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29. पंचचामर छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में जगण (151),
रगण (515), जगण (151), रगण (515), जगण (151) और गुरु व
सोलह वर्ण होते हैं। जगण रगण जगण रगण जगण ग 15। । । । । ।5 तवग्गितत्तु मोहचत्त सिद्धि कंतस्तयो । 12 3 45 6 7 89 10111213141516 जगण रगण जगण रगण जगण ग 15। ।5।।5। ।515 भयारण पछु णेत्तइट्ठ जल्ललित्तगत्तप्रो। 1 2 3 4 5 67 8 9 10111213141516
-सुदसणचरिउ 10.3.1 अर्थ-इस प्रकार जब सुदर्शन चित्त में हर्षित होकर मोक्ष के हेतुभूत जिनेन्द्रदेव
की स्तुति कर रहा था, तभी उसने वहां सुरेन्द्र द्वारा वन्दनीय एक मुनिराज को बैठे देखा। वे मुनिराज तपरूपी अग्नि से तपाये हुए, मोह से त्यक्त व सिद्धिरूपी कांता में अनुरक्त मदों से रहित, नेत्रों को इष्ट व शरीर के मैले से लिप्त थे।
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[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
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