________________
अर्थ-अन्धकार फैला देखकर पंडिता वहां गई जहां सेठों का अग्रणी सुदर्शन
ध्यानयोग स्थित था । वह प्रणाम करते हुए उसके पैरों से लग गई और बोली यदि तुम्हारे धर्म में जीव-दया है.... ।
14. शशितिलक छंद लक्षण - इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं
तथा सर्वत्र लघु (1) होता है । ।। ।।। ।।।। । ।।।।। ।।।।। जय अणह चउदिसु वि पडिफुरिय चउवयण ।
जय गलियमलपडल कमलदलसमणयण ॥
-सुदंसणचरिउ 1.11.3-4 अर्थ- हे भगवन् पाप निष्पाप हैं और समवशरण के बीच चारों दिशाओं में
आपके चार मुख दिखाई देते हैं ।
15. मंजरी छंद लक्षण- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएं
होती हैं । ।।। । ।। ।। । ।s कहिउ सव्वु तं लक्खण-राम-कहाणउं । sis. I si Is Iisis दण्डयाइ मुणि-कोडि-सिला-अवसाणउं ॥
--पउमचरिउ 45.6.1 अर्थ-उसने राम-लक्ष्मण की सब कहानी उन्हें सुना दी किस प्रकार दण्डकवन
में उन्होंने कोटि शिला को उठा लिया।
16. रासाकुलक छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती
हैं और चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (s) होता है।
232
]
.
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org