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अर्थ-वह गृहस्थ स्वयं भोजन करने में प्रवृत्त होवे। इस प्रकार विधिवत्
प्रोणधोपवास करने से वह फलदायी होता है ।
10. भावलयामर-चामर-छत्तं दुन्दुहि-दिव्व-झुणी-पह-वत्तं । जस्स भवाहि-उलेसु खगत्तं अट्ठ-सयं चिय लक्खण-गत्तं ।।
-पउमचरिउ 71.11.5-6 अर्थ-आप भामण्डल, श्वेत छत्र और चमर, दिव्यध्वनि और दुन्दुभि से
मंडित हैं, जिसके संसारोत्तम कुल में सुभगता है, जिसका शरीर एक सौ पाठ लक्षणों से अंकित है।
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[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
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