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________________ अर्थ-जब युद्ध में वह अभग्न प्रभु यह प्रतिज्ञा कर रहा था कि तभी विद्युदंग चोर वहां प्रविष्ट हुा । 19. कामलेखा छन्द लक्षण-इसमें दो पद होते हैं। प्रत्येक चरण में सत्ताइस मात्राएं होती हैं। ।।। ।।। । ।। ।। ।। ।। ss गयवर-तुरय-जोह- रह-सीह-विमाण- पवाहणाइं । ।। ।।। ।। ।। ।।।। ।।।। 5155 रण-तूरई हयाई किउ कलयलु भिडियई साहणाई। -पउमचरिउ 66.1.1 अर्थ-उत्तम हाथी, अश्व, योद्धा, रथ, सिंह, विमान और दूसरे वाहन चल पड़े। युद्ध के नगाड़े बज उठे । कोलाहल होने लगा। सेनाएं आपस में भिड़ गयीं। ____ 20 दुवई छन्द लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (समद्विपदी)। प्रत्येक चरण में अट्ठाइस मात्राएं होती हैं और चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है । ।। ।। । । ।।। । । । । ऽ। हिय एत्तहे वि सीयएत्तहे वि विप्रोउ महन्तु राहवे । ।। ।। । ।।। ।।। । ।। ।।। ।s हरि एत्तहे वि मिडिउ एत्तहे वि विराहिउ मिलिउ पाहवे । -पउमचरिउ 40.2.1 अर्थ-यहां सीता का अपहरण कर लिया गया और यहां राम को महान वियोग हुआ । यहां लक्ष्मण युद्ध में भिड़ गया और यहां युद्ध में विराधित मिला । 21. प्रारणाल छन्द लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 30 मात्राएं होती 234 [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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