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अभ्यास-44 (क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए
1. राजा गुणवान सेवक को त्यागता है। 2. तुम दुष्ट सेवकों का सम्मान मत करी । 3. वह दुष्ट मनुष्यों का सम्मान नहीं करता है । 4. पर्वत की शिखा से शिला गिरी। 5. तुम स्वय के गुणों को छिपायो। 6. दुर्लम सज्जन की कलियुग में पूजा की जानी चाहिए । 7. वृक्ष पर पक्षी बैठते हैं । 8. उसके कानों में दुष्ट के वचन प्रविष्ट नहीं हुए 9. वह जीवन को प्रिय मानती है । 10. जीवन और धन सबके लिए प्रिय हैं। 11. वह समय आ पड़ने पर धन को घास के समान गिनता है। 12. विशिष्ट व्यक्ति धन को तिनके के समान गिनता हुआ छोड़ता है। 13. तुम कुछ भी मत मांगो। 14. तुम भोजन प्राप्त करो। 15. तुम्हारे द्वारा स्वाभिमान नहीं छोड़ा जाना चाहिए । 16. दिन झटपट से व्यतीत होते हैं। 17. मैं विद्यमान भोगों को त्यागता है। 18. अज्ञानी मनुष्य विद्यमान भोगों को भोगता है। 19. सागर के जल से प्यास का निवारण नहीं होता है। 20. जल निरर्थक आवाज करता रहता है। 21. कंजूस धर्म में रुपया व्यय नहीं करता है । 22. यम का दूत क्षण भर में पहुंचता है । 23. यमदूत वहां शीघ्रता से पहुंचा। 24. चन्द्रमा व समुद्र का प्रेम प्रसाधारण होता है । 25. दूरी पर स्थित सज्जनों का प्रेम भी असाधारण होता है। 26. देश सज्जनों के रहते हुए होने से ही सुन्दर होते हैं । 27. जीभ इन्द्रिय के अधीन अन्य इन्द्रियां हैं। 28. तुम रसनेन्द्रिय को वश में करो। 29. तुम सम्पूर्ण कषाय की सेना को जीतो। 30. उसने जगत को अभयदान दिया। 31. उसने कषाय को जीतते हुए मोक्ष प्राप्त किया। 32. वह महाव्रतों को ग्रहण करेगा। 33. मुनि महाव्रत ग्रहण करते हुए तत्त्व का ध्यान करते हैं । 34. तत्त्व का ध्यान करके व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करते हैं। 35. निज धन को देना दुष्कर है। उदाहरणराजा गुणवान सेवक को त्यागता है=राया सुभिच्चु परिहरई ।
नोट-इस अभ्यास-44 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 14
का अध्ययन कीजिए।
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[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
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