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(9) कहि जि भीमकन्दरो भरन्त-णीर- णिज्झरो । कहि जि रक्तचन्दणो तमाल-तालल-वन्दणो 1
अर्थ - जो कहीं पर भीम गुफाओंवाला और कहीं पर भरते हुए जल से युक्त निर्झरवाला था । कहीं पर रक्त चंदन, तमाल, ताल और पीपल के वृक्ष थे ।
(10) पीवरदीहरबाहो सुंदरु गोहण णाहो ।
तेत्थ वर्णम्मि पवण्णो चेट्ठइ जाव णिसण्णो ।
- करकण्डचरिउ 8.3.5-6
अर्थ - प्रबल और दीर्घ भुजाओं से युक्त, एक सुन्दर गोधननाथ (ग्वाला ) उस वन में आया वह जब वहां बैठा हुआ था ।
(घ) निम्नलिखित पद्यों के मात्राएं लगाकर इनमें प्रयुक्त छंदों के लक्षण एवं नाम
बताइए --
- पउमचरिउ 32.3.3-4
(1 ) तहों सुह लक्खण भायणा गुरुदेवच्चण कयमरणा । सिगारासयसिप्पिणी पढमकलत्तं
रुप्पिणी 1
अर्थ - उसकी शुभलक्षणों की भाजन, गुरु व देवता के अर्चन में मन लगानेवाली तथा शृंगार के आशय की शिल्पिनी अर्थात् श्रृंगार के मर्म को समझने में दक्ष ऐसी रुक्मिणी नाम की प्रधान रानी है ।
( 2 ) णव णीलुप्पल गयण जुय सोएं णिरु संतत्त । पवनपुत्तं पई विरहियउ कवणु पराणइ वत्त ।
- जंबूसा मिचरिउ 8.4.1-2
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ]
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अर्थ - यह देखकर नवनील कमल की तरह नेत्रवाली शोक से संतप्त सीतादेवी अपने मन में सोचने लगी कि पवनपुत्र तुम्हे छोड़कर अब कौन मेरी कुशल वार्ता ले जा सकता है ?
- पउमचरिउ 54.1.3-4
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