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ऽ ऽ ।।। ।। ।। । ।। ज जाणियउ अक्खउ रण-रसाहिउ । ।। ।। ।। ।।।। ।। ।। रहु सारहिण हणुवहाँ सम्मुहु वाहिउ ।। s s। ।। । । । ।। ढक्कन्तु रणे तेण वि दिठु केहउ । ।। ।।।
। ।।। रयणायरे ण गङ्गा वाहु - जेहउ ।।
- पउमचरिउ 52.3.1 अर्थ .. जब सारथी ने यह देखा कि अक्षय रणरस (वीरता) से भरा हुआ है तो
हनुमान के सम्मुख रथ बढ़ा दिया। रणस्थल में पहुंचते ही हनुमान ने उसे इस प्रकार देखा मानो समुद्र ने गंगा के प्रवाह को देखा हो ।
नोट--नियम चार (अभ्यास-50, पृ. 192) के अनुसार प्रथम, तृतीय व चतुर्थ
चरण का अन्तिम ह्रस्व वर्ण गुरु माना गया है ।
11. चउपही छंद (चतुष्पदी) लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएं
होती हैं और चरण के अन्त दो मात्राएं लघु (।।) होती हैं । । । ।।। ।।। ।। 5 ।। दोहिं वि धरहिं धवलु मंगलु ग. इज्जइ ।
। । ।।। ।।। ।। 5 ।। दोहि वि घरहिं गहिरु तूरउ वाइज्जइ ।
। । ।।। ।।। ।।।। ।। दोहिं वि घरहिं विविहु अाहरण लइज्जइ ।
। । ।।। ।।।।।।। ।। दोहिं वि घरहिं लडतरुणिहिं णच्चिज्जइ ।
-~- सुदसणचरिउ 54.9-10
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[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
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