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अर्थ-राम ने जब मां से इस प्रकार पूछा तो वह तत्काल मूच्छित हो गयी।
चमर धारण करनेवाली स्त्रियों ने हवा की। बड़ी कठिनाई से वह सचेतन हुई।
5. दोहा छन्द लक्षण-~- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। पहले व तीसरे में तेरह-तेरह
मात्राएं होती हैं और दूसरे व चौथे चरण में ग्यारह-ग्यारह मात्राएं होती हैं।
।। ।। ।।।।।। ।।। । । । जाणमि वणि गुणगणसहिउ, परजुवईहिं विरत्तु । ।। ।। ।। ।।।। ।। । । । पर महु अंबुले हियवडउ, गउ चितेइ परत्तु ।
-सुदंसगचरिउ 8.6.1-2 अर्थ-मैं जानती हूं कि वह वणिग्वर बड़ा गुणवान है और पराई युवतियों से
विरक्त है । किन्तु हे माता ! मेरा हृदय और कहीं लगता ही नहीं ।
6. चन्द्रलेखा छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं
व अन्तर्यमका की योजना होती है । उदाहरण।।।।5।। ।। 51555।। वलु वयणेण तेण, सहुँ साहणेण, संचल्लिउ ।
।।5। । ।।।।। । 5 ।। णांइ महासमुद्रु, जलयर रउद्दु, उत्थल्लिउ ।।
- पउमचरिउ 40.16.2 अर्थ इन शब्दों से राम सेना के साथ यहां-वहां इस प्रकार चले जैसे रौद्र
__ महासमुद्र ही उछल पड़ा हो ।
1. चरण के बीच में तुक मिलने को अन्तर्यमक कहा गया है । जैसे-प्रथम चरण में
तेण व साहणेण ।
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। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
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