________________
उपायनपर्व का एक अध्ययन
१६९ भगदत्त ने युधिष्ठिर को तेज घोड़े (४७,१३ ) तथा अश्मसार के बने हुए पात्र (४७,१४) उपहार में भेजे। अश्मसार शायद आधुनिक जमुनिया रहा। जमुनिया अधिकतर भारत में लंका से आती है पर कभी कभी नदियों के ककड़ों में भी यह पाई जाती है। एक दुसरा पक्ष भी इस संबंध में हो सकता है। शायद अश्मसार 'संगे-यशप' का भी द्योतक हो। यशप को सस्कृत तथा पाली-प्राकृत में मसारगर्भ, मसारगल्ल, मुसारगर्भ तथा मुसारगल्ल नामों से पुकारते थे। आसाम की बगल में बर्मा के यशप मशहूर हैं। भगदत्त ने हाथीदांत की मूठोंवाली तलवारें भी भेजी (शुद्धदन्तत्सरूनसीन, ४७,१४) ।
यक्ष-(४७१५) तथा और भी बहुत सी जातियां जिनका वर्णन यहाँ मिलता है, उनके ठीक स्थान का पता कठिन है। सभापर्व के अनुसार वे नाना दिशाओं से आई।
ध्यक्ष-(४७१५) व्यक्षों के बारे में कुछ पता नहीं। मार्कंडेय पुराण (भा० ओ० रि० इ० पत्रिका जिल्द १७, भाग ४, पृ० ३३७ ) में त्रिनेत्रों को स्थिति कच्छप के उत्तर-पूरब पैर में की गई है। शायद यह उत्तरी चितराल (तुरीखो) में रहते रहे हों (विडुल्फ, ट्राइब्स ऑव हिंदूकुश, पृ० ६३)।
ललाताक्ष-(४७१५) इसके बारे में कुछ ठीक पता नहीं। क्या इनकी पहचान लदाख से हो सकती है ? यह एक इशारा मात्र है। लदाख का तिब्बती नाम मर्युल है, इसी से यह भासित होता है कि शायद लदाख ललाताक्ष का अपभ्रंश हो।
औष्णोश-(४११५) इनके साथ 'अननिवास' अर्थात् बेघर विशेषण का प्रयोग हुआ है। इसके अतिरिक्त इनके विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता।
रोमक-(४७।१५) संपादक ने यहाँ 'बाहुकान्' पाठ लिया है, पर मेरी समझ में रोमक पाठांतर यहाँ ठीक बैठता है। हेमचंद्राचार्य (अभिधान० पृ० ९४१) ने नमक को पहाड़ी का नाम 'रूमा' दिया है और संभवतः पंजाब की नमक की पहाड़ी से उसकी पहचान हो सकती है। साल्टरेंज का नाम प्लिनी (२९३६ ) ने ओरोमेनस दिया है। विल्सन के अनुसार रोमा साँभर झील का नाम था। इस संबंध में यह भी माके की बात है कि बाल्टिस्तान के शिन अपने को रोम कहते हैं (विडुल्फ, वही, पृ० ४७ )
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com