________________
अमांगलिक पुरुष की कथा
एक नगर में एक अमांगलिक मूर्ख पुरुष था। वह ऐसा था ---जो कोई भी प्रभात में उसके मुंह को देखता वह भोजन भी नहीं पाता (उसे भोजन भी नहीं मिलता)। नगर के निवासी भी प्रात:काल में कभी भी उसके मुंह को नहीं देखते थे। राजा के द्वारा भी अमांगलिक पुरुष की बात सुनी गई । परीक्षा के लिए राजा के द्वारा एक बार प्रभातकाल में वह बुलाया गया, उसका मुख देखा गया। ज्योंहि राजा भोजन के लिए बैठा और मुंह में (रोटी का) ग्रास रखा त्योंहि समस्त नगर में अकस्मात् शत्रु के द्वारा आक्रमण के भय से शोरगुल हुआ। तब राजा भी भोजन को छोड़कर (और) शीघ्र उठकर सेना-सहित नगर से बाहर गया।
और भय के कारण को न देखकर बाद में आया । अहंकारी राजा ने सोचाइस अमांगलिक के स्वरूप को मेरे द्वारा प्रत्यक्ष देखा गया, इसलिए यह मारा जाना चाहिए । इस प्रकार विचारकर अमांगलिक को बुलवाकर वध के लिए चांडाल को सौंप दिया । जब यह रोता हुआ स्व-कर्म की (को) निन्दा करता हुआ चाण्डाल के साथ जा रहा था, तब एक दयावान, बुद्धिमान ने वध के लिए ले जाए जाते हुए उसको देखकर, कारण को जानकर उसकी रक्षा के लिए कान में कुछ कहकर उपाय दिखलाया। (इसके फलस्वरूप वह) प्रसन्न होते हुए (चला)। जब (वह) वध के खम्भे पर खड़ा किया गया तब चाण्डाल ने उसको पूछा-~-जीवन के अलावा तुम्हारी कोई भी (वस्तु की) इच्छा हो, तो (तुम्हारे द्वारा) (वह वस्तु) मांगी जानी चाहिए । उसने कहा- मेरी इच्छा राजा के मुख-दर्शन की है। तब वह राजा के सामने लाया गया। राजा ने उसको पूछा-यहां आने का प्रयोजन क्या है ?
उसने कहा-हे राजा ! प्रातःकाल में मेरे मुख के दर्शन से (तुम्हारे द्वारा) भोजन ग्रहण नहीं किया गया, परन्तु तुम्हारे मुख के देखने से मेरा वध होगा तब नगर के निवासी क्या कहेंगे ? मेरे मुंह (दर्शन) की तुलना में श्रीमान् का मुख दर्शन कैसा फल उत्पन्न करता है ? नागरिक भी प्रभात में तुम्हारे मुख को कैसे देखेंगे ? इस प्रकार उसकी वचन की युक्ति से राजा सन्तुष्ट हुा । (वह) वध के आदेश को रद्द करके और उसको पारितोषिक देकर प्रसन्न हुमा । (इससे) वह अमांगलिक भी सन्तुष्ट हुआ ।
-
-
-
-
-
-
-
-
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
[
173
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org