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________________ 4. णं कामभल्लि गं कामवेल्लि, णं कामहो केरी रहसुहेल्लि । णं कामजुत्ति णं कामवित्ति, णं कामथत्ति णं कामसत्ति । __ -णायकुमारचरिउ 1.15.2-3 अर्थ-वह कन्या तो जैसे काम की भल्ली, काम की लता, काम की सुख दायक रति, काम की युक्ति, काम की वृत्ति, काम की देरी एवं काम की शक्ति जैसी दिखाई देती है। 5. किं पीइ रई अह खेयरिया, किं गंग उमा तह किणणरिया। आयण्णेवि जंपइ ता कविलो, हे सुहि मत्तउ किं तुहुँ गहिलो ।। सुदंसणचरिउ 4.4.5-6 अर्थ-क्या यह प्रीति है, या रति, या खेचरी ? क्या यह गंगा, उमा अथवा कोई किन्नरी है ? अपने मित्र की यह बात सुनकर कपिल बोला हे मित्र तुम नशे में हो, या किसी ग्रह के वशीभूत ? 6. न मुणइ रत्ताहरू रंगगुणु, जा छोल्लइ सुद्ध वि दंत पुणु । __ -जंबूसामिचरिउ 52.18 अर्थ-वह कन्या अपने बिबाघरों से अपनी शुद्ध धवलपंक्ति में प्रतिबिंबित होती हुई कांति को पहचान नहीं पाती। अतः उन्हें धवल बनाने के लिए बार-बार छीलती रहती है। 7. वणं जिणालयं जहा स-चन्दणं, जिणिन्द-सासणं जहा स-सावयं ।। महा-रणङ गणं जहा सवासणं, मइन्द-कन्धरं जहा सकेसर ।। -पउमचरिउ 24.14.3-4 अर्थ-वह वन जिनालय की तरह चन्दन (चन्दनवृक्ष, चन्दन) से रहित था, जो जिनेन्द्र शासन की तरह सावय (श्रावक और श्वापद) से सहित था, जो महायुद्ध के प्रांगण की तरह सवासन (मांस और वृक्षनिवशेष) से संयुक्त था, जो सिंह के कधों की तरह केशर (वृक्षविशेष और प्रयाल) सहित था। 8. णिय मंदिरहो विणिग्गय जाण इ, णं हिमवंतहो गंग महाणइ । -पउमचरिउ 23.6.3 अपभ्रंश अभ्यास सौरभ । [ 223 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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