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पृथिवीसूक-एक अध्ययन एन अमयों को हे भूमि, तुम्हारी 'श्रम गध' सदय के प्रथम प्रभात में प्राप्त हुई थी, वही अप गध हमें भी सुरभित करनेवाली हो। जिस समय राष्ट्र की सब प्रजाएँ परस्पर सुमनस्यमान होकर अपने सुदर से सुदर रूप में विराजमान थी, उस समय सूर्या के विवाह में उनका जो महोत्सव हुआ था, उस सम्मिलन में जिस गंध से बसे हुए कमल को देवों ने सूघा था उसी अमर गंध की उपासना आज हम भी करते हैं ( २३.२५) । जनता का बाह्य भौतिक रूप और श्री उसी राष्ट्राय ऐक्य से सदा प्रभावित हो।
एकता का दूसरा रूप अधिक उच्च है। वह मानस जगत् की भावना है। वह अग्नि के रूप में सर्वत्र व्याप्त है। अग्नि ही ज्ञान की ज्योति है। 'पुरुषों और स्त्रियों में, अश्वों और गोधन में, जल और ओषधियों में, भूमि और पाषाणों में, धुलोक और अंतरिक्ष में एक ही अग्नि बसो हुई है। मर्त्य लोग अपनी साधना से उसी अग्नि को प्रज्वलित करके अमर्त्य बनाते हैं।' मातृभूमि के जिन पुत्रों में यह अग्नि प्रकट हो जाती है वे अमृतत्व या देवत्व के भाव को प्राप्त करते हैं। 'यह समस्त भूमि उस अनि का वस्त्र ओढ़े हुए है। इसका घुटना काला है' (अग्निवासाः पृथिवी असितज्ञः, २१)। पुत्र माता के जिस घुटने पर बैठता है, उसका भौतिक रूप काला है, किंतु उस पर बैठकर और मातृमान बनकर वह अपने हृदय के भावों से उस अग्नि को प्रकाशित करता है, जिससे वह तेज और तीक्ष्ण बल प्राप्त करके त्विषीमंत और सशित बनता है (२१)। मातृभूमि के साथ संबधित होने के लिये मनाभाव ही प्रधान वस्तु है। जो देवों की भावना रखते हैं उनके लिये यहाँ सजाए हुए यज्ञ हैं; जो मानुषी भावों से प्रेरित हैं, उन मत्यों के लिय केवल अन्न और पान के भोग हैं (२२)। इस सूक्त में भूमि, भूमि पर बसनेवाले जन, जनों की विविधता, उनकी एकता, और उन सब को मिलाकर एक उत्तम राष्ट्र की कल्पनाइन पांचों का स्पष्ट विवेचन पाया जाता है। कवि ने निश्चित शब्दों में कहा है
सानो भूमिस्त्विर्षि बलं राष्ट्र दधातूत्तमे। (८). ___समग्रता-राष्ट्रीय ऐक्य के लिये सूक्त में 'समग्र' शब्द का प्रयोग है। यह ऐक्य किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है ? आपस में भिन्नता होना, अनेक भाषाओं और धर्मों का अस्तित्व कोई त्रुटि नहीं है । अभिशाप के रूप में
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