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________________ उदाहरणरगण रगण ।। ।। ।। । ।।। । ।। 5 । पह तउ दंसणकारणं, लहिवि वियप्पई में मणं । रगण रगण ।। । । । ।।।। ।। । । । सहुँ तुम्हेहिं समुच्चयं, चिरवि कहि मि परिच्चयं । ----जंबूसामिचरिउ 8.2 अर्थ---प्रभु आपके दर्शनों का हेतु प्राप्त कर मेरे मन में ऐसा विकल्प हुआ है कि आपके साथ कहीं पूर्व भव में विशिष्ट (प्रगाढ़) परिचय रहा । 10. मधुभार छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में 8 मात्राएं होती हैं। उदाहरण।।।। ।। । । । ।।। तिहुवण-रम्महुँ, तो वि ण धम्महुँ । 5 ।। ।। । । ।। लग्गहिँ मुढिउ, पाव परूढिउ । -सुदंसणचरिउ 6.15 अर्थ इतने पर भी वे मूढ पाप में फंसी हुई, त्रिभुवन रम्य धर्म में मन नहीं लगाती । 11. दीपक छंद लक्षण - इस में चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में 10 मात्राएं होती हैं । चरण के अन्त में लघु (1) होता है । उदाहरणऽ ।।। ।। ।।।।। 55। ता हयई तुराई, भुवणयल-पूराई । SS SS SS SS बज्जति वज्जाई, सज्जति सेण्णाई । -करकंडचरिउ 3.15 198 ] [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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