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________________ अभ्यास-39 (क) निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए 1. विनयश्री कथा कहती है। 2. विनयश्री के द्वारा यानक कहा जाता है । 3. किसी नगर में संखिणी नामक एक कबाड़ी रहता है। 4. उसने दुःखपूर्वक रुपया प्राप्त किया। 5. वह पत्नी के साथ एकान्त में जाता है। 6. उसने एक रुपया रोकड़ी प्राप्त किया। 7. उसके द्वारा कलश में रुपये रखकर धरती में गाड़े गए। 8. वह प्रातःकाल अपने स्नान के लिए चला । 9. सूर्यग्रहण के अवसर पर प्रभात में कुछ लोग निज-निवासों को छोड़कर तीर्थ-स्नान को जाते हैं। 10. तीर्थ में स्नान करके वे अपने घर पहुंचे। 11. उसके द्वारा उत्साहपूर्वक देखा जाता है। 12. यह देखकर संखिणी हाथों से सिर पीटता है। 13. जो रुपया मूल में था वह भी नष्ट हो गया । 14. वह स्वाधीन सुख को चाहता हुया लक्ष्मी को भोगता है। 15. रात्रि में नगर में एक सियार प्रविष्ट हुआ। 16. मुहल्ले के मुख पर मरा हुआ बैल देखा गया। 17. दिन होने पर नगर के लोगों द्वारा वह देखा जाता है। 18 सियार की पूंछ काट ली गई। 19. वह अपने मन को वश में करता है । 20. सियार कुत्तों के समुदाय द्वारा खाया गया। 21. तुम विषय में अन्धे मत रहो । 22. मैं अपने को मरा हुआ दिखाता हूं। 23. मैं पुनः रात आने पर वन को जाऊँगा। 24. दिन में नगर के लोगों द्वारा वह देखा गया। 25. वह पत्थर से दांत तोड़ता है । 26. दांतों के बिना जीवन कठिन है । 27. जबूस्वामी कथानक कहते हैं। 28. कोई वणिक जहाज चलाता है । 29. वह जहाज ले जाकर खुश होता है । 30. वह दूसरे किनारे पर गया । 31. वह बहुमूल्य रत्नों को खरीदता है । 32. मैं बन्दरगाह पर पहुंचूंगा। 33. मैं वहां यह माणिक्यरत्न बेचूंगा। 34. रत्न हाथ से निकलकर समुद्र में गिरता है । 35. हे उपस्थित लोगो ! यहां पानी में रत्न गिरा था। . उदाहरणविनयश्री कथा कहती है विनयसिरि कहा कहइ । नोट-इस अभ्यास-39 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' के पाठ 9 का अध्ययन कीजिए। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ] 153 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002697
Book TitleApbhramsa Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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