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________________ (क) निम्नलिखित काव्यांशों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम तथा लक्षण बताते हुए व्याख्या कीजिए1. हउँ कुलीणु अवगणियउ उच्छलंतु अकुलीण उ वृत्तउ । रुहिरण इहे घूलीरएण णं इय चितेवि अप्पउ खित्तल ॥ ___- सुदंसणचरिउ 9.6 घत्ता अर्थ-मैं कुलीन (पृथ्वी में लीन) होने पर अपमानित होता हूं और ऊपर उछलते हुए अकुलीन (पृथ्वी से संलग्न) कहलाता हूं। ऐसा सोच. कर मानो धूलिरज ने अपने को उस रुधिर की नदी में फेंक दिया। 2. णमंसेवि वीरं गइंदे णरिदो वलग्गो णवे मेहि णं पूणिमिदो। रहा जाग जंपाण भिच्चा तुरंगा पयट्टा समुद्दे चला गं तरंगा ॥ -सुदंसणचरिउ 1.6.7-8 अर्थ-वह वीर भगवान को नमस्कार करके एक गजेन्द्र पर आरूढ़ हुआ मानो नवीन मेघ पर पूर्ण चन्द्र चमक रहा हो । उस समय रथ, यान, झपान, भृत्य और तुरंग इस प्रकार चल पड़े जैसे समुद्र में तरंगें चल रही हों। 3. जिएवरघरघंटाटणटणंतु, कामिणीकरकंकण खणखणंतु । -महापुराण 46.2.3 अर्थ-जिनवर के मन्दिरों के घण्टों की टनटन ध्वनि तथा कामिनियों के कंगनों की खनखन ध्वनि हो रही है । 4. तत्थरिथ सिद्धत्थु णरणाहु सिद्धत्थु । -वढमाणचरिउ 9.3.1 अर्थ-(उस कुण्डपुर में) समस्त अर्थों को सिद्ध कर लेनेवाला सिद्धार्थ नामक राजा राज करता था। 5. अवि य-प्रकत्तिए निरंतरंतरं, हुयं निरब्भमंबरवरं । अपाउसे असारयं रयं, धरायले व्व निक्खयं खयं ।। -जंबूसामिचरिउ 4.8.12-13 220 ] [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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