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-कान में
कण्णि किपि कहेप्पि उवाय दंसेइ
(कण्ण) 7/1 अव्यय (कह) संकृ (उवाय) 2/1 (दंस) व 3/1 सक
(हरिस) वकृ 1/1
अव्यय
हरिसंतु जावेहि वहस्सु थंमि ठविउ तावेहि चंडालु
(वह) 6/1 (थंभ) 7/1 (ठव) भूकृ ।/1 अव्यय (चंडाल) 1/1 (त) 2/1 स (पुच्छ) व 3/1 सक (जीवण) 2/1 अव्यय
= कुछ = कहकर = उपाय =दिखलाता है
(दिखलाया) =प्रसन्न होते हुए =जब -वध के =खम्भे पर -खड़ा किया गया -तब = चांडाल ने =उसको =पूछता है (पूछा) =जीवन के =बिना
पुच्छइ
जीवणु
विणा
तउ
=तुम्हारी -कोई भी
कावि
=इच्छा
इच्छा होइ तया मग्गियव्वा
(तुम्ह) 6/1 स ((का) 111 स (वि (अव्यय)=भी (इच्छा ) 1/1 (हो) व 3/1 अक अव्यय (मग्ग) विधिक 11 (त) 1/1 स
=तो =मांगी जानी चाहिए -वह .
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
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