना""कुद्द (ऊतर)
उदाहरणसीया/सीय थक्किउ लोट्टिया/लोट्टिा ।
(म-4) नीचे दिये गये पुरुषवाचक सर्वनामों का (कर्ता-रूप में) प्रथमा एकबचन या
बहुवचन में प्रयोग कीजिए, कोष्ठक में दी गई क्रियानों का भूतकालिक कृदन्त के रूप में प्रयोग कीजिए, मध्य में दी गई क्रियाओं में सम्बन्धक भूतकृदन्त अथवा हेत्वर्थक कृदन्त का कोई एक प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाइए । पुरुषवाचक सर्वनाम तथा भूतकालिक कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिये1. त"णच्च (थक्क)
2. अम्ह""डर (पला) 3. तुम्ह"उच्छह (उज्जम) 4. ता""खेल (सय) 5. त'"मर (कुल्ल)
6. अम्ह""चिराव (ऊतर) 7. तुम्हथक्क (घुम)
8. ता""कंद (मुच्छ) 9. अम्ह"हरिस (कील) 10. त""कलह (लज्ज)
उदाहरणते णच्चवि थक्किम/यक्किया ।
(घ) निम्नलिखित भतकालिक कृदन्तों की मूलक्रिया, लिंग, वचन एवं प्रत्यय
लिखिए1. हसिन
2. विअसिअई 3. उठ्ठिपउ 4. ठाअग्रो 5. बिहिबाउ
6. थंभिप्रयो 7. लग्मिया 8. चुनिकमा
9. कुद्दिउ 10. सुक्कियो 11. खेलिपाई
12. उवसमिग्रामो 13. गलिम
14. नस्सिमई 15. हरिसिया 16. पच्चिन 17. जीविउ 18. अच्छिाई
अपभ्रंश अम्बास सौरभ ]
[
83
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
19. लुक्किामो 22. होअई 25. जुज्झिनई 28. उज्जमिश्रा
20. जग्गिाउ 23. सयिन 26. घुमित्र 29. लज्जिअउ
21. जागरिमा 24. ऊरिप्रमो 27 डरिपाई 30. भिडिग्राउ
उदाहरण -
मूलक्रिया
वचन
प्रत्यय
हस
1. हसिन 2. विप्रसिअई
लिंग पु./नपु./स्त्री. नपुंसकलिंग
एकवचन बहुवचन
प्र प्र
विग्रस
84 1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-19
(क-1) निम्नलिखित क्रियानों से वर्तमान कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उनमें प्रकारान्त
पुल्लिग संज्ञाओं के समान प्रथमा एकवचन के प्रत्यय लगाइए1 हस
2. डर 3. सय
4. गच्च 5. रूस
6. लज्ज
-
उदाहरण-- क्रिमा वर्तमान कृदन्त
अकारान्त पुल्लिग संज्ञाओं के समान प्रथमा एकवचन हसन्त हसन्ता/हसन्तु/हसन्तो हसमाण/हसमाणा/हसमाणु/हसमाणो
हसन्त
हैसमाण
(क-2) निम्नलिखित क्रियानों से वर्तमान कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उनमें प्रकारान्त
पुल्लिग संज्ञानों के समान प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय लगाइए1. हस
2. गच्च 3. खय
4. जल 5. सोह
6. उवसम
उदाहरण - क्रिया वर्तमान कृदन्त
अकारान्त पुल्लिग संज्ञानों के समान प्रथमा बहुवचन हसन्त हसन्ता हसमाण/हसमाणा
हस
हसन्त हसमारण
नोट--इस अभ्यास-19 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 42
का अध्ययन करें।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
[
85
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क-3) निम्नलिखित क्रियानों से वर्तमान कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात उनमें अकारान्त
नपुंसकलिंग संज्ञानों के समान प्रथमा एकवचन के प्रत्यय लगाइए - 1. पड्ढ
2. विप्रस 3. गुंज
4. कुद्द 5. नामर
6. ऊतर
उदाहरणक्रिया वर्तमान कृदन्त
अकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाओं के समान प्रथमा एकवचन वड्ढन्त/वड्ढन्ता/वड्ढन्तु वड्ढमाण/वड्ढमाणा/वड्ढमाणु
वडढ
वड्ढन्त वड्ढमाण
(क-4) निम्नलिखित क्रियानों से वर्तमान कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उनमें प्रकारान्त
नपुंसकलिंग संज्ञानों के समान प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय लगाइए - 1. विस
2. हो 3. थंभ 5. उड्ड
उदाहरणक्रिया वर्तमान कृदन्त
विस
विप्रसन्त विप्रसमाण
अकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञानों के समान प्रथमा बहुवचन विप्रसन्त/विप्रसन्ता/विप्रसन्तइं/विप्रसन्ताई विप्रसमाण/विप्रसमाणा/विप्रसमाणइं/ विप्रसमाणाई
(क-5) निम्नलिखित क्रियात्रों से वर्तमान कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उन्हें प्राकारान्त
स्त्रीलिंग बनाइए । फिर उनमें प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञानों के समान प्रथमा एकवचन के प्रत्यय लगाइए1. णच्च
2. उट्ठ
86
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
3 लज्ज 5. भिड
4 हस 6. रुव
-
-
उदाहरणक्रिया वर्तमान कृदन्त माकारान्त-रूप
आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञानों के समान प्रथमा एकवचन णचन्ता/णच्चन्त णच्चमाणा/णच्चमाण
णच्च गच्चन्त
रगच्चन्ता णच्चमाणा
(क-6) निम्नलिखित क्रियानों से वर्तमान कृदन्त बनाइए । तत्पश्चात् उन्हें प्राकारान्त
स्त्रीलिंग बनाइए । फिर उनमें प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं के समान प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय लगाइए1. सय
2. जग्ग 3. बिह 5. चेट्ठ
6. हरिस
-
-
-
-
उदाहरणक्रिया कृदन्त
प्राकारान्त-रूप
सय
सयन्त
सयन्ता
प्राकारान्त स्त्रीलिंग सज्ञानों के समान प्रथमा बहुवचन सयन्ता/सयन्त/सयन्ताउ/सयन्त उ/ सयन्ताप्रो/सयन्तप्रो। सयमारणा/सयमारण/सयमारगाउ/ सयमाणउ/सयमाणाप्रो/सयमाणो
सयमारण
सयमारणा
-
(ख) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए। कर्ता के लिंग व वचन के
अनुरूप (पुस्लिग व नपंसलिंग में प्रकारान्त तथा स्त्रीलिग में प्राकारान्त संज्ञाओं के) प्रत्ययों से वर्तमान कृदन्त बनाकर उसके सभी विकल्प लिखिए1. पुत्र शरमाता हुआ बैठता है । 2. कुत्ता भौंकता हुआ भागता है । 3. राक्षस
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 87
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
88
कांपते हुए बैठते हैं । 4. बालक डरता हुआ रोता है। 5. अग्नि जलती हुई नष्ट होती है । 6. ऊँट नाचते हुए थकते हैं। 7. सदाचार बढ़ता हुआ खिलता है । 8. लकड़ियां जलती हुई नष्ट होती हैं। 9. वैराग्य बढ़ता हुआ शोभता है । 10. माता उत्साहित होती हुई बैठती है । 11. प्रतिष्ठा बढ़ती हुई शोभती है । 12. महिलाएं अफसोस करती हुई घूमती हैं । 13. श्रद्धा बढ़ती हुई शोभती है । 14. कर्म गलते हुए छूटते हैं । 15. वह शरमाता हुआ छिपता है । 16 मैं खेलता हुआ खुश होता हूँ । 17. तुम नाचते हुए थकते हो । 18. वे सब रोते हुए लड़ते हैं । 19. हम सब खेलते हुए खुश होते हैं। 20. तुम सब कलह करती हुई लड़ती हो 1 21. मनुष्य हँसता हुए जीवे । 22. पिता खुश होता हुआ प्रयास करे | 23. बालक उत्साहित होते हुए खेलें । 24 महिलाएं उत्साहित होती हुई प्रयत्न करें। 25. कन्या शान्त होती हुई बैठे | 26 तुम प्रसन्न होते हुए खेलो । 27. मैं खुश होते हुए नाचूं | 28. तुम सब हँसते हुए बैठो। 29. हम सब भागते हुए खेलें । 30. सत्य सिद्ध होता हुआ शोभेगा । 31 शिक्षा बढ़ती हुई फैलेगी । 32. कन्याएं नाचती हुई थकेंगी । 33. रत्न गिरते हुए टूटेंगे । 34. मनुष्य प्रयास करते हुए कूदेंगे। 35. पोता बैठता हुआ मुड़ेगा । 36. राक्षस कूदते हुए मरेंगे 137. मैं हँसती हुई जीतूंगी । 38. तुम कूदते हुए थकोगे । 39. वह प्रसन्न होती हुई नाचेगी। 40. हम सब प्रयास करते हुए जागेंगे 1 41. वे सब शान्त होती हुई बैठेंगी। 42. तुम सब डरते हुए छिपोगे । 43. घी टपकता हुआ गिरा । 44. दादा प्रयास करता हुआ बैठा । 45 मित्र प्रयत्न करता हुआ प्रसन्न हुआ । 46 पोते लड़ते हुए कांपे 47. पुत्र गिड़गिड़ाता हुआ बैठा । 48 पानी टपकता हुआ सूखा । 49 राक्षस छटपटाता हुआ मरा । 50. नागरिक लोभ करता हुआ जीया । 51 पुत्री प्रसन्न होती हुई उठी । 52 घास जलता हुआ नष्ट हुआ । 53. मैं खेलता हुआ प्रसन्न हुआ । 54. वह डरती हुई रोयी । 55. तुम अफसोस करते हुए बैठे । 56. वे सब रुकते हुए नीचे उतरे । 57. वे सब शान्त होती हुई बंठीं । 58. हम सब कूदते हुए
।
थके |
उदाहररण
पुत्र शरमाता हुआ बैठता है - पुत्त / पुत्ता / पुत्त / पुत्तो लज्जन्त / लज्जन्ता / लज्जन्तु / लज्जन्तो अच्छइ / अच्छे इ / अच्छए ।
1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग-1) नीचे दिये गये संज्ञा-सर्वनामों का (कर्ता-रूप में) प्रथमा एकवचन या
बहुवचन में प्रयोग कीजिए तथा कोष्ठक में दी गई दो क्रियानों में से एक में वर्तमान कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग करते हुए दूसरी क्रिया में वर्तमानकाल का प्रयोग कर वाक्य बनाइए-- 1. करह "(गच्च, थक्क) 2. वेरग्ग" (वड्ढ, सोह) 3. झुपडा " (पड, नस्स) 4. ता... (डर, पला) 5. अम्ह" (कील, हरिस) 6 तुम्ह (उच्छह, चेट्ट)
-
उदाहरणकरह/करहा/करहु /करहो णच्चन्त/गच्चन्ता/णच्चन्तु/णच्चन्तो थक्कइ/ थक्केइ/थक्कए।
(ग-2) मीचे दिये गये संज्ञा-सर्वनामों का (कर्ता-रूप में) प्रथमा एकवचन या
बहुवचन में प्रयोग कीजिए तथा कोष्ठक में दी गई दो क्रियाओं में से एक में वर्तमान कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग करते हुए दूसरी क्रिया में विधि एवं प्राज्ञा का प्रयोग कर वाक्य बनाइए1. रज्ज"" (वडढ, पसर)
2. महिला (उच्छह, चेट्ट) 3. बालप" (उच्छह, खेल) 4. तुम्ह" (हस, अच्छ) 5. अम्ह " (पला, खेल)
6. त " (उवसम, बइस)
उदाहरणरज्ज/रज्जा/रज्जु वड्ढन्त/वड्ढन्ता/वड्ढन्तु पसरउ/पसरेउ ।
(ग-3) नीचे दिये गये संज्ञा-सर्वनामों का (कर्ता-रूप में) प्रथमा एकवचन या
बहुवचन में प्रयोग कीजिए तथा कोष्ठक में दी गई दो क्रियानों में से एक में वर्तमान कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग करते हुए दूसरी क्रिया में भविष्यत्काल का प्रयोग कर वाक्य बनाइए1. सच्च" (सिज्झ, सोह)
2. रक्खस""(कुल्ल, मर)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
89
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
3. कन्ना... (णच्च, थक्क) 5. तुम्ह" (डर, लुक्क)
4. ता. (उवसम, अच्छ) 6. अम्ह...(चे?, जागर)
उदाहरणसच्च/सच्चा/सच्चु सिज्मन्त/सिज्मन्ता/सिज्भन्तु सोहेसइ/सोहेसए/सोहिहिइ/ सोहिहिए ।
(ग-4) नीचे दिये गये संज्ञा-सर्वनामों का (कर्ता-रूप में) प्रथमा एकवचन या
बहुवचन में प्रयोग कीजिए तथा कोष्ठक में दी गई दो क्रियाओं में से एक में वर्तमान कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग करते हुए दूसरी क्रिया में भूतकाल के भाव को प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर वाक्य बनाइए1. पोत्त" (जुज्झ, कंप) 2. पुत " (गडयड, ब इस) 3. सुया"(हरिस, उट्ट) 4. ता" (डर, कंद) 5. तुम्ह "(खिज्ज, उवविस) 6. अम्ह " (कुद्द, थक्क)
उदाहरणपोत्त/पोत्ता/पोत्तु/पोत्तो कंपन्त/कंपन्ता/कंपन्तु/कंपन्तो जुझिप्र/जुज्झिा / जुज्झिउ/जुज्झिम्रो।
(घ) निम्नलिखित वर्तमान कृदन्तों को मूलक्रिया, लिंग, वचन एवं प्रत्यय
लिखिए - 1. हसन्त 2. विप्रसमारण
3. वड्ढन्तई 4. कुहन्ताउ 5. रमन्तो
6. गुंजमाणु 7. चिट्ठन्तु 8. चिरावमारणा
9. फुरन्ता 10. छुट्टन्तो 11. जागरन्त
12. घटमाणो 13. थंभमाणइं 14. ऊतरन्ताई
15. खासन्ता
90 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
18. डरन्तु
16. गडयडमाणइं 19. उट्ठन्ता
17. लज्जमाणु 20. थक्कन्ताई
उदाहरण
वचन
मूल क्रिया हस
लिंग स्त्री./पू./नपु.
प्रत्यय न्त
हसन्त
एकव./बहव.
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 91
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-20
(क-1) निम्नलिखित प्रकारान्त पुल्लिग संज्ञानों के तृतीया एकवचन व बहुवचन के
रूप लिखिए1. नरिंद 2. करह
3. दिवायर 4. मित्त
5. परमेसर 6. गंथ 7. रक्खस
8. जणेर
9. मेह
उदाहरणअका. पु. सं. तृतीया एकवचन नरिंद नरिंदें नरिदेण/नरिदेणं
तृतीया बहुवचन नरिंदहि नरिंदाहि/नरिंदेहि
(क-2) निम्नलिखित प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञामों के तृतीया एकवचन व बहुवचन
के रूप लिखिए1. कमल 2. रज्ज
3. पोट्टल 4. खेत 5. वत्थ
6. कम्म 7. लक्कुड 8. गह
9. णाण
उदाहरणअका. नपु. सं. तृतीया एकवचन
कमलें/कमलेण/कमलेणं
तृतीया बहुवचन कमलहिं/कमलाहि/कमलेहि
कमल
-
(क-3) निम्नलिखित प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञानों के तृतीया एकवचन व बहुवचन के
रूप लिखिए
नोट-इस अभ्यास-20 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 44
का अध्ययन कीजिए।
92 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
1. ससा 4. कहा 7. महिला
2. माया 5. कन्ना 8. परिक्खा
3. जरा 6. झुपडा 9. सोहा
उदाहररमआका. स्त्री. सं. तृतीया एकवचन ससा
ससाए/ससए
तृतीया बहुवचन ससाहि/ससहि
(क-4) निम्नलिखित पुरुषवाचक सर्वनामों के तृतीया एकवचन व बहुवचन के रूप
लिखिए1. अम्ह
2. तुम्ह
3. त
4. ता
(ख) निम्नलिखित क्रियाओं के भूतकालिक कृदन्त बनाइए । उनके नपुंसकलिंग प्रथमा
एकवचन के रूप लिखिए - 1. हस 2. लज्ज
3. थक्क 4. पड 5. धुम
6. उच्छल 7. खेल 8. कुल्ल
9. जुज्झ 10. सय 11. बिह
12. पसर
उदाहरणक्रिया भूतकालिक कृदन्त हस हसिग्र/हसिय
नपुंसकलिंग प्रथमा एकवचन हसिम हसिया/हसिउ हसिय/हसिया/हसियु
(ग) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए। वाक्यों को बनाने के
लिए संज्ञा-सर्वनाम में वचनानुसार तृतीया एकवचन या बहुवचन का प्रयोग
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[
93
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
कीजिए । भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का नपुंसकलिंग प्रथमा एकवचन में प्रयोग कीजिए
1. राजा द्वारा हंसा गया । 2. कुत्ते द्वारा भौंका गया । 3. नागरिक द्वारा जागा गया । 4. पोते द्वारा नाचा गया । 5. कन्या द्वारा नाचा गया । 6. मित्र द्वारा प्रसन्न हुअा गया । 7. राक्षस द्वारा मरा गया। 8. परीक्षा द्वारा हुआ गया । 9. बेटी द्वारा खाँसा गया । 10. समुद्र द्वारा सूखा गया । 11. विमान द्वारा उड़ा गया। 12. गठरी द्वारा लुड़का गया। 13. सिंह द्वारा गरजा गया। 14. माता द्वारा खुश हुमा गया । 15. पत्नी द्वारा डरा गया। 16. ऊँट द्वारा बैठा गया। 17. पुत्र द्वारा सोया गया। 18. वस्त्र द्वारा सूखा गया । 19. उसके द्वारा थका गया । 20. तुम्हारे द्वारा देर की गई। 21. मेरे द्वारा बंठा गया । 22. राजाओं द्वारा हँसा गया । 23. मित्रों द्वारा प्रसन्न हुआ गया । 24. राक्षसों द्वारा मरा गया। 25. बेटियों द्वारा खांसा गया। 26. सिंहों द्वारा गरजा गया । 27. माताओं द्वारा खुश हुआ गया। 28. ऊंटों द्वारा बैठा गया। 29. पुत्रों द्वारा सोया गया। 30. कुत्तों द्वारा भौंका गया । 31. नागरिकों द्वारा जागा गया। 32. कन्याओं द्वारा नाचा गया । 33. समुद्रों द्वारा सूखा गया। 34. कुओं द्वारा सूखा गया । 35. रत्नों द्वारा शोभा गया। 36. राज्यों द्वारा लड़ा गया। 37. महिलाओं द्वारा शान्त हुअा गया। 38. विमानों द्वारा उड़ा गया। 39. कन्यायों द्वारा छिपा गया। 40. नागरिकों द्वारा अफसोस किया गया। 41. माताओं द्वारा प्रसन्न हुअा गया। 42. राजाओं द्वारा उपस्थित हुया गया। 43. बालकों द्वारा खेला गया। 44. तुम सबके द्वारा डरा गया । 45. उनके द्वारा थका गया। 46. हमारे द्वारा बैठा गया। 47. तुम सबके द्वारा देर की गई। 48. उन स्त्रियों द्वारा सोया गया। 49. हमारे द्वारा घूमा गया ।
उदाहरण -- 1. राजा द्वारा हंसा गया = नरिदें/नरिदेण/नरिदेणं हसिप/हसिया/हसिउ । 2. राजाओं द्वारा हंसा गया = नरिंदहि/नरिंदाहिं/नरिंदेहिं हसिया/हसिया/
हसिउ।
94 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
(घ) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । भूतकाल का भाव प्रकट
करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का कर्तृवाच्य तथा भाववाच्य में प्रयोग कीजिए। सभी विकल्प लिखिएकर्तवाच्य
भाववाच्य 1. मित्र प्रसन्न हुप्रा ।
2. मित्रों द्वारा प्रसन्न हुया गया । 3. राजा हंसा।
4. राजा द्वारा हंसा गया । 5. राक्षस कूदे।
6. राक्षसों द्वारा कूदा गया । 7. बेटी खांसी।
8. बेटी द्वारा खाँसा गया। १. पोते कूदे।
10. पोतों द्वारा कूदा गया । 11. माताएं खुश हुई। 12. माताओं द्वारा खुश हुमा गया । 13. कुत्ता भौंका।
14. कुत्ते द्वारा भौंका गया। 15. पत्नी डरी।
16. पत्नियों द्वारा डरा गया । 17. पुत्र सोया ।
18. पुत्रों द्वारा सोया गया । 19. नागरिक जागे ।
20. नागरिक द्वारा जागा गया। 21. ऊँट बैठा।
22. ऊंट द्वारा बैठा गया । 23. पानी झरा ।
24. पानी द्वारा झरा गया । 25. अपयश फैला।
26. अपयश द्वारा फैला गया । 27. अग्नि जली।
28. अग्नि द्वारा जला गया । 29. प्रतिष्ठा कम हुई। 30. प्रतिष्ठा द्वारा कम हुअा गया। 31. सुख गला।
32. मुख द्वारा गला गया । 33. विमान उड़ा।
34. विमान द्वारा उड़ा गया । 35 गठरी लुढ़की।
36. गठरी द्वारा लुढ़का गया । 37. वस्त्र सूखा।
38. वस्त्र द्वारा सूखा गया । 39. पुस्तक जली।
40. पुस्तक द्वारा जला गया । 41. कन्याएं नाची। 42. कन्याओं द्वारा नाचा गया। 43. बादल गरजे।
44. बादलों द्वारा गरजा गया।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
95
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
45. समुद्र सूखे ।
47. रत्न शोभे ।
49. महिला शान्त हुई ।
उदाहरण
कर्तृवाच्य - मित्र प्रसन्न हुआा = मित्त / मित्ता/मित्त / मित्तो हरिसिन / हरिसिया / हरिसिउ / हरिसिप्रो ।
46. समुद्रों द्वारा सूखा गया । 48. रत्नों द्वारा शोभा गया ।
50. महिलाओं द्वारा शान्त हुआ गया ।
=
भाववाच्य - मित्रों द्वारा प्रसन्न हुआ गया - मित्तह/मित्ताहि / मितेहि हरिसिथ / हरिसिप्रा / हरिसिउ ।
96 1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-21 (क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया एवं
कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए - 1. राजा हंसता है । 2. राजा हंसे । 3. राजा हंसेगा। 4. राजा हंसा । 5. राजा के द्वारा हंसा गया। 6. बालक बैठते हैं । 7. बालक बैठे। 8. बालक बैठेंगे। 9 बालक बैठा। 10. बालक द्वारा बैठा गया । 11. विमान उड़ता है । 12. विमान उड़े। 13. विमान उड़ेगा। 14. विमान उड़ा । 15. विमान द्वारा उड़ा गया। 16 नागरिक उपस्थित होते हैं। 17. नागरिक उपस्थित होवें । 18. नागरिक उपस्थित होंगे। 19. नागरिक उपस्थित हुए। 20 नागरिकों द्वारा उपस्थित हुअा गया। 21. माता प्रसन्न होती है । 22. माता प्रसन्न होवे । 23. माता प्रसन्न होवेगी । 24. माता प्रसन्न हुई । 25. माता के द्वारा प्रसन्न हुया गया। 26. कन्याएं छिपती हैं। 27. कन्याएं छिपें । 28. कन्याएं छिपेंगी। 29. कन्यानों द्वारा छिपा गया । 30. वह जागता है। 31. वह जागे । 32. वह जागेगा। 33. वह जागा। 34. उसके द्वारा जागा गया । 35. तुम सब रुकते हो । 36. तुम सब रुको । 37. तुम सब रुकोगे । 38. तुम सब रुके। 39. तुम सबके द्वारा रुका गया 40. मैं ठहरती हूँ। 41. मैं ठहरूं । 42. मैं ठहरूँगी। 43. मैं ठहरी। 44. मेरे द्वारा ठहरा गया । 45. वे सब उतरती हैं। 46. वे सब उतरें। 47. वे सब उतरेंगी। 48. वे सब उतरीं । 49. उन सब के द्वारा उतरा गया । 50, सीता सोने के लिए उठती है । 51. सीता सोने के लिए उठे। 52. सीता सोने के लिए उठेगी । 53. सीता सोने के लिए उठी। 54. सीता के द्वारा सोने के लिए उठा गया। 55. तुम नाचने के लिए उठते हो। 56. तुम नाचने के लिए उठो। 57. तुम नाचने के लिए उठोगे। 58. तुम नाचने के लिए ठे। 59. तुम्हारे द्वारा नाचने के लिए उठा गया ।
उदाहरणराजा हंसता है=नरिंद/नरिंदा/नरिंदु/नरिंदो हसइ/हसेइ/हसए ।
-
-
-
नोट-इस अभ्यास-21 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 1 से
44 तक दोहराएं।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[
97
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) निम्नलिखित संज्ञानों एवं सर्वनामों के मूलशब्द, पुरुष, वचन, विभक्ति एवं लिंग
लिखिये । संज्ञानों के प्रत्यय भी लिखिए
1. नरिंदु 4. विमाणु 7. कमलाउ 10. गंगामो 13. रहुणन्दणेहि 16. एयरजणा 19. कम्में 22. तइ 25. मई 28. तेण
2. पोहि 5. रज्जई 8. तणयाए 11. करहो 14. दिवायर 17. छिक्क 20. णाणेण 23. ताउ 26. तुम्हेहि 29. ताहिं
3. रणरें 6. वेरग्गा 9. ससाहिं 12. गंथेणं 15. कूव 18. भोयणाहिं 21. सो 24. अम्हे 27. ता 30. अम्हई
उदाहरण
मूलशब्द पुरुष नरिंदु नरिंद अन्यपुरुष
वचन एकवचन
विमक्ति लिंग प्रत्यय प्रथमा पुल्लिग उ
(ख) निम्नलिखित कृदन्तों के मूल क्रिया, प्रत्यय एवं नाम बताइए तथा जहां सम्भव हो
वहां विभक्ति, वचन एवं लिंग भी बताइए -- 1. हसिउ 2. णचन्त
3. जीवित्रो 4. रूसिया
5. लुक्कन्तो 6. जग्गमाणो 7. सयिमा
8. लज्जिपई १. डरमारणइं 10. अच्छन्ता 11. पडन्ताउ
12. उट्ठन्तु 13. घुमन्ता 14. भिडिउ
15. णिज्झरिमा 16. जलन्त 17. सुक्कन्तइ 18. पसरमाणा 19. बुक्कमाणाई 20. कंदन्ता
21. जलणहं
98 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
22. सोहणहिं 25. तुट्टण 28. फुरेविणु
23. पसरिवि 26. विप्रसेवं 29. णच्चि
24. कदेवि 27. हसणहं 30. जग्गेप्पि
उदाहरणमूलक्रिया प्रत्यय बिभक्ति वचन लिंग
कृदन्त (हसिउ हस इउ - - - संबंधक कृ. । हसिउ हस भ प्रथमा एकवचन पु, नपु. भूतका. कृ. णच्चन्त णच्च न्त प्रथमा एकवचन पु., नपु., स्त्री. वर्तमान कृ.
-
-
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 99
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास- 22
( क - 1 ) निम्नलिखित क्रियाओंों में 'श्रव्व' प्रत्यय लगाकर विधिकृदन्त बनाइये । उनके नपुंसकलिंग प्रथमा एकवचन के रूप लिखिए -
2. लज्ज
1. हस
3. कलह 5. घुम
उदाहरण
क्रिया
हस
विधि कृदन्त
हसिनव्व
सेव
उदाहरण
क्रिया
हस
100 ]
( क - 2 ) निम्नलिखित क्रियानों में 'इएव्वजं, एव्वउं, एवा' प्रत्यय लगाकर विधिकृदन्त बनाइए । ( प्रयोग के लिए इनमें विभक्ति की आवश्यकता नहीं होती
है ) -
1. हस 3. थंभ
5. जागर
4. अच्छ 6. चेटू
विधि कृदन्त ( परिवर्तनीय रूप ) नपुंसकलिंग प्रथमा एकवचन
हसिव / हरिश्रवा / हसिश्रव्वु हसेव / हसेवा / हसेनव्वु
2. उवसम
4. कुद्द
6. थक्क
नोट - इस अभ्यास - 22 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 48 का
अध्ययन कीजिए |
विधि कृदन्त ( परिवर्तनीय रूप ) हसि एब्व उं / ह से व्व उं / हसेवा
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए। इन वाक्यों को बनाने के
लिए संज्ञा व सर्वनाम में तृतीया एकवचन बहुवचन का, विधि के भावों को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त के परिवर्तनीय तथा अपरिवर्तनीय रूपों का प्रयोग कीजिए1. राजा के द्वारा हंसा जाना चाहिए। 2. मित्र के द्वारा प्रसन्न हुअा जाना चाहिए। 3. पुत्र द्वारा सोया जाना चाहिए। 4. राजाओं के द्वारा हंसा जाना चाहिए। 5. मित्रों द्वारा प्रसन्न हुअा जाना चाहिए। 6. पुत्रों के द्वारा सोया जाना चाहिए । 7. राज्य द्वारा लड़ा जाना चाहिए। 8. विमान द्वारा उड़ा जाना चाहिए । 9. राज्यों द्वारा लड़ा जाना चाहिए। 10. विमानों द्वारा उड़ा जाना चाहिए। 11. माता द्वारा खुश हुआ जाना चाहिए। 12. कन्या द्वारा छिपा जाना चाहिए। 13. माताओं द्वारा खुश हुआ जाना चाहिए । 14. कन्याओं द्वारा छिपा जाना चाहिए । 15. उसके द्वारा खेला जाना चाहिए। 16. तुम्हारे द्वारा हंसा जाना चाहिए । 17 मेरे द्वारा प्रयत्न किया जाना चाहिए । 18. उसके (स्त्री) द्वारा नाचा जाना चाहिए। 19. हमारे द्वारा प्रयत्न किया जाना चाहिए । 20. उन सब के द्वारा प्रसन्न हुअा जाना चाहिए।
उदाहरणराजा द्वारा हंसा जाना चाहिएनरिंदें/नरिदेण/नारदेणं (क) हसिप्रव/हसिसव्वा हसिप्रव्धु
हसे प्रव/हसेग्रव्वा/हसेप्रध्वु ।
(परिवर्तनीय रूप) (ख) हसिएवउं/हसेन्वउं/हसेवा ।
(अपरिवर्तनीय रूप)
(ग) नीचे संज्ञा-सर्वनाम तथा कोष्ठक में क्रियाएं दी गई हैं। क्रियानों में विधि
कृदन्त के परिवर्तनीय और अपरिवर्तनीय रूपों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए1. नरिद (हस)
2. कमल (विग्रस) 3. ससा (जग्ग)
4. अम्ह (लुक्क) 5. पोत्त (कुल्ल)
6. विमाण (उड्ड)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
101
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. माया (हरिस) 9. ता (णच्च)
8. तुम्ह (उज्जम) 10. रज्ज (जुज्झ)
उदाहरणकमलें/कमलेण/कमलेणं (क) विप्रसिपब्व/विप्रसिप्रव्वा/विअसिव्वु/ विमसेअव्व/विग्रसेअव्वा/विप्रसे अव्वु ।
(परिवर्तनीय रूप) (ख) विप्रसिएव्व उं/विग्रसेव्वउं/विप्रसेवा ।
(अपरिवर्तनीय रूप)
(घ) निम्नलिखित विधिकृदन्तों को मूलक्रिया, वचन, विभक्ति, प्रत्यय एवं परिवर्त.
नीय/अपरिवर्तनीय रूप बताइए1. हसिप्रव 2. लज्जिएव्वळ . 3. रुवेव्वळ 4. डरेअव्व 5. थक्किमव्वा
6. अच्छेवा 7. पडेअव्वु 8. उढिअब्दु
9. घुमेप्रव्वा 10. उच्छलिअव्व 11. उज्जमिएव्वउं 12. कंपेव्वर 13. मरेअव्व 14. खेलिसव्वा 15. कुल्लेवा 16. जुज्झेब्यु 17. सयिअव्वु 18. णच्चेप्रव्वा 19. रूसिव्व 20. लुक्किएव्वउं 19. विनसेव्वळ
उदाहरण
मूलक्रिया वचन विमक्ति प्रत्यय परिवर्तनीय/अपरि. रूप हसिअव्व हस एकवचन प्रथमा अव्व परिवर्तनीय
102 ]
' [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास- 23
(क) निम्नलिखित क्रियाओं के भाववाच्य बनाइए । उनमें तीनों कालों के अन्य पुरुष
एकवचन के प्रत्यय लगाइए
1. हस
3. लुक्क 5. हरिस
उदाहरण
भाववाच्य
हस हसिज्ज / हसिय
2. गच्च
4. गल
6. उल्लस
वर्तमान
हसिज्जइ / हसियइ हसिज्जए / हसियए
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
विवि
हसिज्जर / हसियउ
1) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । वाक्यों को बनाने के लिए संज्ञा व सर्वनाम में तृतीया एकवचन / बहुवचन का प्रयोग कीजिए । विभिन्न कालों को प्रकट करने के लिए क्रियानों में भाववाच्य के प्रत्यय लगाने के पश्चात् श्रन्यपुरुष एकवचन के प्रस्थय लगाइए
1. राजा के द्वारा हंसा जाता है । 2. कमल के द्वारा खिला जाता है। 3. बहिन के द्वारा जागा जाना हैं। 4. मेरे द्वारा नाचा जाता है । 5. तुम्हारे द्वारा कूदा जाता है । 6. उसके द्वारा उठा जाता है । 7. उस (स्त्री) के द्वारा प्रसन्न हुआ जाता है । 8. राजाओं द्वारा प्रसन्न हुआा जाता है । 9. कमलों द्वारा खिला जाता है । 10. बहिनों द्वारा जागा जाता है । 11. हमारे द्वारा नाचा जाता है । 12. तुम सब के द्वारा कूदा जाता है । 13. उनके द्वारा उठा जाता है । 14. उन (स्त्रियों) के द्वारा प्रसन्न हुआ जाता है । 15 पुत्र के द्वारा खेला जाए । 16. नागरिक द्वारा उपस्थित हुआ जाये । 17. माता द्वारा बैठा जाए ।
भविष्यत्काल
हसेस इ / श्रादि
नोट - इस अभ्यास- 23 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ-46 का अध्ययन कीजिए ।
[ 103
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
18. मेरे द्वारा सोया जाए। 19. तुम्हारे द्वारा प्रयास किया जाए। 20. उसके
द्वारा कूदा जाए । 21. उस ( स्त्री ) के द्वारा छिपा जाए । 22. पुत्रों के द्वारा खेला जाए। 23 नागरिकों द्वारा उपस्थित हुआ जाए। 24. माताओं द्वारा बैठा जाए। 25. हमारे द्वारा सोया जाए । 26 तुम दोनों के द्वारा प्रयास किया जाए | 27. उनके द्वारा कूदा जाए। 28. उन स्त्रियों के द्वारा कूदा जाए । 29. कुत्ते के द्वारा भौंका जायेगा | 30. विमान द्वारा उड़ा जायेगा | 31. कन्या के द्वारा लालच किया जायेगा । 32. उसके द्वारा उछला जायेगा । 33. उस स्त्री के द्वारा अफसोस किया जायेगा । 34. तुम्हारे द्वारा देर की जायेगी । 35. मेरे द्वारा नीचे ग्राया जायेगा । 36. कुत्तों के द्वारा भौंका जायेगा । 37. विमानों द्वारा उड़ा जायेगा । 38. कन्याओं द्वारा लालच किया जायेगा । 39. उनके द्वारा उछला जायेगा । 40. हम सबके द्वारा नीचे आया जायेगा। 41. उन स्त्रियों के द्वारा अफसोस किया जायेगा । 42. तुम सब के द्वारा देर की जायेगी ।
उदाहरण
राजा के द्वारा हँसा जाता है = नरिंदें / नरिदेण / नरिदेणं हसिज्जइ / हसियइ / हज्जिए / हसिए |
राजाओं द्वारा हँसा जाता है =नरिदहि / नरिवाहि / नरिदेहि हसिज्जइ / हसियइ / हज्जिए / हसियए ।
(ग) नीचे सज्ञाएं, पुरुषवाचक सर्वनाम तथा कोष्ठक में क्रियाएं दी गई हैं। संज्ञानों व सर्वनामों में कहीं एकवचन, कहीं बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्टकाल में भाववाच्य के वाक्य बनाइए
1. नरिद (हस) वर्तमानकाल 3. मित्त (हरिस) विधि एवं प्रशा 5. जणेर (अच्छ) विधि एवं आज्ञा 7. कमल ( विप्रस) वर्तमानकाल 9. रज्ज (उज्जम) विधि एवं श्राज्ञा
104 ]
2. कुक्कुर ( बुक्क) वर्तमानकाल 4. सीह (गज्ज) विधि एवं श्राज्ञा 6. दिवायर ( उग ) भविष्यत्काल 8. सील (फुर) विधि एवं श्राज्ञा 10. विमारण ( उड्ड) भविष्यत्काल
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
11. सीया (हस) वर्तमानकाल 13. माया (हरिस) विधि एवं प्राज्ञा 15. अम्ह (कुल्ल) वर्तमानकाल 17. तुम्ह (हरिस) विधि एवं प्राज्ञा 19 त (उवविस) भविष्यत्काल
12. ससा (जग्ग) वर्तमानकाल 14. महिला (उवसम)विधि एवं प्राज्ञा 16. अम्ह (खेल) वर्तमानकाल 18. तुम्हे (उज्जम) विधि एवं प्राज्ञा 20. ता (णच्च) विधि एवं प्राज्ञा
उदाहरणनरिंदे/नरिंदेण/नरिदेणं हसिज्जइ/हसियइ/हसिज्जए/हसियए ।
(घ) निम्नलिखित भाववाच्यों की मूलक्रिया, पुरुष, वचन, प्रत्यय ब काल
लिखिए1. हसिज्जइ
2. गलिज्जउ 3. खयेसइ
4. कीलिज्जइ 5. लोभिज्जउ
6. वसिहिए 7. कुल्लिज्जए
8. अच्छिज्जउ 9. रुविज्जए
10. मिडिहिइ
उदाहरणभाववाच्य मूलक्रिया पुरुष हसिज्जइ हस अन्यपुरुष
बचन प्रत्यय एकवचन इज्ज
काल वर्तमान
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 105
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क) निम्नलिखित वाक्यों की
अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञानों, क्रियानों एवं कृदन्त-रूपों के प्रत्ययों के सभी विकल्प लिखिए । विधि एवं प्राज्ञा के भाववाच्य में क्रिया रूपों एवं विधि कृदन्त दोनों का प्रयोग कीजिए
106
कर्तृवाच्य
1. बालक खेलते हैं ।
3. बालक खेले ।
5. बालक खेलें ।
7. बालक खेलेंगे । 9 माता प्रसन्न होती है । 11. माता प्रसन्न हुई ।
13. माता प्रसन्न होवे | 15. माता प्रसन्न होवेगी ।
17. मैं सोता हूँ ।
19. मैं सोया ।
21. मैं सोवूं । 23. मैं सोऊँगी ।
अभ्यास- 24
उदाहरण
बालकों द्वारा खेला जाए = (i) (ii) बालहिं / बालाहि / बाल एहि
]
भाववाच्य
2. बालकों द्वारा खेला जाता है ।
4. बालकों द्वारा खेला गया ।
6. बालकों द्वारा खेला जाए ।
8. बालकों द्वारा खेला जायेगा ।
10. माता द्वारा प्रसन्न हुआ जाता है ।
12. माता द्वारा प्रसन्न हुआ गया ।
14. माता द्वारा प्रसन्न हुआा जावे | 16. माता द्वारा प्रसन्न हुआा जावेगा । 18. मेरे द्वारा सोया जाता है ।
20. मेरे द्वारा सोया गया । 22. मेरे द्वारा सोया जावे । 24. मेरे द्वारा सोया जायेगा ।
नोट – इस अभ्यास- 24 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 41
से 48 तक दोहराएं ।
बालग्रह / बालग्राहि / बालएहि खेलिज्जउ । (क) खेलिश्रठव / खेलिग्रा / खेलिनव्वु / खेले ब्व / खेले अठवा / खेले अब्बु | (ख) खेलेवा/ खेले व्बउ / खेलिएव्वउ ।
1
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) नीचे संज्ञाएँ, पुरुषवाचक सर्वनाम तथा कोष्ठक में क्रियाएँ दी गई हैं । संज्ञानों
एवं सर्वनामों में कहीं एकवचन, कहीं बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्टकाल में कर्तृवाच्य एवं भाववाच्य दोनों में वाक्य बनाइए1. बिमाण (उड्डु) वर्तमानकाल 2. कन्ना (लुक्क) भूतकाल 3. रज्ज (जुज्झ) भविष्यत्काल 4. कुक्कुर (बुक्क) वर्तमानकाल 5. ता (गच्च) भूतकाल
6. सद्धा (वड्ढ) विधि एवं प्राज्ञा 7. माया (हरिस) विधि एवं प्राज्ञा 8. तुम्ह (थक्क) वर्तमानकाल 9. त (हा) भूतकाल
10. सुया (खेल) विधि एवं प्राज्ञा
उदाहरण1. विमाण/विमाणा/विमाणु उड्डइ/उड्डे इ/उड्डए । (कर्तृवाच्य) 2. विमाणे विमाणण/विमाणेणं उडिज्जइ/उड्डियइ । (भाववाच्य)
(ग) निम्नलिखित वाक्य कर्तृवाच्य में दिए गए हैं। इनका भाववाच्य में परिवर्तन
कीजिए। माउल/माउला/माउलु/माउलो उट्ठउ/उठेउ । 2. मित्त/मित्ता हरिसन्तु/हरिसेन्तु । 3. गर/गरा उज्जमेसहि/उज्जमेसन्ति/उज्जमिहिहि उज्जमिहिन्ति । 4. लक्कुड/ लक्कुडा/लक्कुडइं/लक्कुडाई जलहिं/जलन्ति/जलन्ते/जलिरे । 5. वत्थ/वत्था/वत्थई/वत्थाई सुक्किनासुक्किपा/सुक्किनइं/सुविक प्राई । 6. हडं ठाउं/ठामि। 7. तुहुँ लुक्क हि/लुक्कसि/लुक्कसे/लुक्के सि । 8. सो व्हाइ। 9. हउं गच्चमु/णच्चेमु । 10. ता णच्चिया/णच्चिन/णच्चिपाउ/णच्चिअउ/गच्चिायो/पच्चियो ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 107
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणकर्तृवाच्य-माउल/माउलु/माउला/माउलो उट्ठउ/उठेउ । भाववाच्य-(i) माउलें/माउलण/माउलेणं उटिज्जउ/उट्ठियउ । (ii) माउलें/माउलेण/माउलेणं उद्विअव्व/उट्ठिअव्वा/उट्ठिअव्वु/
उठेअव्व/उद्वेग्रव्वा/उ→अव्वु/ उठेवा/उढेव्वउं/उट्टिएव्वउं ।
(घ) निम्नलिखित वाक्य भाववाच्य में दिए गए हैं। इनका कर्तृवाच्य में परिवर्तन
कीजिए1. कुक्कुरें/कुक्कुरेण/कुक्कुरेणं बुक्किज्जइ/बुक्किज्जए/बुक्कियइ/बुक्कियए । 2. पोत्तहिं/पोत्ताहिं/पोत्तेहिं सयिज्जइ/सयिज्जए/सयियइसयियए । 3. णरहि/णराहि/परेहिं उज्जमेस इ/उज्जमेसए/उज्जमिहिइ/उज्जमिहिए । 4. मित्तहिं/मित्ताहिं/मित्तेहिं हरिसिग्र/हरिसिप्रा/हरिसिउ । 5. लक्कुडहिं/लक्कुडाहिं/लक्कुडेहिं जलिय/जलिया/जलिउ । 6. पई/तई उद्विज्जइ/उट्ठिज्जए/उट्ठियइ/उट्ठिथए । 7. मई कुल्लिज्जइ/कुल्लिज्जए/कुल्लियइ/कुल्लियए । 8. पइ/तई रणच्चिज्जउ/रणच्चियउ । 9. तें तेण तेणं उवस मिज्जउ/उवसमियउ । 10. मइं लुक्किम/लुक्किा /लुक्किउ ।
उदाहरणकुक्कुरें/कुक्कुरेण/कुक्कुरेणं बुक्किज्जइ/बुक्कियइ/बुक्कियए-कुक्कुर/कुक्कुरा/
कुक्कुरु/कुक्कुरो बुक्कइ/बुक्केइ/बुक्कए ।
108 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-25
(क-1) निम्नलिखित प्रकारान्त पुल्लिा संज्ञानों के द्वितीया एकवचन व बहुवचन के
रूप लिखिए1. नरिंद 2. कुक्कुर
3. जर 4. रणर 5. वय
6. मेह 7. रक्खस 8. सलिल
9. दिवायर 11. करह
12. माउल
10. सीह
उदाहरण
द्वितीया एकवचन नरिंद नरिंद/नरिंदा/नरिंदु
द्वितीया बहुवचन नरिंद/नरिंदा
(क-2) निम्नलिखित प्रकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञानों के द्वितीया एकवचन व बहुवचन
के रूप लिखिए1. भोयण 2. विमाण
3. कम्म 4. णाण 5. सुत्त
6. वत्थ 7. खेत्त 8. सुह
9. णयरजण 10. रज्ज
11. असण 12. खीर
उदाहरण--
द्वितीया एकवचन भोयण भोयण/भोयणा/भोयणु
द्वितीया बहुवचन भोयण/भोयणा/भोयणई/भोयणाई
-
नोट-इस अभ्यास-25 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 50
51 का अध्ययन कीजिए।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 109
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क-3) निम्नलिखित प्राकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञानों के द्वितीया एकवचन व बहुवचन के
रूप लिखिए1. माया 2. कमला
3. णम्मया 4. कहा
5. सरिया 6. गुहा 7. कन्ना
8. पसंसा 9. निसा 10. सीया 11. तण्हा
12. मेहा
उदाहरण
__ द्वितीया एकवचन माया माया/माय
द्वितीया बहुवचन माया/माय/मायाउ/माय उ/मायाप्रो/मायो
(क-4) निम्नलिखित पुरुषवाचक सर्वनामों के द्वितीया एकवचन व बहुवचन के रूप
लिखिए1. अम्ह 2. तुम्ह
3. त (पु) 4. त (नपु.) 5 ता (स्त्री)
उदाहरण -
द्वितीया एकवचन अम्ह मई
द्वितीया बहुवचन अम्हे/अम्हई
(ख) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, सर्वनाम एवं क्रिया
रूपों के सभी विकल्प लिखिये1. राजा परमेश्वर को प्रणाम करता है। 2. ऊँट घास चरता है । 3 पुत्र माता को प्रणाम करता है । 4. तुम मुझको पालते हो। 5. पिता पुत्र की रक्षा करे । 6. राजा राज्यों को जाने । 7. पुत्री शिक्षा को समझे । 8. तुम मेरी रक्षा करते हो। 9. दादा पोते को पालेगा । 10. नागरिक गीत सुनेगा। 11. माता पुत्री की रक्षा करेगी । 12. वह उसको पालेगी। 13. राम परमेश्वरों को प्रणाम करता है । 14. शासन राज्यों को पालता है। 15. बहिनें कथाएं सुनती हैं ।
110 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
16. वह हम सबकी रक्षा करती है । 17. राजा व्रतों को पाले। 18. पुत्र सुखों को समझे । 19. पुत्री शिक्षाओं को सुने । 20. तुम उन सबकी रक्षा करो। 21. वह तुमको जानती है । 22. सीता व्रतों को पालेगी। 23. वे मनुष्यों की रक्षा करेंगे। 24. ऊंट (विभिन्न प्रकार के) धानों को चरेंगे। 25. बेटी उन सबको प्रणाम करेगी। 26. पोता उन सबको प्रणाम करेगा। 27. वे हम सबको पालते हैं । 28. हनुमान राम को प्रणाम करता है । 29 हनुमान सीता की रक्षा करता है। 30. माता बेटियों की रक्षा करे। 31. राम हनुमान को समझता है । 32. ससुर (विभिन्न प्रकार के) भोजन खाता है। 33. दादा शास्त्रों को समझते हैं। 34. नागरिक रत्नों की रक्षा करें। 35. मित्र कथा सुनेगा । 36. दादा पोतों को पालेंगे। 37. नरेश नागरिकों को जानता है । 38. राज्य राजा की रक्षा करता है ! 39. सीता कथा सुनेगी। 40. मैं तुमको प्रणाम करता हूँ। 41. राजा माता को प्रणाम करे। 42 परमेश्वर हम सबकी रक्षा करे। 43. पुत्री विभिन्न प्रकार के भोजन खायेगी। 44. सीता हनुमान को जानती है। 45. मेघ मनुष्यों को पालते हैं। 46. तुम दु:खों को जानो । 47. मैं उन सबको प्रणाम करूं। 48. वे हम सबको जानते हैं । 49. राक्षस बच्चों को खाता है । 50 तुम उन सबकी रक्षा करो ।
उदाहरणराजा परमेश्वर को प्रणाम करता है नरिंद/नरिंदा/नरिंदु नरिंदो परमेमर/
परमेसरा/परमेसरु पणमइ। पणमेइ/पणमए ।
(ग) नीचे संज्ञाएं, पुरुषवाचक सर्वनाम तथा कोष्ठक में सकर्मक क्रियाएँ दी गई
हैं। मध्य में दिए गए संज्ञानों या सर्वनामों में द्वितीया एकवचन अथवा बहुवचन का प्रयोग करते हुए निर्दिष्ट-कालों में वाक्य बनाइए । सज्ञा, सर्वनाम व क्रियारूपों के सभी विकल्प लिखिए - 1. करह, तिण (चर) वर्तमानकाल 2. सीया, हणुवन्त (जाण) वर्तमानकाल 3. अम्ह, त (पणम) विधि एवं प्राज्ञा 4. णयरजण, रयण (रक्ख) विधि एवं प्राज्ञा
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 11
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
5. पोत्त, त (पणम) भविष्यत्काल 6. मित्त, कहा (सुण) भविष्यत्काल 7. ससुर, भोयण (खा) वर्तमानकाल 8. त, अम्ह (जाण) वर्तमानकाल 9. तुम्ह, दुक्ख (जाण) विधि एवं प्राज्ञा 10. सुया, सिक्खा (सुण) विधि एवं आज्ञा 11. माया, वय (फाल) भविष्यत्काल 12. तणया, भोयण (खा) भविष्यत्काल 13. त, णर (रक्ख) भविष्यत्काल 14. ता, त (पाल) विधि एवं प्राज्ञा 15. अम्ह, तुम्ह (पणम) विधि एवं प्राज्ञा 16. नरिंद, परमेसर (पणम) विधि एवं भाज्ञा 17. तुम्ह, अम्ह (जाण) भविष्यत्काल 18. बालप, गाण (सुण) भविष्यत्काल 19. पुत्त, माया (पणम) वर्तमानकाल 20 जणेर, पुत्त (रक्ख) विधि एवं प्राज्ञा
उदाहरणकरह/करहा/करहु/करहो तिण/तिणा/तिणु चरइ/चरेइ/चरए ।
(घ) नीचे संज्ञाएं व पुरुषवाचक सर्वनाम विभक्तिसहित दिये गये हैं। इनके मूलशब्द,
लिंग, वचन एवं विभक्ति लिखिए। संज्ञाओं के प्रत्यय भी लिखिये1. माया
2. नरिंदु
3. भोयणा 4. अम्हई 5. पई
6. विमाण 7. ससाउ
8. करहा
9. मई
112
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
11. माउल
14. ताइ
10. सोक्खा 13. ता 16. रज्जु 19. त
12. अहिलासामो 15. पोत्तु 18. तं 21. अम्हई
17. कमला 20. हउं
उदाहरणमूल शब्द लिंग वचन
विभक्ति माया माया स्त्रीलिंग एकवचन, बहुवचन प्रथमा, द्वितीया
प्रत्यय शून्य
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[ 113
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-26
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, सर्वनाम व क्रियारूपों
के सभी विकल्प लिखिए -
1. मैं परमेश्वर की पूजा करती हैं। 2. सदाचार अपयश को रोकता है। 3. तुम दूध चखो। 4. पत्नी वस्त्रों को धोयेगी। 5. कन्याएँ छोटे घड़े को उघाड़ती हैं। 6. हनुमान राम का उपकार करता है । 7. तुम भोजन चबानो । 8. कुत्ले धान को उपाड़ते हैं। 9. मनुष्य व्यसन छोड़ें । 10. बहिनें धान पीसेंगी। 11. तृष्णा निद्रा को रोकती है । 12. जुमा मनुष्य को कलंकित करता है। 13. वह बीजों को चुने । 14. देवर सिंहों को देखेगा । 1.5. हम धान कूटते हैं। 16. दादा पोतों को बुलाता है । 17. तुम उनको पुकारो। 18. वे गठरी को काटेंगे । 19. वे दोनों खेत खोदते हैं। 20. महिलाएं व्रतों को धारेंगी। 21. बहिनें पुत्रियों को देखें। 22. हम गंगा का पूजन करेंगे । 23. तुम दोनो लकड़ी छीलते हो । 24. वे सब मदिरा छोड़ें। 25. पुत्रियां वस्त्र धोएं । 26 ननदें भोजन जीमती हैं । 27. राक्षस बच्चों को ठगते हैं । 28. बालक कमल को तोड़ता है। 29. राक्षस बच्चों को ठगेगा। 30. घी भोजन को स्निग्ध करता है। 31. मैं घी डालूंगा। 32. बहिनें नींद छोड़ें। 33. ससुर पत्नी की निन्दा करता है । 34. राजा रत्नों की खोज करता है। 35. तुम सब बादलों को देखो। 36. बेटी धागा तोड़ेगी। 37. नागरिक बालक को ठगता है। 38. मामा शस्त्रों को स्पर्श करता हैं। 39. प्रशंसा चित्त को छूती है। 40. वह सुख की खोज करे। 41. बालक विमान को देखते हैं। 42. तुम घी डालो । 43. दुःख सुख को रोकता हैं । 44. तुम जल को स्पर्श करो। 45. मैं जंगल को काटूंगा। 46. तुम सब भोजन जीमो । 47. भूख प्यास को रोकती है। 48. हम दोनों गड्ढे को खोदें। 49. माता पुत्र को स्पर्श करती है । 50. प्रज्ञा ज्ञान को प्रकट करती है। 51. वह वस्त्रों को फाड़ेगा। 52. राजा गर्व को छोड़े । 53. राक्षस कुत्ते को रोकेगा। 54. पुत्र घास काटे ।
नोट-इस अभ्यास-26 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 52
का अध्ययन कीजए।
114 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
55. सत्य सदाचार को प्रकट करेगा। 56. पुत्र व्यसन छोड़े। 57. तुम सब मद्य को छोड़ो। 58. वह बीजों को पीसता है। 59. मैं कन्या को पुकारता हूँ। 60. महिला गड्ढे को ढकती है।
उदाहरणमैं परमेश्वर की पूजा करती हूँहउं परमेसर/परमेसरा/परमेसरु अच्चउं/
__ अच्चमि अच्चामि/अच्चेमि ।।
-
mar-
-
-
-
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 115
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास- 27
( क - 1 ) निम्नलिखित इकारान्त व ईकारान्त पुल्लिंग संज्ञानों के प्रथमा, द्वितीया तथा तृतीया के एकवचन व बहुवचन के रूप लिखिए
1. सामि
3. केसरि
5. रिसि
उदाहरण
सामि प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
116
उदाहरण-
]
( क - 2 ) निम्नलिखित इकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञाओं के प्रथमा, द्वितीया तथा तृतीया के एकवचन व बहुवचन के रूप लिखिए —
1. दहि
2. अच्छि
3. अट्ठि
4. वारि
दहि प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
-
2. मुणि
4. गिरि
6. ग्रामणी
एकवचन
सामि / सामी
सामि / सामी
सामिएं / सामी एं / सामि / सामी / सामिण / सामीण / सामिणं / सामीण
एकवचन
दह / दही
दहि / दही
दहि / दहीं / दहिएं / दहीएं /
हिरण / दहीण / दहिणं / दहीणं
नोट - इस अभ्यास- 27 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 54
60 का अध्ययन कीजिए ।
बहुवचन सामि / सामी
सामि / सामी
सामिहि/ सामीहि
बहुवचन दहि / दही / दहि / दही ई
दहि / दही/ दहि / दहीहं
दहिहि / दहीहीं
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क-3) निम्नलिखित इकारान्त व ईकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं के प्रथमा, द्वितीया तथा
तृतीया के एकवचन व बहुवचन के रूप लिखिये1. मत्ति
6. सामिणी 2. रत्ति
7. इत्थी 3. थुइ
8. परमेसरी 4. मरिण
9. णारी 5. धिइ
10. पुत्ती
उदाहरणएकवचन
बहुवचन भत्ति प्रथमा भत्ति/मत्ती भत्ति/भत्ती/मत्तिउ/भत्तीउ/मत्तियो/भत्तीयो
द्वितीया भत्ति/भत्ती भत्ति/भत्ती/भत्तिउ/भत्तीउ/मत्तियो/भत्तीप्रो तृतीया भत्तिए/ भत्तीए भत्तिहिं/भत्तीहिं
(क-4) निम्नलिखित उकारान्त व ऊकारान्त पुल्लिग संज्ञाओं के प्रथमा, द्वितीया तथा
तृतीया के एकवचन व बहुवचन के रूप लिखिए1 जंतु
2. बिन्दु 3. मच्चु
4. सत्तु 5. रिउ
6. गुरु 7. खलपू
8. सयंभू उदाहरण--
बहुवचन जंतु प्रथमा जंतु/जंतू
जंतु/जंतू द्वितीया जंतु/जंतू
जंतु/जंतू तृतीया जंतुएं/जंतूएं/जंतुं जंतूं/ जंतुहिं/जंतूहि
___ जंतुण/जंतूण/जंतुणं/जतूणं
एकवचन
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
[ 117
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क-5) निम्नलिखित उकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञानों के प्रथमा, द्वितीया तथा तृतीया
के एकवचन व बहुवचन के रूप लिखिए1. महु
2. अंसु 3. वत्थु 5. प्राउ
4. जाणु
उदाहरण
एकवचन महु प्रथमा महु/महू
द्वितीया महु/महू तृतीया महुं/महूं/महुएं / महूएं/
महुण/महूण/महुणं/महूणं
बहुवचन महु/महू/महुइं/महूई महु/महू/महुइं/महूई महुहिं/महूहि
(क-6) निम्नलिखित उकारान्त व ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं के प्रथमा, द्वितीया तथा
तृतीया के एकवचन व बहुवचन के रूप लिखिए
1. धेणु 2. हणु 3. रज्जु
6. सासू 7. कण्डू
4. सस्सु 5. तणु
8. बहू 9. चमू 10. जंबू
उदाहरण--
एकवचन धेणु प्रथमा धेणु धेणू
द्वितीया घेणु/घेणू तृतीया घेणुए/घेणूए
बहुवचन धेणु /घेणू/घेणुउ/धेरपूउ/घेणुप्रो/घेणूग्रो घेणु/घेणू घेणुउ/घेणूउ/घेणुप्रो/घेणूप्रो घेणुहिं/घेणूहिं
118
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-28
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा व क्रियारूपों के सभी
विकल्प लिखिए1. मालिक प्रसन्न होता है। 2. मुनि बैठेंगे । 3. मन्त्री प्रयास करें। 4. शत्रु लड़ा। 5. गांव का मुखिया बैठता है। 6. दही टपकता है। 7. अांखें दुःखीं। 8. हड्डी सूखेगी। 9. जल झरे । 10. भक्ति बढ़े। 11. तृप्ति होवेगी। 12. रत्न गिरते हैं । 13. वैभव बढ़ा। 14. पुत्रियां खेलती हैं। 15. लक्ष्मी बढ़े । 16. स्त्रियां प्रयास करेंगी। 17. मौसी थकी। 18. साड़ी सूखती है। 19. बहिन नाची। 20. माता थकेगी। 21. दादी बैठे। 22. बूंदें गिरेंगी। 23. तेज खिले । 24. गुरु प्रसन्न होवे। 25. दुश्मन लड़ता है। 26. पिता हंसा । 27. मधु टपकता है । 28. प्रांसू झरेंगे। 29 घुटना थका। 30. आयु बढ़े। 31. पदार्थ सोहते हैं। 32. गायें भागती हैं। 33. चमची टूटी । 34. सास बैठे। 35. बहू प्रयत्न करती है।
उदाहरण-- मालिक प्रसन्न होता है=सामि/सामी हरिसइ/हरिसेइ/हरिसए ।
(ख) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा व क्रियारूपों के सभी
विकल्प लिखिए1. स्वामी भोजन जीमता है। 2. मुनि जल पीवें। 3. कवि व्रत पालेगे । 4. गांव का मुखिया उन सबको लाड़-प्यार करता है। 5 अांखें मनुष्य को देखती हैं। 6. मैं दही खाऊँ। 7. कुत्ता हड्डियां चूसेगा । 8. मुनि जल पीते हैं । 9. मनुष्य भक्ति करें। 10. धरती रत्न पैदा करेगी। 11. माताएं साड़ियां घोवेंगी। 12. बहिनें परमेश्वर को पूजें । 13. मनुष्य वैभव त्यागे । 14. मौसी पुत्री को लाड़-प्यार करती है। 15. पिता पुत्र की निंदा करता है । 16. साधु
नोट-इस अभ्यास-28 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 54
व 58 का अध्ययन कीजिए।
अपभ्रश अभ्यास सौरभ ]
119
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
गव छोड़े। 17. प्रभु तुम सब की रक्षा करेंगे। 18. रघु हम सबका उपकार करते हैं । 19 खलियान साफ करनेवाला गड्ढा खोदता है। 20. स्वयंभू राम को प्रणाम करता है। 21. पुत्र मधु खाता है। 22. पुत्र घुटने को स्पर्श करे । 23. तुम अांसुरों को रोको। 24. वह पदार्थों की खोज करेगा। 25. गाय जामुन के पेड़ को तोड़ती है। 26. बह सास की सेवा करेगी। 27. सेना प्राणियों की हिंसा करेगी। 28. बहिन रस्सी चुराती है। 29. पुत्र वस्त्र मैला करता है । 30. हाथी जल पीवेगा।
उदाहरणस्वामी भोजन जीमता है=सामि/सामी भोवण/भोयणा/भोयणु जेमइ/जेमेइ/
जेमए ।
____ 120 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-29
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, सर्वनाम व क्रिया-रूपों
के सभी विकल्प लिखिये1. स्वामी मुझको बुलाता है। 2. स्वामी के द्वारा मैं बुलाया जाता है। 3. मुनि हम सबको देखते हैं । 4. मुनि के द्वारा हम सब देखे जाते हैं । 5 दुश्मन तुमको मारेगा। 6. दुश्मन के द्वारा तुम मारे जानोगे । 7. राजा साधु को नमस्कार करे। 8. राजा के द्वारा साधु नमस्कार किया जावे। 9. तपस्वी कथा का व्याख्यान करेंगे । 10. तपस्वियों द्वारा कथा का व्याख्यान किया जावेगा । 11. भाई मुझको भूलता है। 12. भाई के द्वारा मैं मुलाया जाता हूँ। 13. सेनापति स्वामी को नमस्कार करै । 14. सेनापति के द्वारा स्वामी नमस्कार किया जावे । 15. माता धान कूटेगी। 16 माता के द्वारा धान कूटा जावेगा। 17. तुम मुझको पुकारते हो। 18. तुम्हारे द्वारा मैं पुकारी जाती हैं। 19. हम सब तुमको स्मरण करेंगे । 20. हम सबके द्वारा तुम स्मरण किए जानोगे । 21. वह वैभव को त्यागे । 22. उसके द्वारा वैभव त्यागा जावे । 23. माताएं पुत्रों को लाड़-प्यार करती हैं । 24. माताओं द्वारा पुत्र लाड़-प्यार किए जाते हैं। 25. सांप बालक को डसता है। 26. सांप द्वारा बालक डसा जाता है । 27. बहिन श्रमणी की सेवा करती है । 28. बहिन द्वारा श्रमणी की सेवा की जाती है। 29. वह उनकी स्तुति करता है । 30. उसके द्वारा वे स्तुति किए जाते हैं।
-
उदाहरण1. स्वामी मुझको बुलाता है=सामि/सामी मई कोकइ/कोके इ/कोकए। 2. स्वामी के द्वारा मैं बुलाया जाता हूँ =सामिएं/सामीएं/सामि/सामीं/सामिण/
सामीण/सामिणं/सामीणं हउं कोकिज्जलं/ कोक्किजमि/कोक्किज्जामि/कोक्किजेमि ।
नोट-इस अभ्यास-29 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 53 व
54 का अध्ययन कीजिए।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 121
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख) नीचे प्रारम्भ में दिए गए संज्ञा-सर्वनामों का (कर्ता-रूप में) प्रथमा एकवचन या
बहुवचन में प्रयोग कीजिए तथा मध्य में दिए गए संज्ञा-सर्वनामों में द्वितीया एकवचन या बहुवचन का प्रयोग करते हुए कोष्ठक में दी गई सकर्मक क्रियाओं से निर्दिष्ट कालों में कर्तृवाच्य व कर्मवाच्य में वाक्य बनाइए । संज्ञा, सर्वनाम व क्रिया-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. भाइ ..." अम्ह (कोक) वर्तमानकाल 2. अम्ह "" साहु (नम) भविष्यत्काल 3. कइ "" गाण (गा) विधि एवं प्राज्ञा 4. मंति ... नरवइ (नम) भविष्यत्काल
तुम्ह " त (पुण) विधि एवं प्राज्ञा 6. अरि "" अम्ह (हण) वर्तमानकाल 7. प्रम्ह " तपस्सि (सुमर) वर्तमानकाल 8. तुम्ह "" लक्कुड (रंग) विधि एवं प्राज्ञा 9. जामाउ .... भोयण (खाद) भविष्यत्काल 10. पहु.." अम्ह (पेच्छ) वर्तमानकाल
उदाहरण1. माइ/भाई मई कोकइ/कोकेइ/कोकए ।
कर्तृवाच्य 2. माइं/भाई/भाइएं/भाईएं/माइण/भाईण/भाइणं/माईणं हउं कोक्किज्जउं/ कोक्कियउं ।
कर्मवाच्य
(ग) नीचे विभक्तिसहित संज्ञाएं दी गई हैं । उनके मूलशब्द, लिंग, वचन, विभक्ति एवं
प्रत्यय लिखिए1. सामिएं 2. काहि
3. वारि 4. अट्ठिण 5 भत्तिउ
6. भत्तिप्रो 7. तत्ति
8. लच्छीए 9. सत्तुहिं 10. पहू
12. महिं
11. साहू
122
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
13. वत्थुई 16. सस्सुउ 19. वाउं
14. अंसुएं 17 तणुए 20. बहिणीए
15. पुत्तिए 18. चमूहि 21. रहुणन्दणे
उदाहरण
मूलशन्द सामीएं सामि
लिंग पुल्लिग
वचन विभक्ति एकवचन तृतीया
प्रत्यय एं
-
-
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
123
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-30
(क-1) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए। भूतकाल का भाव प्रकट
करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कीजिए। संज्ञा, सर्वनाम व कृदन्तरूपों के सभी विकल्प लिखिए1. शत्रु द्वारा सेनापति मारा गया। 2. बालक के द्वारा वस्त्र फाड़े गए । 3. भाइयों द्वारा दूध पिया गया। 4 प्राणियों द्वारा कर्म बांधे गए। 5. कवि द्वारा गाने गाए गए। 6. स्वामी द्वारा धागा काटा गया। 7. यति के द्वारा शिक्षा धारी गई। 8. ऋषियों द्वारा प्रज्ञा जानी गई। 9. नागरिक द्वारा भोजन खाया गया। 10. राम के द्वारा राक्षस मारे गए। 11. पुत्री के द्वारा लक्ष्मी चाही गई। 12. यति के द्वारा कथा कही गई । 13. मेरे द्वारा विमान देखे गए। 14. उसके द्वारा वैराग्य चाहा गया। 15. तुम्हारे द्वारा व्यसनों का वर्णन किया गया। 16. हमारे द्वारा पानी पिया गया। 17. उनके द्वारा दया उत्पन्न की गई। 18. उसके द्वारा प्राज्ञा पाली गई। 19. गुरु के द्वारा मुनि की स्तुति की गई। 20. दामाद द्वारा झोंपड़ी देखी गई।
उदाहरणशत्रु द्वारा सेनापति मारा गया=सत्तुं सत्तूं/सत्तुएं/सत्तूएं/सत्तुण/सत्तूण/सत्तुणं/
सत्तूणं सेणावइसेणावई हणिप्र/हणिया/ हणिउ/हणियो ।
(क-4) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए । विधि एवं प्राज्ञा का
भाव प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग कीजिए। संज्ञा, सर्वनाम व कृदन्त-रूपों के सभी विकल्प लिखिए1. भाई के द्वारा पेड़ सींचा जाना चाहिए। 2. रघुपति के द्वारा साधु बुलाए जाने चाहिए। 3. कवियों के द्वारा गीत गाए जाने चाहिए । 4. हाथी द्वारा
नोट-इस अभ्यास-30 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 56 से
61 का अध्ययन कीजिए।
124 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
सिंह मारा जाना चाहिए। 5. ऋषि के द्वारा सूर्य की वन्दना की जानी चाहिए। 6. मेरे द्वारा दही खाया जाना चाहिए । 7. हमारे द्वारा जल पिया जाना चाहिए । 8. उनके द्वारा हड्डियां फेंकी जानी चाहिए । 9. तुम्हारे द्वारा पदार्थ सींचे जाने चाहिए । 10. उसके द्वारा आयु देखी जानी चाहिए। 11. तुम्हारे द्वारा वैभव प्राप्त किया जाना चाहिए। 12. उसके द्वारा तृप्ति मांगी जानी चाहिए। 13. पृथ्वी द्वारा रत्न धारण किए जाने चाहिए । 14. मौसी द्वारा साड़ियां खरीदी जानी चाहिए। 15. युवती द्वारा भक्ति की जानी चाहिए । 16. तुम्हारे द्वारा रस्सी गूंथी जानी चाहिए। 17. उसके द्वारा गाएं पाली जानी चाहिए। 18. हमारे द्वारा जामुन का पेड़ सींचा जाना चाहिए। 19. सासुओं द्वारा बहुएं लाड़-प्यार की जानी चाहिए । 20. तुम्हारे द्वारा घास जलाई जानी चाहिए।
उदाहरणभाई के द्वारा पेड़ सींचा जाना चाहिए=भाई/भाई/मा इएं। भाईएं/भाइण/
भाईण/भाइणं/भाईणं तरु सिंचिमव्व | सिंचिअव्वा/सिंचिवु/सिचिवो/ सिंचेवा/सिंचेव्वउ/सिंचिएव्वउ ।
(ख-1) नीचे संज्ञाएं तथा कोष्ठक में सकर्मक क्रियाएं दी गई हैं । मध्य में दी गई
संज्ञानों में प्रथमा एकवचन प्रथवा बहुवचन का प्रयोग करते हुए कर्मवाच्य में भूतकाल के वाक्य बनाइए । सभी विकल्प लिखिये1. रहुणन्दण - रक्खस (हण) 2. सामि भोयण (खाद) 3. कइ वय (पाल)
4. ससा “तुम्ह (लड्डु) 5. मित्त"अम्ह (वद्धाव)
6. भाइ " अम्ह (पुक्कर) 7. त"धण (मम्ग)
8. अम्ह""त (णिरक्ख) 9. तुम्ह"अम्ह (बंध)
10. मुणि "तुम्ह (पेस)
उदाहरणरहुणन्दणे/रहुणन्दणेण/रहुणन्दणं रक्खस/रक्खसा हणिग्र/हणिया ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
125
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ख-2) नीचे संज्ञाएं तथा कोष्ठक में क्रियाएं दी गई हैं। मध्य में दी गई संज्ञानों में
प्रथमा एकवचन प्रथवा बहुवचन का प्रयोग करते हुए कर्मवाच्य में विधि के वाक्य बनाइये । सभी विकल्प लिखिए
1. रहुवइ"साहु (कोक) 3. अम्ह""दुक्ख (मुल) 5. जोगि""पागम (पढ) 7. तुम्ह""रज्जु (गुंथ) 9. अम्ह'वारि (पिब)
2. त'लक्कुड (रंग) 4. महेली "परमेसर (थुण) 6. तवस्सि""अम्ह (सुमर) 8. तअम्ह (लड्ड) 10. रिसि""दिवायर (वंद)
उदाहरणरहुवइएं साहू कोकिनब्व/कोकिअब्वा/कोकिअव्धु/कोकिअव्वो ।
(ग) नीचे संज्ञाएं व कृदन्त विभक्तिसहित दिए गए हैं। इनके मूलशब्द, लिंग, वचन,
विभक्ति, प्रत्यय लिखिए । कृदन्त का नाम भी लिखिए
1. कोकियो 4. कीरिणमव्वु 7. भाएअव्वा 10. पेच्छेव्वळ 13. पेसिउ 16. माणिएन्वउं 19. सामिएं 22. साहूं
2. देखिन 5. रक्खिअव्वा 8. पिबिअव्व 12. धारिस 14. धारेव्वळ 17. बहुउ 20. मुलिहि 23. विमाणई
3. सुणिप्राउ 6. लभिएव्वर 9. गणेप्रवई 12. पालिसा 15. बक्खिनन्बानो 18. घेणुप्रो 21. गामणीहि 24. सीलेस
126
]
। अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
25. अच्छिण
28. बुज्झिव्वा
उदाहरण
कोकिलो
मूलशब्द कोक
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
26. गुरुह 29. गणिएव्बउं
27. पुतो 30. सामिहि
लिंग
वचन
विभक्ति प्रत्यय
पुल्लिंग एकवचन प्रथमा 'ओ'
कृदन्त नाम
भूतका. कृ.
[ 127
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-31
(क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, कृदन्त व क्रिया-रूपों
का एक विकल्प लिखिए1. स्वामी रघुपति को नमन करते हुए उठता है। 2. वह गांव के मुखिया की सेवा करता हुअा थकेगा। 3 वे दोनों मधु को चखते हुए लालच करते हैं। 4. सिंह बालक को खाते हुए मारता है। 5. माता पुत्री को लाड-प्यार करती हुई खुश होवेगी । 6. पुत्री गीत गातो हुई नाचे । 7. पिता खेत को सींचता हुया थकेगा। 8. तुम ईश्वर की स्तुति करते हुए वन्दना करो। 9. बहिन पुत्र को मारती हुई अफसोस करती है। 10. वह पुत्र को भेजती हुई रोती है । 11. हम सब परमेश्वर की स्तुति करने के लिए उठे । 12. तुम तृप्ति प्राप्त करने के लिए प्रयास करोगे। 13. पिता पुत्री को कहने के लिए उत्साहित होता है । 10. वे सब रस्सी बांधने के लिए प्रयत्न करें। 15. महिला गाय को देखने के लिए उठती है। 16. वह वस्तु खरीदने के लिए जावेगी। 17. सेनापति शत्रु को मारने के लिए भागता है। 18. दादा पोते को बधाई देने के लिए जाता है । 19. तुम कथा सुनने के लिए उठो। 20. मैं भोजन को चबाने के लिए प्रयत्न करती हैं। 21. स्वामी रघुपति को नमन करके प्रसन्न होता है। 22. कवि गुरु को प्रणाम करके बैठता है। 23. तुम भक्ति करके जीओ । 24. तुम तृप्ति प्राप्त करके खुश होवोगे । - 25. वे गायों को देखकर उठते हैं । 26. ऋषि परमेश्वर की वन्दना करके ध्यान करते हैं । 27. भाई रत्न चोरकर भागता है । 28. राजा परमेश्वर को स्मरण करके सोवे । 29. राक्षस बालक को पीड़ा देकर उछलता है। 30. पुत्र रस्सी को टुकड़े कर फेंकता है।
उदाहरणस्वामी रघुपति को नमन करते हुए उठता है सामि रहुवइ वन्दन्तो उट्ठइ ।
नोट-इस अभ्यास-31 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ-63 का
अध्ययन कीजिए।
128
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-32
10000
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । वाक्यों में प्रयुक्त चतुर्थी व
षष्ठी विभक्ति के सभी विकल्प लिखिए1. मेरा पुत्र सुख चाहता है । 2. राजा का पुत्र राम को प्रणाम करेगा। 3. पुत्र का सुख पिता का सुख होता है। 4. तुम्हारी माता कथा सुने । 5. मेरी पुत्री सुख चाहेगी। 6. स्वामी का भाई परमेश्वर की वन्दना करेगा। 7. तुम नर्मदा का पानी पीनो। 8. मेरे गुरु परमेश्वर का ध्यान करते हैं। 9 राजाओं के दुश्मन युद्ध करने के लिए विचार करते हैं। 10. मेरी मौसियां साड़ी खरीदती हैं। 11. उनकी पुत्रियां प्रसन्न होती हैं। 12. मेरी ननद उसका वर्णन करती है। 13. वह कवि के गीत को स्मरण करता है। 14. मामा की बहन कथा सुने । 15. मेरा मित्र उसके लिए गठरी मांगे। 16 भाई का शत्रु पुत्र को मारेगा। 17. उसकी प्रांखें दुःखती हैं । 18. मौसी का पुत्र बहिन के लिए पुस्तक खरीदे। 19. राजा का पुत्र तपस्वी की सेवा करता है। 20 भाई की पुत्री ईश्वर की स्तुति करे । 21. सेनापति की बहिन मामा के लिए मधु भेजेगी। 22. मामा की बेटी वैभव के लिए परमेश्वर की पूजा करती है । 23. तुम्हारा पुत्र आत्मा के लाभ के लिए प्रयत्न करे । 24. तुम साधु के लिए भोजन खरीदो। 25. दादी पोते के लिए भोजन बनाती है। 26. उसकी बहिन छिपे । 27. ननद की बेटी सोयेगी। 28. मौसी का बेटा उसका उपकार करेगा। 29. तुम्हारा पुत्र मेरे पुत्र को क्षमा करे। 30. तुम्हारे भाई मुनियों की गिनती करेंगे। 31. प्रभु तुम्हारे पुत्र की रक्षा करे। 32. जामुन का पेड़ बढ़ता है । 33. वह हाथी के लिए खड्डा खोदता है । 34. सास उसकी बहू को लाड़-प्यार करती है। 35. वह तृप्ति के लिए भोजन खाता है । 36. तुम प्राणियों के लिए वस्त्र प्राप्त करो। 37. मन्त्री का पुत्र राजा को नमस्कार करे । 38. राम का सुख मेरा सुख है । 39. सीता की माता कथा सुनेगी। 40. राज्य का शासन उसकी रक्षा करेगा। 41. स्वामियों के भाई उसको नमस्कार करते हैं। 42. कवियों के गुरु
नोट-इस अभ्यास-32 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 65 से
68 का अध्ययन कीजिए ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 129
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
हमको देखते हैं। 43. उसके गुरु भोजन जीमते हैं। 44. वह उसकी पुस्तक परीक्षा के लिए पढ़ता है । 45. मेरा पुत्र सुख के लिए हंसेगा ! 46. राजा का पुत्र राम के लिए गठरी मांगे । 47. वह शरीर के लिए नर्मदा का पानी पीता है। 48. उसकी माता तुमको पालेगी। 49. मैं गंगा की कथा सुनूंगा । 50. उसका पुत्र घर जावे ।
उदाहरणमेरा पुत्र सुख चाहता है=महु/मझ पुत्तो सुहु / सोक्खु इच्छइ ।
_130
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-33
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए। वाक्यों में प्रयुक्त पंचमी
विभक्ति के सभी विकल्प लिखिए] बालक सर्प से डरता है । 2. खेत से अन्न उत्पन्न होता है। 3. वह गाय से डरेगा । 4. जामुन के पेड़ से गठरी गिरती है। 5. पुत्र सिंह से डरकर भागेगा । 6. पहाड़ से बालक गिरता है । 7. पर्वत से गगा नीचे आती है । 8. वह मुझसे डरे । 9. वह तुझसे पुस्तक पढ़ेगा। 10. बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है। 11. पुत्र पिता से छिपता है। । 2. हम सब पिताओं से डरते हैं। 13. वे सब युवतियों से छिपते हैं। 14. वे सब स्वामी से डरते हैं। 15. तुम साधु स पढ़ो। 16. वृक्ष से पत्ता उत्पन्न होता है। 17. तुम सब राजा से डरो। 18. बच्चे हाथी से डरते हैं । 19. मन्त्री राजा से डरता है । 20. छोटे कलश से पानी निकलता है। 21. मामा सर्प से डरेगा ।
-
-
उदाहरणबालक सर्प से डरता है =बालअ सप्पहे/सप्पहु डरइ ।
(ख) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए। वाक्यों में प्रयुक्त सप्तमी
विभक्ति के सभी विकल्प लिखिए1. प्राकाश में बादल गरजते हैं। 2. नर्मदा में पानी सूखेगा । 3. सीता घर में कथा सुनती है। 4. वह पोटली पर बैठता है। 5. बुढ़ापे में वाणी थकेगी। 6. राम के राज्य में लक्ष्मी बढ़ती है । 7. उसकी माता घर में पुत्र को पालती है । 8. तुम हँसकर घर में नाचो । 9. वह परीक्षा में मूच्छित होती है। 10. तुम गाय को खेत में बांधो । 11. पुत्रियां आकाश में चन्द्रमा को देखेंगो। 12. वे सब खेत में पदार्थ फेकती हैं। 13. तुम नहाने के लिए समुद्र में कूदो 14 कुत्ता जगल में खड्डा खोदता है । 15. सर्प पेड़ पर डोलता है। 16. पिता घर में परमेश्वर
नोट-इस अभ्यास-53 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 70
से 76 का अध्ययन कीजिए।
अपभ्रश अभ्यास सौरभ ]
[
131
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
की स्तुति गाता है। 17. मामा सायंकाल में लक्ष्मी की वन्दना करता है। 18. वह यमुना में नहाता है। 19. पदार्थ झोंपड़ी में जलकर नष्ट होंगे । 20. उसका चित्त घर में लगता है ।
उदाहरणअाकाश में बादल गरजते हैं=णहि/णहे मेहा गज्जहिं ।
(ग) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए। वाक्यों में प्रयुक्त सम्बोधन
के सभी विकल्प लिखिए1. हे स्वामी! आप हमारी रक्षा करें। 2. हे राजा ! आपके राज्य में सुख होवे । 3. हे मित्र ! तम मेरे घर पर प्रायो। 4. हे माता ! तुम बालकों को पालो। 5. हे सीता ! जंगल में दुःख होगा। 6. हे पुत्र ! सत्य बोलो। 7. हे युवती ! तुम हँसो । 8. बालको ! तुम सब पुस्तक पढ़ो ! 9. मित्रो ! आप सब राज्य से डरो। 10. साधुअो ! संयम पालो ।
उदाहरण हे स्वामी! आप हमारी रक्षा करें सामि तुहुँ अम्ड्इं रक्खि / रक्खे/रक्खु/
रक्खहि/रक्खेहि/रक्ख/रक्खसु/रक्खेसु ।
-
-
-
-
132
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-34
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । क्रियानों के प्रेरणार्थक रूप
बनाकर वाक्य बनाइए1. वह आकाश में विमान उड़ाता है । 2. राजा राज्यों में शासन फैलावे । 3. मनुष्य घास उगाता है । 4. सेनापति सेना को छिपावेगा। 5. तुम बुढ़ापे में वैराग्य बढ़ावो । 6. साधु मनुष्य को जगाता है। 7. माता पुत्री को नचाने के के लिए रुकाती है । 8. वह मुझको हंसाती है। 9. मैं उसको जगाता हूँ। 10. तुम उसको छिपाते हो । । 1. वे उन सबको नचाते हैं। 12. नागरिक खेत में धान उगाते हैं। 13. राक्षस बच्चे को मरवाता है । 14. मौसी पुत्री को समुद्र में कुदाती है। 15 दादी पोते को नहलाती है। 16. मामा बेटी को ठहराता है। 17. पिता पुत्री को सुलावे। 18. राक्षस बालको को डराते हैं । 19. दादी बालकों को खिलाती है। 20. साधु राजा को बैठाता है ।
उदाहरणवह आकाश में विमान उड़ाता है सो णहि/णहे विमाणु प्रोड्डइ/उड्डावइ ।
(ख) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । कर्मवाच्य के प्रेरणार्थक
जोड़कर वाक्य बनाइए
1. उसके द्वारा आकाश में विमान उड़ाया जाता है। 2. राजाओं द्वारा राज्य में शासन फैलाया जाता है । 3. उसके द्वारा घास उगाया जाता है। 4. सेनापति द्वारा सेना छिपाई जाती है। 5. तुम्हारे द्वारा बुढ़ापे में वैराग्य बढ़ाया जाता है। 5. साधु द्वारा मनुष्य जिलाया जाता है। 7. माता द्वारा पुत्री नचाई जाती है। 8. उसके द्वारा मैं हँसाया जाता हूँ। 9 मेरे द्वारा वह जगाया जाता है । 10. तुम्हारे द्वारा वह छिपाया जाता है । 11. उनके द्वारा वे सब
नोट-इस अभ्यास-34 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 77
का अध्ययन कीजए।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 133
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
नचाये जाते हैं। 12. नागरिक द्वारा खेत में धान उगाया जाता है । 13. राक्षस द्वारा बच्चा मरवाया जाता है। 14. मामा द्वारा बेटी ठहराई जाती है । 15. दादा द्वारा पोता नहलाया जाता है । 16. पिता द्वारा पुत्र खिलाया जाता है। 17. राक्षसों द्वारा बच्चा उठाया जाता है। 18. दादा द्वारा बालक हंसाया जाता है । 19. साधु द्वारा राजा बैठाया जाता है । 20. मौसी द्वारा वह समुद्र में डुबाया जाता है।
उदाहरणउसके द्वारा आकाश में विमान उड़ाया जाता है तेण णहि विमाण/विमाणा/
विमाणु उड्डाविज्जइ ।
(ग) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए । संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया
एव कृदन्तरूपों का कोई एक विकल्प लिखिए
1. मेरे द्वारा वह हंसाया गया । 2. तुम्हारे द्वारा मैं छिपाया गया। 3. पिता द्वारा पुत्र दिखाया गया। 4. मौसी द्वारा पुत्री नचाई गई। 5. हमारे द्वारा पदार्थ खरीदवाये गए । 6. वह उसको हँसाते हुए खेलता है। 7. तुम दुश्मन को भगाते हुए थकते हो। 8. पुत्र मुझको डराते हुए छिपता है । 9. बालक वहिन को रुलाते हुए भागता है। 10. मामा माता को ठहराते हुए प्रसन्न होता है 11. तुम्हारे द्वारा वह हंसाया जाना चाहिए। 12. गुरु के द्वारा शिक्षा फैलाई जानी चाहिए । 13. बहिन द्वारा तपा जाना चाहिए। 14. योगी द्वारा ध्यान कराया जाना चाहिए। 15. उसके द्वारा पदार्थ रखवाया जाना चाहिए। 16. तुम हंसाकर जीते हो । 17. माता पुत्री को नचाकर प्रसन्न होती है । 18. मुनि मनुष्यों को ध्यान कराकर बैठता है । 19. वह जगाकर भागती है। 20. वे सब खिलाकर प्रसन्न होते हैं। 21. वह उसको हंसाने के लिए जागता है । 22. वह उसको भगाने के लिए कहता है । 23. योगी ध्यान कराने के लिए बैठता है । 24. माता पुत्री को नचाने के लिए उठती है। 25. दादी पोते को सुलाने के लिए प्रयत्न करती है। 26. वह हंसाया जाता हुआ खेलता है । 27. तुम भगाये जाते हुए थकते हो। 28. पुत्र डराया जाता हुअा छिपता है ।
___134 ]
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
29. बालक रुलाया जाता हुआ भागता है । 30. मामा ठहराया जाता हुआ प्रसन्न होता है।
उदाहरणमेरे द्वारा वह हँसाया गया=मई सो हसावित्र/हसावित्रा/हसाविउ/हसावित्रो ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[
135
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-35
(क) संज्ञाओं में स्वाथिक प्रत्यय जोड़कर निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना
कीजिए1. कमल खिलता है । 2. जीव प्रसन्न होता है । 3. योगी मुझको अच्छा लगता है। 4. पुत्र पिता का सम्मान करेगा। 5. सेनापति शत्रु को जीते । 6. बालक मधु चखता है। 7. अात्मा मन को प्रकाशित करती है। 8. राजा मन्त्री को धिक्कारता है। 9. माता पुत्र को लाड़-प्यार करती है। 10. पिता पुत्र को स्मरण करता है । 11. हाथी घास खावेगा। 12. मनुष्य गुरु की स्तुति करते हैं। 13. गुरु परमेश्वर की वन्दना करते हैं। 14. दामाद भोजन जीमे । 15 वृक्ष गिरता है। 16 धनुष सोहता है। 17. रत्न टूटता है । 18. घर अच्छा लगता है । 19. मौसी बैठे । 20. बहिन उठे।
उदाहरणकमल खिलता है=कमलग्र/कमलड/कमलड विप्रसइ ।
(ख) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए -
1. यह मनुष्य हंसता है। 2. ये मनुष्य हंसते हैं। 3. वह यह ग्रन्थ पढ़ता है। 4. वे ये ग्रन्थ पढ़ते हैं। 5. मैं इसके लिए जीता हूँ। 6. वह इनके लिए जीती है। 7. मैं यह व्रत पालता हूँ। 8. तुम क्या करते हो ? 9. जो मनुष्य थकता है वह सोता है। 10. जिसके द्वारा सोया जाता है, उसके द्वारा हसा जाता है । 11. जिसका शरीर थका हुआ है, उसका बुढ़ापा बढ़ा हुआ है। 12. मैं जिसको बुलाता हूँ, वह तुम हो। 13. जिस लकड़ी पर तुम बैठे हो, वह मेरी है। 14. वह किसका पुत्र है ? 15. तुम किन कार्यों को करते हो ? 16. कौन नाचता है ? 17. वह किससे पानी पीता है ? 18 तुम किसके लिए जीते हो? 19. तुम किस राज्य की रक्षा करते हो ? 20. किस घर में वह रहता है ?
नोट-इस अभ्यास-25 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 78 से
80 का अध्ययन कीजिए ।
_136 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणयह मनुष्य हँसता है-एहो पर हसइ ।
(ग) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए । अव्ययों का प्रयोग कर
वाक्य बनाइए1. जब तक तुम पढ़ोगे तब तक मैं तुमको लाड़-प्यार करूंगा। 2. जब तक तुम जागते हो तब तक मैं चित्र देखता हूँ। 3. जहां तुम्हारा गांव है, वहां मेरा घर है । 4. जहां भी तुम जानोगे वहां प्रसन्न होओगे। 5. जिस प्रकार वह सुख चाहता है, उसी प्रकार मैं सुख चाहता हूँ। 6. जिस प्रकार तुम खेलते हो उसी प्रकार मैं खेलूंगा। 7. मन्त्री कहां रहता है। 8. वे सब कहां सोते हैं ? 9. मैं यहां सोता हूँ। 10. आज यहां मुनि आयेंगे। 11. तुम मत कूदो । 12. बालक नहीं उठता है । 13. माता नहीं थकती है। 14. यदि तुम कहते हो तो मैं गांव जाता हूँ। 15. यदि तुम कहोगे तो मैं खाना खाऊंगा। 16. जिस प्रकार तुम मन लगाकर खेलते हो उसी प्रकार पढ़ो भी। 17. जिस प्रकार मां पुत्र को पालती है उसी प्रकार राजा राज्य को पालता है। 18. जैसे तुम गाते हो वैसे नाचो भी। 19. तुम इस प्रकार मत बैठो । 20. तुम मद्य मत पीसो । 21. शत्रु लड़ा इसलिए मरा 22 जब तक वह सत्य बोलता है तब तक वह प्रसन्न होता है । 23. तुम पुत्र के बिना घर मत जायो । 24. तुम भी नाचो वह भी नाचेगा।
उदाहरणजब तक तुम पढ़ोगे तब तक मैं तुमको लाड़-प्यार करूंगा=जाम तहुं पढेसहि ताम हउं पई लड्डेसउं ।।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 137
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनियमित कर्मवाच्य के क्रिया-रूप
( अपभ्रंश में ) सकर्मक क्रिया में 'इज्ज' या 'इय' प्रत्यय लगाकर जो रूप बनाया जाता है वह कर्मवाच्य का नियमित क्रिया रूप कहा जाता है । जैसे- 'कर' क्रिया में 'इज्ज' या 'इय' प्रत्यय लगाकर बनाया गया - 'कर + इज्ज करिज्ज' 'कर + इ = करिय' रूप कर्मवाच्य का नियमित रूप है । काल, पुरुष और वचन का प्रत्यय जोड़ने पर उस काल, पुरुष और वचन में कर्मवाच्य का नियमित क्रिया-रूप बन जायेगा । जैसे— करिज्जइ या करियइ = वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन ।
इसके विपरीत सकर्मक क्रिया में बिना 'इज्ज' या 'इय' प्रत्यय लगाए जो रूप तैयार मिलता है, जिसमें काल, पुरुष और वचन का प्रत्यय लगा रहता है, वह कर्मवाच्य का अनियमित क्रिया रूप कहा जाता है । जैसे—
अभ्यास- 36
1. कोरड, दीसह आदि - श्रनियमित कर्मवाच्य का क्रिया - रूप ( वर्तमानकाल, अन्य पुरुष, एकवचन )
2. goवहि, बुच्चहि आदि - अनियमित कर्मवाच्य का क्रिया रूप ( वर्तमानकाल, मध्यम पुरुष एकवचन )
इनमें क्रिया को अलग नहीं किया जा सकता है । इनका ज्ञान साहित्य में उपलब्ध प्रयोगों के आधार से किया जाना चाहिए | अनियमित कर्मवाच्य के कुछ क्रियारूप संग्रहीत हैं -
138
वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन
1. भ्राढप्पइ = प्रारम्भ किया जाता है। 2. कीरह = किया जाता है ।
3. खम्मइ
खोदा जाता है ।
5. घेप्पइ = ग्रहण किया जाता है । 7. चिव्वइ = इकट्ठा किया जाता है ।
4. गम्मइ = जाया जाता है । 6. चिम्मद इकट्ठा किया जाता है । 8. छिप्पद = छुत्रा जाता है ।
1. 'अपभ्रंश रचना सौरभ' पाठ 53
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
9. जिव्वइ = जीता जाता है। 10. उज्झइ= जलाया जाता है। 11. गज्जइ= जाना जाता है। 12. रणव्वइ जाना जाता है । 13. थुवइ = स्तुति की जाती है। 14. दुनभइ = दूहा जाता है । 15. दीसइ = देखा जाता है। 16. पुव्वइ पवित्र किया जाता है। 17. बज्झइ = बांधा जाता है। 18. भण्णइ = कहा जाता है। 19. भुज्जइ = भोगा जाता है। 20. रुम्भइ = रोका जाता है। 21. हब्बइ = रोया जाता है । 22. लगभइ प्राप्त किया जाता है । 23. लुच्चइ = काटा जाता है। 24. लुम्वइ = काटा जाता है। 25. लिन्भइ = चाटा जाता है। 26. बुच्चइ = कहा जाता है । 27. विलिप्पइ = लीपा जाता है। 28. विढप्पइ =उपार्जन किया जाता है। 29. सीसइ = कहा जाता है। 30. संपज्जइ =प्राप्त किया जाता है । 31. सुव्वइ = सुना जाता है। 32. सिप्पइ = सींचा जाता है। 33. हम्मइ = मारा जाता है। 34. होरइ = हरण किया जाता है।
वर्तमानकाल मध्यम पुरुष एकवचन
1. थुव्वहि = स्तुति किए जाते हो । 2. दोसहि ___= दिखाई देते हो। 3. धुन्वहि = पंखा किए जाते हो । 4. वृच्चहि __= कहे जाते हो। 5. सुव्वहि = सुने जाते हो ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 139
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क) निम्नलिखित कर्मवाच्य के वाक्यों का अपभ्रंश में अनुवाद कीजिए । अनुवाद में
कर्मवाच्य के अनियमित क्रियारूपों का प्रयोग कीजिए
1. मेरे द्वारा स्तुति प्रारम्भ की जाती है। 2. उस महिला के द्वारा व्रत किया जाता है । 3. दोनों भाइयों के द्वारा गड्डा खोदा जाता है । 4. कन्याओं द्वारा गीत सुना जाता है। 5. हमारे द्वारा गुरु से शिक्षा ग्रहण की जाती है । 6. सेनापति द्वारा धन इकट्ठा किया जाता है। 7. बालक के द्वारा समुद्र का जल डरते हुए छुपा जाता है । 8. राजा के द्वारा गांव जीता जाता है। 9. उनके द्वारा मेरा घर जलाया जाता है। 10. योगियों द्वारा संसार का दुःख जाना जाता है। 11. बहिन द्वारा भोजन करने के लिए घर जाया जाता है । 12. मुनियों द्वारा आगम जाना जाता है। 13. माता द्वारा पुत्र की अभिलाषा जानी जाती है । 14. महिलाओं द्वारा मुनि की स्तुति की जाती है । 15. उसके द्वारा गाय दूही जाती है । 16. राजा के द्वारा राज्य की शोभा देखी जाती है । 17. योगियों द्वारा मेरा घर पवित्र किया जाता है। 18. मेरे द्वारा रस्सी से गाय बांधी जाती है। 19. श्रमणी के द्वारा व्रत की विधि कही जाती है । 20. राजाओं के द्वारा वैभव भोगा जाता है। 21 माता के द्वारा भागता हुआ पुत्र रोका जाता है। 22. दु:ख के कारण मौसी के द्वारा रोया जाता है । 23. प्रयास करते हुए मामा द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है । 24. उसके द्वारा जामुन का वृक्ष काटा जाता है । 25. बालक के द्वारा मधु चाटा जाता है । 26. महिला के द्वारा वस्त्र काटा जाता है । 27. तुम्हारे द्वारा धन प्राप्त किया जाता है । 28. साधु द्वारा कथा कही जाती है । 29. महिला के द्वारा झोंपड़ी लीपी जाती है। 30 पुत्र के द्वारा धन उपार्जन किया जाता है । 31. मुनि के द्वारा संसार का दुख कहा जाता है। 32. स्वामिनी के द्वारा रत्न प्राप्त किया जाता है। 33. तुम्हारी पुत्री के द्वारा प्रशंसा की जाती है । 34. पुत्री के द्वारा जल से वृक्ष सींचा जाता है। 35. सेनापति के द्वारा शत्रु मारा जाता है । 36. मन्त्री द्वारा राजा का पुत्र हरण किया जाता है। 37. हे परमेश्वर ! मनुष्यों द्वारा प्राप स्तुति किए जाते हो । 38. मेरे द्वारा तुम प्रसन्न होते हुए दिखाई देते हो । 39. सास के द्वारा तुम स्नेहपूर्वक पंखा किए
___140 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाते हो । 40. उनके द्वारा तुम कहे जाते हो। 41. राजा के द्वारा तुम सुने जाते हो।
उदाहरणमेरे द्वारा स्तुति प्रारम्भ की जाती है मई थुइ पाढप्पइ ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[
141
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
नियमित भूतकालिक कृदन्त
अपभ्रंश में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । इसके लिए क्रिया में 'प्र' या 'य' प्रत्यय जोड़े जाते हैं । जैसे
-
हस + अ / य - हसिघ्र / हसिय = हंसा,
अभ्यास- 37
ठा + श्र / य = ठाअ / ठाय = ठहरा,
झा + श्र / य= भान / भाय = ध्यान किया गया आदि ।
इस प्रकार 'अ' या 'य' प्रत्यय के योग से बने भूतकालिक कृदन्त 'नियमित भूतकालिक कृदन्त ' कहलाते हैं । इनमें मूलक्रिया को प्रत्यय से अलग करके स्पष्टतः समझा जा सकता है । इन कृदन्तों के रूप पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे ।
किन्तु जब 'प्र' या 'य' प्रत्यय जोड़े बिना ही भूतकालिक कृदन्त प्राप्त हो जाए या तैयार मिले तो वे अनियमित भूतकालिक कृदन्त कहलाते हैं । इनमें मूलक्रिया को प्रत्यय से अलग करके स्पष्टतः नहीं समझा जा सकता है । जैसे—
वृत्त कहा गया,
=
बिट्ठ = देखा गया,
दिण्ण = दिया गया आदि ।
ये सभी अनियमित भूतकालिक कृदन्त हैं इनमें से क्रिया को अलग नहीं किया जा सकता है । इनके रूप भी पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे ।
142 ]
सकर्मक क्रियानों से बने हुए भूतकालिक कृदन्त ( नियमित या अनियमित ) कर्मवाच्य में ही प्रयुक्त होते हैं । केवल गत्यार्थक क्रियाओं से बने भूतकालिक कृदन्त ( नियमित या अनियमित) कर्मवाच्य और कर्तृवाच्य दोनों में प्रयुक्त होते हैं । अकर्मक
1. 'अपभ्रंश रचना सौरभ' पाठ 41 व 56 ।
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रियाओं से बने हुए भूतकालिक कृदन्त (नियमित या अनियमित) कर्तृवाच्य और भाववाच्य में प्रयुक्त होते हैं। अनियमित भूतकालिक कृदन्तों का ज्ञान साहित्य में उपलब्ध उदाहरणों के आधार से किया जाना चाहिए । यहाँ अनियमित भूतकालिक कृदन्त के विभक्तिरहित प्रयोग संग्रहीत हैं
1. सकर्मक क्रियाओं से बने अनियमित भूतकालिक कृदन्तकृदन्त कर्मवाच्य में अर्थ
प्रयोग 1. दिट्ट
देखा गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 2. संपुण्ण
पूर्ण कर दिया गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 3. खद्ध
खा लिया गया तीनों लिंगों व दोनों वचनो में 4. दिण्ण दिया गया
तीनों लिंगों व दोनों वचनों में णिहिय
रक्खा गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 6. पवन्न
प्राप्त किया गया तीनों लिगों व दोनों वचनों में
डाल दिया गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 8. दद
जलाया गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 9. वृत्त
कहा मया
तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 10. दुम्मिय कष्ट पहुंचाया गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 11. किन
किया गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 12. लुन
काट दिया गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 13. हय मारा गया
तीनों लिंगों व दोनों वचनों में 14. णीर
ले जाया गया तीनों लिंगों व दोनों वचनों में
2. गत्यार्थक अनियमित भूतकालिक कृदन्तकृदन्त कर्तृवाच्य प्रयोग
में अर्थ 1. गय/गन गया तीनों लिंगों व
दोनों वचनों में
कर्मवाच्य प्रयोग में अर्थ जाया गया तीनों लिंगों व
दोनों वचनों में
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 143
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
2. पत्त
पहुंचा तीनों लिंगों व
दोनों वचनों में
पहुंचा गया तीनों लिंगों व
दोनों वचनों में
प्रयोग
3. अकर्मक क्रियानों से बने अनियमित भूतकालिक कृदन्तकृदन्त कर्तृवाच्य प्रयोग भाववाच्य में अर्थ
में प्रथं 1. मुम मरा तीनों लिंगों व मरा गया
दोनों वचनों में 2. थिन ठहरा तीनों लिंगों व ठहरा मया
दोनों वचनों में 3. संतुट्ठ प्रसन्न हुआ तीनों लिंगों व प्रसन्न हुआ
दोनों वचनों में गया . 4. नट्ठ
नष्ट हा तीनों लिंगों व नष्ट हा
दोनों वचनों में गया 5. सुत्त सोया तीनों लिंगों व सोया गया
दोनों वचनों में 6.बद्ध बंधा तीनों लिंगों व बंधा गया
दोनों वचनों में 7. भीय डरा तीनों लिंगों व डरा गया
दोनों वचनों में
सदैव नपुंसकलिंग एकवचन में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन में सदव नपुंसकलिंग एकवचन में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन में
1.क सकर्मक क्रिया से बने हुए अनियमित भूतकालिक कृदन्त का सभी विकल्पोंसहित
प्रयोगकर्मवाच्य में प्रयोग किन किया गया (1) मामा के द्वारा गर्व किया गया।
-माउलें/माउलेण/माउलेणं गव्व/गव्वा/गव्वु/गवो किम/किग्रा/किउ। किमो।
____144 ]
. [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
(2) बहिन के द्वारा व्रत किए गए।
-ससाए/ससए वय/वया किम/किग्रा । (3) राजा के द्वारा शासन किया गया ।
-नारदें। नरिंदेरण/नरिदेणं सासरण/सासणा/सासणु किन/किमा/किउ । (4) मालिक के द्वारा विभिन्न कर्म किए गए।
-सामिएं/सामीएं/सामि/सामीं/सामिण/सामीण/सामिणं/सामीणं कम्म/
कम्मा/कम्मइ/कम्माइं किग्र/किपा/किपइं/किमाइं । (5) गुरु के द्वारा परीक्षा की गई।
-गुरुएं/गुरूएं/गुरु/गुरूं/गुरुण/गुरूण/गुरुणं/गुरूणं परिक्खा/परिक्ख किपा/
किन्न । (6) युवती के द्वारा अभिलाषाएं की गई।
-जुवइए/जुवईए अहिलासा/अहिलास । अहिलासाउ/अहिलासउ/
अहिलासाप्रो/अहिलासो किपा/किम/किग्राउ/किपउ/किसानो/ किप्रमो।
2 क गयार्थक क्रिया से बने हुए अनियमित भूतकालिक कृदन्त का सभी विकल्पों
सहित प्रयोगकर्तृवाच्य में प्रयोग गय गन= गया (1) पुत्र घर आ गया।
-पुत्त/पुत्ता/पुत्तु/पुत्तो घर/घरा/घरु गय/गया/गयु/गयो/गम/गमा/गज/
गयो । (2) पोते घर गये ।
-पोत/पोत्ता घर/घरा/घरु गय/गया/गत्र/गया । (3) विमान जंगल गया ।
.. - विमाण/विमारणा/विमाणु वण/वरणा/वणु गय/गया/गयु/गम/गमा/गउ ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
145
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
(4) नागरिक घर गये ।
--रणयरजण/रणयरजणा/गयरजणइं/रणयरजणाई घर/घरा/घरु गय/गया/
गयइं/गयाइं/गम/गया/गई/गाइ । (5) कन्या घर गई।
- कन्ना/कन्न घर/घरा/घरु गया/गय/गमा/गम । (6) पुत्रियां धर गईं।
-सुया/सुय/सुयाउ/सुयउ/सुयानो/सुयो घर/घरा/घरु गया/गय/गवाउ/ गयउ/गयाप्रो/गयमो/गा/गम/गाउ/गाउ/गाप्रो/गप्रयो ।
2.ख काव्य में गत्यार्थक क्रिया के कर्मवाच्य के प्रयोग बहुत कम मिलते हैं। अतः यहां
एक ही उदाहरण दिया जा रहा हैकर्मवाच्य में प्रयोग (1) पुत्र के द्वारा घर जाया गया ।
-पुत्तें/पुत्तेण/पुत्तेणं घर/घरा/घरु/घरो गय/गया/गयु/गयो/गा/गमा/ गउ/गयो ।
___3.क अकर्मक क्रिया से बने हुए अनियमित भूतकालिक कृदन्त का सभी विकल्पों
सहित प्रयोगकर्तृवाच्य में प्रयोग मुप्र=मरा (1) शत्रु मरा।
-सत्तु/सत्तू मुन/मुग्रा/मुउ/मुप्रो। (2) शत्रु मरे ।
-सत्तु/सत्तू मुग्र/मुमा । (3) नागरिक मरा।
---णयरजरण/एयरजणा/णयरजणु मुनमुमा/मुउ । (4) नागरिक मरे।
-यरजण/णयरजणा/णयरजणइं/णयरजणाई मुत्र/मुत्रा/मुबई/मुप्राई।
146 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
(5) पुत्री मरी ।
-सुया/सुय मुत्रा/मुअ । (6) बहिनें मरी ।
-ससा/सस/ससाउ/ससउ/ससानो/ससओ मुत्रा/मुग्र/मुग्राउ/मुअउ/ मुग्रामो/मुअनो।
3.ख भाववाच्य में प्रयोग
मुत्रमरा गया (1) शत्रु के द्वारा मरा गया ।
-सत्तुएं/सत्तूएं/सत्तु/सत्तूं/सत्तुरण/सत्तूण/सत्तुण/सत्तूणं मुम/मुग्रा/मुल ।
(2) शत्रुओं के द्वारा मरा गया ।
-सन्तुहि/सत्तूहि मुग्र/मुग्रा/मुउ । (3) नागरिक के द्वारा मरा गया ।
-णयरजणे/णय रजणेण/रणपरजणेणं मुस/मुत्रा/मुउ । (4) नागरिकों के द्वारा मरा गया ।
-णयरजणहिं/रणयरजणाहि/गयरजणेहिं मुग्र/मुला/मुउ । (5) पुत्री के द्वारा मरा गया।
-सुयाए/सुया मुत्र/मुत्रा/मुउ । (6) पुत्रियों के द्वारा मरा गया ।
-सुयाहिं/सुयहिं मुग्र/मुला/मुउ ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
147
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क) सकर्मक क्रियानों से बने हुए अनियमित भूतकालिक कृदन्तों के सभी विकल्पों का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए
148
22. मनुष्यों द्वारा खेत
में
रस्सी डाल दी गई ।
1. राजा द्वारा सेनापति के लिए हाथी दिया गया । 2. मुनि द्वारा पिता के लिए आगम दिए गए। 3. माता द्वारा पुत्री के लिए घन दिया गया । 4. माता द्वारा पुत्री के लिए वस्त्र दिए गए। 5. राजा द्वारा सेनापति के लिए मरिण दो गई । 6. मालिक द्वारा भाई के लिए गायें दी गईं। 7. मामा के द्वारा घर में ग्रन्थ रखा गया । 8. हरि के द्वारा घर में आगम रखे गये । 9. दादा के द्वारा कलश में धन रखा गया । 10. दादी के द्वारा पोटलियां खेत में रखी गईं । 11. मौसी के द्वारा साड़ी पेड़ पर रखी गई । 12. महिलाओं के द्वारा कलश खेत में रखे गए । 13. तपस्वियों द्वारा जल प्राप्त किया गया । 14 मामा के द्वारा ग्रन्थ प्राप्त किए गए। 15. युवति के द्वारा भोजन प्राप्त किया गया । 16. बालकों द्वारा कमल प्राप्त किए गए । 17. राजा के द्वारा वैभव प्राप्त किया गया । 18. बहिन के द्वारा मणि प्राप्त की गई । 19 स्वामी के द्वारा धनुष पृथ्वी पर डाल दिया गया । 20 राजा के द्वारा समुद्र में रत्न डाल दिया गया 1 21. महिला द्वारा धन कुवे में डाल दिया गया । में लकड़ियां डाल दी गई । 23. मौसी द्वारा खेत 24. युवति द्वारा कलश में मणियां डाल दी गई। 25. पुत्र के द्वारा वस्त्र जलाया गया | 26. मन्त्री के द्वारा घर जलाए गए । 27. मामा के द्वारा पोटली जलाई गई । 28. राजा के द्वारा राज्य जलाए गए। 29. पुत्री के द्वारा रस्सी जलाई गई | 30. शत्रुओं के द्वारा झोंपड़ियां जलाई गईं । 31. माता के द्वारा दुःख कहा गया । 32. मुनि के द्वारा आगम कहे गए। 33. मामा के द्वारा सत्य कहा गया । 34. बहिनों द्वारा सुख (विभिन्न ) कहे गए। 35. पुत्री द्वारा कथा कही गई । 36. माता द्वारा कथाएं कही गई । 37. राजा द्वारा मन्त्री कष्ट पहुंचाया गया। 38. दादा द्वारा पोते कष्ट पहुंचाए गए । 39. शत्रु द्वारा नागरिक कष्ट पहुंचाया गया । 40. मन्त्री द्वारा नागरिक कष्ट पहुंचाए गए । 41. बहिन द्वारा पुत्री कष्ट पहुंचायी गई ! 42. बहिन द्वारा पुत्रियाँ कष्ट पहुंचायी गईं। 43. मामा द्वारा साँप देखा गया। 44 मामा द्वारा साँप देखे गए । 45. बालक द्वारा विमान देखा गया । 46. बालक द्वारा विमान देखे गए। 47. माता के द्वारा गुफा देखी गयी । 48. माता द्वारा गुफाएँ देखी गईं । 49. मुनि द्वारा विधि पूर्ण कर दी गई । 50 मुनियों द्वारा विधियां पूर्ण कर
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
]
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
दी गयीं। 51. मनुष्य द्वारा कर्म पूर्ण कर दिया गया । :3 मनुष्यों द्वारा कर्म पूर्ण कर दिए गए। 53. माता के द्वारा पुत्री की अभिलाषा पूर्ण कर दी गयी। 54. माता के द्वारा पुत्री की अभिलाषाए पूर्ण कर दी गयीं। 55. सिंह के द्वारा गाय खा ली गयी। 56 सिंह के द्वारा गाये खा ली गयीं। 57. पुत्र के द्वारा जामुन खा लिया गया। 58. पुत्रों के द्वारा जामुन खा लिये गए । 59. पुत्री के द्वारा दही खा लिया गया। 60. कुत्ते के द्वारा हड्डियां खा ली गयीं । 61. मामा द्वारा पेड़ काट दिया गया। 62. मामाओं द्वारा पेड़ काट दिए गए। 63. पुत्र द्वारा कागज काट दिया गया । 64. पुत्र द्वारा कागज काट दिए गए । 65. सेनापति द्वारा शत्रु का घुटना काट दिया गया । 66. सेनापति द्वारा शत्रों के घुटने काट दिए गए। 67. राजा के द्वारा हाथी मारा गया। 68. राजा के द्वारा हाथी मारे गए। 69. सेनापति के द्वारा नागरिक मारा गया । 70. सेनापति के द्वारा नागरिक मारे गए। 71. शत्र के द्वारा राजा की बहिन मारी गयी। 72. शत्रु द्वारा राजा की बहिनें मारी गयीं 73. मन्त्री के द्वारा पुत्र ले जाया गया । 74. मन्त्री के द्वारा पुत्र ले जाए गए। 75. राजा के द्वारा नागरिक ले जाया गया। 76. राजा के द्वारा नागरिक ले जाए गए । 77. मौसी के द्वारा पुत्री ले जायी गई। 78. मौसी के द्वारा पुत्रियां ले जायी गई।
उदाहरणराजा द्वारा सेनापति के लिए हाथी दिया गया=नरिदेण सेणाबड हस्थि दिण्ण ।
(ख) गत्यार्थक क्रियाओं से बने हुए अनियमित भूतकालिक कृदन्तों के सभी विकल्पों
सहित निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए1. पुत्र घर गया। 2 पुत्र घर गए। 3. पुत्र द्वारा घर जाया गया । 4. माता खेत पहुंची। 5. माताएं खेत पहुंची। 5. माता द्वारा खेत पहुंचा गया।
उदाहरण . पुत्र घर गया=पुत्त घर गय/गया/गयु/गयो/ग ग्र/गया/गउ/गयो ।
(ग) अकर्मक क्रियाओं से बने हुए अनियमित भूतकालिक कृदन्तों के सभी विकल्पों
सहित निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए
अपभ्रंश अभ्यास सौर म ]
[
149
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
1. पुत्र प्रसन्न हुआ। 2. पुत्र प्रसन्न हुए। 3. नागरिक प्रसन्न हुआ। 4. नागरिक प्रसन्न हुए। 5. माता प्रसन्न हुई। 6. माताएं प्रसन्न हुईं। 7. गांव नष्ट हुआ। 8. गांव नष्ट हुए। 9. विमान नष्ट हुा । 10. विमान नष्ट हुए । 11. शत्रु मरा। 12 शत्र मरे । 13. नागरिक मरा । 14. नागरिक मरे । 15. पत्री मरी। 16. पुत्रियां मरी। 17. मामा ठहरा । 18. मामा ठहरे । 19. नागरिक ठहरा। 20. नागरिक ठहरे । 21. स्त्री ठहरी । 22. स्त्रियां ठहरी । 25. ऊँट सोया। 26. ऊंट सोये। 27. नागरिक सोया । 28. नागरिक सोये । 29. बहिन सोयी। 30. बहिनें सोयीं। 31. पोता डरा । 31. पोते डरे । 33. नागरिक डरा । 34. नागरिक डरे । 35 कन्या डरी । 36. कन्याएं डरी । 37. शत्रु द्वारा मरा गया। 38. पुत्रियों द्वारा मरा गया । 39. शत्रुओ द्वारा मरा गया। 40. मामा द्वारा ठहरा गया । 41. स्त्रियों द्वारा ठहरा गया । 42. कर्मों द्वारा नष्ट हुआ गया । 43. बहिनों द्वारा सोया गया । 44. पोतों द्वारा डरा गया। 45. कन्या द्वारा डरा गया ।
उदाहरणपुत्र प्रसन्न हुअा=पुत्त संतुट्ठ/संतुट्ठा/संतुठ्ठ/संतुट्ठो ।
1501
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-38
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए
1. हे पुत्र ! तू कहानी सुन । 2. नीच का साथ हृदय से छोड़। 3. उसके द्वारा उच्च के साथ संग किया गया । 4. बनारस नगर में अरविन्द नामक राजा है। 5. वह अपने मन में सन्तोष धारण करता है। 6. वह एक दिन शिकार के लिए गया/जाता है। 7. राजा जलरहित जंगल में फंस गया । 8. भूख और प्यास सबको व्याकुल करती है। 9. वणिक के द्वारा अमृत से बने हुए फल दिए गए। 10. घर जाकर राजा ने उसको पुरस्कार दिया । 11. उच्च व्यक्ति के साथ संगति सुखकारी होती है । 12. वणिक सुन्दर नगर में रहता है। 13. उसने हृदय से नीच के संग को समझा। 14. उच्च के साथ संगति कर। 15. वह सम्पत्ति के लिए जीता है। 16. वे दोनों वहां अनुराग से रहते हैं । 17. राजा के द्वारा वणिक मन्त्री के पद पर रखा गया । 18. राजा वणिक पर सन्तुष्ट हुया । 19. मन्त्री राजा के पुत्र का हरण करके भागा। 20. मेरे द्वारा राजा का पुत्र मारा गया है। 21. जो कोई भी राजा के पुत्र को बतायेगा, वह ही धन के साथ भूमि भी पायेगा । 22. मेरे द्वारा तुम्हारा पुत्र देखा गया। 23. वह तुम्हारे नये मन्त्री के द्वारा मारा गया है। 24. तब किसी ढीठ के द्वारा राजा के आगे शीघ्र कहा गया। 25. उसके वचन सुनकर सरलबाहु सन्तुष्ट हुआ । 26. मन्त्री के द्वारा तीन फल दिए गए। 27. राजा क्षण भर में प्रसन्न हुआ । 28. राजा के स्नेह को जानकार मन्त्री सन्तुष्ट हुआ। 29. उसके द्वारा राजा का पुत्र सौंप दिया गयो । 30 हे राजा ! तुम्हारा चित्त मेरे द्वारा पहचान लिया गया है । 31. राजा के द्वारा पुरस्कार घोषित किया गया । 32. जो व्यक्ति बड़ों की संगति करता है वह इच्छित सम्पत्ति प्राप्त करता है । 33. करकंडु के द्वारा सभी कलाएं जान ली गयीं। 24. जो व्यक्ति नीति से व्यवहार करता है वह भूमण्डल को अवश्य ही भोग करता है । 35. उसने स्नेहपूर्वक कहा ।
नोट - इस अभ्यास-38 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ-12 का
अध्ययन कीजिए।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 151
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरण - हे पुत्र ! तू कहानी सुन=पुत्तु तुहुँ कहाणी सुरिण ।
पु. नपु. संग मण
दिए
वय रयण
संज्ञा शब्द पू. स्त्री.
नपु. अरविन्द कहाणी
णयर सन्तोस संपइ
रणीचम वणि (वणि प्र) पारद्धि
गाम राम अडवी
जल पसाग्र तण्हा
अमिन (य) उवयार भुक्खा
सुह गहिरिम विलासिणी सील सायर प्राणणी (प्राणण) मन्दिर अणुराम कलायर मेइणि गण मइ
दविरण णदण
सारणि
गुण रायण
सरय वयण
रइ
हियय डिडिम
वलय
चित्त
देव
जग
फल
नीति
घर
कला
मोल्ल
प्रागम ससहर परवइ सणेह णिव रगरगाह
पुल्लिग
ईस
सुप्र
खण रिणव गरेसर मित्त
मंति धरणिणाह
152
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-39
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए
1. विनयश्री कथा कहती है। 2. विनयश्री के द्वारा यानक कहा जाता है । 3. किसी नगर में संखिणी नामक एक कबाड़ी रहता है। 4. उसने दुःखपूर्वक रुपया प्राप्त किया। 5. वह पत्नी के साथ एकान्त में जाता है। 6. उसने एक रुपया रोकड़ी प्राप्त किया। 7. उसके द्वारा कलश में रुपये रखकर धरती में गाड़े गए। 8. वह प्रातःकाल अपने स्नान के लिए चला । 9. सूर्यग्रहण के अवसर पर प्रभात में कुछ लोग निज-निवासों को छोड़कर तीर्थ-स्नान को जाते हैं। 10. तीर्थ में स्नान करके वे अपने घर पहुंचे। 11. उसके द्वारा उत्साहपूर्वक देखा जाता है। 12. यह देखकर संखिणी हाथों से सिर पीटता है। 13. जो रुपया मूल में था वह भी नष्ट हो गया । 14. वह स्वाधीन सुख को चाहता हुया लक्ष्मी को भोगता है। 15. रात्रि में नगर में एक सियार प्रविष्ट हुआ। 16. मुहल्ले के मुख पर मरा हुआ बैल देखा गया। 17. दिन होने पर नगर के लोगों द्वारा वह देखा जाता है। 18 सियार की पूंछ काट ली गई। 19. वह अपने मन को वश में करता है । 20. सियार कुत्तों के समुदाय द्वारा खाया गया। 21. तुम विषय में अन्धे मत रहो । 22. मैं अपने को मरा हुआ दिखाता हूं। 23. मैं पुनः रात आने पर वन को जाऊँगा। 24. दिन में नगर के लोगों द्वारा वह देखा गया। 25. वह पत्थर से दांत तोड़ता है । 26. दांतों के बिना जीवन कठिन है । 27. जबूस्वामी कथानक कहते हैं। 28. कोई वणिक जहाज चलाता है । 29. वह जहाज ले जाकर खुश होता है । 30. वह दूसरे किनारे पर गया । 31. वह बहुमूल्य रत्नों को खरीदता है । 32. मैं बन्दरगाह पर पहुंचूंगा। 33. मैं वहां यह माणिक्यरत्न बेचूंगा। 34. रत्न हाथ से निकलकर समुद्र में गिरता है । 35. हे उपस्थित लोगो ! यहां पानी में रत्न गिरा था।
.
उदाहरणविनयश्री कथा कहती है विनयसिरि कहा कहइ ।
नोट-इस अभ्यास-39 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 9
का अध्ययन कीजिए।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
153
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
संज्ञा शब्द
नपु.
संत्रिणी
स्त्री . महिला विणयसिरि सिद्धि
कहान पुर
पु. नपु. दिए रुवरुवग दिवस→दिग्रस
बरइत्त
सहाय
वण
कलस
मइ
भोयण
ठाण
लोय
रवि
रयरण
मग्ग
गहण
पव्व
णाह
प्रासा लच्छी रयणि रच्छा निसा
तित्थ
समूह
णय
घर
सुवण्ण णिहाण
कण
उवाय खोयण
पिया
णारा
पुण्ण
दविण
मण
पह विहाण समय
प्रासा मंति
पाण
घरायल हिअय
विस
कर
मूल
तीर
पुहइ संपया णिद्दा गिरा
सग्ग
गयर
हत्य
मुह
कुमार सियाल
पमाण
बल६
पहाय
पु. स्त्री. मरिण
दन्त
प्रामिस
विराम
मय
वस
प्रोसह
जण
कयण .
संचार
धण
154 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
पु.
वमाल
आगम
गर
रो
जंबू
लोन
पाहण
जव
कंठ
हरि
सुणह
विसय
पलय
साण
समवाश्र
जंबूसामि
वरि
पो
सायर
हरि
करि
भंड
णिव
समुद्द
स्त्री.
अपभ्रंश श्रभ्यास सौरम ]
नपु.
जल
वेलाउल
माणिक्क
मज्झ
जाणवत्त
विस
पुंछ
पु. नपु
( 155
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-40
(क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए
1. दशरथ पुत्र राम अपने घर आते हैं। 2. तुम्हारे द्वारा जिनेन्द्र का अभिषेक किया जाना चाहिए । 3. वे दिव्य सुगन्धित जल देवियों के लिए भेजते हैं। 4. सुप्रभा के पास कंचुकी नहीं पहुंचा। 5. वह स्त्री मन में दुःखी हुई। 6. वह पुरानी चित्रित भित्ति की तरह स्थिर और निस्तेज थी। 7. सुप्रभा राजा दशरथ को नमस्कार करती है । 8. राजा को प्रणाम करके सुप्रभा के द्वारा कहा गया । 9. मेरी कथा से तुमको क्या लाभ है ? 10. वह राजा के लिए प्राणों से प्रिय है। 11. वह हाथ में लकड़ी रखता है । 12. वह प्रभु को देखकर खुश होता है। 13. उसके द्वारा स्वामी नहीं देखा गया। 14. उसकी वाणी लड़खड़ाती है । 15. सुप्रभा के द्वारा गन्धोदक शीघ्र नहीं पाया गया । 16. वह प्रणाम करता हमा बोला। 17. यौवन फीका पड़कर नष्ट होता है। 18. वह प्रांखों से पूर्ण अन्धा है । 19. उसका सिर कांपा। 20. उसके शरीर की कान्ति नष्ट हुई। 21. तुम्हारा यहां पर दूसरा जन्म ही हुआ है। 22. उसके शरीर में रक्त खत्म हो गया। 23. राजा कंचुकी के वचन सुनकर विचारता है । 24. दशरथ अत्यन्त विषाद को प्राप्त हुए। 25. सुख मधु के समान होता है । 26. दुःख मेरु पर्वत के समान लगता है। 27. तुम वह कर्म करो जिससे अजर अमर पद प्राप्त होता है। 28. पृथ्वी, धन, सिंहासन और छत्र सभी अस्थिर होते हैं । 29. पुत्र उपाजित धन को छीन लेते हैं । 30. उसके द्वारा वर मांगा गया । 31. छत्र, सिंहासन और पृथ्वी भरत के लिए दी गई । 32. माता पाते हुए उदास राम को देखती है। 33. आज तुम्हारा मुंह तेजहीन क्यों है ? 34. अपराजिता धरती पर रोती हुई गिर पड़ी।
उदाहरणदशरथ-पुत्र राम अपने घर पाते हैं दसरहहो पुत्त रहणन्दण णिय घरि आवहिं।
नोट-1. इस अभ्यास-40 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 1
का अध्ययन कीजए । 2. इस अभ्यास के संज्ञा शब्दों के लिंग कोश से ज्ञात कीजिए।
___ 156 ]
. [ अपभ्रंश अभ्यास सौरम ..
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-41
(क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए
1. रघुनन्दन के द्वारा सीता का सतीत्व जाना गया । 2. वह हरिवंश में उत्पन्न हुई। 3. उसके द्वारा अग्नि जलाई गयी। 4. सीता पुष्पक विमान पर चढ़ी। 5. चार सागरों के मध्य में पृथ्वी स्थित है। 6. उसके द्वारा तृप्ति की जाती है। 7. वहीं जीते हुए मनुष्य भी काट दिए जाते हैं। 8. सतीत्व के गर्व के कारण सीता नहीं डरती। 9. मनुष्य मरती हुई स्त्री के द्वारा भी विश्वास किए जाते हैं । 10. घास-फूस को बहाती हुई नर्मदा का जल समुद्र में गिरा। 11. समुद्र क्षार को देता हुआ नहीं थकता । 12. किसी जन के द्वारा कुत्ता आदर नहीं दिया जाता है । 13. वह गंगा में नहलाया गया। 14. चन्द्रमा से उत्पन्न प्रमा निर्मल होती है। 15. काले मेघ से उत्पन्न बिजली उज्ज्वल होती है । 16. अपूज्य पत्थर किसी के द्वारा भी नहीं पूजा जाता है। 17. पत्थर की प्रतिमा चन्दन से लीपी जाती है । 18. कीचड़ में उत्पन्न कमल की माला जिनेन्द्र के चढ़ी। 19. मेरे द्वारा सतीत्व की पताका आज भी ऊंची की गई है।
उदाहरणरघुनन्दन के दारा सीता का सतीत्व जाना गया=रहुणन्दणेण सीयाहे सइत्तणु
जारिणउ।
नोट--1. इस अभ्यास-41 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 5 .... का अध्ययन कीजिए ।
2. इस अभ्यास के संज्ञा शब्दों के लिंग शब्दकोश से ज्ञात कीजिए।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
[ 157
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-42
क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए
1. सभी के हाथ में लकड़ियां और तलवारें हैं। 2. वे हाथ में लकड़ी धारण करके चलते हैं। 3. रोकी गई भोगवती भी चल पड़ी। 4. उसके द्वारा दूर से देखा गया। 5. माता के द्वारा पुत्र रोका गया । 6. वह दूर से देखकर हांक देता है । 7. वे आते हुए देखे जाते हैं । 8. उनके द्वारा बछड़ों के समूह कहीं भी नहीं पाये गये । 10. मन में विचार करता हुमा वह भय से कांपता है। 11. वह पीछे देखने के लिए मुड़ता है । 12. मां पुत्र को घर आने के लिए बुलाती है । 13. वह बछड़ों की रक्षा के लिए वन में जाता है । 14. उसकी माता के द्वारा अत्यन्त दुःख से रात्रि व्यतीत की गई । 15. माता के साथ सभी उसको खोजने के लिए चले । 16. वहां उसके शरीर के हाथ और पर दसों दिशामों में पड़े हुए देखे गए । 17. हे पुत्र ! मैं अत्यन्त दुःख में हूँ। 18. तुम्हारे द्वारा मैं क्यों छोड़ी गई ? 19. वह हाथ और पैरों को इकट्ठा करके स्नेह से आलिंगन करती है। 20. जिनवचन मनुष्यों के लिए श्रेष्ठ और दयावान होते हैं । 21. वह संसार को अनित्य न जानता हुआ मोह में जकड़ा हुआ है। 22. वह संसार को मन में प्रनित्य जानता है। 23. वह जिनधर्म ग्रहण करता है । 24. जिनधर्म के द्वारा इच्छित सुख प्राप्त किए जाते हैं। 25 तुम्हारे द्वारा संसार के दुःख नष्ट किए जाने चाहिए । 26. उसके द्वारा इच्छित सभी सुख प्राप्त किए गए। 27. उसको देख कर माता के हृदय में हर्ष उत्पन्न हुआ। 28. तुम्हारे द्वारा जिनागम का स्मरण करके श्रद्धा की जानी चाहिए। 29. उसकी माता मोह छोड़ कर उत्तम ज्ञानवाली बनी । 30. उसने गुरु की वन्दना की। 31. उसने गुरु को तीन प्रदक्षिणा दी। 32. वह अपने दोषों की निन्दा करता है । 33. तुम्हारे द्वारा प्रशंसनीय देवपद प्राप्त किया जाए। 34. वह गुरु को साष्टांग प्रणाम करती है । 35. तुम मुनि को प्रणाम करो ।
गोट- इस अभ्यास-42 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 13
का अध्ययन कीजिए।
.58 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणसभी के हाथ में लकड़ियां और तलवारें हैं सव्वहं करहिं लउडि-खग्ग अस्थि ।
संज्ञा शब्द
नपु.
स्त्री . लउडि
यु. नपु. खग्ग
कर
मारण
वच्छ
हक्का
भय
उल
पवंच
मइ
गिह
सीह
जणणि
मरण गेह दुक्ख घर
खरण
प्रवत्था
सयास
सुव
तत्ति
खीर पेसण
बंधव
णेत्त दसण
विएस
छुहा तिसा कंदरी विहावरी
दुक्कम विवर
पायर
सरण
माम
दह
सरूव चित्त
भव
दाण
वयण
गुहा दिसि जणरणी मायरि उवेक्खा
सुप्पहान वार
चरण
भर सुक्ख खोज्ज
भरविन्द
पवरण प्रायम संसार सिंघ मुरिण पसाय गिरि सोमा चलण
गई
कमल
गुण
वाया
मल
वत्त हिया
माया
पाण
सर
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
-
[ 159
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
पु.
ठाम
गंदरग
परलोअ
गुरु
सुरेस
वेस
मोह ह
160 1
स्त्री.
पु.
पु. नपु.
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-43
(क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए
1. हे पुत्र ! तुम सात व्यसन सुनो। 2. सादि एक जन्म में ही दुःख देते हैं । 3 विषय करोड़ों जन्मों में दुःख उत्पन्न करते हैं। 4 रुद्रदत्त दीर्घकाल तक नरक में पड़ा। 5. जो जुआ खेलता है वह माता बहिन, पत्नी और पुत्र को कष्ट देता है। 6 जो मद्य की इच्छा करता है वह बहुत बुराइयों में रमता है । 7 जो वीर होते हैं वे मृगों को नहीं मारते हैं। 8. शिकार का प्रेमी ब्रह्मदत्त नरक में गया । 9. चोर पकड़ा जाता है, बांधकर ले जाया जाता है, मुख्य मार्ग पर दण्डित किया जाता है। 10. वह मदिरा पीकर प्रिय मित्र को कष्ट पहुंचाता है । 11. अंगारक ने मरण प्राप्त किया । 12. तीर्थंकरों की माताएं ग्राज भी तीन लोक में प्रसिद्ध हैं। 13. विद्वान व्यक्ति शीलवान की प्रशंसा करता है । 14. निर्धन के चित्त से चिन्ता समाप्त नहीं होती। 15. धनवान से लोम नहीं जाता है।
उदाहरण -- हे पुत्र ! तुम सात व्यसन सुनो-पुत्त तुहं सत्त वसण णिसूणि ।
-
-
नोट ... 1. इस अभ्यास-43 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 10
का अध्ययन कीजिए । 2. इस अभ्यास के संज्ञा शब्दों के लिंग शब्दकोश से ज्ञात कीजिए ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ।
161
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-44 (क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए
1. राजा गुणवान सेवक को त्यागता है। 2. तुम दुष्ट सेवकों का सम्मान मत करी । 3. वह दुष्ट मनुष्यों का सम्मान नहीं करता है । 4. पर्वत की शिखा से शिला गिरी। 5. तुम स्वय के गुणों को छिपायो। 6. दुर्लम सज्जन की कलियुग में पूजा की जानी चाहिए । 7. वृक्ष पर पक्षी बैठते हैं । 8. उसके कानों में दुष्ट के वचन प्रविष्ट नहीं हुए 9. वह जीवन को प्रिय मानती है । 10. जीवन और धन सबके लिए प्रिय हैं। 11. वह समय आ पड़ने पर धन को घास के समान गिनता है। 12. विशिष्ट व्यक्ति धन को तिनके के समान गिनता हुआ छोड़ता है। 13. तुम कुछ भी मत मांगो। 14. तुम भोजन प्राप्त करो। 15. तुम्हारे द्वारा स्वाभिमान नहीं छोड़ा जाना चाहिए । 16. दिन झटपट से व्यतीत होते हैं। 17. मैं विद्यमान भोगों को त्यागता है। 18. अज्ञानी मनुष्य विद्यमान भोगों को भोगता है। 19. सागर के जल से प्यास का निवारण नहीं होता है। 20. जल निरर्थक आवाज करता रहता है। 21. कंजूस धर्म में रुपया व्यय नहीं करता है । 22. यम का दूत क्षण भर में पहुंचता है । 23. यमदूत वहां शीघ्रता से पहुंचा। 24. चन्द्रमा व समुद्र का प्रेम प्रसाधारण होता है । 25. दूरी पर स्थित सज्जनों का प्रेम भी असाधारण होता है। 26. देश सज्जनों के रहते हुए होने से ही सुन्दर होते हैं । 27. जीभ इन्द्रिय के अधीन अन्य इन्द्रियां हैं। 28. तुम रसनेन्द्रिय को वश में करो। 29. तुम सम्पूर्ण कषाय की सेना को जीतो। 30. उसने जगत को अभयदान दिया। 31. उसने कषाय को जीतते हुए मोक्ष प्राप्त किया। 32. वह महाव्रतों को ग्रहण करेगा। 33. मुनि महाव्रत ग्रहण करते हुए तत्त्व का ध्यान करते हैं । 34. तत्त्व का ध्यान करके व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करते हैं। 35. निज धन को देना दुष्कर है। उदाहरणराजा गुणवान सेवक को त्यागता है=राया सुभिच्चु परिहरई ।
नोट-इस अभ्यास-44 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 14
का अध्ययन कीजिए।
____162 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
संज्ञा शब्द
नपु. तण
पु. नपु. रयण
सायर
स्त्री . सिला दिसि सल्लई
तल
उड्डारण सिंग
मिच्च
गुण
जण
तिसा
वरण
दइव
फल
गिरि कलि
सुक्ख कमल
वयरण
जुग
जीविग्र
कण्ण
सरि (नदी) बुद्धि बहिण जिब्भा तुंबिणी बलि कुडि
धण
सुप्रण तरु सउणि
भर
तिण
प्रब्भत्थण
खंड उल (कुल) गंड
धवल
वड्डत्तण
झडप्पड
जल
निवारण
सामि अलि करि अवसर बलि (राजा) महुमहण (विष्णु) कुंजर सास कवल
मारण दिग्रस मोग सिव सीस
पल
रप्रय
उज्जाण
धम्म
कुडुम्ब जिभिन्दिय
सर इन्दिय
मूल
तव
विहि
पण्ण
मण
मणोरह
बल
अभय
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 163
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससहर
मयरहर
जम
मेह
सज्ज
ह
देस
कसाय महब्वय
164 j
स्त्री.
नपु.
जय
तत्त
सुह
पु. नपु.
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास- 45
(क) निम्नलिखित वाक्यों को अपभ्रंश में रचना कीजिए
12. पक्षी के
1. दुर्जन के कारण ही सज्जन सुखी होते हैं । 2. उनके द्वारा सज्जन विख्यात किया जाता है । 3. मरकत मणि कांच से विख्यात होता है। 4. मन, वचन, कर्म से दया करनी चाहिए। 5. दया से पाप नहीं प्राता । 6. छाती में बंधे हुए कवच के कारण घाव नहीं होता है । 7. बहुत गाढ़े बन्धन तोड़ने के लिए कठिन होते हैं । 8 सज्जन भोगों का परिमाण करके इन्द्रियों को दम्भी नहीं बनाता । 9 दूध से पाले हुए काले सर्प अच्छे नहीं होते । 10. कुपात्रों के लिए दान दूषण होता है । 11. गृहस्थ के द्वारा दान दिया जाना चाहिए । भी घर होता है 13. कृपणों के घर में संपदा नहीं होती । 14. समुद्र के खारे जल को कोई नहीं पीता । 15. खारा पानी किसी के भी द्वारा नहीं पिया जाता । 16. पात्रों के लिए थोड़ा भी दिया हुआ बहुत होता है । 17, जो अपने लिए प्रतिकूल है वह दूसरों के लिए नहीं करना चाहिए । 18. स्वकाया से किया हुआ धर्म ही शुद्ध होता है । 19. न्याय से आया हुआ धन ही उज्जवल होगा। 20. सज्जन देह से जीवनलाभ न्त्रित इन्द्रियों से मनुष्य के द्वारा सैकड़ों दुःख प्राप्त किए गए। 22. दुर्जन व्यक्ति की पांचों इन्द्रियां स्वतन्त्र होती हैं । 23. कमलों को देखकर सूर्य हर्षित हुआ । 24 वह दुर्लभ मनुष्यता को प्राप्त करता है। 25. वह ईंधन के प्रयोजन से कल्पतरु काटेगा ।
करते हैं । 21. अनिय
उदाहरण
दुर्जन के कारण ही सज्जन सुखी होते हैं = दुज्जरों सुप्रणा सुहिश्र हवहिं / हन्ति ।
नोट • इस अभ्यास - 45 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 1 7 का अध्ययन कीजिए ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
1
165
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
संज्ञा शब्द
स्त्री. समिला
न
पु. नपु. विस
दप्प
जग
वासर
कच्च
तम
सुयप सायर जूय जीव
दया पवित्ति मंति संपया धरणि
जल
मरगम
वय
मण
भव
घण
उर
संबंध
घण्ण
काय
बंधण
भोग
पु. स्त्री. पंखी
༔ ༔ ༔ ༔ ༔ ༔ ༔ , ༈ ༔ ཡཾ ༔ ཝ ཟློ ཀྵ
पाप
पमाण
इंदिय
घाम
दाण
पसु
धम्म
देह
दुक्ख
जिय दोस पत्थर उवहि वड
कुपत्त सोक्ख णीर बीन मूल जीविय रवि
घर
भोय
पाग्र
अप्प
काम
कमल
उज्जल
इंधण
सप्प
कज्ज
परिमाण
गिहत्थ कप्पयर
णाम
166 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
पु.
लाह
संतोस
णंद
मणुयत्तण
कप्पयर सण्णाह
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
स्त्री
नपु
पु नपु
| 167
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-46
अपभ्रंश भाषा को अच्छी तरह समझने के लिए वाक्य में निहित प्रत्येक पद जैसे-संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, कृदन्त प्रादि का व्याकरणिकरूप से विश्लेषण करने का ज्ञान होना अति आवश्यक है।
___ इसके लिए प्रत्येक पद की व्याकरणिक विश्लेषण-पद्धति तथा कुछ वाक्यों का व्याकरणिक विश्लेषण उदाहरणस्वरूप दिया जा रहा है ।
संकेत-सूची श्रक -अकर्मक क्रिया अनि -अनियमित प्राज्ञा -प्राज्ञा कर्म -कर्मवाच्य क्रिविन क्रिया विशेषण अव्यय प्रे -प्रेरणार्थक क्रिया भवि -भविष्यत्काल भाव -भाववाच्य भूक -भूतकालिक कृदन्त व -वर्तमानकाल वकृ -वर्तमान कृदन्त वि -विशेषण विधि -विधि विधिक -विधिकृदन्त स -सर्वनाम संकृ - सम्बन्धक कृदन्त सक -सकर्मक क्रिया। सवि -सर्वनाम विश्लेषण स्त्रो - स्त्रीलिंग हेकृ - हेत्वर्थक कृदन्त
•( ) -इस प्रकार के कोष्ठक में मूल
शब्द रखा गया है। .(()+()+ ( )... ] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर+चिह्न शब्दों में सन्धि का द्योतक है। यहां अन्दर के कोष्ठकों में मूलशब्द ही रखे गए हैं। • ()- ( ) - ( )... ] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर '-' चिह्न समास का द्योतक है। [[( )-()-( )] वि] जहां समस्तपद विशेषण का कार्य करता है वहां इस प्रकार के कोष्ठक का प्रयोग किया गया है। 'जहां कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (जैसे 1/1, 2/1 आदि) ही लिखी हैं वहां उस कोष्ठक के अन्दर का शब्द 'संज्ञा' है । •जहां कर्मवाच्य कृदन्त आदि अपभ्रश के नियमानुसार नहीं बने हैं वहां कोष्ठक के बाहर नि' भी लिखा गया है।
168 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
1/1 अक या सक-उत्तम पुरुष/एकवचन 1/2 अक या सक-उत्तम पुरुष/बहुवचन 2/1 अक या सक-मध्यम पुरुष/एकवचन 2/2 अक या सक-मध्यम पुरुष बहुवचन 3/1 प्रक या सक-अन्य पुरुष/एक वचन २/2 प्रक या सक-अन्य पुरुष/बहुवचन 1/1प्रथमा/एकवचन 1/2 - प्रथमा/बहुवचन 2/1 -द्वितीया/एकवचन 2/2- द्वितीया/बहुवचन 3/1 तृतीया/एकवचन
3/2-तृतीया/बहुवचन 4/1-चतुर्थी/एकवचन 4/2--चतुर्थी/बहुवचन 5/1--पंचमी/एकवचन 5/2-पंचमी/बहुवचन 6/1-षष्ठी/एकवचन 6/2-षष्ठी/बहुवचन 7/1-सप्तमी/एकवचन 7/2-सप्तमी/बहुवचन 8/1-सम्बोधन/एकवचन 8/2-सम्बोधन/बहुवचन
व्याकरणिक विश्लेषण-पद्धति संज्ञा
नरिंदसु सर्वनाम
तेण सर्वनाम विशेषण
सव्वु क्रिया
होस सम्बन्धक कृदन्त
णिसुणेवि हेत्वर्थक कृदन्त
हसरण वर्तमानकालिक कृदन्त जोयंतु भूतकालिक कृदन्त
मारिउ विशेषण
समग्गल भाववाच्य
ण च्चिज्जइ कर्मवाच्य
विल सिज्जइ प्रेरणार्थक
दरिसावमि स्वार्थिक प्रत्यय
जंबूउ
(नरिंद) 4/1 (त) 3/1 स (सव्व) 2/1 सवि (हो) भवि. 3/1 अक (णिसुण + एवि) संकृ (हस+अण) हेक (जोय-+न्त) वकृ I/1 (मार-मारित्र) भूकृ 1/1 (समग्गल) 2/1 वि (णच्च+ इज्ज) व भाव 3/1 अक (विलस+इज्ज) व कर्म 3/| सक (दरिस+प्राव) प्रे व 1/1 सक (जंबूअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[ 169
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
अव्यय
विणु
क्रिया विशेषण
अवसें भूतकालिक कृदन्त अनियमित मुक्कु कर्मवाच्य अनियमित लगभइ
अव्यय (अवस) 3/1 क्रिवि (मुक्क) भूकृ 1/1 अनि (लगभइ) व कर्म 3/1 सक अनि
1
तेरण
भी
एम
उदाहरण
पणवेप्पिणु तेण वि वृत्तु एम, गय दियहा जोवण ल्हसिउ देव । पणवेप्पिणु (पणव+एप्पिणु) संकृ
प्रणाम करके (त) 3/1 स
उसके द्वारा अव्यय वृत्त (वुत्त) भूकृ 1/1 अनि
कहा गया अव्यय
इस प्रकार गय (गय) भूकृ 1/2 अनि
चले गये दियहा (दियह) 1/2
दिन जोवणु (जोव्वण) 1/1
यौवन ल्हसिउ (ल्हस) भूकृ 1/1
खिसक गया (देव) 8/1
हे देव दाणु कुपत्तहं दोसडइ बोल्लिज्जइ ण हु भंति । दाण (दाण) 1/1
दान कुपत्तहं (कुपत्त) 4/2
कुपात्रों के लिए दोसड (दोस+अड) 1/1 'अड' स्वा. दूषण
अव्यय बोल्लिज्जइ (बोल्ल) व कर्म 3/1 सक
कहा जाता है अव्यय
नहीं अव्यय
निश्चय ही (मंति) 11
भ्रान्ति
देव
अंति
170 ]
. [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
___ 3. तं णिसुणेवि वलेग पजम्पिउ, भरहहो सयलु वि रज्जु समप्पिउ । (त) 2/1 स
उसको रिणसुरणेवि (णिसुण + एवि) संकृ
सुनकर वलेण (वल) 3/1
बलदेव के द्वारा पजम्पिउ
(पजम्प→पजम्पिन) भूकृ 1/1 कहा गया भरहहो (भरह) 4/1
भरत के लिए सयलु (सयल) 1/1 वि
सम्पूर्ण वि
अव्यय (रज्ज) 1/1
राज्य समपिउ (समप्प→समप्पिस) भूकृ 1/1 दे दिया गया है
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
। 171
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-47
अमंगलिय पुरिसहो कहा।
एक्कहिं णयरि एक्कु अमंगलिउ मुद्ध पुरिसु आसि । सो एरिसु अत्थि जो को वि पभाये तहो मुह पासे इ, सो भोयणु पि न लहेइ । पउरा वि पच्चसे कयादि तहो मुहु न पिक्खहिं । नरवइएं वि अमंगलिय पुरिसहो वट्टा सुरिणग्रा । परिक्खेवं नरिंदें एगया पमायकाले सो पाहूउ, तासु मुहु दिछ । जइयतुं राउ भोयणा उवविसइ, कवलु च मुहि पक्खिवइ, तइयहं अहिलि नयरे अकम्हा परचक्क भयें हलबोलु जाउ । तावेहि नरवइ वि मोयणु चयेवि सहसा उठेविणु ससेण्णु नयरहे बाहिं निग्गउ ।
भय कारण अदठूण पुणु पच्छा प्रागउ । समाण नरिंदु चितेइ - इमहो अमंगलियहो सरूवु मई पच्चक्खु दिछु, तो एहो हंतव्वो। एवं चितेप्पि अमंगलिय कोक्काविएप्पिणु वहेवं चडालसु अप्पेइ । जइयतुं एहो रुवंत, सकम्मु निदंतु चंडालें सह गच्छंतु अस्थि, तइयहुँ एक्कु कारुणिउ बुद्धिणिहाण वहाहे नेइज्जमाण त ठूणं कारणु गाइ तासु रक्खणसु कण्णि किंपि कहेप्पिणु उवाय दंसेइ । हरि संतु जावेहिं वहस्सु थमि ठविउ तावेहिं चंडालु तं पुच्छइ- 'जीवणु विणा तउ कावि इच्छा होइ, तया मग्गियव्वा ।' सो कहेइ-महु नरिंद मुह दंसण इच्छा अस्थि । तया सो नरिंद समीवं प्राणीउ । नरिंदु तं पुच्छइ-एत्थु आगमण किं पनो यण ?
सो कहेइ-हे नरिंदु ! पच्चूसे महु मुहस्सु दसणें भोयणु न लहिज्जइ । परन्तु तुम्हहं मुह पेक्खणे मझु बहु भवेसइ, तइयहुं पउर किं कहेसंति/कहेसहिं । महु मुहहे सिरिमंतहं मुह दंसणु केरिसु फलउ जाइ? नायरा वि पभाए तुम्हहं मुह कहं पासिहिरे ? एवं तासु वयण जुत्तिए संतुछ नरिंदु । सो वहाएसु निसेहेवि पारितोसिउ च दायवि हरिसिउ सो अमगलिउ वि संतुस्सि उ ।
1.
'पाइयगज्जसंगहो' (प्राच्य भारती प्रकाशन, पारा) में प्रकाशित प्राकृत कथा 'अमंगलिय पुरिसस्सकथा' का डॉ. कमलचन्द सोगाणीकृत अपभ्रंश रूपान्तरण ।
____172
]
| अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
अमांगलिक पुरुष की कथा
एक नगर में एक अमांगलिक मूर्ख पुरुष था। वह ऐसा था ---जो कोई भी प्रभात में उसके मुंह को देखता वह भोजन भी नहीं पाता (उसे भोजन भी नहीं मिलता)। नगर के निवासी भी प्रात:काल में कभी भी उसके मुंह को नहीं देखते थे। राजा के द्वारा भी अमांगलिक पुरुष की बात सुनी गई । परीक्षा के लिए राजा के द्वारा एक बार प्रभातकाल में वह बुलाया गया, उसका मुख देखा गया। ज्योंहि राजा भोजन के लिए बैठा और मुंह में (रोटी का) ग्रास रखा त्योंहि समस्त नगर में अकस्मात् शत्रु के द्वारा आक्रमण के भय से शोरगुल हुआ। तब राजा भी भोजन को छोड़कर (और) शीघ्र उठकर सेना-सहित नगर से बाहर गया।
और भय के कारण को न देखकर बाद में आया । अहंकारी राजा ने सोचाइस अमांगलिक के स्वरूप को मेरे द्वारा प्रत्यक्ष देखा गया, इसलिए यह मारा जाना चाहिए । इस प्रकार विचारकर अमांगलिक को बुलवाकर वध के लिए चांडाल को सौंप दिया । जब यह रोता हुआ स्व-कर्म की (को) निन्दा करता हुआ चाण्डाल के साथ जा रहा था, तब एक दयावान, बुद्धिमान ने वध के लिए ले जाए जाते हुए उसको देखकर, कारण को जानकर उसकी रक्षा के लिए कान में कुछ कहकर उपाय दिखलाया। (इसके फलस्वरूप वह) प्रसन्न होते हुए (चला)। जब (वह) वध के खम्भे पर खड़ा किया गया तब चाण्डाल ने उसको पूछा-~-जीवन के अलावा तुम्हारी कोई भी (वस्तु की) इच्छा हो, तो (तुम्हारे द्वारा) (वह वस्तु) मांगी जानी चाहिए । उसने कहा- मेरी इच्छा राजा के मुख-दर्शन की है। तब वह राजा के सामने लाया गया। राजा ने उसको पूछा-यहां आने का प्रयोजन क्या है ?
उसने कहा-हे राजा ! प्रातःकाल में मेरे मुख के दर्शन से (तुम्हारे द्वारा) भोजन ग्रहण नहीं किया गया, परन्तु तुम्हारे मुख के देखने से मेरा वध होगा तब नगर के निवासी क्या कहेंगे ? मेरे मुंह (दर्शन) की तुलना में श्रीमान् का मुख दर्शन कैसा फल उत्पन्न करता है ? नागरिक भी प्रभात में तुम्हारे मुख को कैसे देखेंगे ? इस प्रकार उसकी वचन की युक्ति से राजा सन्तुष्ट हुा । (वह) वध के आदेश को रद्द करके और उसको पारितोषिक देकर प्रसन्न हुमा । (इससे) वह अमांगलिक भी सन्तुष्ट हुआ ।
-
-
-
-
-
-
-
-
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
[
173
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
अमंगलिय पुरिसहो कहा।
व्याकरणिक विश्लेषण
=अमांगलिक =पुरुष की
=कथा
अमंगलिय पुरिसहो कहा एक्कहिं णयरि एक्कु अमंगलिउ
-एक
=नगर में -एक =अमांगलिक =मूर्ख =पुरुष -था
पुरिसु
आसि
-
व
(अमंगलिय) 6/1 वि (पुरिस) 6/1 (कहा) 1/1 (एक्क) 7/1 सवि (णयर) 7/1 (एक्क) 1/1 सवि (अमंगलिय) 1/1 वि (मुद्ध) 1/1 वि (पुरिस) 1/1 (प्रस) भूत 3/1 अक (त) 1/1 स (एरिस) 1/I वि (अस) व 3/1 प्रक (ज) 1/1 स (क) 1/1 स
अव्यय (पभाय) 7/1 (त) 6/1 स (मुह) 2/1 (पास) व 3/1 सक (त) 1/1 स (भोयण) 2/1
एरिसु
अत्थि
पमाये
=ऐसा =है (था) =जो =कोई =भी =प्रातःकाल/प्रभात में =उसके =मुख को =देखता है -वह =भोजन
तहो
मुह पासेइ सो भोयणु
174 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
अव्यय
= भी
पउरा
पच्चूसे
कयावि तहो
=नहीं =पाता है =नमर के निवासी -भी -प्रात:काल में =कभी भी = उसका =मुख =नहीं =देखते हैं =राजा के द्वारा
मुहु
पिक्खहिं नरवइएं
वि
प्रध्यय (लह) व 3/1 सक (पउर) 1/2 अव्यय (पच्चूस) 7/1 अव्यय (त) 6/1 स (मुह) 2/1 अव्यय (पिक्ख) व 3/2 सक (नरवइ) 3/1 पव्यय (अमंगलिय) 6/1 वि (पुरिस) 6/1 (वट्टा) 1/1 (सुण) भूक 1/1 (परिक्ख) हेक (नरिंद) 3/1 अव्यय (पभायकाल) (त) 1/1 स (पाहप्र) भूकृ 1/1 अनि (त) 6/i स (मुह) 1/1
प्रमंगलिय पुरिसहो
वडा
सुणिया परिक्खेवं नरिंदें एगया पभायकाले
=अमांगलिक =पुरुष की -बात -सुनी गई =परीक्षा के लिए =राजा के द्वारा =एक बार -प्रभातकाल में -वह =बुलाया गया
सो
पाहूउ
तासु
=उसका
=मुख
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
[ 175
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिठु
जइयहुं राउ भोयणा उवविसइ कवलु
(दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि अव्यय (राय) i/1 (भोयण) 4/1 (उवविस) व 3/1 अक (कवल) 2/11 अव्यय (मुह) 7/1 (पक्खिव) व 3/1 सक अव्यय (अहिल) 7/1 वि (नयर) 7/1 अव्यय (परचक्क) 6/1
पक्खिवइ तइय हुं अहिलि नयरे
-देखा गया =ज्योंहि -राजा = भोजन के लिए ==बैठता है (बैठा) =ग्रास =और =मुंह में =रखता है (रखा) -त्योंहि =समस्त =नगर में =अकस्मात् =शत्रु के द्वारा
आक्रमण के =मय से = शोरगुल
प्रकम्हा
परचक्क
भये हलबोलु जाउ तावेहि नरव
=हुआ
तब
=राजा
(मय) 3/1 (हलबोल) 1/1 (जाप) भूकृ 1/1 अनि
अव्यय (नरवइ) 1/1 अव्यय (भोयण) 2/1 (चय) संकृ अव्यय (उट्ठ) संकृ
=भी
भोयणु चयेवि सहसा उठेविणु
:= भोजन को =छोड़कर = शीघ्र
-उठकर
____176 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससेणु नय रहे
बाहि
निग्गउ
भय
कारणु
अदट्ठूरण
पुणु
पच्छा
श्रागउ
समाणु
नरिंदु
चितेइ
महो
मंगलियहो
सरूवु
मई
पच्चक्खु
दिट्ठ
तनो
एहो
हंतब्बो
एवं
चितेप्पि
अमंगलिय
( ससेण्ण) 1 / 1 वि
(नयर ) 5 / 1
अव्यय
( निरंग) भूकृ 1 / 1 अनि
(भय) 6 / 1
(कारण) 2 / 1
संकृ अनि
अव्यय
अव्यय
(आग) भूकृ 1 / 1 अनि
( सारण ) 1 / 1 वि
(afia) 1/1
( चिंत) व 3 / 1 सक
( इम) 6 / 1
सवि
( मंगलिय ) 6 / 1 वि
( सरूव) 1 / 1
( अम्ह ) 3 / 1 स
( पच्चक्ख ) 1 / 1 वि
( दिट्ठ) भूकृ 1 / 1 अनि
अव्यय
( एत) 1 / 1 स
(हंतव्व) विधि 1 / 1 अमि
अव्यय
(चित) संकृ
( अमंगलिय ) 2 / 1
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
= सेनासहित
नगर से
=बाहर
- निकला
= भय के
= कारण को
=न देखकर
फिर
= बाद में
श्रा गया
= अहंकारी
= राजा ने
= सोचता है ( सोचा )
=== इस
= मांगलिक का
==स्वरूप
= मेरे द्वारा
===प्रत्यक्ष
= देखा गया
= इसलिए
= यह
= मारा जाना चाहिए
== इस प्रकार
= विचारकर
= अमांगलिक को
=
[
177
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
कोक्काविएप्पिणु
वहेवं
चंडालसु
अप्पेइ
जयहूं
एहो
रुवतु
सकम्मु
निदंतु
चंडालें
सह
गच्छंतु
श्रत्थि
तइयहुं
एक्कु
कारुणिउ
बुद्धिरिगहाणु
वहाहे
नेइज्जमाणु
तं
दट्ठूणं
कारणु
गाइ
तासु
रक्खरणसु
178 ]
( कोक्क + प्रावि ) प्रे. संकृ
( वह ) हेक
( चंडाल ) 4 / 1
( अप्प ) व 3 / 1 सक
अव्यय
( एत) 1 / 1 स
( रुव )
वकृ 1 / 1
[ ( स ) - ( कम्म) 2 / 1 ]
(निंद) वकृ 1 / 1
( चंडाल ) 3 / 1
अव्यय
(गच्छ) वकृ 1 / 1
( स ) व 3 / 1 ग्रक
श्रव्यय
( एक्क) 1 / 1 सवि
( कारुणिअ) 1 / 1 वि
( बुद्धिणिहारण) 1 / 1 वि
( वह) 4 / 1
(णी ) कर्म वकृ 1 / 1
(त) 2 / 1 स
संकु अनि
(कारण) 2 / 1
( णा ) संकृ
(त) 6 / 1 स
( रक्खण) 4 / 1
= बुलवाकर
= वध के लिए
= सौंपता है ( सौंपा )
चांडाल को (के लिए)
जब
=यह
= रोता हुआ
= स्वकर्म को (की)
= निंदा करता हुआ
चांडाल के
==साथ
= जा रहा
= है (था)
तब
= एक
=
= दयावान
= बुद्धिमान ने
= वध के लिए
= ले जाए जाते हुए
= उसको
=
= देखकर
= कारण को
=जानकर
= उसकी
= रक्षा के लिए
[..अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
-कान में
कण्णि किपि कहेप्पि उवाय दंसेइ
(कण्ण) 7/1 अव्यय (कह) संकृ (उवाय) 2/1 (दंस) व 3/1 सक
(हरिस) वकृ 1/1
अव्यय
हरिसंतु जावेहि वहस्सु थंमि ठविउ तावेहि चंडालु
(वह) 6/1 (थंभ) 7/1 (ठव) भूकृ ।/1 अव्यय (चंडाल) 1/1 (त) 2/1 स (पुच्छ) व 3/1 सक (जीवण) 2/1 अव्यय
= कुछ = कहकर = उपाय =दिखलाता है
(दिखलाया) =प्रसन्न होते हुए =जब -वध के =खम्भे पर -खड़ा किया गया -तब = चांडाल ने =उसको =पूछता है (पूछा) =जीवन के =बिना
पुच्छइ
जीवणु
विणा
तउ
=तुम्हारी -कोई भी
कावि
=इच्छा
इच्छा होइ तया मग्गियव्वा
(तुम्ह) 6/1 स ((का) 111 स (वि (अव्यय)=भी (इच्छा ) 1/1 (हो) व 3/1 अक अव्यय (मग्ग) विधिक 11 (त) 1/1 स
=तो =मांगी जानी चाहिए -वह .
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
179
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
कहेइ
नरिद
=कहता है =मेरी -राजा के =मुख के -दर्शन की -इच्छा
मुह दसण
इच्छा अस्थि तया
तब
सो
नरिंद समीवं पाणीउ नरिंदु
(कह) व 3/1 सक (अम्ह) 6/1 स (नरिंद) 6/1 (मुह) 6/1 (दसण) 6/1 (इच्छा ) 1/1 (अस) व 3/1 अक अव्यय (त) 1/1 स (नरिंद)6/1 (समीव) 1/1 वि (प्राणीम) भूक 1/I अनि (नरिंद) 1/1 (त) 2/1 स (पुच्छ) व 3/1 सक अव्यय (मागमरण) 4/1 (कि) 1/1 स (पोयण) 1/1 (त) 1/1 स (कह) व 3/1 सक (नरिंद) 8/1 (पच्चूस) 7/1
-वह
राजा के =समीप =लाया गया
=राजा ने
पुच्छ
एत्थु
आगमण
कि
-उसको =पूछता है (पूछा) =यहाँ =पाने का -क्या -प्रयोजन =वह (उसने) =कहता है (कहा) =हे राजा -प्रात:काल में
पोयणु
कहेइ हे नरिंदु पच्चूसे
नोट-1. प्रयोजन के साथ चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है ।
180
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
म
मुहस्स दसणे भोयणु
(अम्ह) 6/1 स (मुह) 6/1 . (दसण) 3/1 (भोयण) 1/1
अव्यय
=मेरे . =मुख के =दर्शन से =भोजन -नहीं =किया जाता है (गया) =परन्तु =तुम्हारा = मुख ==देखने से = मेरा =वध =होगा =तब =नगर के निवासी
मुह
.
लहिज्जइ (लह) ब कर्म 3/1 सक परंतु
अव्यय तुम्हह (तुम्ह) 6/2 स
(मुह) 2/1 पेक्खणे
(पेक्खण) 3/1 मझु
(प्रम्ह) 6/1 स वहु
(वह) 1/1 भवेसइ (भव) भवि 3/1 अक तइयहुं अव्यय पउर
(पउर) 1/2
(किं) 1/1 स कहेसंति/कहेसहिं (कह) भवि 3/2 सक
(अम्ह) 6/1 स मुहहे
(मुह) 5/1 सिरिमंतह मुह
(मुह) 1/1 दसणु
(दंसरण) 1/1
.
कि
क्या
महु
:
=कहेंगे =मेरे =मुंह की तुलना में -श्रीमान् का =मुख -दर्शन
(सिरिमत) 6/2
नोट-1. जिससे किसी वस्तु का तुलनात्मक भेद दिखाया जाए उसमें पंचमी
होती है।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
।
181
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
केरिसु
=कैसा
फलउ
(केरिस) 2/1 वि (फल) 2/1 'अ' स्वार्थिक (जा) व 3/1 सक
=फल
जाइ
=उत्पन्न करता है =नागरिक
नायरा
(नायर) 1/2
वि
अव्यय
पभाए
तुम्हहं
(पमा) 7/1 (तुम्ह) 6/2 (मुह) 2/1
-प्रभात में =तुम्हारे ==मुख को =कैसे =देखेंगे
अव्यय
कहं पासिहिरे एवं
(पास) मवि 3/2 सक
अव्यय
तासु
वयण
-इस प्रकार =उसकी =वचन की =युक्ति से = संतुष्ट हुआ =राजा
जुत्तिए
संतुट्ठ
नरिंदु सो
(त) 6/1 स (वयण) 6/1 (जुत्ति) 3/1 (संतुट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (नरिंद) 1/1 (त) 1/1 स [(वह) + (आएसु)] [(वह)-(आएस) 2/1] (निसेह) संक (पारितोसिन) 2/1 अव्यय
-वह
वहाएसु
-वध के आदेश को
निसेहेवि पारितोसिउ
रद्द करके =पारितोषिक =और
182 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
दाएवि हरिसिउ
(दा) संक (हरिस) भूक 1/1 (त) 1/1 स (अमंगलिय) 1/1 वि (संतुस्स) भूकृ 1/1
-देकर =प्रसन्न हुआ =वह =अमांगलिक भी -संतुष्ट हुआ
अमंगलिउ संतुस्सिउ
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
| 183
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-48
विउसीहे पुत्त-बहूहे कहाणगु!
कहिं णयरि लच्छीदासु सेट्ठि वरीवट्टइ । सो बहुधण-संपत्तिए गविठ्ठ आसि । भोगविलासहिं एव लग्गु कयावि धम्मु ण कुणेइ । तासु पुत्तु वि एयारिसु अस्थि । जोव्वणि पिउए धम्मिग्रहो धम्मदासहो जहत्थनामाए सीलवईए कन्नाए सह पुत्तसु पाणिगहणु कराविउ । सा कन्ना जइयतुं अट्ठवासा जाया, तइयतुं नाए पिउ पेरणाए साहुणी सगासहु सवण्ण धम्म सवणे सम्मत्तु अणुव्वयइं य गहीयइं, सव्वण्ण धम्मि अईव निउणा संजामा ।
जइयहं सा ससुर मेहि आगया तइयतुं ससुराइ धम्महु विमुहु देखेवि ताए बहह संजाउ । कह मझु नियवय निव्वाहु होसइ ? कहं वा देवगुरुह विमुहहं ससुराइ धम्मोवएसु भवेस इ, एवं सा वियारेइ ।
एगया संसारु असारु, लच्छी वि असारा, देहु वि विणस्सरु, एक्कु धम्मु च्चिय परलोअपवन्न हं जीवहं प्राहारु त्ति उवएसदाणे नियभत्ता सव्वण्रण धम्में वासिउ कउ । एव सासू वि कालतरे बोहेइ । ससुर पडिबोहेवं सा समयु मग्गेइ ।
एगया ताहे घरि समणगुणगरणालंकिउ महब्वइ नाणी जोव्वणत्थु एक्कु साहु भिक्खसु समागउ । जोव्वणि वि गहीयवय संत दंत साहु घरे आगय देखेप्पिणु आहारे विज्जमाणे वि ताए वियारिय-जोव्वणे महन्वय महादुल्लह, कहं एतें एतहिं जोव्वणत्तणे गहीय ? इति परिक्खेवं समस्साहे उत्तर पुढें-अहुणा समउ न संजाउ किं पुव्वं निग्गया ? ताहे हियये गउ भाउ णाइ साहुए उत्तु-'समयनाणु', कया मच्चु होसइ त्ति नत्थि नाणु, तेण समय विणा निग्गउ । सा उत्तरु णाएवि तुट्टा । मुणिएं वि सा पुट्टाकइ वरिस। तुहं संजाया ? मुणि पुच्छाभावु णाइ वीसवासेहिं जाअहिं वि ताए बारसवासु त्ति उत्तु । पुणु 'तुज्झ सामि कइ वासा जापा' ति पुठ्ठ । ताहे पियहो पणवीसवासहि जाहिं वि पंचवासा उत्ता, एवं सासूहे 'छमासा' कहिया । मुणिएं ससुरहो पुच्छिउ, सो 'अहुणा न उप्पण्णु अत्थि' ति सद्दा भणिया ।
1. 'पाइयगज्जसंगहो' में प्रकाशित 'विउसीए पुत्तवहूए कहाणगं' का डॉ. कमलचन्द
सोगाणीकृत अपभ्रंश रूपान्तरण ।
184 ]
[ · अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
विदुषी पुत्रवधू का कथानक
किसी नगर में लक्ष्मीदास सेठ भली प्रकार से रहता था। वह बहुत धनसम्पत्ति के कारण अत्यन्त गर्वीला था । भोगविलासों में ही (वह) लगा हुआ (था) (और) कभी भी धर्म नहीं करता था। उसका पुत्र भी ऐसा ही था । यौवन में पिता द्वारा धार्मिक धर्मदास की यथानाम शीलवती कन्या के साथ पुत्र का विवाह करवा दिया गया। जब वह क या आठ वर्ष की हुई, तब उसके द्वारा पिता की प्रेरणा से (एक) साध्वी के पास सर्वज्ञ के धर्म के श्रवण से सम्यकत्व और अणव्रत ग्रहण किए गए । सर्वज्ञ के धर्म में (वह) बहुत निपुण हुई।
जब वह ससुर के घर में आ गई, तब ससुर आदि को धर्म से विमुख देखकर, उसके द्वारा बहुत दुःख प्राप्त किया गया । मेरे निजवत का निर्वाह कैसे होगा ? अथवा देव-गुरु से विमुख ससुर आदि के लिए धर्मोपदेश कसे सम्भव होगा ? इस प्रकार वह विचार करती है।
संसार असार है, लक्ष्मी भी असार है, देह भी विनाशशील है, एक धर्म ही परलोक जानेवाले जीव के लिए प्राधार है, इस प्रकार एक बार उपदेश देने से निज पति सर्वज्ञ के धर्म में संस्कारित किया गया। कुछ समय पश्चात् (वह) इस प्रकार सास को भी समझाती है । ससुर को समझाने के लिए वह समय खोजने लगी।
एक बार उसके घर में श्रमण-गुण - समूह से अलंकृत महाव्रती ज्ञानी, यौवन में स्थित एक साधु भिक्षा के लिए पाए । यौवन में ही ब्रत को ग्रहण किए हुए शान्त और जितेन्द्रिय साधु को घर मे आया हुआ देखकर आहार को प्राप्त करते हुए होने पर ही उसके द्वारा विचार किया गया-यौवन में महाव्रत अत्यन्त दुर्लभ (है) । इनके द्वारा इस यौवन अवस्था में (महाव्रत) कैसे ग्रहण किए गए ? इस प्रकार परीक्षा के लिए समस्या का उत्तर पूछा गया -- अभी समय न हुआ, पहिले ही (आप) क्यों निकल गए ? उसके हृदय में उत्पन्न भाव को जानकर साधु के द्वारा कहा गया-- ज्ञान समय (है) । कब मृत्यु होगी ऐसा, ज्ञान किसी को नहीं है. इसलिए समय के बिना निकल गया । वह उत्तर को समझकर सन्तुष्ट हुई। मुनि के द्वारा वह भी पूछी गई-तुम्हें उत्पन्न हुए कितने वर्ष हुए ? मुनि के प्रश्न के प्राशय को जानकर बीस वर्ष हो जाने पर भी उसके द्वारा बारह वर्ष कहे गए । फिर, तुम्हारे स्वामी का जन्म हुए) कितने वर्ष हुए ? इस प्रकार (यह) पुछा गया ! उसके द्वारा प्रिय का (जन्म हुए) पच्चीस वर्ष हो जाने पर भी पाँच वर्ष कहा गया. इस प्रकार सासू का छः माह कहा गया, ससुर के लिए पूछने पर 'वह अभी उत्पन्न नहीं हुआ है', इस प्रकार शब्द कहे गए।
अपभ्रश अभ्यास सौरम ]
[ 185
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं वहू साहु वट्टा अंतट्ठिएं ससुर सुप्रा । लद्धभिक्खे साहुहि गए सो अईव कोहाउलु संजाउ, जो पुत्तवहू मइं उद्दिस्सेवि 'न जाउ' त्ति कहेइ । रुठु सो पुत्तसु कहेवि हटु गच्छइ । गच्छन्तु ससुरु सा वयइ-मुजेवि हे ससुरु ! तुहुं गच्छहि । ससुर कहेइ-जइ हउं न जाउ अस्थि, तो कहं भोयणु चव्वेमि-भक्खेमि, इन कहेप्पिणु हट्टि गउ । पुत्तसु सव्वु वुत्तंतु कहेइ-तउ पत्ती दुरायारा असमवयणा अस्थि. अग्रो तं गिहाहु निक्कास ।
सो पिउं सह गेहि आगउ । (सो) बहू पुच्छइ-कि माउ पिउ अवमाणु कउ? साई सह वट्टाहिं किं असच्चु उत्तर दिण्णु ? ताए उत्तु -- तुम्हे मुणि पुच्छह, सो सव्वु कहिहिइ । ससुरु उवस्सइ जाएवि सावमाणु मुणि पुच्छइ-हे मुणि, अज्जु महु गेहि भिक्खसु तुम्हे कि आगया ? मुणि कहेइः—तुम्हहं घरु ण जाणामि तुहं कुत्थ वसहि ? सेट्ठि वियारेइ-- मुणि असच्चु कहेइ । पुणु पुठ्ठ-कत्थ वि गेहि बालाए सह वट्टा कया कि ? मुणि कहेइ ---- 'सा बाला अईव कुसला, ताए महु वि परिक्खा कया ।' ताए हउं वृत्त -- समया विणा कहं निग्गउ सि ? मइं उत्तर दिण्णु "समयहो-मरणसमयहो नाण नत्थि, तेण पुत्ववये निग्गउ म्हि ।" मई वि परिक्खेवि सव्वाहु ससुराइ वासाइं पुट्ठाई। ताए सम्म कहियाई । सेट्ठि पुच्छइ- ससुरु न जाउ इस ताए किं कहिय ? मुणि उत्तु -- सा चि पुच्छिज्जउ, जो "विउसीए ताए जहत्थु मावु णाइज्जइ' ।
186 )
। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
इस प्रकार बहू और साधु की वार्ता भीतर बैठे हुए ससुर के द्वारा सुनी गई । भिक्षा को प्राप्त साधु के चले जाने पर वह अत्यन्त क्रोध से व्याकुल हुआ, क्योंकि पुत्रवधू मुझको लक्ष्य करके कहती है कि (मैं) उत्पन्न नहीं हुआ । वह रूठ गया, (और) पुत्र को कहने के लिए दुकान पर गया । जाते हुए ससुर को वह कहती है-हे ससुर ! आप भोजन करके जाएं। ससुर कहता है यदि मैं उत्पन्न नहीं हुआ हूं, तो भोजन कैसे चबाऊँगा-खाऊँगा। इस (बात) को कहकर दुकान पर गया । पुत्र को सब वार्ता कहता है-तेरी पत्नी दुराचारिणी है और अशिष्ट बोलनेवाली है, इसलिए (तुम) उसको घर से निकालो।
वह पिता के साथ घर में आया । (वह) बहू को पूछता है (तुम्हारे द्वारा) माता-पिता का अपमान क्यों किया गया ? साधु के साथ वार्ता में असत्य उत्तर क्यों दिए गए ? उसके द्वारा कहा गया - तुम्हीं मुनि को पूछो, वह सब कह देंगे । ससुर ने उपासरे में जाकर अपमानसहित मुनि को पूछा हे मुनि ! आज मेरे घर में भिक्षा के लिए तुम क्यों आये ? मुनि ने कहा - तुम्हारे घर को नहीं जानता हूं, तुम कहां रहते हो? सेठ विचारता है कि मुनि असत्य कहता है । फिर पूछा गया क्या किसी भी घर में बाला के साथ वार्ता की गई ? मुनि ने कहा- वह बाला अत्यन्त कुशल है। उसके द्वारा मेरी भी परीक्षा की गई। उसके द्वारा मैं कहा गया . समय के बिना तुम कैसे निकले हो ? मेरे द्वारा उत्तर दिया गया --- समय का-मरण समय का ज्ञान नहीं है, इसलिए आयु के पूर्व में ही निकल गया हूं। मेरे द्वारा भी परीक्षा के लिए ससुर आदि सभी के वर्ष (पायु) पूछे गए (तो) उसके द्वारा (बाला के द्वारा) उचित प्रकार से उत्तर कहे गये। सेठ ने पूछा --ससुर उत्पन्न नहीं हुग्रा, यह उसके द्वारा क्यों कहा गया ? मुनि के द्वारा कहा गया- वह ही पूछी जाए, क्योंकि उस विदुषी के द्वारा यथार्थ भाव जाने जाते (जाने गये) हैं ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
181
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससुरु गेहु जाइ पुत्तवहु पुच्छई - 'तई मुणि पुरो कि एव वृत्त- महु ससुरु जाउ वि न ।' ताए उत्त -- 'हे ससुर, धम्महीण मणुसहो मारणव भवु पत्तु वि अपत्तु एव, जो सद्धम्म चिचहि सहलु भवु न कउ सो मणुसभव निष्फल चिय । तो तउ जीवणु पि धम्महीणु सव्वु गउ । तेण मई कहि महु ससुरहो उत्पत्ति एव न ।' एवं सच्चि ठाणि तुट्टु धम्माभिमुहु जाउ । पुणु पुटठु - पइ सासू छम्मासा कहँ कहिया ? लाए उत्त - सासू पुच्छह । सेट्ठिएं सा पुट्ठा। ताए वि कहिश्र - पुत्तवहू वयणु सच्चु, जम्रो महु सव धम्मपत्तीहि छमासा एव जाया, जो इम्रो छमासाहू पुब्वं वत्थ वि मरण संगे ह गया । तत्थ थीहु विविहगुणदोसवट्टा जाया ।
एगाए बुड्ढाए उत्त नारीहु मज्भे इमाहे पुत्तवहू सेट्ठा | जोव्वणवए वि सासूभत्तिपरा धम्मकज्जे सा एव अपमता, गिहकज्जहि वि कुसला नन्ना एरिसा । इमाहे सासू निब्भगा, एरिसीए मत्तिवच्छलाए पुत्तवहूए वि धम्मकज्जि पेरिज्जमाणावि धम्मु न कुणेइ, इमु सुणेवि बहुगुणरंजिया ताहे मुहहे धम्मो पत्तो । धम्मपत्तीहि छमासा जाया, तो पुतवहुए छम्मासा कहिा, तं जुत्त 1
पुत्तु वि पुट्टू, तेण वि उत्तु —रतिहिं समय-धम्मोवएसपराए भज्जाए संसारासारदंसणें भोगविलासहं च परिणामदुहदाइत्तणे, वासाणईपूरतुल जुव्वणतणे य देहसु खणभंगुर तणे जयि धम्मु एव सारु ति उवदिट्टु । हरं सव्वष्णु-धम्माराहगो जाउ, अज्जु पंचवासा जाया । तत्र बहुए मई उद्दिस्सेवि पंचवासा कहिना त सच्चु । एव कुडूंबसु धम्मपत्ति बट्टाए विउसीहे य पुत्तबहूहे जहत्थवयणु सुगेप्पिन लच्छीदास वि पडिबुद्ध वुड्ढत्तणि विधम्मु आराहिउ सम्गइ पत्तु सपरिवारु ।
नोट - अकादमी-पद्धति से इस कथा की व्याकरणिक विश्लेषण करके प्रकादमी कार्यालय में जांचने के लिए भिजवाएं ।
188
1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससुर घर जाकर पुत्रवधु से पूछता है --तुम्हारे द्वारा मुनि के समक्ष इस प्रकार से क्यों कहा गया (कि) मेरा ससुर उत्पन्न ही नहीं (हना है) । उसके द्वारा कहा गया-हे ससुर ! धर्महीन मनुष्य का मनुष्य भव प्राप्त किया हया भी प्राप्त नहीं किया हया (अप्राप्त) ही है, क्योंकि सत् धर्म की क्रिया के द्वारा (मनुष्य) भव सफल नहीं किया गया (है) (तो) वह मनुष्य जन्म निरर्थक ही है। उस कारण से तुम्हारा सारा जीवन धमहीन ही गया, इसलिए मेरे द्वारा कहा गया- मेरे ससुर की उत्पत्ति ही नहीं है। इस प्रकार सत्य बात पर (वह) सन्तुष्ट हुया और धर्माभिमु व हुमा । फिर पूछा गया - तुम्हार द्वारा सासू की (उम्र) छः मास कसे कही गई ? उसके द्वारा उत्तर दिया गया-- सासू को पृछो । सेठ के द्वारा वह पूछी गई। उसके द्वारा भी कहा गया पुत्र की बह के वचन सत्य हैं, क्योंकि मेरी सज्ञ-धर्म की प्राप्ति में छः माह ही हुए हैं, क्योंकि इस लोक में छः मास पूर्व मैं किसी की) मृत्यु के प्रसंग में गई । वहाँ उस स्त्री (बहु) के विविध गुण-दोषों की वार्ता हुई।
_ (वहां) एक वृद्धा के द्वारा कहा गया- स्त्रियों के मध्य में इसकी पुत्रवधू श्रेष्ठ है । यौवन की अवस्या में भी वह सासू की भक्ति में लीन (तथा) धर्म-कार्यों में भी अप्रमादी है, गृहकार्यों में भी कुशल (उसके) समान दूसरी नहीं है। इसकी सासू अभागी है ऐसी भक्ति प्रेमी पुत्रवधू द्वारा धर्म कार्य में प्रेरित किए जाते हुए भी धर्म नहीं करती है । इस को सुनकर बहू के गुणों से प्रसन्न हुई (मेरे द्वारा) उसके मुख से धर्म प्राप्त किया गया । धर्म-लाभ में छः मास हुए। इसलिए पुत्रवधू के द्वारा छः मास कहे गये. वह युक्त है।
पुत्र भी पछा गया, उसके द्वारा भी कहा गया - रात्रि में सिद्धान्त और धर्म के उपदेश में लीन पत्नी के द्वारा संसार में प्रसार के दर्शन से और भोगविलास के परिणाम के दुःखदाई होने से. वर्षा नदी के जल-प्रवाह के समान यौवनावस्था के कारण और देह की क्षणभंगुरता से, जगत में धर्म ही सार (है), इस प्रकार बताया गया । मैं मर्वज्ञ के धर्म का पाराधक बना, आज पाँच वर्ष हुए । इसीलिए बहू के द्वारा मुझको लक्ष्य करके पांच वर्ष कहे गए, वह सत्य है। इस प्रकार कुटुम्ब के लिए धर्मलाभ की वार्ता से विदुषी पुत्रवधू के यथार्थ वचन को सुनकर लक्ष्मीदास मी ज्ञानी (हया) और बुढ़ापे में (उसके द्वारा) भी धर्म पाला गया। उसने सपरिवार सन्मार्ग प्राप्त किया।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 189
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
अन्वय
घत्ता
अभ्यास- 49
190 ]
करकण्डचरिउ
2.16
पुत्त पुणु उच्चकहाणी णिसुणि । ज विचित्त संपइ संपज्जइ । हिएण गीचहो संगु परिकलिवि तेरा उच्चेण समउ संगु किउ | वारणारसियर मरणोहिरामु अरविंदु णाम गराहिउ प्रत्थि । मिरम्मिसंतोसु वहंतउ एक्कहिँ दिरणम्मि पारद्धिहे गउ | सो जलरहियहिं प्रडविहिँ पडिउ, तहिँ मुक्खऐं तण्हएं विष्णडिउ । after श्रमिण विणिम्मिय ताइँ सुहयराइँ फलइँ तहो दिष्णइँ । राउतहो वणिवरहो संतुट्टउ । घरि जाइवि तहो पसाउ दिण्णउ । महंत उवयारु जाणएण तेरा वणि मंतिपयम्मि लिहियउ |
विणि वि तेय - दिण्यर - कलायर णं गुण - गणरयाहूं सीलणिहि गहिरिमाई सायर (ण) अणुराएँ तहिं वसहिं ।
2.17
ता एक्कहिँ दिणि तेण मंतीवरेण तहो रायहो णंदणु हरिवि । आहरणइँ लेविणु तुरिउ दिहिकरासु विलासिणि मंदिरासु गउ । वणिणा तर्हि गय मोल्लई जण -रायणहँ पियाई (प्रहरणई) ताहे समप्पियाइँ । पुणु तेण सरय- आगम - ससहर प्राणणी हे विलासिणी कहियउ | मईं णरवईहिं णंदणु मारिउ, इउ सयलु वि थिररईहिँ कहियउ । तं सुणिवि ताईं सहु पभणिउ, एहु कासु वि पयडु मा करेहि । एतहिँ णिवेण सुख अलहंते, तेण णयरे डिडिमु देवाविउ । जो को वि रायहो णंदणु कहइ, सो वि दविणई सहुँ मेइणि लहइ ।
धत्ता -- ता केण वि धिट्ठे तुरियएण णरणाहहो अग्गइँ भणिउ । देव तुहु सुउ मई उबलक्खिउ । सो णवलई मंतिएँ हणिउ ।
[ अपभ्रंश श्रभ्यास सौरभ
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
2.18
तं वयण सुणेविण धरणिणाहु सरलबाहु मंतिहे संतुटउ । तिहिँ फल हिँ मज्झे मइवरासु एक्कहो फलासु रिणु मई रिण रहरियउ । ईसु अवराह दोणि अज्ज वि खम । धरणिईसु खणि पसण्ण उ हुयउ । रायणेहु परियारिणवि मंतिई दिव्वदेह णिवणंदणु अप्पिउ । अइ गरेसर परममित्तु होहि । देव मइँ तुहारउ चित्तु कलिउ । वरिणवयण सुणेविण तेण णरवरेण अइप उरु पसाउ पइण्णु । जो जणु गुरुग्राण संगु वहेइ सो हियइच्छिय संपइ लहेइ । पुत्तय एह गुणसारणि उच्चकहाणी तुझु कहिय । हियई बुझ ।
घत्ता- खेय रई हिय बुद्धिएं करकंडु सयलउ कलउ जणाविउ (जाणाविउ)।
इय रिणत्तिएँ जो णरु ववहरइ सो णिच्छिउ भूवल उ मुंज इ ।
नोट-यहाँ 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 12 का अन्वयं करके बताया गया है। इसी
पद्धति से 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 1, 5, 9, 10, 13, 14, 17 का अन्वय करके जांचने के लिए अकादमी कार्यालय में भिजनायें ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[
191
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-50
छंद के दो भेद माने गए हैं1. मात्रिक छंद, 2. वणिक छंद
1. मात्रिक छंद-मात्राओं की संख्या पर आधारित छंदों को 'मात्रिक छंद' कहते हैं । इनमें छेद के प्रत्येक चरण की मात्राएँ निर्धारित रहती हैं । किसी वर्ण के उच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर दो प्रकार की मात्राएं मानी गई हैं- ह्रस्व और दीर्घ । ह्रस्व (लघु) वर्ण की एक मात्रा और दीर्घ (गुरु) वर्ण की दो मात्राएं गिनी जाती हैं
लघु (ल) (1) (ह्रस्व) गुरु (ग) (s) (दीर्घ)
मात्राएं गिनने के कुछ नियम हैं(३) सयुक्त वर्णों से पूर्व का वर्ण यदि लघु है तो वह दीर्घ गुरु माना
जाता है । जैसे—'मुच्छिय' शब्द में “च्छि' से पूर्व का 'मु' वर्ण गुरु
माना जाएगा। (ii) जो वर्ण दीर्घस्वर से संयुक्त होगा वह दीर्घ या गुरु माना जायेगा।
जैसे - रामे । यहां 'रा' और 'मे' दीर्घ वर्ण हैं । यदि मे को ह्रस्व
करना होगा तो 'मे' इस प्रकार लिखा जाएगा । (iii) अनुस्वार-युक्त ह्रस्व वर्ण भी दीर्घ/गुरु माने जाते हैं । जैस- 'वंदेप्पिणु'
में 'व' ह्रस्व वर्ण है किन्तु इस पर अनुस्वार होने से यह गुरु (5) माना
जाएगा। (iv) चरण के अन्तवाला ह्रस्व वर्ण भी यदि आवश्यक हो तो दीर्घ/गुरु
मान लिया जाता है और यदि गुरु मानने की आवश्यकता न हो तो वह ह्रस्व या दीर्घ जैसा भी हो बना रहेगा।
____192 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
(v) चन्द्रबिन्दु का मात्रा की गिनती पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । जैसे
देवहुँ । 'हुँ' पर चन्द्रबिन्दु का कोई प्रभाव नहीं है ।
2. परिणक छन्द-जिस प्रकार मात्रिक छन्दों में मात्रामों की गिनती होती है उसी प्रकार वर्णिक छन्दों में वर्गों की गणना की जाती है। वर्णों की गणना के लिए गणों का विधान महत्वपूर्ण है । प्रत्येक गण तीन मात्रामों का समूह होता है । गण आठ हैं जिन्हें नीचे मात्राओं सहित दर्शाया गया है
यगण-155 मगरण-555 तगण -35। रगरण-5।। जगरणभगरण-।। नगण-।।।
सगरण-1।। इस प्रकार वणिक छन्दों में वर्ण-संख्या और गणयोजना निश्चित रहती है । यहां निम्नलिखित छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण प्रस्तुत हैंमात्रिक छन्द-1. पद्धडिया
2. सिंहावलोक 3. पादाकुलक
4. वदनक 5. दोहा
6. चन्द्रलेखा 7. प्रानन्द
8. गाहा 9. खंडयं
10. मधुमार 11. दीपक
12. करमकरभुजा 13. मदनविलास
14. जभेटिया वर्णिक छन्द-15. सोमराजी
16. स्रग्विणी 11. समानिका
18. चित्रपदा 19. भुजंगप्रयात
20. प्रमाणिका
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ।
[
193
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
मात्रिक छन्द 1. पद्धडिया छन्द
लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं व चरण के अन्त में जगण (151) होता है । उदाहरणजगण
जगण . ।। ।। 55 ।। । । ।।।।5।। ।। । । जसु केवलणाणे जगु गरिछ करयल-ग्रामलु व असेसु दिठ्ठ । जगण
जगण ।। ।। ।।। । ।
5 ।।।। ।।। । । । तहों सम्मइ जिगहों पयारविंद वंदेरिपणु तह अवर वि जिणिद ।
सुदंसरणचरिउ 1.1 11 अर्थ-जिनके केवलज्ञान में यह समस्त महान जगत हस्तामलकवत् दिखाई देता
है, ऐसे सन्मति जिनेन्द्र के चरणारविंदों तथा शेष जिनेन्द्रों की भी वन्दना करके (नयनन्दि अपने मन में विचार करने लगे)।
2. सिंहावलोक छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं
होती हैं तथा' चरण के अन्त में सगण (15) होता है । उदाहरणसगण
सगण ऽ ।।।। ।। ।।। ।। ।।5।। । ।।15 जं अहिणव-कोमल कमल-करा, बलिमण्डएँ ले वि अणङ्गसरा । । । । । । ।।।।5 ।। ।।। ।।। ।। स-विमाणु पवरण-मण-गमण-गउ, देवहुँ दारा वहु भि रणे अजउ ।1
पउम चरिउ 68.9
1. चरणान्त के 'उ' ह्रस्वस्वर को लघु होने पर भी छन्दानुरोध से दीर्घ माना गया
194 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सोरम
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ - अभिनव, सुन्दर कोमल हाथोंवाली अनंगसरा को वह विद्याधर जबर्दस्ती ले गया | पवन और मन के समान गतिवाले विमान में बैठा हुआ वह देवताओं और दानवों के लिए अजेय था ।
3. पादाकुलक छन्द
लक्षण – इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी ) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं और सर्वत्र लघु होता है ।
उदाहरण
#111 !|| ............
111
U 11
सुरणर-विसहर - वर - खयर-सरणु, कुसुम - सर - पहर-हर - समवसरणु ।
#1 || ! ||| 1 111 111
|| | 11 | | | | | | 111
पइसरइ णिवइ पहु सरइ थुणई, बहु-भव - भवं- कयरय - पडलु धुणइ ।
- गायकुमारचरिउ 1.11.1 अर्थ - विपुलाचल पर्वत पर पहुंचकर राजा ने तीर्थंकर के उस समोसरण में प्रवेश किया जहां देव, मनुष्य, नाग और विद्याधर विराजमान थे और जो कामदेव के प्रहारों से बचानेवाला था । वहां पहुंचकर राजा श्रेणिक ने महावीर प्रभु को स्मरण करते हुए उनकी स्तुति की और उसके द्वारा अपने जन्म जन्मान्तर के कर्मों की धूलि को उन्होंने झाड़ डाला ।
4. वदनक छन्द
-
लक्षण – इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं और चरण के ग्रन्त में दो मात्राएं लघु ( 11 ) होती हैं । उदाहरण -
लघु लघु
लघु-लघु
S S 111 S T S S 11 "I SS I i ऽ । । ऽ ।। रामे जणणि जं जे ग्राउच्छिय, णिरु णिच्चेयण तक्खणे मुच्छिय
IISSII
AT ।। ऽ ।। ऽ । SI 11 SI Iऽ ।। चमरुक्खेवे हिँ किय पडिवायण, दुक्खु दुक्खु पुणु जाय सचेयण |
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
}
*
- पउमचरिउ 23.4
[ 195
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-राम ने जब मां से इस प्रकार पूछा तो वह तत्काल मूच्छित हो गयी।
चमर धारण करनेवाली स्त्रियों ने हवा की। बड़ी कठिनाई से वह सचेतन हुई।
5. दोहा छन्द लक्षण-~- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। पहले व तीसरे में तेरह-तेरह
मात्राएं होती हैं और दूसरे व चौथे चरण में ग्यारह-ग्यारह मात्राएं होती हैं।
।। ।। ।।।।।। ।।। । । । जाणमि वणि गुणगणसहिउ, परजुवईहिं विरत्तु । ।। ।। ।। ।।।। ।। । । । पर महु अंबुले हियवडउ, गउ चितेइ परत्तु ।
-सुदंसगचरिउ 8.6.1-2 अर्थ-मैं जानती हूं कि वह वणिग्वर बड़ा गुणवान है और पराई युवतियों से
विरक्त है । किन्तु हे माता ! मेरा हृदय और कहीं लगता ही नहीं ।
6. चन्द्रलेखा छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं
व अन्तर्यमका की योजना होती है । उदाहरण।।।।5।। ।। 51555।। वलु वयणेण तेण, सहुँ साहणेण, संचल्लिउ ।
।।5। । ।।।।। । 5 ।। णांइ महासमुद्रु, जलयर रउद्दु, उत्थल्लिउ ।।
- पउमचरिउ 40.16.2 अर्थ इन शब्दों से राम सेना के साथ यहां-वहां इस प्रकार चले जैसे रौद्र
__ महासमुद्र ही उछल पड़ा हो ।
1. चरण के बीच में तुक मिलने को अन्तर्यमक कहा गया है । जैसे-प्रथम चरण में
तेण व साहणेण ।
___196 ]
। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
7. मानन्द छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में पांच मात्राएं
होती हैं और चरण के अन्त में लघु (1) पाता है। उदाहरण
मा रमसु, परिहरसु ।
। । । इय छंदु आणंदु।
-सुदंसणचरिउ 4.12 मर्थ इससे रमण मत करो, इसे त्याग दो। यह आनन्द छन्द है ।
8. गाहा छंद लक्षण-इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सत्ताइस मात्राएं होती
हैं । प्रथम व तृतीय यतियां शब्द के बीच में पाती हैं। उदाहरण - ।।5।।। । ।। ।।55 ।।। मयरद्धयनच्चु नडं,तिउ जंबुकुमार भेल्लियउ । ।।।। । । ।।।।।।। ss ।।। बहुवाउ ताउ णं दि,ट्ठउ कट्ठमयउ वाउल्लियउ ।।
-जंबूसामिचरिउ 9.1.5 अर्थ मकरध्वज का नाच नाचती हुई उन वधुनों को जंबुकुमार ने अपने सम्पर्क
में लायी हुई काठ की पुतलियों के समान देखा ।
१. खंडयं छंद
लक्षण -- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में तेरह मात्राएं . . होती हैं और चरण के अन्त में रगण (15) रहता है।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 197
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणरगण
रगण ।। ।। ।। । ।।। । ।। 5 । पह तउ दंसणकारणं, लहिवि वियप्पई में मणं । रगण
रगण ।। । । । ।।।। ।। । । । सहुँ तुम्हेहिं समुच्चयं, चिरवि कहि मि परिच्चयं ।
----जंबूसामिचरिउ 8.2 अर्थ---प्रभु आपके दर्शनों का हेतु प्राप्त कर मेरे मन में ऐसा विकल्प हुआ है कि
आपके साथ कहीं पूर्व भव में विशिष्ट (प्रगाढ़) परिचय रहा ।
10. मधुभार छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में 8 मात्राएं
होती हैं। उदाहरण।।।। ।। । । । ।।। तिहुवण-रम्महुँ, तो वि ण धम्महुँ । 5 ।। ।। । । ।। लग्गहिँ मुढिउ, पाव परूढिउ ।
-सुदंसणचरिउ 6.15 अर्थ इतने पर भी वे मूढ पाप में फंसी हुई, त्रिभुवन रम्य धर्म में मन नहीं
लगाती ।
11. दीपक छंद लक्षण - इस में चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में 10 मात्राएं
होती हैं । चरण के अन्त में लघु (1) होता है । उदाहरणऽ ।।। ।। ।।।।। 55। ता हयई तुराई, भुवणयल-पूराई । SS SS SS SS बज्जति वज्जाई, सज्जति सेण्णाई ।
-करकंडचरिउ 3.15
198 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-तब नगाड़ों पर चोट पड़ी जिससे भुवनतल पूरित हो गया । बाजे बज रहे
हैं और सैन्य सज रहे हैं ।
12.
करमकरभुजा छंद लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में 8 मात्राएं होती
हैं व चरण के अन्त में लघु-गुरु (15) होते हैं । उदाहरणS SIIS SSIIS भीसावणिया, संतावणिया । SSIIS SSIIS विद्दावणिया, सम्मोहणिया ।
-- णायकुमारचरिउ 6.6 अर्थ-भयोत्पादिका, सन्तापिका, विद्रावणि का सम्मोहनिका ।
___13. मदनविलास छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में 8 मात्राएँ होती
हैं व चरण के अन्त में गुरु-गुरु (55) होते हैं। उदाहरण
।। sssss चंदण -लितं, पंडुरगत्तं ।
। । ।।।। 55 खंधे तिसुत्तं, कयसिर छत्तं ।
-सुदंसणचरिउ 4.1 अर्थ-(कपिल) चन्दन से लिप्त, गौरवर्ण, कंधे पर त्रिसूत्र (जनेऊ) तथा सिर
पर छत्र धारण किए (था)।
।
___14 जम्भेटिया छंद . लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में 9 मात्राएं होती
हैं व चरण के अन्त में रगण (15) प्राता है।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
199
i
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरणरगण
रगण SIIS IS SIIS IS सेसवलीलिया, कीलणसीलिया । रगण
रगण Iis SIS SI I SIS पडुणा दाविया, केण ण माविया ।
-महापुराण, 4.4.1 प्रर्थ-शैशव की क्रीड़ाशील जो लीलाएँ प्रभु ने दिखायीं वे किसे अच्छी नहीं
लगीं?
वरिणक छंद
____ 15. सोमराजी छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में 6 वर्ण व दो
यगण (155) होते हैं । उदाहरण
यगण यगण यगण यगण IS SISS IS SI SS रिणवो सोयभिण्णो, थिमो जा विसण्णो । 1 2 3 4 5 6 1 2 3 4 5 6
यगण यगण यगण यगण ISS i SS SS SS सुरो को वि घण्णो, हाम्रो पवण्णो । 1 2 3 4 5 6 1 2 3 4 56
-करकंडचरिउ 4.16 अर्थ-इस प्रकार शोक से विह्वल विषादयुक्त हुमा राजा जब वहां बैठा था,
तभी कोई एक पुण्यवान देव माकाश से वहां मा उतरा ।
200 ]
200
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
16. स्रग्विणी छन्द
लक्षण -- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी ) । प्रत्येक चरण में चार रंगण (sis ) और बारह वर्ण होते हैं ।
उदाहरण
रगण रगण रगण रगण
S I SSI SSI
SSIS
के वि
रोमंच - कंचेण
संजुत्ता,
1
2
345 678
9101112
रगण रगण रगण रगण
S 1 SSI SSI SSIS के वि सण्णाह - संबद्ध - संगत्तया 3 4 5 6 7 8 9101112
1 2
रगण
रगण रगण
S 1
SSI SS IS SIS
के वि संगाम- भूमीरसे रत्तया,
2
345 6 7 8 9 101112
रगण
रगण
SIS s 1 सग्गिणी - छद
मग्गेण
1 2 3 4 5 678 9101112
रगण
रगण रगण
ss 1 SSIS
1
- करकंडचरिउ 3.14
अर्थ - कितने ही रोमांचरूपी कंचुक से संयुक्त थे और कितने ही अपने गात्र पर सन्नाह बांधकर तैयार थे । कितने ही संग्रामभूमिरस से रत होकर स्वर्ग पाने के इच्छित मार्ग से आ पहुंचे । इस कडवक की रचना स्रग्विणी छंद में हुई है।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
संपत्तया 11
17. समानिका छंद
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी ) । प्रत्येक चरण में क्रमश: रगण ( SIS), जगण ( 15 ), गुरु (S), लघु (1) आते हैं व आठ वर्ण होते हैं ।
[ 201
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरण -
रगण जगण गुल. रगण जगण गु.ल. SISI SI S1 Sis IS! si मे कणिटठ भाइ एक्कू, मंडलं तरम्मि थक्कु । 1 2 3 4 5 6 7 8 123 45 6 7 8 रगण जगण गुल. रगण जगण ग.ल SIS! SI SI SISISI SI वच्छ रेसु आउ अज्जु, जाणिऊण तुज्झ कज्जु ।। 1234 5 6 7 8 1 2 34 5 6 78
- जंबूसामिचरिउ 9.17 प्रथं-मेरा एक कनिष्ठ भाई जो तभी से देशान्तर में रहता था, वह अाज तेरा
विवाह कार्य जानकर (आया है)।
___ 18. चित्रपदा छंद लक्षण-- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में दो भगण
(।।) और दो गुरु (ss) होते हैं व आठ वर्ण होते हैं ।
उदाहरणभगण भगण गु.गु. मगण भगण गु.गु. ॥ ॥ 555
॥ 55 खेयरु हयउ कीरो, पव्वयमत्थय-धीरो । 123456 7 8 123456 7 8 भगण मगण गुगु, भगण मगण गु.गु. SIISI 155 SII SI SS भोयसएहिं णमग्गो, कंतहे णेहई लग्गो । 12345678 123 4 56 7 8
- करकडचरिउ83 1-2 अर्थ-वह खैबर एक पर्वत के मस्तक (शिखर) पर धर्यवान सुपा हुआ। वह
प्रकाश में उड़ता हुआ अपनी कान्ता के स्नेह में लगकर सैकड़ों भोगों सहित (सुख से रहता हुआ दीर्घकाल तक भोग भोगता रहा) ।
_202 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
___19. भुजंगप्रयात छंद लक्षण -- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में 12 वर्ण और
चार यगण (155) आते हैं ।
उदाहरण
यगण यगण यगण यगण IS S SS 15 si 5s भडो को वि दिदो परिच्छिन्न गत्तो, 12 3 4 56 78 9 10 1112 यगरण यगण यगण यगण ISS SS SS SS सदन्ती समन्ती सचिन्धो सघत्तो । 123456789 101112 यगण यगण यगण यगण ।ऽ । । । भडो को वि वावल्ल-भल्लेहिं भिण्णो, 12 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 यगण यगण यगण यगण IS S i SSIS SI S S भडो को वि कप्पदुमो जेम छिण्णो । 12 3 4 5 67 8 910 11 12
-पउमचरिउ 40.3.2-3 अर्थ-कोई सुभट अपने हाथी, मन्त्री, चिह्न और छत्र के साथ छिन्न-शरीर
दिखाई दिया। कोई योद्धा बावल्ल और भालों से विदीर्ण हो गया। कोई भट कल्पवृक्ष की तरह छिन्न हो गया।
20. प्रमाणिका छंद लक्षण -- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में आठ वर्ण
क्रमश: जगण (151), रगण (s । s), लघु (1), गुरु (5) पाते हैं।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
203
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरण
जगण रगण ल.गु. जगण रगण ल.गु. ।।5। । । । । । पहन्तरे भयङ्करो, झसाल-छिण्ण- कक्करो । 1234 5678 1 2 3 4 5 6 78 जगण रगण ल.गु. जगण रगण ल.गु. Isi si sis ISIS ISIS वलोव्व सिङ्ग-दीहरो, रिणयच्छिमो महीहरो । 123 4 5 678 12 3 4 5678
-पउमचरिउ 32.3
अर्थ-पथ के भीतर उन्होंने भयंकर झसालों से छिन्न और कठोर महीधर देखा
जो बैल के समान शृगों (सींगों और शिखरों) से दीर्घ था।
204 1
। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क) निम्नलिखित पद्यों के मात्राएं लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों के लक्षण व नाम
बताइए -
( 1 ) तो पेल्लियं झत्ति जाणेण जाणं, गइदेण अण्ण गइंदं सदाणं । तुरंगेण मग्गम्मि तुंगं तुरंग भुयंगं भुयंगेरण वेसासु रगं ।
जं. सा. च 4.21.13-14 अर्थ - - तब झटपट यान से यान भिड़ गया व हाथी से दूसरा मदमत्त हाथी । मार्ग में तुरंग से ऊँचा (बलिष्ठ तुरंग ) वेश्याओंों में आसक्त, जार से जार ।
(2) विद्यति जोह जलहरसरिसा वावल्लभल्ल कष्णिय वरिसा | फारक्क परोप्परु वडिया, कोंताउह कोंतकरहिं भिडिया ।
जं. साच. 6.6.7-8 अर्थ योद्धा लोग जलधरों के समान बल्लम, भालों व बाणों की वर्षा करते हुए (परस्पर को ) बींध रहे थे। फारक्क (शस्त्र को) धारण करनेवाले एक-दूसरे पर टूट पड़े और कुंतवाले कुंत धारणकरनेवाले प्रतिपक्षियों से भिड़ पड़े ।
( 3 ) सरलं गुलिउब्भिवि पिएहिं पयडेइ व रिद्धि कुबिएहिं । उहि विसिय सहहिं गाम सग्ग व अवइण्ण विचित्तधाम |
अर्थ- - सरल अंगुलियों को उठा-उठाकर बोलनेवाले अपने कुटुम्बी अर्थात् किसान गृहस्थों के द्वारा जो अपनी ऋद्धि-समृद्धि को प्रकट करता है । देवकुलों से विभूषित वहां के ग्राम ऐसे शोभायमान हैं मानो विचित्र भवनोंवाले स्वर्ग अवतीर्ण हो गए हों ।
( 4 ) इय संसारे जंपियं निसुणेवि जगणी जंपियं । दुक्ख नियामिणा मरिणय जंबूसामिणा ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ |
- ज. सा. च 1.87-8
अर्थ - इस संसार में जो प्रिय है, जननी के वैसे गतियों के दुःख का नियमन करनेवाले जंबूस्वामी ने कहा
- जं. सा. च 88.1-2 कथन को सुनकर चारों
.... 1
!
205
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
(5) परियणहिहयहरणु गुणगणरिणहि दह छहसयलु लहु य अविचलदिहि । णहमरिण कि रणअरुण कयरणहयलु भुयबल-तुलिय-सवल-दिस गय उलु ।
-सु. च. 1.51-8 अर्थ-वह अपने परिजनों के हृदय को हरण करने वाला तथा गुणों के
समूह का निधान था। वह षोडश कलाओं से संयुक्त तथा सहज ही अविचल धैर्यधारण करता था। वह श्रेणिक राजा अपने नखरूपी मरिणयों की किरणों से नमस्थल को लाल करता था और अपने बाहुबल से सबल दिग्गजों के समूह को तोलता था ।
(6) के ण णिव्वाण सेलो समुच्चालियो, केण मूढेण कालाणलो जालियो । को गिरु भेइ चंडंसुणो संदणं, को विमाणं पि एवं मणाणंदणं ।।
-सु. च. (11.14.8-10) अर्थ-किसने सुमेरु पर्वत को चलायमान किया है ? किस मुर्ख ने काला.
नल को प्रज्ज्वलित किया है ? कौन ऐसा है जो सूर्य के रथ को
रोके ? और कौन है वह जो इस मनानन्ददायी विमान को रोके ? (7) गुण जुत्त भो मित्त । जाईहिं पयईहिँ ।
-सु. च. 4.12.1-2 अर्थ-हे गुणवान मित्र, उक्त प्रकृतियों, सत्वों ............ । (8) पहुत्तो अणंतो पुलिदेरण जित्तो । भएणं पणट्ठो णिो नाम रुट्ठो ।।
-सु. च. 10.5.6-7 अर्थ-अनंत सेनापति वहां पहुंचा। किन्तु पुलिन्द ने उसे जीत डाला ।
अनंत भयभीत होकर माग पाया तब राजा रुष्ट हुआ । (9) देउल देउ वि सत्थु गुरु, तित्थु वि वेउ वि कव्वु । वच्छु जु दीसइ कुसुमियउ, इंधणु होसइ सव्वु ।।
-परमात्मप्रकाश, 130 अर्थ-देवल (देवकुल/जिनालय), देव (जिनदेव) भी शास्त्र, गुरु, तीर्थ भी,
वेद भी, काव्य, वृक्ष जो कुसुमित दिखायी पड़ता है वह सब ईंधन होगा।
206
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
(10) दिण्णानन्द-भेरि, पडिवक्ख खेरि खरवज्जिय । णं मयरहर-वेल, कल्लोलवोलं, गलगज्जिय ।।
पउमचरिउ 40 16.3 अर्थ-शत्रु को क्षोभ उत्पन्न करने वाली प्रानन्दभेरी बजा दी गयी मानो
लहरों के समूहवाली समुद्र की बेला ही गरज उठी हो ।
(ख) निम्नलिखित पद्यों के मात्रा लगाकर इनमें प्रयुक्त छंदों के लक्षण एवं नाम
बताइए
(1) उवयागउ भावसरूवें मुंजइ कम्मासऍण विणु । संसाराभावहो कारणु भाउ जि छड्डिय परदविणु ।।।
-जं सा च. 9.1.18-19 अर्थ-- ज्ञानी इस परिस्थिति को उदयागत भावों (कर्मों) के अनुसार
(नवीन) कर्मास्रव के बिना, परद्रव्य (में ग्रासक्ति) को छोड़कर भोगता है, और यही भाव (विवेक) संसाराभाव अर्थात् मोक्ष का कारण है।
(2) ता तहिं मंडवे थक्कयं दि8 सेट्ठिचउक्कयं । तोरणदारपराइया तेहिं मि ते वि विहाइया ।।
-जं. सा. च. 8.9.1-2 अर्थ - तब (इन दोनों पुरुषों ने वहां जाकर) मंडप में बैठे हुए चारों
श्रेष्ठियों को देखा और तोरणद्वार पार करते ही वे दोनों भी उन श्रेष्ठियों के द्वारा देखे गए।
(3) पई विणु को हय गयहुँ चडेसइ, पद्दविणु को झिन्दुऍण रमेसइ । पई विणु को पर-वलु भजेसह, पईंविण को मई साहारेसइ ।।
-पउमचरिउ 23.4.8, 10 अर्थ - तुम्हारे बिना अश्व और गज पर कौन चढ़ेगा ? तुम्हारे बिना कौन
गेंद से खेलेगा ? तुम्हारे बिना कौन शत्रु-सेना का नाश करेगा ? तुम्हारे बिना कौम मुझे सहारा देगा ?
अपभ्रंशं अभ्यास सौरभ ।
!
207
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
208
(4) कहि जि दिट्ठ छारया, लवन्त मत्त मोरया ।
कहि जि सीह - गण्डया, धुणन्त पुच्छ दण्डया ||
(5) उम्मोहणिया सखोहणिया ।
अक्खोहणिया उत्तारणिया ।
अर्थ - कहीं पर भालू दिखायी दे रहा थे और कहीं पर बोलते हुए मस्त मोर । कहीं पर अपने पूंछ- रूपी दण्डों को धुनते हुए सिंह और गंडे थे ।
( 6 ) नंदणो मुणेवि माय कारणेण केण प्राय । आनमसि पयाइँ पुच्छइ त्ति अम्मि काइँ ।
अर्थ - उम्मोहणिका, संक्षोमणिका, ग्रक्षोभणिका, उत्तरणिका ।
1
---
(7) कुंटिउ मंटिड मोट्टिउ छोट्टिउ ।
बहिरिउ धि
दुग्गंधिउ ॥
- ज. सा च. 9.17.5-6
अर्थ किसी कारण से मां को आयी जानकर पुत्र ने मां के पैरों को नमस्कार करके पूछा - मां क्या बात है ?
( 8 ) अच्छइ जाव सुहेणं मुंजइ भोय चिरेणं । ताव सधम्मु सुसीलो मत्तयकुंजरलीलो ||
- पउमचरिउ 32.3.5-6
-
-गायकुमारचरिउ 6 6.11-12
- सु च 6 159-10 अर्थ वे ठूंठी, लंगडी, मोटी, छोटी बहरी, ग्रंधी प्रतिदुर्गन्धी होती हैं ।
( 9 ) ता अमियवेएण अमरेण हूएण 1 थियएण सग्गमि चितियउ हिययम्मि ||
- करकण्डचरिउ 8.3.3-4
अर्थ- सुख से रहता हुआ दीर्घकाल तक भोग भोगता रहा । तब एक, धर्मवान, सुशील, मत्व कुंजर के समान लीला करता हुआ 1
CWAC
- करकण्डचरिउ 5.11.1-2
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
S
श्रर्थ तव जो श्रमितवेग देव हुआ था उसने स्वर्ग में स्थित होते हुए हृदय में चिन्ता की ।
(10) सयलु वि जणु उम्माहिज्जन्तउ खणु वि ण थक्कइ णामु लयन्तउ । उब्बेलिज्जइ गिज्जइ लक्खणु मुरव - वज्जे वाइज्जइ लक्खणु 1
- पउमचरिउ 24.1.1-2
अर्थ - समस्त जन उत्पीड़ित होता हुआ, नाम लेता हुआ एक क्षण भी नहीं थकता | लक्खण (लक्ष्मण) को उछाला जाता, गाया जाता, मृदंग वाद्य में बजाया जाता ।
(ग) निम्नलिखित पद्यों के मात्राएं लगाकर इनमें प्रयुक्त छंदों के नाम एवं लक्षण
बताइए
(1) रिउमारणिया णिद्दारणिया । महिदारणिया णहचारणिया ।
अर्थ - रिपुमारणिका, निर्दारणिका, महिदारणिका, णभचारणिका ।
(2) तं जो घोट्टइ सो गरु लोट्टइ ।
गायइ णच्चइ सुयणई दिइ ।
- णायकुमारचरिउ 6.6.14-15
- सुदंसणचरिउ 6.2.5-6 अर्थ - इसे जो पीता है, वह मनुष्य (उन्मत्त होकर) लोटता है, गाता है, नाचता है, सज्जनों की निन्दा करता है ।
( 3 ) जसु रूउ नियंतउ सहसणेत्तु हुउ विभियमणु णउ तित्ति पत्तु । जसु चरणं गुट्ठे सेलराइ टलटलियउ चिरजम्माहिसेइ ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
अर्थ -- जिनके रूप को देखते हुए इन्द्र विस्मित मन हो गया और तृप्ति को प्राप्त न हुआ । जिनके जन्माभिषेक के समय चरणांगुष्ठ से शैलराज सुमेरु भी चलायमान हो गया ।
- सुदंसणचरिउ 1.1.5-6
[ 209
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
(4) माणंदरूउ मणजोयहाँ जइ तो रमणिजोउ पवरु । विणु मोक्खें सोक्खघव,क्कउ पच्चक्खु जि पावेइ णरु ।
-जंबूसामिचरिउ 9.2.12-13 अर्थ-यदि मनोयोग (अर्थात् चित्तवृत्तियों का निरोध व ध्यानसमाधि)
का स्वरूप प्रानंदमय है तो उससे श्रेष्ठ तो रमण योग हैं जिससे
पुरुष मोक्ष के बिना ही प्रत्यक्ष सुख की अनुभूति पा लेता है । (5) ता कुलकारिणा णायवियारिणा । सुहहलसाहिणा भणियं णाहिणा ।
-महापुराण 4.8.1-2 अर्थ-तब न्याय का विचार करनेवाले शुभफल के वृक्ष कुलकर स्वामी
(नाभिराज) ने कहा ।
(6) कज्जलसामलो उडुदसणुज्जलो । पत्तउ भीयरो तमरयणीयरो ।
-महापुराण 4.16.1-2 अर्थ-तब काजल की तरह श्याम, नक्षत्ररूपी दांतों से उज्ज्वल भयंकर
तमरूपी निशाचर प्राप्त हुआ।
(7) गुणाणं णिवासो दुहाणं विणासो । विरायं हणतो सरायं जणंतो ।
--करकण्ड चरिउ 4 16 3-4 अर्थ-वह गुणों का निवास और दुःखों का विनाश था एवं विराग का
हन्ता और सराग का जनक ।
(8) मंति चित्तस्स प्रच्चंतु सो भाविप्रो, सूरतावेण वाएण णे पाविप्रो । भूमिगेहम्मि जा बद्धो अच्छए, सग्गिणीछंदकीरो वि तं पेच्छए ।
-करकण्डचरिउ 8.2.7-8 अर्थ-मंत्री के चित्त को वह अत्यन्त माया । उसके तेज को सूर्यताप तथा
वेग को वायु भी नहीं पाते थे। जब वह भूमिगृह (घुड़साल)में बांधा हुआ रहता था तब एक सुपा उसे स्वच्छन्द भाव से देखा करता था।
210 ]
। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
(9) कहि जि भीमकन्दरो भरन्त-णीर- णिज्झरो । कहि जि रक्तचन्दणो तमाल-तालल-वन्दणो 1
अर्थ - जो कहीं पर भीम गुफाओंवाला और कहीं पर भरते हुए जल से युक्त निर्झरवाला था । कहीं पर रक्त चंदन, तमाल, ताल और पीपल के वृक्ष थे ।
(10) पीवरदीहरबाहो सुंदरु गोहण णाहो ।
तेत्थ वर्णम्मि पवण्णो चेट्ठइ जाव णिसण्णो ।
- करकण्डचरिउ 8.3.5-6
अर्थ - प्रबल और दीर्घ भुजाओं से युक्त, एक सुन्दर गोधननाथ (ग्वाला ) उस वन में आया वह जब वहां बैठा हुआ था ।
(घ) निम्नलिखित पद्यों के मात्राएं लगाकर इनमें प्रयुक्त छंदों के लक्षण एवं नाम
बताइए --
- पउमचरिउ 32.3.3-4
(1 ) तहों सुह लक्खण भायणा गुरुदेवच्चण कयमरणा । सिगारासयसिप्पिणी पढमकलत्तं
रुप्पिणी 1
अर्थ - उसकी शुभलक्षणों की भाजन, गुरु व देवता के अर्चन में मन लगानेवाली तथा शृंगार के आशय की शिल्पिनी अर्थात् श्रृंगार के मर्म को समझने में दक्ष ऐसी रुक्मिणी नाम की प्रधान रानी है ।
( 2 ) णव णीलुप्पल गयण जुय सोएं णिरु संतत्त । पवनपुत्तं पई विरहियउ कवणु पराणइ वत्त ।
- जंबूसा मिचरिउ 8.4.1-2
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
अर्थ - यह देखकर नवनील कमल की तरह नेत्रवाली शोक से संतप्त सीतादेवी अपने मन में सोचने लगी कि पवनपुत्र तुम्हे छोड़कर अब कौन मेरी कुशल वार्ता ले जा सकता है ?
- पउमचरिउ 54.1.3-4
| 211
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
(3) भवयत्तु जेठ्ठ तुहुँ पवरभुप्रो लहुवारउ तहिं भवएउ हो । तवचरणु करिवि पाउसि खइए उप्पण मरेवि सग्गे तइए ।
-जंबूसामिचरिउ 3.5.7-8 अर्थ-तू जेठा भाई भवदत्त था और तेरा छोटा भाई उत्तम भुजाओंवाला
भवदेव था । तपश्चरण करके आयुष्य क्षय होने पर मरकर तीसरे स्वर्ग में उत्पन्न हुए।
९
.
(4) तं सुणिवि तहों वयणु मुणि भणइ हयमयणु । तहों कहइ वरधम्मु जं करइ सुहजम्मु ।
-करकण्डचरिउ 9.20.1-2 अर्थ- करकण्ड का यह वचन सुनकर कामविजयी मुनि बोले और उन्हें
ऐसा उत्तम धर्म समझाने लगे जिससे जन्म सफल हो ।
(5) जय थियपरिमियणहकुडिलचिहुर जय पयरणयजणवयणिहयविहुर । जय समय समयमयतिमिरमिहिर जय सुरगिरिथिर मयरहरगहिर ।
-णायकुमारचरिउ 1.11 3-4 अर्थ-जिनके नख और कुटिल केश स्थित और परिमित हैं ऐसे हे
भगवान आपकी जय हो । जय हो आपकी जो चरणों में नमस्कार करनेवाले जन-समूह की विपत्तियों का अपहरण करते हैं ।
(6) सा वि जोइया णिवेण, णाणसायरं गएरण । तम्मि दिठ्ठ हेमकंतु अंगुलीउ णामवंतु ।
- करकण्डचरिउ 1.7.5-6 अर्थ- तब ज्ञान के सागर तक पहुंचे हुए उस राजा ने उस पिटारी को
जोहा (ध्यान से देखा) उसमें देखा कि स्वर्णमयी अंगुली की मोहर लगी है जिस पर नाम भी लिखा है।
(7) अइचडुलु
गडयडइ
घणवडलु । णं पडइ ।
~ सुदंसणचरिउ 11.22 5-6
___212 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-उसके कारण धनपटल अत्यन्त चंचल होकर गड़गड़ाने लगा, मानो
वह पृथ्वी पर गिर रहा हो ।
(8) वियसियवत्तं हलणेत्तं । इय गुणजुत्तं दिळं मित्तं ।।
- सुदंसणचरिउ 4.1.8 अर्थ-प्रसन्नमुख और स्नेहिल नेत्रोंवाला था। इन सब गुणों से युक्त
देखकर सुदर्शन ने उसे अपना मित्र बना लिया ।
(9) चावहत्था पसत्था रणे दुद्धरा धाविया ते णरा चारुचित्ता वरा। __ के वि कोवेण धावंति कप्पंतया के वि उग्गिण्णखग्गेहि दिप्पंतया ॥
- करकंडचरिउ 3.14.5-6 अर्थ वे प्रशस्त रण में दुर्द्धर नर प्रसन्नचित्त होकर हाथों में धनुष लिये
दौड़े। कितने ही कोप से कांपते हुए और कितने ही उघाड़े हुए खड्गों से दीप्तिमान होते हुए दौड़े।
(10) उब्भिय करणयदण्ड, धुवन्त धवल, धुप्रधयवड । रसमसकसमसन्त तडतडयडन्त, कर गडघड ।
-उमचरिउ 40 16.4 अर्थ - स्वर्णदण्ड उठा लिये गए । धवल ध्वजपट उड़ने लगे । गजघटाएं
रसमसाती और कसमसाती हुई तड़तड़ करने लगी।
अपभ्रशं अभ्यास सौरभ ]
।
213
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
अलंकार
काव्य की शोभा में वृद्धि करनेवाले तत्त्व का नाम अलंकार है । काव्य को आकर्षक एवं हृदयग्राही बनाने के लिए अलंकारों की अत्यन्त श्रावश्यकता होती है । अलंकार के योग से उसका सौन्दर्य द्विगुणित हो जाता है । दूसरे शब्दों में, अलंकार रस अथवा भाव के उपकार हैं । सामान्यतः इसके दो भेद माने जाते हैं
1. शब्दालंकार और 2. अर्थालंकार
1. शब्दालंकार - शब्दालंकार वहां होते हैं जहां कथन का चमत्कार उसमें प्रयुक्त शब्दों की प्रावृत्ति पर निर्भर करता है। यदि उक्ति में से सम्बद्ध शब्दों को हटाकर उनके पर्यायवाची शब्द रख दिए जाएँ तो उसका चमत्कार ही समाप्त हो जाता है । अत: शब्द पर आधृत होने के कारण इन्हें शब्दालंकार कहा जाता है । जैसे अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि ।
2. अर्थाकार - अर्थालंकार वहां होते हैं जहां अलंकार का सौन्दर्य शब्द पर निर्भर न कर उसके अर्थ पर निर्भर करता है। किसी शब्द के स्थान पर उसके पर्यायवाची शब्द का प्रयोग कर दिए जाने पर उसका अलंकारत्व यथावत बना रहता है | अतः ऐसे अलंकार को अर्थालंकार की संज्ञा से अभिहित किया जाता है । जैसे— उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति, आदि ।
शब्दालकार
अभ्यास-51
1.
अनुप्रास अलंकार - पद और वाक्य में वर्णों की अनुप्रास का अर्थ होता है बारम्बार निकट रखना
प्रयोग ।
उदाहरण
हा हागाह सुदंसण सुंदर सोमसुह । सुण सलोण सुलक्खण जिणमइगरुह |
214 ]
प्रावृत्ति का नाम अनुप्रास है । अर्थात् वर्णों का बार-बार
- सुदंसणचरिउ 8.41.1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-हाय-हाय नाथ, सुदर्शन, सुन्दर, चन्द्रमुख, सुजन, सलोने, सलक्षण जिन
मति के पुत्र । व्याख्या-उपर्युक्त उदाहरण में 'स' वर्ण की बार-बार आवृत्ति हुई है । अत: यह
अनुप्रास का उदाहरण है।
____ 2. यमक अलंकार-जहां पद एक-से हों किन्तु उनमें अर्थ भिन्न हो वहां यमक
अलंकार होता है। उदाहरणसामिणो पियंकराए, सुंदरो पियकराए। - वड्ढमारणचरिउ 2.3.2 अर्थ-रानी प्रियंकरा से स्वामी के लिए प्रियकारी सुन्दर (पुत्र उत्पन्न हुमा)। व्याख्या-उपर्युक्त पद्यांश में 'पियंकराए' पद दो बार भिन्न-भिन्न अर्थों में पाया
है । एक स्थल पर तो उसका अर्थ प्रियकारी अर्थात् मन, वचन एवं कार्य से प्रिय करनेवाला तथा दूसरा 'पियंकराए' पद उसकी रानी का नाम 'प्रियंकरा' बतलाता है ।
3. श्लेष अलंकार- जब वाक्य में एक ही शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ निकलें
तो ऐसे अनेकार्थी शब्द में श्लेष अलंकार होता है। उदाहरणबहुपहरेहिं सूरु अत्यमियउ अहवा काई सीसए । जो वारुणिहिं रत्तु सो उग्गु वि कवणु ण कवणु णासए ।
-सुदंसणचरिउ 5.8 अर्थ-बहुप्रहरों के बाद सूर्य अस्तमित हुमा, (मानो) बहुत प्रहारों से शूरवीर
नाश को प्राप्त हुमा । अथवा क्या कहा जाय जो वारणि (पश्चिम दिशा) से रक्त हुआ, वह वारुरिण (मदिरा) में रतपुरुष के समान उम्र होकर
भी कौन-कौन नष्ट नहीं होता। व्याख्या-उपर्युक्त पद्यांश में 'पहरेहि' व 'वारुणि' शब्द में श्लेष है क्योंकि इनमें
दो अर्थ निहित हैं।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 215
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थालंकार
उपमा अलंकार-जहां उपमेय और उपमान में भेद होते हुए भी उपमेय के साथ उपमान के सादृश्य का वर्णन हो वहां उपमा अलंकार होता है अर्थात् उपमेय और उपमान में समानता ध्वनित होती है। उपमा में चार तत्वों का होना आवश्यक है1. उपमेय, 2. उपमान, 3 समान धर्म और 4. वाचक शब्द।
(क) उपमेय--वर्ण्यविषय अर्थात् 'प्रस्तुत' उपमेय कहलाता है । जैसे- 'मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है ।'– इस वाक्य में वर्ण्यविषय मुख
अतः मुख उपमेय कहा जाएगा। (ख) उपमान -- उपमान को 'अप्रस्तुत' भी कहा जाता है । मुख चन्द्रमा के
समान सुन्दर है - इस वाक्य में मुख को चन्द्रमा की उपमा दी गई है अतः चन्द्रमा उपमान कहा जाएगा।
(ग) साधारण धर्म-वह गुण या क्रिया जो उपमेय और उपमान दोनों में
विद्यमान हो । मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है-इस वाक्य में 'सुन्दर' साधारण धर्म है।
(घ) वाचक शब्द-जो शब्द उपमेय और उपमान की समानता ध्वनित करे
वह वाचक शब्द कहा जाता है। जैसे—समान, सरिस आदि । अपभ्रंश में 'व' वाचक शब्द का प्रयोग होता है।
उदाहरण - स वि धरिय एंति णारायणेण, वामद्धे गोरि व तिणयणेण ।
पउमचरिउ 31.13 4 प्रर्थ-उसे भी (शक्ति को भी) लक्ष्मण ने उसी प्रकार धारण कर लिया जिस
प्रकार शिवजी के द्वारा वामार्द्ध में पार्वती धारण की जाती है। व्याख्या-उपर्युक्त पद्यांश में लक्ष्मण द्वारा शक्ति धारण करने को शिव द्वारा
पार्वती धारण करने के समान बताया गया है अत: यहां उपमा अलंकार है।
216 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
5.
6.
7.
रूपक अलंकार - रूपक अलंकार में उपमेय पर उपमान का आरोप कर दिया जाता है अर्थात् उपमेय को ही उपमान बता दिया जाता है ।
उदाहरण
णामेण दिवद्ध सुत्तेउ, दुण्णय पण्णय गण- वेणतेउ ।
- वड्ढमाणचरिउ 1.5.1 अर्थ - उस तेजस्वी राजा का नाम नंदिवर्द्धन था जो दुर्नीतिरूपी पन्नगों के लिए गरुड़ ही था ।
व्याख्या - उपर्युक्त पद्यांश में दुर्नीति पर पन्नगों का आरोप किया गया है अतः रूपक अलंकार है ।
उत्प्रेक्षा अलंकार - जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना अर्थात् उत्कृष्ट कल्पना का वर्णन हो वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है । अपभ्रंश में इव णं, णावर आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है ।
उदाहरण
तो सोहइ उग्गमिउ णहे ससिद्धउ विमलपहालउ । णावइ लोयहं दरिसियउ णहसिरिए फलिहकच्चोलउ ।
-
- सुदंसरणचरिउ 8.17 घत्ता
अर्थ
- उस समय प्राकाश में अपनी विमलप्रभा से युक्त अर्द्धचन्द्र उदित होकर ऐसा शोभायमान हुआ मानो नभश्री ने लोगों को अपना स्फटिक कटोरा दिखलाया हो ।
व्याख्या - उपर्युक्त पद्यांश में अर्द्धचन्द्र में 'स्फटिक कटोरे' की सम्भावना के कारण व 'गावइ' वाचक शब्द के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है ।
विभावना अलंकार - जहां कारण के अस्तित्व के बिना कार्य की सिद्धि हो वहां विभावना अलंकार होता है ।
उदाहरण
विणु चावें विणु विरइय थाणें, विणु गुणेहिं विणु सर-संधाणें । विणु पहरणेहिं तो वि जज्जरियड, ण गराइ कि पि पुणब्वसु जरियउ ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
- पउमचरिउ 68.8.7-8
[ 217
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
8.
9.
अर्थ - धनुष के बिना, स्थान के बिना, डोरा और शरसन्धान के बिना, श्रस्त्र के बिना ही वह इतना आहत हो गया कि जर्जर हो उठा । दग्ध होकर पुनर्वसु कुछ भी नहीं गिन रहा था ।
व्याख्या - यहां बिना शस्त्रास्त्र व प्रहार के पुनर्वसु को आहत दिखाया गया है । अतः यहां विभावना अलंकार है ।
विरोधाभास अलंकार - वस्तुत: विरोध न रहने पर भी विरोध का आभास ही विरोधाभास है ।
उदाहरण
साव-सलोणी गोरडी नक्खी कवि विसगंठि । भडु पच्चलियो सो मरइ जासु न लग्गइ कंठि ॥
-
अर्थ- सर्व सलोनी गोरी कोई नोखी विष की गांठ है । वह मरता है जिसके कंठ में (से) वह नहीं लगती ।
व्याख्या
- उपर्युक्त पद्यांश में वस्तुतः विरोध न होते हुए भी विरोधी बात होने का श्राभास हो रहा है इसलिए यहां विरोधाभास अलंकार है ।
सन्देह श्रलंकार - जहां उपमेय में उपमान होने का सन्देह किया जाए वहां सन्देह अलंकार होता है ।
- हेमचन्द्र
भट प्रत्युत ( बल्कि )
उदाहरण -
कि तार तिलोत्तम इंदपिया, कि गायवहू इह एवि थिया । कि देववरांगण किं वदिही, किं कित्ति अमी सोहग्गरिगही ।
218 ]
सुदंसणचरिउ 4.4.1-2
अर्थ - ( मनोरमा का परिचय) यह तारा है या तिलोत्तमा या इन्द्राणी ? या कोई नागकन्या यहां ग्राकर खड़ी हो गयी है अथवा यह कोई उत्तम देवांगना है अथवा यह स्वयं घृति है या कृति या सौभाग्य की निधि ?
व्याख्या -- उपर्युक्त पद्यांश में मनोरमा को देखकर सन्देह की स्थिति बनी हुई है कि यह कौन है - तारा है, तिलोत्तमा है, इन्द्राणी है अथवा नागकन्या है ? इसलिए यहां सन्देह अलंकार है ।
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
10 भ्रांतिमान अलंकार-नितान्त सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान की भ्रांति ही
भ्रांतिमान अलंकार है। उदाहरण - कहिं वि क वि अरुणकरचरण किय पयडए । भमरगण मिलिवि तहिं गलिगमण रिणवडए ।
-सुदंसणचरिउ 7.18.5-6 अर्थ-कहीं कोई अपने लाल हाथ और पैर प्रकट करने लगी और भ्रमरगण उन्हें
कमल समझकर एकत्र हो पड़ने लगे। व्याख्या-उपर्युक्त पद्यांश में सुन्दरियों के हाथों व पैरों को देखकर भौंरे भ्रम
वश उन्हें कमल समझ रहे हैं अतः यहां भ्रांतिमान अलंकार है।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[ 219
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क) निम्नलिखित काव्यांशों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम तथा लक्षण बताते हुए
व्याख्या कीजिए1. हउँ कुलीणु अवगणियउ उच्छलंतु अकुलीण उ वृत्तउ । रुहिरण इहे घूलीरएण णं इय चितेवि अप्पउ खित्तल ॥
___- सुदंसणचरिउ 9.6 घत्ता अर्थ-मैं कुलीन (पृथ्वी में लीन) होने पर अपमानित होता हूं और ऊपर
उछलते हुए अकुलीन (पृथ्वी से संलग्न) कहलाता हूं। ऐसा सोच. कर मानो धूलिरज ने अपने को उस रुधिर की नदी में फेंक दिया।
2. णमंसेवि वीरं गइंदे णरिदो वलग्गो णवे मेहि णं पूणिमिदो। रहा जाग जंपाण भिच्चा तुरंगा पयट्टा समुद्दे चला गं तरंगा ॥
-सुदंसणचरिउ 1.6.7-8 अर्थ-वह वीर भगवान को नमस्कार करके एक गजेन्द्र पर आरूढ़ हुआ
मानो नवीन मेघ पर पूर्ण चन्द्र चमक रहा हो । उस समय रथ, यान, झपान, भृत्य और तुरंग इस प्रकार चल पड़े जैसे समुद्र में तरंगें चल रही हों।
3. जिएवरघरघंटाटणटणंतु, कामिणीकरकंकण खणखणंतु ।
-महापुराण 46.2.3 अर्थ-जिनवर के मन्दिरों के घण्टों की टनटन ध्वनि तथा कामिनियों के
कंगनों की खनखन ध्वनि हो रही है । 4. तत्थरिथ सिद्धत्थु णरणाहु सिद्धत्थु ।
-वढमाणचरिउ 9.3.1 अर्थ-(उस कुण्डपुर में) समस्त अर्थों को सिद्ध कर लेनेवाला सिद्धार्थ
नामक राजा राज करता था।
5. अवि य-प्रकत्तिए निरंतरंतरं, हुयं निरब्भमंबरवरं । अपाउसे असारयं रयं, धरायले व्व निक्खयं खयं ।।
-जंबूसामिचरिउ 4.8.12-13
220 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ – और भी-कार्तिक नहीं होने पर भी आकाश निरतिशयरूप से
अभ्रमुक्त हो गया, तथा वर्षाकाल नहीं होने पर भी असार (क्षुद्र)
रज मानो धरातल में पूर्ण उपराम को प्राप्त हो गया । 6. कि लक्खणु जु पाइय कव्वहीं, कि लक्खणु वायरण हों सव्वहो । किं लक्खणु जं छन्दे णिदिट्ठउ, किं लक्खणु जं भरहे गविट्ठउ ।
-पउमचरिउ 44.3.2-3 अर्थ-(लक्ष्मण के आगमन की सूचना पाकर सुग्रीव का प्रतिहारी से
प्रश्न) क्या वह लक्षण जो प्राकृत काव्य में होता है ? क्या वह लक्षण जो व्याकरण में होता है ? क्या वह लक्षण जो छन्दशास्त्र में निर्दिष्ट है ? क्या वह लक्षण जो भरत की गोष्ठी में काम पाता है ?
7. कवि चाहइ सारुणकोमलाह, अंतरु रत्तुप्पल करयलाह। तहिँ एतहे तेतहे भमरु जाइ, कत्थई छप्पउ वि दुचित्तु भाइ ।
-सुदंसणचरिउ 7.14.4-5 अर्थ-कोई अरुण और कोमल रक्तोत्पलों और अपने करतलों में भेद
जानना चाहती थी। वह भ्रमर कभी इस ओर, कभी उस ओर जा रहा था। इस प्रकार कहीं षट्पद भी दुविधा में पड़ा प्रतीत
होता था। 8. रिसि रुक्ख व अविचल होवि थिय किसलए परिवेढावेढि किय । रिसि रुक्ख व तवणताव तविय, रिसि रुक्ख व पालवाल रहिय ।
- पउमचरिउ 33 3.4-6 अर्थ- मुनि वृक्ष की तरह अविचल होकर स्थित हो गए, किसलयों ने उन्हें
ढक लिया। मुनि वृक्ष के समान तपन के ताप से सन्तप्त थे, मुनि वृक्ष की तरह पालबाल परिग्रह/क्यारी से रहित थे।
9. कुमप्रसंड दुज्जणसमदरिसिन मित्तविणासणेण जे वियसिय ।
__ --सुदंसणचरिउ 8 17.5 अर्थ-कुमुदों के समूह दुर्जनों के समान दिखाई दिये। चूंकि वे मित्र
(सूर्य या सुहृद) का विनाश होने पर भी विकसित हुए ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 221
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
10. झारणग्गिभूइक यकम्मबंधु भव्वयणकमलकंदोट्टबंधु ।
-जंबूसामिचरिउ 1.1.8 अर्थ --जिन्होंने अपने ध्यानरूपी अग्नि से कर्मबन्ध को भस्मसात कर
दिया है और जो भव्य जनोंरूपी कमल-समूह के लिए सूर्य के समान है।
(ख) निम्नलिखित काव्यांशो में प्रयुक्त अलंकारों के नाम तथा लक्षण बताते हुए
व्याख्या कीजिए -
1. जय सयलगिवग्गमरणसंकर सिद्धि पुरंघिय संकर संकर ।
-वड्ढमाणचरिउ 10.3.4 अर्थ-समस्त प्राणीवर्ग के मन को शान्ति प्रदान करनेवाले हे देव !
आपकी जय हो। सिद्धिरूपी पुरन्ध्री को सुखी करनेवाले हे शंकर आपकी जय हो।
2. णठ्ठ कुरंगु व वारणबारहो, ण? जिणिदु व भव संसारहो ।
-पउमचरिउ 29.11.2 अर्थ-- लक्ष्मण को देखकर कपिल ब्राह्मण की वही दशा हुई जो शेर को
देखकर मृग की होती है या जिनेन्द्र को देखकर संसारी की।
3. अज्जु प्रयाले वणासइरिद्धी अहिणवदलफलकुसुमसमिद्धी । अज्जु सुयंधु एहु सीयलु धणु, वाउ वाइ जं चूरियकाणणु ॥
-जंबूसामिचरिउ 1.13.3-4 अर्थ-पाज अकाल अर्थात बिना ऋतु के ही समस्त वनस्पति हरी-भरी
हो उठी है और वह अभिनव पत्रों, पुष्पों व फलों से समृद्ध हो गयी है। आज ऐसा सुगन्धित शीतल व सघन वायु बह रहा है जिसने सारे कानन को पूर दिया है । भगवान महावीर का समोशरण विपुलाचल पर्वत पर पाया और वनमाली ने पाकर राजा श्रेणिक को समाचार दिया ।
___ 222 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
4. णं कामभल्लि गं कामवेल्लि, णं कामहो केरी रहसुहेल्लि । णं कामजुत्ति णं कामवित्ति, णं कामथत्ति णं कामसत्ति ।
__ -णायकुमारचरिउ 1.15.2-3 अर्थ-वह कन्या तो जैसे काम की भल्ली, काम की लता, काम की सुख
दायक रति, काम की युक्ति, काम की वृत्ति, काम की देरी एवं काम की शक्ति जैसी दिखाई देती है।
5. किं पीइ रई अह खेयरिया, किं गंग उमा तह किणणरिया। आयण्णेवि जंपइ ता कविलो, हे सुहि मत्तउ किं तुहुँ गहिलो ।।
सुदंसणचरिउ 4.4.5-6 अर्थ-क्या यह प्रीति है, या रति, या खेचरी ? क्या यह गंगा, उमा
अथवा कोई किन्नरी है ? अपने मित्र की यह बात सुनकर कपिल बोला हे मित्र तुम नशे में हो, या किसी ग्रह के वशीभूत ?
6. न मुणइ रत्ताहरू रंगगुणु, जा छोल्लइ सुद्ध वि दंत पुणु ।
__ -जंबूसामिचरिउ 52.18 अर्थ-वह कन्या अपने बिबाघरों से अपनी शुद्ध धवलपंक्ति में प्रतिबिंबित
होती हुई कांति को पहचान नहीं पाती। अतः उन्हें धवल बनाने
के लिए बार-बार छीलती रहती है। 7. वणं जिणालयं जहा स-चन्दणं, जिणिन्द-सासणं जहा स-सावयं ।। महा-रणङ गणं जहा सवासणं, मइन्द-कन्धरं जहा सकेसर ।।
-पउमचरिउ 24.14.3-4 अर्थ-वह वन जिनालय की तरह चन्दन (चन्दनवृक्ष, चन्दन) से रहित
था, जो जिनेन्द्र शासन की तरह सावय (श्रावक और श्वापद) से सहित था, जो महायुद्ध के प्रांगण की तरह सवासन (मांस और वृक्षनिवशेष) से संयुक्त था, जो सिंह के कधों की तरह केशर
(वृक्षविशेष और प्रयाल) सहित था। 8. णिय मंदिरहो विणिग्गय जाण इ, णं हिमवंतहो गंग महाणइ ।
-पउमचरिउ 23.6.3
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
[ 223
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
9.
अर्थ- सीता राम के साथ जाने के लिए अपने भवन से क्या निकली मानो हिमवंत से गंगा नदी ही निकली हो ।
224 ]
ससुरासुरक यजम्मा हिसेउ, संसारसमुद्द्त्तारसेउ ।
- जंबूसामिचरिउ 1.1,4
अर्थ - देवताओं सहित असुरों द्वारा जिनका जन्माभिषेक किया गया और जो ससाररूपी समुद्र से पार उतारने के लिए सेतुरूप हैं ।
10. सो जयउ जस्स जम्माहिसेयपय-पूरपंडुरिज्जतो ।
जणिय हिमसिहरिको कणयगिरी राइनो तइया ॥
- जंबूसा मिचरिउ 1. मंगलाचरण 3-4 अर्थ- उन (महावीर भगवान ) की जय हो जिनके जन्माभिषेक निमित्तक जल के पूर से पांडुवर्ण होता हुआ कनकाचल (सुवर्णगिरी मेरु ) हिमगिरी की शंका उत्पन्न करता हुआ शोभायमान हुआ ।
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
अभ्यास-52
मात्रिक छन्द- 1. कुसुमविलासिका
3. चारुपद 5. अडिल्ल (अलिल्लह) 7. रयडा
9. मत्तमातंग 11. चउपही (चतुष्पदी) 13. सारीय 15. मंजरी
2. अमरपुरसुन्दरी 4. गंधोदकधारा 6. उप्पहासिनी 8. विलासिनी 10. निध्यायिका 12. मदनावतार 14. शशितिलक 16. रासाकुलक 18. हेलाद्विपदी 20. दुवई 22. लताकुसुम
17. शालभंजिका 19. कामलेखा
21. प्रारणाल
23. तोमर
वणिक-24. मालती
26. तोट्टक 28. वसन्तचत्वर
25. दोधक 27. मौक्तिकदाम 29. पंचचामर
मात्रिक छन्द 1. कुसुमविलासिका छन्द
लक्षण- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में पाठ मात्राएं होती हैं । प्रारम्भ में नगण (1।।) और अन्त में लघु (।) व गुरु (5) होता है ।
अपभ्रंश अप्यास सौरभ ]
।
225
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
नगण लग नगण ।।। ।।।। ।।। ।।। 5 चलइ णिवबलं, दल इ महियल । नगण लग नगण लग ।।। ।।। ।।। ।।। सहइ गहभरं, वहइ अइडरं ।
~सुदंसरणचरिउ 9.3 1-2 अर्थ-राजा का सैन्य चल पड़ा और पृथ्वीतल को रौंदने लगा । वह आकाश को
भरते हुए सोहने (लगा) व अत्यन्त डर उत्पन्न करने लगा। 2. अमरपुरसुन्दरी छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएं होती हैं,
चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है । लग
लग ।।। ।। । 5 ।।। ।।s s सहउ सिहितावणं. महउ सुहभावणं,
लग
।।। ।। 5 ।।। ।।। ।। चडउ जलियारणले, पडउ भइरवतले ।
-सुदंसणचरिउ 6.10.3-4 अर्थ-चाहे पंचाग्नि तप करो, सुहावना पूजा-पाठ करो, जलती हुई अग्नि में
चढ़ो या भयंकर पर्वतों से नीचे गिरो (भगुपात करो)।
3
चारुपद छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में वस मात्राएं होती हैं,
अन्त में गुरु (5) व लघु (1) होता है। S SISSI SITI 1151 भो रायराएस, संगहियजससेस, TISISSI 5S i SSI गुरणसेढिठाणेण, जोइ व्व णाणेण ।
-~जसहरचरिउ 1.17.3-4
226 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
4.
अर्थ - हे राजेश्वर, आपने समस्त यश सचित किया है । जिस प्रकार गुण-श्रेणी चढने पर ज्ञान द्वारा योगी का अज्ञान दूर हो जाता है ....
गधोदकधारा छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में तेरह मात्राएं होती हैं व चरण के अन्त में नगर ( 111 ) होता है ।
ऽ ।।। 1 S 11
111
तं रिसुणेवि डोल्लिय मणे,
ऽ । ।
मा०इ
5 |
वुत्तु
नगरण
1
1511 S 111 11 रंग गवेसइ जं चविउ पइँ,
IISII ऽ ।।। सिक्खविउ
सयवारउ
नगरप
नगरग
।5।।। विही सण,
SSSSII
छंदालंकारई
- पउमचरिउ 49.6.1
अर्थ - यह सुनकर विभीषण का मन डोल उठा । उसमे हनुमान को बताया कि रावरण कुछ समझता ही नहीं, जो कुछ आप कर रहे हैं उसकी मैंने उसे सौ बार शिक्षा दी ।
नगण
5. डिल्ल ( श्रलिल्लाह ) छन्द
लक्षण - इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं और अन्त में दो मात्राएं लघु ( 1 ) होती हैं ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
11
मइँ I
5 5 1 1
णिग्टई,
ऽ । ऽ ।
जोइसाई
5 ।।
SIISII
1118
।।। ऽ ।
S SII ।।।।
कव्वइँ णाइयसत्थई सुणियइँ, पहरणाईं णीसेस हूँ गुणियइँ |
##UTIISII
गहगमणपयट्टई ।
- णायकुमारचरिउ 3.1.5-6
[
227
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-उसने छंद, अलंकार, निघण्टु, ज्योतिष, ग्रहों की गमन प्रवृत्तियों तथा
काव्य व नाट्यशास्त्र सुने एवं समस्त प्रायुधों का भी ज्ञान प्राप्त किया।
6. उप्पहासिनी छन्द लक्षण- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती
हैं और अन्त में लघु-गुरु-लघु-गुरु होता है । I ISSI ISIS IS SIIS 11 SISIS कुमुपावत्त-महिन्द-मण्डला, सूरसमप्पह भाणुमण्डला । 11 SII SS ISIS 1111 SS IT ISIS रइवद्धण सङ्गामचञ्चला, दिढरह सव्वम्पिय करामला ।।
-पउमचरिउ 60.6 1-2 अर्थ--कुमुदावर्त, महेन्द्रमण्डल, सूरसमप्रम, माणु-मण्डल, रतिवर्धन, संग्रामचंचल,
दृढरथ, सर्वप्रिय करामल ।
7. रयडा छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राए
होती हैं। । ।।। । । । । ।। को वि मणइ रण वि लेमि पसाहणु ।
। । ।। ।। ।। जाम ण भञ्जमि राहव-साहणु ॥
-पउमचरिउ 59.4.3 अर्थ-कोई बोला-मैं तब तक प्रसाधन ग्रहण नहीं करूँगा जब तक कि रावण की
सेना को नष्ट नहीं करता।
8. विलासिनी छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं
होती हैं और चरण के अन्त में लघु (1) ब गुरु (s) होता है ।
228 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
si si SS 1515 जतु जंतु पत्तो मसाणए, 111 SI S Sis घुरुहुरंतसमडिय - साणए, ।।। ।।। ।। ।। 515 सडिय-पडिय-बहु-देहि-जंगले, 5151 SIT 1515 घुग्घुवंत घूवड अमंगले ।
-सुदंसणचरिउ 8.16.1.2 अर्थ-चलते-चलते सुदर्शन श्मशान में पहुंचा, जहाँ कुत्ते घुर्राते हुए भिड़ रहे थे ।
जहाँ नाना शरीरों का मांस पड़ा हुआ सड़ रहा था । जो घू-घू करते हुए घुग्घुत्रों से प्रमंगलरूप था।
१ मत्तमातंग छंद लक्षण-- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में अट्ठारह मात्राएं होती हैं व चरण के अन्त में जगण (151) होता है । जगण
जगण 5 15 51 5S!1si sis Sissi 1151 तो दिणे छट्टि उक्किटकमसेण, दाविया छट्ठियाज्झत्ति वइसेण । जगण
जगण । 5 ।।। । ।। । । । ।। ।।। । अट्ठ दो दिवह वोलीण छुडु जाय, ताम जा णाम जिणयासि सणुराय ।
__ -सुदंसणचरिउ 3.5.6-7 अर्थ फिर जन्म से छठे दिन उस वैश्य ने उत्कृष्ट रूप से झटपट छठी का
उत्सव मनाया । जब पाठ और दो अर्थात् दस दिन व्यतीत हुए तब उस
पुत्र की जिनदासी नाम की माता अनुरागसहित........ । 10. निध्यायिका छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में उन्नीस मात्राएं
होती हैं।
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ।
[
229
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
ऽ ऽ ।।। ।। ।। । ।। ज जाणियउ अक्खउ रण-रसाहिउ । ।। ।। ।। ।।।। ।। ।। रहु सारहिण हणुवहाँ सम्मुहु वाहिउ ।। s s। ।। । । । ।। ढक्कन्तु रणे तेण वि दिठु केहउ । ।। ।।।
। ।।। रयणायरे ण गङ्गा वाहु - जेहउ ।।
- पउमचरिउ 52.3.1 अर्थ .. जब सारथी ने यह देखा कि अक्षय रणरस (वीरता) से भरा हुआ है तो
हनुमान के सम्मुख रथ बढ़ा दिया। रणस्थल में पहुंचते ही हनुमान ने उसे इस प्रकार देखा मानो समुद्र ने गंगा के प्रवाह को देखा हो ।
नोट--नियम चार (अभ्यास-50, पृ. 192) के अनुसार प्रथम, तृतीय व चतुर्थ
चरण का अन्तिम ह्रस्व वर्ण गुरु माना गया है ।
11. चउपही छंद (चतुष्पदी) लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएं
होती हैं और चरण के अन्त दो मात्राएं लघु (।।) होती हैं । । । ।।। ।।। ।। 5 ।। दोहिं वि धरहिं धवलु मंगलु ग. इज्जइ ।
। । ।।। ।।। ।। 5 ।। दोहि वि घरहिं गहिरु तूरउ वाइज्जइ ।
। । ।।। ।।। ।।।। ।। दोहिं वि घरहिं विविहु अाहरण लइज्जइ ।
। । ।।। ।।।।।।। ।। दोहिं वि घरहिं लडतरुणिहिं णच्चिज्जइ ।
-~- सुदसणचरिउ 54.9-10
230
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ- दोनों ही घरों में धवल मंगल गान होने लगे, दोनों ही घरों में गम्भीर तूर्य
बजने लगा। दोनों ही घरों में विविध आभरण लिये जाने लगे । दोनों ही घरों में सुन्दर तरुणियों के नृत्य होने लगे ।
12. मदनावतार छंद लक्षरण - इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में बीस मानाएं होती हैं और चरण के अन्त में रगण (15) होता है।
रगण ऽ । । । । ।।। । रावणेण वि धणुं समरे दोहाइयं ।
रगण
$151 SS IS SIS साम्व तं दन्द बुज्झं समोहा इयं ।।
-..पउमचरिउ 66.8.5 अर्थ रावण ने विभीषण के धनुष के दो टुकड़े कर दिए तब उन्होंने एक-दूसरे
को द्वन्द्व युद्ध के लिए सम्बोधित किया।
13. सारीय छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएं होती
हैं और अन्त में गुरु (5) व लघु (1) होता है । ।। । । ।। । । तिमिरं णियच्छेवि पंडिय गया तत्थ,
Il s1551 5515 51 थिउ झाणजोएण सेट्ठीसरो जत्थ, 1151 SSI s § 1551 पणवंति जपेइ लग्गी पयग्गम्मि, ।।ऽ । ऽऽ । । ऽ ऽ। जइ अस्थि जीवे दया तुम्ह धम्ममि ।
-सुदंसणचरिउ 8.20.1-2
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 231
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-अन्धकार फैला देखकर पंडिता वहां गई जहां सेठों का अग्रणी सुदर्शन
ध्यानयोग स्थित था । वह प्रणाम करते हुए उसके पैरों से लग गई और बोली यदि तुम्हारे धर्म में जीव-दया है.... ।
14. शशितिलक छंद लक्षण - इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं
तथा सर्वत्र लघु (1) होता है । ।। ।।। ।।।। । ।।।।। ।।।।। जय अणह चउदिसु वि पडिफुरिय चउवयण ।
जय गलियमलपडल कमलदलसमणयण ॥
-सुदंसणचरिउ 1.11.3-4 अर्थ- हे भगवन् पाप निष्पाप हैं और समवशरण के बीच चारों दिशाओं में
आपके चार मुख दिखाई देते हैं ।
15. मंजरी छंद लक्षण- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएं
होती हैं । ।।। । ।। ।। । ।s कहिउ सव्वु तं लक्खण-राम-कहाणउं । sis. I si Is Iisis दण्डयाइ मुणि-कोडि-सिला-अवसाणउं ॥
--पउमचरिउ 45.6.1 अर्थ-उसने राम-लक्ष्मण की सब कहानी उन्हें सुना दी किस प्रकार दण्डकवन
में उन्होंने कोटि शिला को उठा लिया।
16. रासाकुलक छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती
हैं और चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (s) होता है।
232
]
.
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
नगण 5 5 ।। ।। ।। ।।।। हा हा गाह सुदंसण सुंदर सोमसुह ।
नगण ।।।। ।।।।। ।।।।।।।। सुप्रण सलोण सुलक्खण जिणमइअंगरुह ।
-सुदंसणचरिउ 8.41.1-2 अर्थ-हाय हाय नाथ, सुदर्शन, चन्द्रमुख, सुजन, सलोने, सुलक्षण, जिनमति के
सुपुत्र ....।
17. शालभंजिका छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं
. और अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है । । । । ।। । । । । । । ताव तेत्थु णिज्झाइय वावि असोय-मालिणी । ऽ । ऽ। । ।।। ।।।। । । । हेमवण्ण स-पनोहर मणहर गाई कामिणी ।
-पउमचरिउ 42.10.1 अर्थ-तब उसने 'अशोकमालिनी' नाम की बावड़ी देखी, सुनहले रंग से वह
जैसे-सपयोधर सुन्दर कामिनी हो । 18. हेलाद्विपदी छन्द लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (सम द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 22 मात्राएं
होती हैं और अन्त में दो गुरु (55) होते हैं। ।।। । । । ॥ ऽ।ऽ ।55 पइज करेवि जाम पहु आहवे अभङ्गो । si isi 51 SSI SISS ताम पइछु चोरु णामेण विज्जुलङ्गो ।
-पउमचरिउ 25.2.1
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 233
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-जब युद्ध में वह अभग्न प्रभु यह प्रतिज्ञा कर रहा था कि तभी विद्युदंग
चोर वहां प्रविष्ट हुा ।
19. कामलेखा छन्द
लक्षण-इसमें दो पद होते हैं। प्रत्येक चरण में सत्ताइस मात्राएं होती हैं। ।।। ।।। । ।। ।। ।। ।। ss गयवर-तुरय-जोह- रह-सीह-विमाण- पवाहणाइं । ।। ।।। ।। ।। ।।।। ।।।। 5155 रण-तूरई हयाई किउ कलयलु भिडियई साहणाई।
-पउमचरिउ 66.1.1 अर्थ-उत्तम हाथी, अश्व, योद्धा, रथ, सिंह, विमान और दूसरे वाहन चल पड़े।
युद्ध के नगाड़े बज उठे । कोलाहल होने लगा। सेनाएं आपस में भिड़ गयीं।
____ 20 दुवई छन्द लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (समद्विपदी)। प्रत्येक चरण में अट्ठाइस मात्राएं
होती हैं और चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है । ।। ।। । । ।।। । । । । ऽ। हिय एत्तहे वि सीयएत्तहे वि विप्रोउ महन्तु राहवे । ।। ।। । ।।। ।।। । ।। ।।। ।s हरि एत्तहे वि मिडिउ एत्तहे वि विराहिउ मिलिउ पाहवे ।
-पउमचरिउ 40.2.1 अर्थ-यहां सीता का अपहरण कर लिया गया और यहां राम को महान वियोग
हुआ । यहां लक्ष्मण युद्ध में भिड़ गया और यहां युद्ध में विराधित मिला ।
21. प्रारणाल छन्द
लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 30 मात्राएं होती
234
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
। ।। । । । । ।। ।। ।। 55 मो भुवणेक्कसीह वीसद्ध जीह तउ थाउ एह बुद्धी ।
।। ।।। । ।।। ।। ।।। । ss अज्जु वि-विगय णामे रणं समउ रामे रणं कुणहि गम्पि संधी।
-पउमचरिउ 53.1.1 अर्थ-हे भुवनकसिंह, विश्रब्धजीव ! तुम्हारी यह क्या मति हो गई है ? आज
भी प्रसिद्धनाम राम के पास जाकर संधि कर लो ।
22. लताकुसुम (मदिरा) छन्द लक्षण- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में 30 मात्राएं होती हैं
__ और चरण के अन्त में सगण (IIs) होता है ।।
सगण
5 ।।5।। । । । । । । ।। ।। जत्थ सिरी अणुहुत्त तहिं पि कयं पुण भिक्खपवित्थरणं ।
सगण । । । । । । ।। ।। ।।।।। लोहु ण लज्जं भयं ण वि गारउ पेम्मसमं पि तवचरणं ।
-सुदंसणचरिउ 11.2.3-4 अर्थ-जहां पर उन्होंने राज्यश्री का उपभोग किया था, वहीं पर अब भिक्षा
चरण किया। उनके न लोम था, न लज्जा, न भय और न अभिमान । उनको यदि प्रेम था तो तपश्चर्या से ।
23. तोमर छंद लक्षण- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में चार बार गुरु (s)
व चार बार लघु (1) प्राता है ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 235
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
गल
ऽ । । । । । । । । के वि गीसरन्ति वीर, भूधर व्व तुङ्ग धीर । sis। । ।
। । । । सायर व्व अप्पमाण, कुञ्जर व दिण्ण-दाण ।
__-पउमचरिउ 59.2.2-3 अर्थ-पहाड़ की भांति ऊंचे और धीर कितने ही योद्धा निकल पड़े । वे समुद्र की
तरह अप्रमेय थे और हाथी की भांति दान देनेवाले ।
वणिक छन्द 24. मालती छन्द लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में दो जगण (st+s)
व छः वर्ण होते हैं।
जगण जगण । । । । णवेवि मुणिंदु 123 45 6
जगण जगण । ।।। भवीयणचंदु 123456
जगरण जगण जगण जगण । । । । । । । । घरम्मि छहेवि चउक्के ठवेवि । 12 3 456 12 3 456
- णायकुमारचरिउ 9.21.1-2 अर्थ -- घर आने पर उन भव्यजनों में चन्द्र के समान श्रेष्ठ मुनिराज को नमस्कार
करके घर के भीतर लेजाकर खड़ा करना चाहिए ।
25. दोधक छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में तीन भगण
(S11-+-II+II) और दो गुरु (+s) तथा 11 वर्ण होते हैं।
____ 236 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगण भगण भगण ग ग
। । । ।। ।55 लग्गु थुणेहुँ पयत्थ - विचित्तं, 1 2 345 678 91011
मगण
मगण भगण भगण ग ग
। । । ।।।ss गाय - रणराण सुराण विचित्तं । 1 2 3 4 5 678 91011
भगण भगरण भगण ग ग ऽ ।। ।।।। 55 मोक्खपुरी - परिपालय • गत्तं, 1 2 34 5 6789 1011
भगण भगण भगण ग ग
। । ।। ।। ss सन्ति-जिणं ससि-रिणम्मल- वत्तं । 1 2 3 4 56 7 8 9 1011
-पउमचरिउ 71.11.1-2 अर्थ- उसके अनन्तर, रावण विचित्र स्तोत्र पढ़ने लगा, नागों, नरों और देवताओं
में विचित्र हे देव ! तुमने अपने शरीर से मोक्ष की सिद्धि की है, चन्द्रमा के सदृश शान्त आचरण, शान्तिनाथ, .... ।
___26 तोट्टक छंद लक्षण -- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में चार सगण
(Is+is+is+lis) व बारह वर्ण होते हैं ।
सगण सगण सगण सगण ।। । । । ।। ।। अह एक्कु चमक्कु वहंतु मणे, 12 3 4 5 6 7 8910 1112
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
[
237
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
सगण सगण सगण सगरण ।। । । । । ।। इल-रक्खु समक्खू पहत्त खणे । 12 3 4 5 6 7 8910 1112 सगरण सगण सगण सगण ।। ।। 5 ।। णिरु कंपइ जंपइ सो सहसा, 1 2 345 678 9 101112 सगरण सगरण सगण सगण ।। । । । ।5।5 अहोचल्लि म खेल्लि महंतजसा । 12 3 4 5 6 7 89101112
-सुदंसणचरिउ 2.13.5-6 अर्थ-उसी समय एक चमक (घबराहट) मन में धारण करके खेत का रखवाला
उसके सम्मुख प्रा पहुंचा । वह कांपता हुआ सहसा बोला-अरे चल, हे __ महा यशस्वी, खेले मत ।
27. मौक्तिकदाम छंद लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में चार जगरण
(Is+ISI+II+II) व बारह वर्ण होते हैं । जगण जगण जगण जगण । ।। ।।। । सुदुद्धरु अंजणपव्वय काउ, जगण जगण जगण जगण । ।। ।।।।।। दिसाकरितासणु मेहरिणणाउ । जगण जगण जगण जगण ISI ISI ISI ISI सदप्पु वि वेझु ण देइ करिंदु,
238 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
जगण जगण जगण जगण । ।।।। ।। । मणम्मि भरतह देउ जिणिदु ।
- सुदंसणचरिउ 8.44.1 अर्थ-अति दुर्द्धर, अंजनपर्वत के समान कृष्णकाय, दिग्गजों को भी त्रासदायी,
मेघों के समान गर्जना करनेवाला उन्मत्त हाथी, उस पर कोई प्राघात नहीं कर सकता जो अपने मन में जिनेन्द्र का स्मरण कर रहा हो ।
28. वसन्तचत्वर छन्द लक्षण- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण मे जगण (151), रगण
(sis), जगण (151), रगण (sis) व बारह वर्ण होते हैं । जगण रगण जगण रगण ISIS IS ISI SIS झरंतसच्छविच्छुलं भणिज्झरं जगण रगण जगण रगण ISI SISISI SIS भरतरुंदकुंडकूव कंदरं । जगण रगण जगण रगरण ISISISI SI JIS ललंतवेल्लिपल्ल वोह कोमलं जगण रगण जगण रगण 1515 15 151 SIS मिलतपक्खिपक्ख लक्ख चित्तलं ।
-जसहर चरिउ 3.16.3-4 अर्थ-हमने देखा कि उस वन में स्वच्छ बिखरे हुए पानी के झरने भर रहे हैं
जिनके द्वारा विस्तीर्ण कुण्ड, कूप और कन्दर भर रहे हैं । वह वन लहलहाती हुई वल्लियों के पल्लव-समूहों से कोमल तथा एकत्र हुए पक्षियों के लाखों पंखों से चित्रित दिखाई दे रहा था।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
239
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
29. पंचचामर छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में जगण (151),
रगण (515), जगण (151), रगण (515), जगण (151) और गुरु व
सोलह वर्ण होते हैं। जगण रगण जगण रगण जगण ग 15। । । । । ।5 तवग्गितत्तु मोहचत्त सिद्धि कंतस्तयो । 12 3 45 6 7 89 10111213141516 जगण रगण जगण रगण जगण ग 15। ।5।।5। ।515 भयारण पछु णेत्तइट्ठ जल्ललित्तगत्तप्रो। 1 2 3 4 5 67 8 9 10111213141516
-सुदसणचरिउ 10.3.1 अर्थ-इस प्रकार जब सुदर्शन चित्त में हर्षित होकर मोक्ष के हेतुभूत जिनेन्द्रदेव
की स्तुति कर रहा था, तभी उसने वहां सुरेन्द्र द्वारा वन्दनीय एक मुनिराज को बैठे देखा। वे मुनिराज तपरूपी अग्नि से तपाये हुए, मोह से त्यक्त व सिद्धिरूपी कांता में अनुरक्त मदों से रहित, नेत्रों को इष्ट व शरीर के मैले से लिप्त थे।
__2401
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
(क) निम्नलिखित पद्यांशों के मात्रा लगाकर इनमें प्रयुक्त छंदों के लक्षण एवं नाम
बताइए1.' तो फुरन्त-रत्तन्त लोयणो कलि-कियन्तकालो व्व भीसणो ।। दुण्णिवारु दुव्वार-वारणो सुउ चवन्तु जं एम लक्खणो ।
-पउमचरिउ 23.8.1-2 अर्थ-तब जिसके फड़कते हुए लाल-लाल नेत्र थे, जो कलि-कृतान्त और
काल की तरह भीषण था ऐसे दुनिवार लक्षण को दुर्वार महागज की तरह उक्त बात कहते हुए सुनकर........।
2. अण्णु विहीसण गुणधणउ सन्देसउ णीलहों तणउ । गम्पि दसाणणु एम भणु विरुपारउ परतियगमणु ॥
-पउमचरिउ 49.5.1 अर्थ- और भी विभीषण ! नील का भी यह गुणधन सन्देश है कि जाकर
उस रावण से कहो कि परस्त्री-गमन बहुत बुरा है।।
3. तो दिणे छट्ठि उक्किट्ठकमसेण दाविया छट्ठिया ज्झत्ति वइसेण । अट्ठ दो दिवह वोलीण छुडु जाय ताम जा णाम जिणयासि सणुराय ।
सुदंसरणचरिउ 3.5.6-7 अर्थ-फिर जन्म से छठे दिन उस वैश्य ने उत्कृष्ट रूप से झटपट छठी
का उत्सव मनाया। जब पाठ और दो अर्थात् दस दिन व्यतीत हुए तब उस पुत्र की जिनदासी नामकी माता अनुरागसहित.... ।
दोहि वि घरहिं घुसिणच्छडउल्लउ दिज्जइ दोहिं वि घरहिं रयणरंगावलि किज्जइ । दोहि वि घरहिं धवलु मंगलु गाइज्जइ दोहिं वि घरहिं गहिरु तूरउ वाइज्जइ ।।
.-सुदंसणचरिउ 5.4.7-8 अर्थ-दोनों ही घरों में केसर की छटाएं दी गईं। दोनों ही घरों में
रत्नों की रंगावलि की गई। दोनों ही घरों में मंगल गान गाये गये। दोनों ही घरों में गंभीर तूर्य बजने लगा।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 241
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
5. दुरियाणण-दुस्सर-दुव्विसहा ससि-सूर-मऊर कुरूर-गहा ।। सुप्रसारण-सुन्द-णिसुन्द-गया करि-कुम्भ णिसुम्म वियम्भ भया ।।
-पउमचरिउ 59.6.4-5 अर्थ-दुरितानन, दुर्गम्य और सह्य, चन्द्रमा, सूर्य, मऊर और कुरुर ग्रह
नी निकल आये। हाथियों की सूंडों को कुचलने से भयंकर सुत. सारण सुन्द और निसुन्द भी गये ।
6. हीण हीण हउँ बंभिणि सुगुणसुबुद्धिवज्जिया। अप्पसुप्रो आहाणउ णिसुणंती ण लज्जिया ॥
-सुदंसणचरिउ 7.12.5-6 अर्थ - मैं एक हीन-दीन, सद्गुणों और सद्बुद्धि से वजित ब्राह्मणी हूँ।
इसी से अपनी कान-सुनी बात सुनते मुझे लज्जा (शंका) नहीं आई ।
7. कालि-वन्दणहराकन्द-मिण्णञ्जणा । सम्मु-णल विग्ध-चन्दोयराणन्दणा ।।
-पउमचरिउ 66.88 अर्थ-कालि और वन्दनगृह, कन्द और भिन्नांजन, शंभू और नल, विघ्न
और चन्द्रोदर पुत्र .... ।
8. इय जाम वयपुण्ण थिउ लेइ सुपइण्ण । पिच्छेवि सहसत्ति चितेइ णिवपत्ति ।।
-सुदंसणचरिउ 8.25.1-2 अर्थ-इस प्रकार जब सुदर्शन व्रतपूर्ण सुप्रतिज्ञा ले रहा था तभी राजपत्नी
सहसा उसकी ओर देखकर सोचने लगी....।
9. मुणीण समाणु अणुव्वजमाणु । घरंगणु जाम स गच्छइ ताम ।।
- णायकुमारचरिउ 9.21.9-10 अर्थ-मुनि के साथ पीछे-पीछे अपने घर के प्रांगन तक जावे.... ।
__242 ].
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
10. सेसिउ हासु सुखेडपलोयणु संगु सपुव्वरईमरणं । होरु सुडोरु सुककणु कुंडलु सेहरु लेइ ण ग्राहरणं ।।
(ख) निम्नलिखित पद्यांशों के मात्राएं लगाकर इनमें प्रयुक्त छंदों के लक्षण एवं नाम
बताइए -
- सुदंसणचरिउ 11.2.19-20 अर्थ-उन्होंने हास्य- रतिपूर्वक अवलोकन, परिग्रह, अपनी पूर्व रति के स्मरण का परित्याग कर दिया है। वे अब सुन्दर लड़ियोंयुक्त हार, सुन्दर कंकण, कुण्डल व शेखर आदि आभरण धारण नहीं करते ।
1. हुणउ तिलजवघयं णवउ दियवरसयं । जणिय अरिविग्गहे मरउ तहिं गोग्गहे ||
2.
3.
- सुदंसणचरिउ 6.10.7-8 अर्थ - तिल, जो व घृत का होम दो तथा सैंकड़ों द्विजवरों को प्रणाम करो | चाहे शत्रुनों से कलह करके गोग्रहण में मरो ।
को वि भणइ उ णयणइँ प्रञ्जमि ।
जाम्व व सुरवहु जण मणु रञ्जमि ||
- पउमचरिउ 59.4.6
अर्थ - किसी एक ने कहा मैं तब तक अपनी प्रांखों में अञ्जन नहीं लगाऊँगा जब तक कि सुरवधुनों के नेत्रों का रंजन नहीं करता ।
फुरियाणणउ विहुणिय - वाहुदण्डो । णं गयवरउ ब्भिर - गिल्ल - गण्डग्रो ॥ तं दहवयणु जयकारेवि अक्खनो । णं णीसरिउ गरुडों समुहु तक्खो ||
- पउमचरिउ 52 1.1
अर्थ
-
- उसका चेहरा तमतमा रहा था, अपने दोनों हाथ मलते हुए वह ऐसा लगता था मानो मद करता हुआ महागज हो । रावण की
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
L
243
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
जय बोलकर अक्षयकुमार निकल पड़ा, मानो गरुड़ के सम्मुख तक्षक ही निकला हो ।
4.
जय विगयमय विसयरइजलणणवजलय । जय सहसयरसरिसपरिफुरियजुइवलय ॥
-सुदंसणचरिउ 1.11.9-10 अर्थ-पाप भयरहित हैं और विषयों के राग की अग्नि को नये मेघ के
समान वमन करने वाले हैं । आपका प्रभामण्डल सूर्य के सहश स्फुरायमान है।
__ परधण-परकलत्त-परिसेस? परवल-सण्णिवाय । एक्के लक्खणेण विणिवाइय सत्त सहास रायहुं ॥
-पउमचरिउ 40.4.1 अर्थ-परधन और परस्त्रियों को समाप्त करनेवाले शत्रु-सैन्य के लिए
सन्निपात के समान सात हजार राजाओं के सैन्य को अकेले लक्ष्मण ने मार गिराया।
6. पसुत्नु समुट्ठिउ दंतसमीहु महाबलु लोललुवाविय-जीहु । सरोसु वि देइ कम ण मइंदु मणम्मि मरंतह देउ जिणिदु ।।
-सुदंसरणचरिउ 8.44.2 अर्थ-सोकर उठा हुआ गज का अभिलाषी, महाबलशाली, लोलुपता से
जीभ को लपलपाता हुआ, सक्रोध मृगेन्द्र भी उस पर अपने पंजे का आघात नहीं कर सकता जो अपने मन में जिनेन्द्रदेव का स्मरण कर रहा हो।
सिणिद्धरुक्सपुप्फरेणुपिंजरं फलोवडतवुक्करंतवाणरं दिसाचरंतजक्ख किंकिणीसरं लयाहरत्थकीलमाणकिणरं
-जसहरचरिउ 3.16.5-6
__244 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-वह वृक्षों को चिकनी पुष्परेणु से लाल हो रहा था, बुक्क ध्वनि
करते हुए वानर फलों के ऊपर झपट रहे थे। वहां दिशाओं में विचरण करती हुई यक्षिणियों की किंकिरिणयों का स्वर सुनाई पड़ता था।
पच्छऍ मेहवाहणो गहिय-पहरणो रिणग्गयो तुरन्तो । णं जुअ-खएँ सरिणच्छरो भरियमच्छरो अहर-विप्फुरन्तो।
-पउमचरिउ 53.4.1 अर्थ--उसके पीछे अस्त्र लेकर मेघवाहन भी तुरन्त निकल पड़ा मानो
युग का क्षय होने पर मत्सर से भरा कम्पिताधर शनैश्चर ही हो ।
9.
सुमरमि णवकोमलदलकुवलयताडणउ । मुत्ताहलहारावलिबधणछोडणउ ॥
-सुदंसणचरिउ 8.41.9-10 अर्थ-स्मरण आता है वह नये कोमल पत्रों से युक्त नीलकमल द्वारा
ताड़न तथा मुक्ताफलों की छटावली का बांधना और तोड़ना।
10. लच्छिभुत्ति तं लच्छीण यरु पईसई । ववहरन्तु जं सुन्दरु तं तं दीसई ।।
-पउमचरिउ 45.4.1 अर्थ-लक्ष्मीभुक्ति उस नगर में प्रवेश करता है और घूमते हुए जो-जो
सुन्दर है उसे देखता है।
(ग) निम्नलिखित पद्यांशों के मात्राएं लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों के लक्षण व नाम
बताइए1. दलइ फरिणउलं चलइ पाउलं । मुयइ विस सिहिं हरइ जणदिहिं ।।
-~सुदंसणचरिउ 9.3 1-2 अर्थ-वह नागों के समूह का दलन करता, भीड़-भाड़ के साथ चलता,
विष के बाण छोड़ता और लोगों के धैर्य का अपहरण करता ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
| 245
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
2. पडहसंखबरततीतालई अब्भसियई वज्जाई खालई । पत्तपुप्फणाणाफल छेज्जइँ हयगयविदारोहण विज्जइँ ।।
-णायकुमारचरिउ 3.1.7-8 अर्थ-पटह, शंख व सुन्दर तन्त्रीताल आदि ध्वनि-वाद्यों का अभ्यास
किया। पत्रों, पुष्पों व फलों को नाना प्रकार से काटने-छांटने की रीतियां, घोड़ों व हाथियों के प्रारोहण की विद्याएं.... ।
3. मित्ताणद्धर-वग्यसूपणा । एए णरवइ वग्घ-सन्दणा ।।
-पउमचरिउ 60.6.3 अर्थ-मित्रानुदर और व्याघ्रसूदन-ये-ये राजा व्याघ्ररथ पर पासीन
थे।
4. म चिराहि ए एहि उम्मीलणेताई,
लह गपि प्रालिगि सोमालगत्ताइ । भणु कस्स तुट्ठो जिरणो देसि ठाणस्स, लइ अज्ज जायं फलं तुज्झ माणस्स ।
-सुदंसणचरिउ 8.20.5-6 अर्थ-पात्रो, प्रायो, शीघ्र चलकर उस उन्मीलित नेत्र सुकुमारगात्री का
प्रालिंगन करो । मला कहो तो, जिनेन्द्र सन्तुष्ट होकर भी तुम्हें कौनसी बात प्रदान करेगा ? लो आज ही तुम्हारे ध्यान का फल
तुम्हें मिल रहा है। 5. पुच्छिउ वज्जयण्णे ण हसेवि विज्जुलङ्गो। भो भो कहिँ पय? वहु-वहल-पुलइयङ्गो॥
-पउमचरिउ 25.3.1 अर्थ-वज्र कर्ण ने हंसकर विद्युदंग से पूछा-अरे-अरे, प्रत्यन्त पुलकित
अग तुम कहाँ जा रहे हो ? अमरिस-कुद्धएण अमर-वरङ्गण-जूरावणेणं । णिन्मच्छिउ विहीसणो पढम-भिडन्तें रावणेणं ।।
-पउमचरिउ 66.6.1
246 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-देवांगनामों को सतानेवाले रावण ने क्रोध से भरकर पहली ही
भिड़न्त में विभीषण को ललकारा।
7. के वि सामि-भत्ति-वन्त मच्छरग्गि-पज्जलन्त । के वि पाहवे अभङ्ग कङ कुम-प्पसाहियङ्ग ।।
-पउमचरिउ 59.2.5-6 अर्थ-स्वामी की भक्ति से परिपूर्ण वे ईर्ष्या की आग में जल रहे थे।
अनेक युद्धों में अजेय कितनों के शरीर केशर से प्रसाधित थे ।
8.
9.
सोम-सुहं परिपुण्ण-पवित्तं जस्स चिरं चरियं सु पवित्तं । सिद्धि-वहू मुह-दसण-पत्तं सील-गुणव्व य-सञ्जम-पत्तं ।।
-पउमचरिउ 71.11.3-4 अर्थ-सोम की भांति हे कल्याणमय, हे परिपूर्ण, पवित्र, आपका चरित्र
सदा से पवित्र है, तुमने सिद्ध-वधु का घूघट खोल लिया है, शील
सयम और गुणवतों की तुमने अन्तिम सीमा पा ली है । पणट्ठदेसु सुक्कलेसु सजमोहवित्तो । तिलोयबंधु णाणसिंधु मव्वजमित्तो ।। अलंघसत्ति बंभगुत्ति सुप्पयत्त रक्खणो । जिणिद उत्त-सत्ततत्त-प्रोहिणाण-अक्खणो ।।
-सुदंसणचरिउ 10.3.10-13 अर्थ-उनका द्वेष नष्ट हो गया था, शुक्ल लेश्या प्रकट हो गई थी और वे
संयमों के समूहरूप धन के धारी थे (अर्थात् बड़े तपोधन थे), वे त्रैलोक्य बन्धु थे, ज्ञान-सिन्धु व भव्यरूपी कमलों के मित्र (सूर्यसमान हितैषी) थे। वे अलंघ्य शक्ति के धारी थे, ब्रह्मयोगी थे, प्रयत्नपूर्वक जीवों की रक्षा करनेवाले थे एवं जिनेन्द्र द्वारा कहे गये सात तत्त्वों का अवधिज्ञान-पूर्वक भाषण करनेवाले थे ।
10. ससि विव कलोहेण जलहि व जलोहेण
हयकूरकम्मेण तं वड्ढधम्मेण ।
-जसहरचरिउ 1.17.7-8
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
247
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-जैसे कलाओं के संचय से चन्द्रमा और जलसमूह द्वारा जलधि
सौन्दर्य और गभीरता को प्राप्त होते हैं ।
(घ) निम्नलिखित पद्यों के मात्रा लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों के लक्षण व नाम
बताइए -
1.
चउ दुवार चउ गोउर-चउ-तोरण-रवणिया । चम्पय-तिलय-वउल-णारङ्ग-लबङ्ग-छण्णिया ।।।
-पउमचरिउ 42.10.2 अर्थ-वह चार द्वारों, चार गोपुरों और चार तोरणों से सुन्दर थी,
चम्पक, तिलक, बकुल, नारंग और लवंग वृक्षों से आच्छादित थी।
2.
कुमुअ-महकाय सद्ल-जमघण्टया । रम्भ-विहि मालि-सुग्गीव अमिट्टया ।।
--पउमचरिउ 66.8.10 अर्थ-कुमुद-महाकाय, सार्दूल और यमघंट, रंभ और विधि, माली और
सुग्रीव एक-दूसरे से जाकर भिड़ गये।
3. लच्छिभुत्ति पभणिउ सुहि-सुमहुर-वायए । एउ सव्वु किउ सम्वुकुमारहो मायए ।।
-पउमचरिउ 45.9.1 अर्थ-तब लक्ष्मीमुक्ति दूत ने अत्यन्त श्रुतिमधुर वाणी में कहा, यह सब
शम्बूकुमार की मां ने किया है ।
देउ दियसासणं लेउ गुरुपेसणं । कुणउ हरप्रच्चणं पुरउ कयणच्चणं ।।
-सुदंसणचरिउ 6.10.9-10 अर्थ-चाहे ब्राह्मण धर्म का उपदेश दो, चाहे गुरु से दीक्षा लो। चाहे
हर (महादेव) की अर्चना करो और उनके आगे नाचो ।
248 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
5. सुमरमि सुरहियकेसरणियरे पिंजरिय । सुपूरण किय समसलसुरतरुमंजरिय ||
6.
7.
8.
9.
- सुदंसणचरिउ 8.41.15-16 अर्थ- स्मरण करता हूँ सुगंधि केसर - पिंड से अपना पिमलवर्ण किया जाना तथा भौंरों से युक्त कल्पवृक्ष की मंजरी के कर्णपूर बनाकर पहनाये
जाना ।
हवइकाई एण वहु जम्पिएण राया । पर-वले पेक्खु पेक्खु उट्ठन्ति धूलि छाया ॥
अर्थ — अथवा अधिक कहने से हे धूल की छाया उठ रही है ।
रावण रामकिङ्करा रणे भयङ्करा भिड़िय विष्फुरन्ता | विडसुग्गीव- राहवा विजयलाहवा णाइँ हणु
भणन्ता ॥
- पउमचरिउ 25.4.1
राजन्, क्या ? देखो, देखो शत्रु - सेना से
अर्थ - तब युद्ध में भीषण, तमतमाते हुए,
राम और रावण के वे दोनों अनुचर भिड़ गये । मानो विजय के लिए शीघ्रता करनेवाले मायासुग्रीव और राम ही मारो मारो कह रहे हो ।
खुर-खर-छज्जमाणु णं णासइ भइयऍ हयवराहुं । णं आइउणिवारम्रो णं हक्कारउ सुरवराहूं ||
समोयणली, करेइ गिहीणु । सुपोसहु एम, फलेइ सु तेम ॥
पउमचरिउ 66.2.1 अर्थ - खुरों से खोदी हुई धूल मानो महाअश्वों के डर से नष्ट हो रही थी । वहाँ से हटाई जानेपर मानो वह देवताओं से पुकार करने जा रही हो ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
- पउमचरिउ 53.8.1
-
- णायकुमारचरिउ 9.21.15-16
[ 249
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-वह गृहस्थ स्वयं भोजन करने में प्रवृत्त होवे। इस प्रकार विधिवत्
प्रोणधोपवास करने से वह फलदायी होता है ।
10. भावलयामर-चामर-छत्तं दुन्दुहि-दिव्व-झुणी-पह-वत्तं । जस्स भवाहि-उलेसु खगत्तं अट्ठ-सयं चिय लक्खण-गत्तं ।।
-पउमचरिउ 71.11.5-6 अर्थ-आप भामण्डल, श्वेत छत्र और चमर, दिव्यध्वनि और दुन्दुभि से
मंडित हैं, जिसके संसारोत्तम कुल में सुभगता है, जिसका शरीर एक सौ पाठ लक्षणों से अंकित है।
___250 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
अभ्यास 53
हेमचन्द्र - व्याकरण के अनुसार
निगमित तथा अपभ्रंश साहित्य में
प्रयुक्त संज्ञा रूपों के प्रत्यय ( विभक्तिचिह्न)
[ 251
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
252 ]
प्रकारान्त पुल्लिग __ (देव)
इकारान्त पुल्लिग
(हरि)
प्राकारान्त स्त्रीलिंग
(कहा)
इकारान्त स्त्रीलिंग
(मइ)
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
हि
ए
हिं
तृतीया (हेमचन्द्र)
ए
एं (देवें) एण,
हिं
हि. (प्राहि एहिं)
(हरि) एं (हरिएं)
तृतीया (अन्य)
इ (देवि) ए (देवे)
णा (प्राकृत)
हि
इ
-
इ
हि
(देवि,
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
देवि) ए (देवे)
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकारान्त पुल्लिग
(देव)
इकारान्त पुल्लिग
(हरि)
प्राकारान्त स्त्रीलिंग
(कहा)
इकारान्त स्त्रीलिंग
(मइ)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
चतुर्यो
०
०
०
०
०
०
०
०
एवं
प.
how
hor
4.
षष्ठी (हेमचन्द्र)
ह, हे
ह
che
हि
हिं
हि
हं
हि
हं
चतुर्थी एवं षष्ठो (अन्य)
र on. ON.
हि, हस्सु
hee .hce
प्राण (प्रा.)
प्राण (प्रा.) हुं आणं (प्रा.) हे
to
[
253
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
254 ]
प्रकारान्त पुल्लिग
इकारान्त पुल्लिग (हरि)
प्राकारान्त स्त्रीलिंग
(कहा)
इकारान्त स्त्रीलिंग
(मइ)
(देव)
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
cho
हे
* •hce
हुं
ho
हे
hce
पंचमी (हेमचन्द्र)
हुं
है
हे
hoe
हु
है
हे
hos
हु।
hoe
ह
पंचमी (अन्य)
ह
-
-
हि
हं
-
-
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकारान्त पुल्लिा
(देव)
इकारान्त पुल्लिग
(हरि)
प्राकारान्त स्त्रीलिंग
(कहा)
इकारान्त स्त्रीलिंग
(मइ)
मपभ्रंश अभ्यास सोरम ]
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
हि
हि
सप्तमी (हेमचन्द्र)
अ- इहिं देवि अ→ए
हि
हि
सप्तमी (अन्य)
०, ए (देवे) हिं (एहिं, हे
-
-
--
हे
-
इहिं) 0 अं(देव)
अं (देव) उ (देवु) म्मि हिं (एहि, पाहि) हि ई (देवई)
[ 255
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
क-अन्य वैयाकरणों द्वारा निर्दिष्ट संज्ञा-प्रत्ययों के स्थान पर हेमचन्द्र द्वारा निर्दिष्ट
संज्ञा-प्रत्ययों के उदाहरण वाक्य
प.त्र. 22.1.2
(1) अन्य वैयाकरण दिव्वई गन्धोदयाई देविहि पवियई।
हिन्दी अनुवाद दिव्य गन्धोदक देवियों के लिए भेजा गया । हेमचन्द्र दिव्वई गन्धोदयाइँ देविहु पट्टवियई ।
सु.च. 2.10.2
(2) अन्य वैयाकरण सप्पाइ एक्क भवे दुक्खु दिति ।
हिन्दी अनुवाद सर्प आदि एक जन्म में दुःख देते हैं । हेमचन्द्र सप्पाइ एक्कहिं भवे दुक्खु दिति ।
(3) अन्य वैयाकरण महिलसहाएं रहसे चड्डिउ ।
जंबू.च. 9.8.5 हिन्दी अनुवाद पत्नी के सहयोग से एकान्त में चढ़ा गया ।
हेमचन्द्र महिलसहाएं रहसे चड्डिउ । (4) अन्य वैयाकरण (जणाई) विहाणई तित्थे (तित्थु) चलियई। जंबू.च. 9.8.6
हिन्दी अनुवाद (लोग) प्रभात में तीर्थस्थान को चले । हेमचन्द्र (जणाई) विहाणे तित्थे (तित्थु) चलियई।
(5) अन्य वैयाकरण समगा लग्गा लोयाण (लोयह) जाणाविउ । जबू.च. 9.8.9
हिन्दी अनुवाद स्वमार्ग में लगे हुए लोगों के लिए बतलाया गया । हेमचन्द्र समग्गे लग्गा लोयाण (लोयह) जाणाविउ ।
9.8.15
(6) अन्य वैयाकरण (हउं) णिहाणे (वड्ढिहे) अवरु उवाउ
रयमि। हिन्दी अनुवाद (मैं) खजाने में वृद्धि के लिए अन्य उपाय
रचता हूँ। हेमचन्द्र (हउं) णिहाणे (वड्ढिहे) अवरु उवाउ
रयमि ।
256 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
(7) अन्य वैयाकरण विण्णि वि गहिरिमाई सायर णं अत्थि। कर.च. 2.16.9
हिन्दी अनुवाद दोनों गम्भीरता में सागर के समान हैं । हेमचन्द्र विण्णि वि गहिरिमि सायर णं अत्थि ।
(8) अन्य वैयाकरण हउं तुव (तुज्झ) सरणि विएसे पत्ती । धण्ण.च. 3.16.14
हिन्दी अनुवाद मैं तुम्हारी शरण में विदेश में पड़ी
हेमचन्द्र
हउं तुव (तुझ) सरणि विएसे पत्ती ।
धण्ण.च. 3.19.1
(9) अन्य वैयाकरण पुवक्किय दुक्कमेण (सो) णडिउ । हिन्दी अनुवाद पूर्व में किए हुए दुष्कर्म के द्वारा (वह)
नचाया गया । हेमचन्द्र पुवक्किएण दुक्कमेण (सो) णडिउ ।
धण्ण
.च.3.19.4
(10) अन्य वैयाकरण मई मुरिणवरहु दाणु पदिण्णउ । हिन्दी अनुवाद मेरे द्वारा श्रेष्ठ मुनि के लिए दान
दिया गया। हेमचन्द्र मई मुणिवरहो दाणु पदिण्ण उ ।
घण्ण च. 3.20.2
(11) अन्य वैयाकरण रोवणह लग्ग (पयडिय) ।
हिन्दी अनुवाद रोने का चिह्न (प्रकट हुआ) । हेमचन्द्र रोवणहो लग्ग (पयडिय) ।
(12) अन्य वैयाकरण सयलु खरण भंगुरु (होइ)।
धण.च. 3.21.6 हिन्दी अनुवाद प्रत्येक वस्तु क्षण में नाशवान होती है । हेमचन्द्र सयलु खरणे भंगुरु होइ ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 257
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
(13) अन्य वैयाकररण सो अवसर - 1 - निवडश्राइ दोण्णि वि तिणसम गणइ |
हिन्दी अनुवाद वह अवसर श्रा पड़ने पर दोनों (घन और जीवन ) को तिनके के समान गिनता है ।
हेमचन्द्र
( 14 ) अन्य वैयाकरण सायरगयहिं समिलहिं जयहु रंधु दुल्लह
प्रत्थि ।
हिन्दी अनुवाद
258
हेमचन्द्र
सो अवसर - निर्वाडिए दोणि वि तिणसम गरणइ ।
( 15 ) अन्य वैयाकरण भवजलगयहं जीवहं मणुयत्तरिण सबंधु दुल्ल थि । हिन्दी अनुवाद संसार रूपी पानी में पड़े हुए जीवों के लिए मनुष्यत्व से सम्बन्ध दुर्लभ है । भवजलगयहं जीवहं मणुयत्तणें संबंधु दुल्ल थि ।
हेमचन्द्र
1
सागर में लुप्त समिला के लिए जुंबे का
रंध्र दुर्लभ है ।
( 16 ) अन्य वैयाकरण पसुधणधपणई खेत्तियइं परिमाण
पवित्त करि ।
हिन्दी अनुवाद
हेमचन्द्र
सायरगाहे समिलाहे जूयहो रंधु दुल्लहु प्रत्थि ।
पशु, धन, धान्य (प्रोर) खेत में परिमारण से प्रवृत्ति कर ।
पसुधरणधण्णे खेत्ते परिमाणपवित्ति करि ।
हेमचन्द्र के दोहे - 7
सावयधम्म - दोहा. 2
सावयधम्म - दोहा . 2
म- दोहा 4
सावयधम्म
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
(17) अन्य वैयाकरण घरणिहि पडिउ वडह बीउ वित्थरु
लेइ।
सावयधम्म-दोहा.9
हिन्दी अनुवाद धरती पर पड़ा हुआ वट का बीज
विस्तार ले लेता है। हेमचन्द्र धरणिहिं पडिउ वडहो बीउ वित्थरु
लेइ।
सावयधम्म दोहा.15
(18) अन्य वैयाकरण तेण कप्पयरु मूलहो डिउ । हिन्दी अनुवाद उसके द्वारा कल्पतरु मूल से काटा
गया। हेमचन्द्र तेण कप्पयरु मूलहे खां डिउ ।
सावयधम्म-दोहा.8
(19) अन्य वैयाकरण बहुत्तई संपयई कोइ लाह ण अस्थि ।
हिन्दी अनुवाद बहुत सम्पदा से कोई लाभ नहीं है । हेमचन्द्र बहुत्ताए संपयाए कोइ लाह ण अस्थि ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
259
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
.
.
..
.
....
.
.
....
....
..
..
परिशिष्ट
अंक-योजना दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी परीक्षार्थी का क्रमांकअपभ्रंश साहित्य अकादमी,
अंकों में (जनविद्या संस्थान)
शब्दों में भट्टारकजी की नसियां, सवाई रामसिंह रोड,
पंजीयन संख्या ....... जयपुर-302004
प्रश्नपत्र --प्रथम
विषय ---अपभ्रंश साहित्य अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर
परीक्षा तिथि अपभ्रंश सर्टिफिकेट परीक्षा, ....... प्रथम-प्रश्नपत्र
प्रश्न संख्या
प्राप्तांक अपभ्रंश साहित्य
1 ...................
...................... प्रवास्तविक क्रमांक...................
......................
..
.
.
..
...
2
..
.
.
..
....
.
..
.
....
.
..
....................................
अंक योजना1. प्रश्न के उत्तर में जहां दो या दो से अधिक 6
गलतियों की सम्भावना हो वहाँ उत्तर के 7 ...... मूल्यांकन में एक गलती के लिए 2 अंक कम 8 ................... कर दिया जायेगा । किन्तु जहाँ एक गलती 9 ....... की ही संभावना हो वहाँ उत्तर में गलती 10................ होने पर शून्य अंक दिया जायेगा।
कुल योग 2. प्रत्येक गलती लाल स्याही के गोले 0 से।
दर्शायी जायेगी।
अंकों में ........
.
.
.
...
..
..
..
..
.
...
शब्दों
में ...
...
..
..
.
...
.
...
..
..
3.
प्राप्तांक के कुल योग में , ' या माने पर अगला पूर्णाङ्क कर दिया जायेगा। (जैसे 60-61)।
परीक्षक के हस्ताक्षर......... दिनांक.
.
.
...
.
..
.
.
...
..
..
.
...
....
260
]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रेणी योजना
पूर्णाङ्क%3D150 1. विशिष्ट श्रेणी-80% या अधिक (120 अंक)
2. प्रथम श्रेणी
सामान्य अंक-60% या अधिक (90 अंक) प्रतिष्ठा अंक-80% या अधिक (120 अंक) (किसी एक प्रश्नपत्र में)
3. द्वितीय श्रेणी-50% या अधिक (75 अंक)
". पास श्रेणी- 36% या अधिक (54 अंक)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[
261
Page #275
--------------------------------------------------------------------------
________________
मॉडल प्रश्नपत्र
अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर अपभ्रंश सर्टिफिकेट परीक्षा, ... ....
प्रश्नपत्र-प्रथम अपभ्रंश साहित्य
समय-3 घण्टे
पूर्णाङ्क-150
40
(1) निम्नलिखित काव्यांशों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए-- (i) कोसलणन्दणेण स-कलत्ते णिय घरु पाएं।
प्रासाट्ठमि हिं किउ ण्हवणु जिणिन्दहो राएं ॥
हिन्दी अनुवाद-अपने घर पहुंचे हुए कोशलनगर के राज-पुत्र
राजा (राम) के द्वारा पत्निसहित आषाढ की अष्टमी के दिन जिनेन्द्र का अभिषेक किया गया ।
..
..
..
.
...
.
...
...
.
..
.
..
(iv)
.
....
.
....
..
..
...
.
..
..
(vi) (vii) (viii)
...............
....................
..
..
....
.
(2) निम्नलिखित गद्यांशों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए - 20 (i) एक्कहिं णयरि एक्कु अमंगलिउ मुद्ध पुरिसु प्रासि । सो
एरिसु अत्थि जो को वि पभाये तहो मुह पासेइ सो मोयणु पि न लहेइ।
262 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #276
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी अनुवाद एक नगर में एक अमांगलिक मूर्ख पुरुष था।
वह ऐसा था जो कोई भी प्रभात में उसके मुख को देखता वह भोजन भी नहीं पाता था।
.
.
.
.
.
...
.
.
..
..
.
...
..
..
.
.
..
..
.
.
...
.
.
.
.
...
.
.
..................
(iii) (iv)
....................
.
.
.
.
...
.
...
..
..
...
..
..
.
..
.
..
.
.
..
.
..
.
.
..
.
..
..
..
..
(3) निम्नलिखित काव्यांशों का अन्वय कीजिए
(i) पुणु उच्चकहाणी णिसुणि पुत्त संपज्जइ संपइ 0 विचित्त ।
परिकलिवि संगु णीचहाँ हिएण उच्चेण समउ किउ संगु तेण।
अन्वय -पुत्त पुणु उच्चकहाणी णिसुणि, जे विचित संपइ
संपज्जइ । हिएण णीचहो संगु परिकलिवि तेण उच्चेण समउ संगु किउ ।
(ii)
.
.
.
...
..
..
.
.
.
..
.
...
...
.
...
.
..
.
.
.
..
.
..
..
.
.
..
..
..
.
.
..
.
.
.
.
..
(4) निम्नलिखित गद्यांश व पद्यांश का अकादमी-पद्धति से व्याकरणिक विश्लेषण कीजिए
20
(i) पउरा वि पच्चूसे कयावि तहो मुहु न पिक्खहिं ।
व्याकरणिक पउरा (पउर) 1/2 वि, वि (अ)=भी, विश्लेषण पच्चूसे (पच्चूस) 7/1, कयावि (अ)=कभी
भी, तहो (त) 6/1 स, मुहु (मुह) 2/1, न (अ)=नहीं, पिक्खहिं (पिक्ख) व 3/2 सक।
.
.
.
.
.
.
...
....
..
.
..
.
..
..
.
.
.
.
..
.
..
.
.
.
.
.
.
..
.
...
.
..
..
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[ 263
Page #277
--------------------------------------------------------------------------
________________
( 5 ) निम्नलिखित काव्यांशों में प्रयुक्त छन्दों के मात्रा लगाकर उनके
नाम व लक्षण लिखिए
12
ऽ ।। SS SIISS
(i) चंदण लित्तं पंडुरगत्तं ।
(ii)
(iii)
(iv)
(v)
(vi)
(ii)
(iii)
(iv)
SI ISS ।।।।55
खंधे तिसुतं कयसिरछत्तं ।
264 ]
नाम
मदन विलास छन्द
लक्षण इसमें चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 8 मात्राएं होती हैं व चरण के अन्त में गुरु-गुरु (SS) होते हैं ।
( 6 ) जिन छंदों के निम्नलिखित लक्षण हैं उनके नाम लिखिए- 8
(i) जिस छंद में चार चरण होते मात्राएं होती हैं व चरण के उसका नाम लिखिए ।
हैं और प्रत्येक चरण में सोलह अन्त में जगण ( 151 ) होता है
पद्धडिया छंद
नाम
ee.doedse......
....................
******
CNSPO....
LORMORY
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #278
--------------------------------------------------------------------------
________________
(7) निम्नलिखित काव्यांशों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम, लक्षण व
व्याख्या लिखिए
10
(i) सामिणो पियंकराए, सुंदरो पियंकराए।
नाम यमक अलंकार
लक्षण पद एक से हों किन्तु उनमें भिन्नार्थ हो, वहां यमक व अलंकार होता है। व्याख्या उक्त पद्यांश में 'पियंकराए' पद दो बार मिन्न
भिन्न अर्थों में पाया है, एक स्थल पर तो उसका मर्थ प्रियकारी अर्थात् मन, वचन एवं कार्य से प्रिय करनेवाली तथा दूसरा 'पियंकराए' पद रानी का नाम प्रियंकरा वतलाता है ।
.
...
....
....
...
.
...
.
...
.
..
.
.
.
...
.
..
.
.
..
.
..
..
....
.
..
.
...
.
..
................................................
............
..
..
....
....
.
...
...
..
.
..
..
.
.
.
..
.
.
...
....
...
.
..
..
....
.
.
..
.
.
..
....................................
(8) अपभ्रंश के निम्नलिखित कवियों की रचनाओं के नाम व काल
लिखिए तथा उनके विषय बताइए
10
(i) कनकामर
रचनाओं के नाम व काल-करकण्डचरिउ, ग्यारहवीं शताब्दी
ईस्वी का उत्तरार्द्ध ।
विषय कथा का प्रमुख पात्र करकण्डु है। इसमें श्रुत
पंचमी के फल तथा पंचकल्याणक विधि का वर्णन
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 265
Page #279
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ii)
....................................
..
....................
(iii)
(iv)
.
..
.
...
.
.
..
..
...
..
..
.
..
..
..
.
.
..
.....
.
...
.
...
..
..
.
(9) अपभ्रंश के स्वरूप पर प्रश्न
12
(10) अपभ्रंश की निम्नलिखित अप्रकाशित रचनाओं के विषय, काल व रचनाकार के सम्बन्ध में बतलाइए
10
(i) सयलविहिविहाणकव्व विषय इस काव्य में विधि-विधानों की सरल प्रस्तुति
की गई है। काल विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी रचनाकार कवि नयनन्दि मुनि
(ii)
.........
(iii)
...
.
....
..
..
....
..
..
..
.
.
.
...
..
..
...
.
.
...
.
.
..
.
.
..
..
..
.
.
..
...
..
.
..
..
(iv)
.
.
..
....
..
..
.
...
.
..
..
..
.
...
..
.
.
..
..
.
....
.....
...
.
....
....
..
..
(v)
266
]
। अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #280
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर अपभ्रंश सर्टिफिकेट परीक्षा, ........
प्रश्नपत्र-द्वितीय अपभ्रंश-व्याकरण-रचना
समय -3 घण्टा
पूर्णाङ्क-150
(1) निम्नलिखित वाक्यों का अपभ्रंश में अनुवाद
कीजिए । अनुवाद की संरचना भी लिखिए। अनुवाद-1: अंक (संज्ञा-सर्वनाम शब्दों, क्रियाओं तथा कृदन्तों । संरचना-15 अंक ) 30 अंक के केवल एक विकल्प का प्रयोग कीजिए)। (पन्द्रह वाक्य) (i) वाक्य ---आज वह भोजन जीमता हुआ प्रसन्न होता है ।
अनुवाद-अज्जु सो भोयणु जेमन्तु हरिसइ । संरचना -(अ), 1/1, 2/1, वकृ 1/1, व 3/1 अक । .
(2) निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए(i) नरिंदहिं हसिज्जन्ति ।
शुद्ध वाक्य-नरिंदहिं हसिज्जइ। .
(ii) ........................"
.
...
..
..
.
.
..
..
.
.
.
...
..
.
(iii) ................................ (iv) ...............
20
(3) निम्नलिखित वाक्यों का अकादमी-पद्धति से व्याकरणिक विश्लेषण
कीजिए(i) एक्कहिं णयरि एक्कु अमंगलिउ मुटु पुरिसु प्रासि ।
एक्कहिं (एक्क) 7/1 वि, णयरि (णयर) 7/1,
अपभ्रश अभ्यास सौरभ ]
[
267
Page #281
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक्कु (एक्क) 1/1 वि, प्रमंगलिउ (अमंगलिय) 1/1 वि, मुद्ध (मुद्ध) 1/1 वि, पुरिसु (पुरिस) 1/1,
प्रासि (अस) भू 3/1 अक । (i) .......................... (iii) ...... (iv) .............. (v) ......
..
.
.
..
..
.
..
.
.
..
...
.
..
.
...
.
.
(4) निम्नलिखित वाक्यों के वाच्य बताइए(i) कमले विप्रसिप्रव्व ।
भाववाच्य (ii) ........................................... (iii) ............................... (iv) ............
.....
........
.........................................
(5) निम्नलिखित वाक्यों का निर्देशानुसार वाच्य-परिवर्तन कीजिए(i) हडं लुक्कउं । (भाववाच्य)
मई लुक्किज्जइ। (ii) ....................... (iii) ......................... (iv) .............
..
.
....
..
..
....
...
.
...
.
.
...
...
.
..
..
...
.
.
...
..
.
..
.
..
.
..
....
...
6
(6) निम्नलिखित वाक्यों का दो प्रकार से अपभ्रंश में अनुवाद कीजिए(i) वह नाचा ।
(क) सो णच्चियो।
(ख) तेण णच्चिा /णच्चिमा/णच्चिउ । (ii) ............
.............
........................
...........
.
.................
268 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
Page #282
--------------------------------------------------------------------------
________________
( 7 ) अनियमित भूतकालिक कृदन्तों का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित वाक्यों का अपभ्रंश में अनुवाद कीजिए
(i) मामा के द्वारा तुम्हारी प्रशंसा की गई । अनुवाद - माउलें तउ पसंसा किना ।
(ii)
(iii)
(iv)
(v)
(ii)
(iii)
(iv)
(v)
********.
(ii)
(iii)
(iv)
(^)
....CO
----..-.
( 8 ) अनियमित कर्मवाच्यों के क्रिया-रूपों का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित
वाक्यों का अपभ्रंश में अनुवाद कीजिए -
(i) उसके द्वारा गीत सुना जाता है ।
अनुवाद - तेरण गारण सुन्नइ ।
*
D
********.......
********................... ............................
( 9 ) निर्देशानुसार निम्नलिखित शब्दों के रूप सभी विकल्पों में लिखिए
(i) देव (षष्ठी एकवचन )
―――
.........
...............................
रूप
— देव, देवा, देवहो, देवाही, देवसु, देवासु, देवस्सु
0100 0................ *** .......
***
*****.......
********.........................
(10) निर्देशानुसार निम्नलिखित क्रियाओं के रूप सभी विकल्पों सहित '
लिखिए
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
****
[
5
10
10
269
Page #283
--------------------------------------------------------------------------
________________
...
.
...
.
....
..
..
...
.
..
..
.
..
.
.
.
.
....
...
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
........................
................................................
..
.
..
.
...
.
..
.
..
...
..
..
...
.
...
.
(i) हस (वर्तमानकाल, उत्तमपुरुष एकवचन)
क्रिया-रूप --हसउं, हसमि, हसामि, हसेमि । (ii) ............. (iii) ................ (iv) .......
(v) ........ (11) निम्नलिखित कृदन्तों का प्रयोग करते हुए अपभ्रंश के वाक्य बनाइए
और उनका हिन्दी अनुवाद भी कीजिए । ये सभी कृदन्त विभक्तिचिह्नरहित हैं(i) हसिन
अपभ्रंश वाक्य-सो हसियो ।
हिन्दी अनुवाद -वह हंसा । (ii) ................................ (iii) ..........................................
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
..
..
..
.
....
....
(iv) ..........."
...
..
..
..
..
...
.
..
..
.
...
......................................................
...................
.............................
....
........
..........................
.....
.
.
..
..
..
.
.
..
.
..
.
...
.
..
.
.
..
...
.
...
.
.
..
.
..
.
.
..
.
....
.
...
...
.
(12) निर्देशानुसार निम्नलिखित क्रियाओं के कृदन्त के रूप में किसी एक
विकल्प का प्रयोग करते हुए अपभ्रंश के वाक्य बनाइए(i) लुक्क (वर्तमान कृदन्त)
सो लुक्कन्तो बइसइ । (ii) ... ... .............. (iii) ........................................
(iv) ............. (13) निम्नलिखित शब्दों के लिंग बताइए(i) कमल
नपुसकलिंग
.......
................................................................
.
......
.
......................................
....................
(ii)
.....
..........................
270 ]
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #284
--------------------------------------------------------------------------
________________
(iii) (iv)
(v) (vi) (vii)
(14) निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) सो हसेप्पिणु उट्टइ ।
(iii) (iv) (v)
(15) प्रेरणार्थक प्रत्ययों के किसी एक विकल्प का प्रयोग करते हुए निम्न
लिखित वाक्यों का अपभ्रंश में अनुवाद कीजिए-- (i) वह मुझको हँसाता है ।
अनुवाद-सो मई हसावइ ।
(iii)
(iv)
(16) निम्नलिखित शब्द स्वार्थिक प्रत्ययसहित हैं। इनमें प्रयुक्त स्वार्थिक
प्रत्यय लिखिए। (i) जीवड
स्वार्थिक प्रत्यय-अड
(ii)
(iii)
(iv)
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 271
Page #285
--------------------------------------------------------------------------
________________
(17) निम्नलिखित क्रियाओं में सकर्मक-अकर्मक बताइए(i) जेम
सकर्मक
(ii)
(iii)
(iv)
(18) अपभ्रंश के निम्नलिखित वाक्यों में अन्य वैयाकरणों द्वारा निर्दिष्ट
संज्ञा-प्रत्ययों के स्थान पर हेमचन्द्र द्वारा निर्दिष्ट संज्ञा-प्रत्ययों को लिखिए(i) देविहिं गन्धोदयाई पट्टवियई।
देविहु गन्धोदयाई पट्ठवियई ।
(ii)
(iv)
___A
(19) निम्नलिखित वाक्यों में से कृदन्त छांटिए और उनके नाम लिखिए ।
जहां आवश्यक हो वहां विभक्ति बताइए(i) ससाउ णच्चन्ता थक्कन्तु ।
णच्चन्ता-वर्तमान कृदन्त 1/2 । (ii) (iii)
(iv) (20) निम्नलिखित क्रियाओं के काल, वचन और पुरुष लिखिए(i) विप्रसइ
वर्तमानकाल, एकवचन, अन्य पुरुष
10
10
272
]
. [ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #286
--------------------------------------------------------------------------
________________
(iii)
(v)
(vii) (viii)
(ix)
अपभ्रंश अभ्यास सौरम ]
[
273
Page #287
--------------------------------------------------------------------------
________________
शुद्धिपत्र
शुद्ध जग्गन्तु तुम्हई
तुम्हई
अच्छिहिउ
क्र.सं. पृसं. 1. 7 2. 8 3. 8 4. 24 5. 29 6. 32 7. 57 ४. 58 9. 58 10. 63 11. 72 12. 82 13. 92
जग्गरणहं खेत्त विमाण बहुवचन संझा
पंक्ति
अशुद्ध 39
जग्गन्त ग,9
तुम्हइ ग, 29
तुम्हइ ख-44
अच्छिहउं ग-3.1 ख-5
जग्गणह ख-14
खेत ख-उदाहरण विमाणइ ग-2, पंक्ति-2 एकवचन ख, 39 सझा ख, 9 ग-2, 1
थम क-2,8 ख-22
तइ ग, 2
गचन्त ग, 17 सुक्कन्तइ ग, 24
कदेवि ग, उदाहरण (1) माउलण घ, 14
ताइ क-2, उदाहरण दहीही बहुवचन तृतीया ख, 16
कुट्ट
कूद
थंभ
णह
14.
98
तई
७४
रगच्चन्त
16.
98
17.
17.
99
18.
99 108 113 116 116
सुक्कन्तई कंदेवि माउलेण ताई दहिहीं
19. 20.
20.
21.
120
गव
गर्व
274 ]
अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #288
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. 22.
पृ.सं. 124
शुद्ध क-2 कुदाया घर गया
23.
पंक्ति
अशुद्ध क-4
क-4 ख, 20 डुबाया 2क (1) घर आ गया 2.16.1 छन्द संख्या-14 जभेटिया
134
24.
145
190
26.
193
193
जंभेटिया
पहु
28.
29.
30.
31.
छंद कुडुबिएहि भणियं कल्लोलवोल संखोहणिया सग्गम्मि कम्मणा पियंकराए
32. 33. 34.
34.
195 पादाकुलक छंद- पहु
उदाहरण 201 16. उदाहरण छद 205 (क)-(3) कुडंबिएहिं 205 (क)-(4)
मणिय 207 (10)
कल्लोलवोलं 208 (5)
सखोहणिया 208 (9)
सग्गमि 211 (घ) (1) कयमणा 215 यमक अलंकार, पियकराए
उदाहरण 226 ।
महियल 227 (4.)
गधोदकधारा छंद 2292
घुरुहुरंतसमडिय 230 230 1
ज 230 11-1 धरहिं 230 11-1
गइज्जइ 230 231 13-4
धम्ममि
35.
36.
37.
महियलं गधोदकधारा छंद घुरुहुरंतसंभडिय
38
39
38. 39 40.
घरहि
गाइज्जइ
42.
धम्मम्मि
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
। 275
Page #289
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. पृ.सं. पंक्ति
अशुद्ध
शुद्ध SIS
5। । 44. 232 232 15
दण्डयाइ
दण्डयाइ 232 रासाकुलक छंद 24 मात्राएं
21 मात्राए
लघु (1) व गुरु (s) नगण (111) 46. 236 2
कुञ्जर व
कुञ्जर व्व 47. 239 239 28, 2
भरतरुदकुंडकूव भरतरुकुंडकूव 48. . 240 29-1 सिद्धिकंतस्तो सिद्धिकतरत्तो 240 29
पंचचामर छंद के उदाहरण की प्रारम्भिक दो पंक्तियाँ निम्न
प्रकार हैंजगण रगण जगण रगण जगण गुरु ।। । । । । । । थुणेइ देउ मोक्खहेउ चित्ति जाम हिरो । 123 45 6 789 1011 1213 141516 जगण रगण जगण रगण जगण गुरु I SISI 5 1515 151 SIS सूरिंदवंद ते मुणिंद ता णिसुण्ण दिट्टयो । 12345, 6 789 10 111215141516
276
1
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Page #290
--------------------------------------------------------------------------
________________