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(क) निम्नलिखित पद्यों के मात्राएं लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों के लक्षण व नाम
बताइए -
( 1 ) तो पेल्लियं झत्ति जाणेण जाणं, गइदेण अण्ण गइंदं सदाणं । तुरंगेण मग्गम्मि तुंगं तुरंग भुयंगं भुयंगेरण वेसासु रगं ।
जं. सा. च 4.21.13-14 अर्थ - - तब झटपट यान से यान भिड़ गया व हाथी से दूसरा मदमत्त हाथी । मार्ग में तुरंग से ऊँचा (बलिष्ठ तुरंग ) वेश्याओंों में आसक्त, जार से जार ।
(2) विद्यति जोह जलहरसरिसा वावल्लभल्ल कष्णिय वरिसा | फारक्क परोप्परु वडिया, कोंताउह कोंतकरहिं भिडिया ।
जं. साच. 6.6.7-8 अर्थ योद्धा लोग जलधरों के समान बल्लम, भालों व बाणों की वर्षा करते हुए (परस्पर को ) बींध रहे थे। फारक्क (शस्त्र को) धारण करनेवाले एक-दूसरे पर टूट पड़े और कुंतवाले कुंत धारणकरनेवाले प्रतिपक्षियों से भिड़ पड़े ।
( 3 ) सरलं गुलिउब्भिवि पिएहिं पयडेइ व रिद्धि कुबिएहिं । उहि विसिय सहहिं गाम सग्ग व अवइण्ण विचित्तधाम |
अर्थ- - सरल अंगुलियों को उठा-उठाकर बोलनेवाले अपने कुटुम्बी अर्थात् किसान गृहस्थों के द्वारा जो अपनी ऋद्धि-समृद्धि को प्रकट करता है । देवकुलों से विभूषित वहां के ग्राम ऐसे शोभायमान हैं मानो विचित्र भवनोंवाले स्वर्ग अवतीर्ण हो गए हों ।
( 4 ) इय संसारे जंपियं निसुणेवि जगणी जंपियं । दुक्ख नियामिणा मरिणय जंबूसामिणा ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ |
- ज. सा. च 1.87-8
अर्थ - इस संसार में जो प्रिय है, जननी के वैसे गतियों के दुःख का नियमन करनेवाले जंबूस्वामी ने कहा
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- जं. सा. च 88.1-2 कथन को सुनकर चारों
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