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(4) कहि जि दिट्ठ छारया, लवन्त मत्त मोरया ।
कहि जि सीह - गण्डया, धुणन्त पुच्छ दण्डया ||
(5) उम्मोहणिया सखोहणिया ।
अक्खोहणिया उत्तारणिया ।
अर्थ - कहीं पर भालू दिखायी दे रहा थे और कहीं पर बोलते हुए मस्त मोर । कहीं पर अपने पूंछ- रूपी दण्डों को धुनते हुए सिंह और गंडे थे ।
( 6 ) नंदणो मुणेवि माय कारणेण केण प्राय । आनमसि पयाइँ पुच्छइ त्ति अम्मि काइँ ।
अर्थ - उम्मोहणिका, संक्षोमणिका, ग्रक्षोभणिका, उत्तरणिका ।
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(7) कुंटिउ मंटिड मोट्टिउ छोट्टिउ ।
बहिरिउ धि
दुग्गंधिउ ॥
- ज. सा च. 9.17.5-6
अर्थ किसी कारण से मां को आयी जानकर पुत्र ने मां के पैरों को नमस्कार करके पूछा - मां क्या बात है ?
( 8 ) अच्छइ जाव सुहेणं मुंजइ भोय चिरेणं । ताव सधम्मु सुसीलो मत्तयकुंजरलीलो ||
- पउमचरिउ 32.3.5-6
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-गायकुमारचरिउ 6 6.11-12
- सु च 6 159-10 अर्थ वे ठूंठी, लंगडी, मोटी, छोटी बहरी, ग्रंधी प्रतिदुर्गन्धी होती हैं ।
( 9 ) ता अमियवेएण अमरेण हूएण 1 थियएण सग्गमि चितियउ हिययम्मि ||
- करकण्डचरिउ 8.3.3-4
अर्थ- सुख से रहता हुआ दीर्घकाल तक भोग भोगता रहा । तब एक, धर्मवान, सुशील, मत्व कुंजर के समान लीला करता हुआ 1
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- करकण्डचरिउ 5.11.1-2
[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
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