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अभ्यास-50
छंद के दो भेद माने गए हैं1. मात्रिक छंद, 2. वणिक छंद
1. मात्रिक छंद-मात्राओं की संख्या पर आधारित छंदों को 'मात्रिक छंद' कहते हैं । इनमें छेद के प्रत्येक चरण की मात्राएँ निर्धारित रहती हैं । किसी वर्ण के उच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर दो प्रकार की मात्राएं मानी गई हैं- ह्रस्व और दीर्घ । ह्रस्व (लघु) वर्ण की एक मात्रा और दीर्घ (गुरु) वर्ण की दो मात्राएं गिनी जाती हैं
लघु (ल) (1) (ह्रस्व) गुरु (ग) (s) (दीर्घ)
मात्राएं गिनने के कुछ नियम हैं(३) सयुक्त वर्णों से पूर्व का वर्ण यदि लघु है तो वह दीर्घ गुरु माना
जाता है । जैसे—'मुच्छिय' शब्द में “च्छि' से पूर्व का 'मु' वर्ण गुरु
माना जाएगा। (ii) जो वर्ण दीर्घस्वर से संयुक्त होगा वह दीर्घ या गुरु माना जायेगा।
जैसे - रामे । यहां 'रा' और 'मे' दीर्घ वर्ण हैं । यदि मे को ह्रस्व
करना होगा तो 'मे' इस प्रकार लिखा जाएगा । (iii) अनुस्वार-युक्त ह्रस्व वर्ण भी दीर्घ/गुरु माने जाते हैं । जैस- 'वंदेप्पिणु'
में 'व' ह्रस्व वर्ण है किन्तु इस पर अनुस्वार होने से यह गुरु (5) माना
जाएगा। (iv) चरण के अन्तवाला ह्रस्व वर्ण भी यदि आवश्यक हो तो दीर्घ/गुरु
मान लिया जाता है और यदि गुरु मानने की आवश्यकता न हो तो वह ह्रस्व या दीर्घ जैसा भी हो बना रहेगा।
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[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
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