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मात्रिक छन्द 1. पद्धडिया छन्द
लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं व चरण के अन्त में जगण (151) होता है । उदाहरणजगण
जगण . ।। ।। 55 ।। । । ।।।।5।। ।। । । जसु केवलणाणे जगु गरिछ करयल-ग्रामलु व असेसु दिठ्ठ । जगण
जगण ।। ।। ।।। । ।
5 ।।।। ।।। । । । तहों सम्मइ जिगहों पयारविंद वंदेरिपणु तह अवर वि जिणिद ।
सुदंसरणचरिउ 1.1 11 अर्थ-जिनके केवलज्ञान में यह समस्त महान जगत हस्तामलकवत् दिखाई देता
है, ऐसे सन्मति जिनेन्द्र के चरणारविंदों तथा शेष जिनेन्द्रों की भी वन्दना करके (नयनन्दि अपने मन में विचार करने लगे)।
2. सिंहावलोक छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं
होती हैं तथा' चरण के अन्त में सगण (15) होता है । उदाहरणसगण
सगण ऽ ।।।। ।। ।।। ।। ।।5।। । ।।15 जं अहिणव-कोमल कमल-करा, बलिमण्डएँ ले वि अणङ्गसरा । । । । । । ।।।।5 ।। ।।। ।।। ।। स-विमाणु पवरण-मण-गमण-गउ, देवहुँ दारा वहु भि रणे अजउ ।1
पउम चरिउ 68.9
1. चरणान्त के 'उ' ह्रस्वस्वर को लघु होने पर भी छन्दानुरोध से दीर्घ माना गया
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[ अपभ्रंश अभ्यास सोरम
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