________________
अर्थ-हाय-हाय नाथ, सुदर्शन, सुन्दर, चन्द्रमुख, सुजन, सलोने, सलक्षण जिन
मति के पुत्र । व्याख्या-उपर्युक्त उदाहरण में 'स' वर्ण की बार-बार आवृत्ति हुई है । अत: यह
अनुप्रास का उदाहरण है।
____ 2. यमक अलंकार-जहां पद एक-से हों किन्तु उनमें अर्थ भिन्न हो वहां यमक
अलंकार होता है। उदाहरणसामिणो पियंकराए, सुंदरो पियकराए। - वड्ढमारणचरिउ 2.3.2 अर्थ-रानी प्रियंकरा से स्वामी के लिए प्रियकारी सुन्दर (पुत्र उत्पन्न हुमा)। व्याख्या-उपर्युक्त पद्यांश में 'पियंकराए' पद दो बार भिन्न-भिन्न अर्थों में पाया
है । एक स्थल पर तो उसका अर्थ प्रियकारी अर्थात् मन, वचन एवं कार्य से प्रिय करनेवाला तथा दूसरा 'पियंकराए' पद उसकी रानी का नाम 'प्रियंकरा' बतलाता है ।
3. श्लेष अलंकार- जब वाक्य में एक ही शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ निकलें
तो ऐसे अनेकार्थी शब्द में श्लेष अलंकार होता है। उदाहरणबहुपहरेहिं सूरु अत्यमियउ अहवा काई सीसए । जो वारुणिहिं रत्तु सो उग्गु वि कवणु ण कवणु णासए ।
-सुदंसणचरिउ 5.8 अर्थ-बहुप्रहरों के बाद सूर्य अस्तमित हुमा, (मानो) बहुत प्रहारों से शूरवीर
नाश को प्राप्त हुमा । अथवा क्या कहा जाय जो वारणि (पश्चिम दिशा) से रक्त हुआ, वह वारुरिण (मदिरा) में रतपुरुष के समान उम्र होकर
भी कौन-कौन नष्ट नहीं होता। व्याख्या-उपर्युक्त पद्यांश में 'पहरेहि' व 'वारुणि' शब्द में श्लेष है क्योंकि इनमें
दो अर्थ निहित हैं।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
[ 215
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org