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अर्थ-उसके कारण धनपटल अत्यन्त चंचल होकर गड़गड़ाने लगा, मानो
वह पृथ्वी पर गिर रहा हो ।
(8) वियसियवत्तं हलणेत्तं । इय गुणजुत्तं दिळं मित्तं ।।
- सुदंसणचरिउ 4.1.8 अर्थ-प्रसन्नमुख और स्नेहिल नेत्रोंवाला था। इन सब गुणों से युक्त
देखकर सुदर्शन ने उसे अपना मित्र बना लिया ।
(9) चावहत्था पसत्था रणे दुद्धरा धाविया ते णरा चारुचित्ता वरा। __ के वि कोवेण धावंति कप्पंतया के वि उग्गिण्णखग्गेहि दिप्पंतया ॥
- करकंडचरिउ 3.14.5-6 अर्थ वे प्रशस्त रण में दुर्द्धर नर प्रसन्नचित्त होकर हाथों में धनुष लिये
दौड़े। कितने ही कोप से कांपते हुए और कितने ही उघाड़े हुए खड्गों से दीप्तिमान होते हुए दौड़े।
(10) उब्भिय करणयदण्ड, धुवन्त धवल, धुप्रधयवड । रसमसकसमसन्त तडतडयडन्त, कर गडघड ।
-उमचरिउ 40 16.4 अर्थ - स्वर्णदण्ड उठा लिये गए । धवल ध्वजपट उड़ने लगे । गजघटाएं
रसमसाती और कसमसाती हुई तड़तड़ करने लगी।
अपभ्रशं अभ्यास सौरभ ]
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