________________
२०
नागरीप्रचारिणी पत्रिका
धारयन् ) । विष्णु से धारण किया हुआ धर्म प्रजाओं के जीवन को धारण करता है । ( नमो धर्माय महते धर्मो धारयति प्रजा: - उद्योग १३७/९) । बिष्णु का पराक्रम उस धर्म की नींव है। यदि विष्णु का विक्रम न हो तो धर्म अस्तव्यस्त हो जाते हैं । ४ - 'विष्णु के कर्मों को देखो, जो कर्म उसके महान व्रतों की झाँकी देते हैं। वह विष्णु इंद्र का साथी मित्र है ।' प्रजाओं के जिन कर्मों का हम प्रत्यक्ष देखते हैं, उनका मूल स्रोत उच्च जीवनव्रतों में है । समाज में कठोर व्रतों की स्थापना कर्म की शक्ति का अनिवार्य अंग है। व्यक्ति के जीवन में जिस समय व्रत प्रवेश करते हैं, उसी क्षण से उसके कर्म भी उज्ज्वल और उन्नत होने लगते हैं । 'कर्म और व्रत' इंद्र और विष्णु की तरह आपस में जुड़े रहते हैं और एक दूसरे को शक्ति प्रदान करते हैं। महान् व्रतों से ही महान् कर्मों का जन्म होता है ।
५- 'जो विवेकशील हैं वे विष्णु के उच्चतम पद को आकाश में इस तरह स्पष्ट देखते हैं जिस तरह कोई खुला हुआ क्षेत्र हो ।' प्रजाओं का उत्थान और नेतृत्व करनेवाले ज्ञानी व्यक्तियों को दृष्टि में जीवन और समाज क रहस्य स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं । उनको चक्षुष्मत्ता कहीं रुकती नहीं। उनकी खुली हुई आँख से ही और सबको देखने की सामर्थ्य प्राप्त होती है।
•
६- 'जो जागरूक हैं वे विष्णु की परमोच्च स्थिति को अपने स्तुतिगान से प्रकाशित करते रहते हैं।' विष्णु का सच्चा स्वरूप कभी तिरोहित न हो, इसके लिये यह आवश्यक है कि प्रबुद्ध व्यक्ति उस रूप को अपनी वाक्शक्ति और साधना से समुज्ज्वल करते रहें ।
(२) ऋग्वेद १/१५४
१ - 'विष्णु के वीर्यशाली पराक्रम का हम बखान करेंगे, जिस विष्णु ने पार्थिव लोकों का अपने चरणों से नापा है, जिसने सबसे ऊँचे सबके सम्मान्य स्थान को टेक रखा है, जिसने लंबे खग भरते हुए तीन प्रकार से विक्रम किया है ।' 'विष्मोनु के वार्याणि प्रवोचं, इसकी ध्वनि जिस समय प्रजाश्रों में उठती है, उस समय उनके कंठ में पूर्व बल आ जाता है। वस्तुतः राष्ट्र रूपी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com