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नियमित भूतकालिक कृदन्त
अपभ्रंश में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । इसके लिए क्रिया में 'प्र' या 'य' प्रत्यय जोड़े जाते हैं । जैसे
-
हस + अ / य - हसिघ्र / हसिय = हंसा,
अभ्यास- 37
ठा + श्र / य = ठाअ / ठाय = ठहरा,
झा + श्र / य= भान / भाय = ध्यान किया गया आदि ।
इस प्रकार 'अ' या 'य' प्रत्यय के योग से बने भूतकालिक कृदन्त 'नियमित भूतकालिक कृदन्त ' कहलाते हैं । इनमें मूलक्रिया को प्रत्यय से अलग करके स्पष्टतः समझा जा सकता है । इन कृदन्तों के रूप पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे ।
किन्तु जब 'प्र' या 'य' प्रत्यय जोड़े बिना ही भूतकालिक कृदन्त प्राप्त हो जाए या तैयार मिले तो वे अनियमित भूतकालिक कृदन्त कहलाते हैं । इनमें मूलक्रिया को प्रत्यय से अलग करके स्पष्टतः नहीं समझा जा सकता है । जैसे—
वृत्त कहा गया,
=
बिट्ठ = देखा गया,
दिण्ण = दिया गया आदि ।
ये सभी अनियमित भूतकालिक कृदन्त हैं इनमें से क्रिया को अलग नहीं किया जा सकता है । इनके रूप भी पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे ।
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सकर्मक क्रियानों से बने हुए भूतकालिक कृदन्त ( नियमित या अनियमित ) कर्मवाच्य में ही प्रयुक्त होते हैं । केवल गत्यार्थक क्रियाओं से बने भूतकालिक कृदन्त ( नियमित या अनियमित) कर्मवाच्य और कर्तृवाच्य दोनों में प्रयुक्त होते हैं । अकर्मक
1. 'अपभ्रंश रचना सौरभ' पाठ 41 व 56 ।
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[ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
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