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________________ नगण लग नगण ।।। ।।।। ।।। ।।। 5 चलइ णिवबलं, दल इ महियल । नगण लग नगण लग ।।। ।।। ।।। ।।। सहइ गहभरं, वहइ अइडरं । ~सुदंसरणचरिउ 9.3 1-2 अर्थ-राजा का सैन्य चल पड़ा और पृथ्वीतल को रौंदने लगा । वह आकाश को भरते हुए सोहने (लगा) व अत्यन्त डर उत्पन्न करने लगा। 2. अमरपुरसुन्दरी छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएं होती हैं, चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है । लग लग ।।। ।। । 5 ।।। ।।s s सहउ सिहितावणं. महउ सुहभावणं, लग ।।। ।। 5 ।।। ।।। ।। चडउ जलियारणले, पडउ भइरवतले । -सुदंसणचरिउ 6.10.3-4 अर्थ-चाहे पंचाग्नि तप करो, सुहावना पूजा-पाठ करो, जलती हुई अग्नि में चढ़ो या भयंकर पर्वतों से नीचे गिरो (भगुपात करो)। 3 चारुपद छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में वस मात्राएं होती हैं, अन्त में गुरु (5) व लघु (1) होता है। S SISSI SITI 1151 भो रायराएस, संगहियजससेस, TISISSI 5S i SSI गुरणसेढिठाणेण, जोइ व्व णाणेण । -~जसहरचरिउ 1.17.3-4 226 ] [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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