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________________ अन्वय घत्ता अभ्यास- 49 190 ] करकण्डचरिउ 2.16 पुत्त पुणु उच्चकहाणी णिसुणि । ज विचित्त संपइ संपज्जइ । हिएण गीचहो संगु परिकलिवि तेरा उच्चेण समउ संगु किउ | वारणारसियर मरणोहिरामु अरविंदु णाम गराहिउ प्रत्थि । मिरम्मिसंतोसु वहंतउ एक्कहिँ दिरणम्मि पारद्धिहे गउ | सो जलरहियहिं प्रडविहिँ पडिउ, तहिँ मुक्खऐं तण्हएं विष्णडिउ । after श्रमिण विणिम्मिय ताइँ सुहयराइँ फलइँ तहो दिष्णइँ । राउतहो वणिवरहो संतुट्टउ । घरि जाइवि तहो पसाउ दिण्णउ । महंत उवयारु जाणएण तेरा वणि मंतिपयम्मि लिहियउ | विणि वि तेय - दिण्यर - कलायर णं गुण - गणरयाहूं सीलणिहि गहिरिमाई सायर (ण) अणुराएँ तहिं वसहिं । 2.17 ता एक्कहिँ दिणि तेण मंतीवरेण तहो रायहो णंदणु हरिवि । आहरणइँ लेविणु तुरिउ दिहिकरासु विलासिणि मंदिरासु गउ । वणिणा तर्हि गय मोल्लई जण -रायणहँ पियाई (प्रहरणई) ताहे समप्पियाइँ । पुणु तेण सरय- आगम - ससहर प्राणणी हे विलासिणी कहियउ | मईं णरवईहिं णंदणु मारिउ, इउ सयलु वि थिररईहिँ कहियउ । तं सुणिवि ताईं सहु पभणिउ, एहु कासु वि पयडु मा करेहि । एतहिँ णिवेण सुख अलहंते, तेण णयरे डिडिमु देवाविउ । जो को वि रायहो णंदणु कहइ, सो वि दविणई सहुँ मेइणि लहइ । धत्ता -- ता केण वि धिट्ठे तुरियएण णरणाहहो अग्गइँ भणिउ । देव तुहु सुउ मई उबलक्खिउ । सो णवलई मंतिएँ हणिउ । Jain Education International [ अपभ्रंश श्रभ्यास सौरभ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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