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________________ अर्थ- दोनों ही घरों में धवल मंगल गान होने लगे, दोनों ही घरों में गम्भीर तूर्य बजने लगा। दोनों ही घरों में विविध आभरण लिये जाने लगे । दोनों ही घरों में सुन्दर तरुणियों के नृत्य होने लगे । 12. मदनावतार छंद लक्षरण - इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में बीस मानाएं होती हैं और चरण के अन्त में रगण (15) होता है। रगण ऽ । । । । ।।। । रावणेण वि धणुं समरे दोहाइयं । रगण $151 SS IS SIS साम्व तं दन्द बुज्झं समोहा इयं ।। -..पउमचरिउ 66.8.5 अर्थ रावण ने विभीषण के धनुष के दो टुकड़े कर दिए तब उन्होंने एक-दूसरे को द्वन्द्व युद्ध के लिए सम्बोधित किया। 13. सारीय छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएं होती हैं और अन्त में गुरु (5) व लघु (1) होता है । ।। । । ।। । । तिमिरं णियच्छेवि पंडिय गया तत्थ, Il s1551 5515 51 थिउ झाणजोएण सेट्ठीसरो जत्थ, 1151 SSI s § 1551 पणवंति जपेइ लग्गी पयग्गम्मि, ।।ऽ । ऽऽ । । ऽ ऽ। जइ अस्थि जीवे दया तुम्ह धम्ममि । -सुदंसणचरिउ 8.20.1-2 अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ] [ 231 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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