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अर्थ - धनुष के बिना, स्थान के बिना, डोरा और शरसन्धान के बिना, श्रस्त्र के बिना ही वह इतना आहत हो गया कि जर्जर हो उठा । दग्ध होकर पुनर्वसु कुछ भी नहीं गिन रहा था ।
व्याख्या - यहां बिना शस्त्रास्त्र व प्रहार के पुनर्वसु को आहत दिखाया गया है । अतः यहां विभावना अलंकार है ।
विरोधाभास अलंकार - वस्तुत: विरोध न रहने पर भी विरोध का आभास ही विरोधाभास है ।
उदाहरण
साव-सलोणी गोरडी नक्खी कवि विसगंठि । भडु पच्चलियो सो मरइ जासु न लग्गइ कंठि ॥
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अर्थ- सर्व सलोनी गोरी कोई नोखी विष की गांठ है । वह मरता है जिसके कंठ में (से) वह नहीं लगती ।
व्याख्या
- उपर्युक्त पद्यांश में वस्तुतः विरोध न होते हुए भी विरोधी बात होने का श्राभास हो रहा है इसलिए यहां विरोधाभास अलंकार है ।
सन्देह श्रलंकार - जहां उपमेय में उपमान होने का सन्देह किया जाए वहां सन्देह अलंकार होता है ।
- हेमचन्द्र
भट प्रत्युत ( बल्कि )
उदाहरण -
कि तार तिलोत्तम इंदपिया, कि गायवहू इह एवि थिया । कि देववरांगण किं वदिही, किं कित्ति अमी सोहग्गरिगही ।
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सुदंसणचरिउ 4.4.1-2
अर्थ - ( मनोरमा का परिचय) यह तारा है या तिलोत्तमा या इन्द्राणी ? या कोई नागकन्या यहां ग्राकर खड़ी हो गयी है अथवा यह कोई उत्तम देवांगना है अथवा यह स्वयं घृति है या कृति या सौभाग्य की निधि ?
व्याख्या -- उपर्युक्त पद्यांश में मनोरमा को देखकर सन्देह की स्थिति बनी हुई है कि यह कौन है - तारा है, तिलोत्तमा है, इन्द्राणी है अथवा नागकन्या है ? इसलिए यहां सन्देह अलंकार है ।
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[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
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