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4.
अर्थ - हे राजेश्वर, आपने समस्त यश सचित किया है । जिस प्रकार गुण-श्रेणी चढने पर ज्ञान द्वारा योगी का अज्ञान दूर हो जाता है ....
गधोदकधारा छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में तेरह मात्राएं होती हैं व चरण के अन्त में नगर ( 111 ) होता है ।
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- पउमचरिउ 49.6.1
अर्थ - यह सुनकर विभीषण का मन डोल उठा । उसमे हनुमान को बताया कि रावरण कुछ समझता ही नहीं, जो कुछ आप कर रहे हैं उसकी मैंने उसे सौ बार शिक्षा दी ।
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5. डिल्ल ( श्रलिल्लाह ) छन्द
लक्षण - इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं और अन्त में दो मात्राएं लघु ( 1 ) होती हैं ।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
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कव्वइँ णाइयसत्थई सुणियइँ, पहरणाईं णीसेस हूँ गुणियइँ |
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गहगमणपयट्टई ।
- णायकुमारचरिउ 3.1.5-6
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