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________________ आरम्भिक 'अपभ्रश अभ्यास सौरभ' अपभ्रंश अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है । यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजन के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया । प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्रोत बनी। अतः हिन्दी एवं अन्य सभी उत्तर भारतीय भाषाओं के विकास के इतिहास के अध्ययन के लिए अपभ्रंश भाषा का अध्ययन प्रावश्यक है। अनेक कारणों से अपभ्रंश के अध्ययनअध्यापन की उचित व्यवस्था न हो सकी। परिणामतः अपभ्रंश का अध्ययन अत्यन्त दुग्कर हो गया। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित 'जनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। हमें यह लिखते हुए गर्व है कि प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी के सतत सहयोग से डॉ. सोगाणी ने नियमित कक्षाओं एवं पत्राचार की स्वनिर्मित योजना के माध्यम से अपभ्रंश व प्राकृत के अध्ययन-अध्यापन के द्वार खोलने का एक अनूठा कार्य किया है। अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम में अपभ्रंश का अध्यापन मुख्यतः पत्राचार के माध्यम से किया जाता है। 'अपभ्रंश अभ्यास सौरम' में पत्राचार के अभ्यासों का संकलन है । इस पुस्तक के प्रकाशन से अध्ययनार्थी अपभ्रंश भाषा को सीखने में अधिक समय दे सकेंगे और विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय इस पुस्तक को पाठ्यक्रम में लगाकर विद्यार्थियों को सुविधापूर्वक अपभ्रंश का अध्यापन करा सकेंगे। ___'अपभ्रंश अभ्यास सौरम' पुस्तक के लिए हम डॉ. कमलचन्द सोगाणी के आभारी हैं। पुस्तक प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के कार्यकर्ता एवं मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस धन्यवादाह हैं। कपूरचन्द पाटनी मन्त्री नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी (i) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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