Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 230
________________ २२० arrierfeit पत्रिका कितनी आत्माएँ उभरती जवानी में ही सांसारिक महत्वाकांक्षाओं को ठुकरा, मातृभूमि के कासर प्रेम की परवा न कर, अपने उद्योग के मध्य में ही धर्मप्रचार की उद्दाम वाला का हृदय में लिए लिए पर्वतों की हिम में गल गई । किसने जराजीर्ण शरीर, तरुणेोत्साह, शिशुहृदय, धर्म-प्रदीप के पतंगे विश्व के विश्व भ्रातृत्व का संदेश सुनाने की अतृप्त अभिलाषा के साथ अकाल में हो उन्मत महासागर की तुंग तरंगावली में सदा के लिये सेो गए। कितनी कुसुम- सुकुमार आजन्म कुमारियाँ, अपने हृदय के अंतस्तल में भगवान् बुद्ध की धर्मप्रेरणा अनुभव कर, कोमलता, सुखाभिलाष और विलास - जीवन को तिलांजलि दे, तलवार की धार पर चलती हुई सेवा की वेदी पर अपने को न्यौछावर कर गई । उनके नाम, उनकी स्मृतियाँ और उनके अवशेष आज कहाँ हैं? उन्हें आज कौन जानता है ? मालूम कितने अविज्ञात कुमारजीव, अप्रसिद्ध महेंद्र और अविदित पद्मसंभव अपूर्ण संकल्पों की प्रचंड अग्नि अपनी हृदयगुहा में दबाए हुए प्रशांत आलामुखियों की तरह विस्मृति के अंचल में मुँह छिपाए पड़े हैं। मंदिर की नींव में लगे हुए अदृश्य प्रस्तर, जिन पर हमारी पूजा के पुष्प कभी नहीं चढ़ते, अधिक संमान के पात्र हैं । न २ - राजनीतिक व आर्थिक विस्तार ऊपर भारत के सांस्कृतिक विस्तार का वर्णन किया गया है, किंतु विदेशों में भारत का विस्तार केवल सांस्कृतिक रूप में ही नहीं हुआ, श्रपितु राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भी भारत बहुत दूर तक फैला हुआ था । अत्यंत प्राचीन काल से भारत का पश्चिम से व्यापारिक संबंध था । चाल, पांड्य और केरल राज्यों के व्यापारी प्रीस, रोम और चीन के बाजारों में व्यापार किया करते थे। व्यापार के कारण इन प्रदेशों का परस्पर घनिष्ठ संबंध स्थापित हो गया था । दक्षिण भारत से रोम को दूत भेजे गए थे । सीरियन लोग लड़ाइयों में भारतीय हाथियों का उपयोग करते थे । मिस्र में प्राप्त ममियों पर लिपटा हुआ कपड़ा भारतीय है, इस विषय में प्रायः सभी ऐतिहासिक एकमत हैं । तामिल भाषा की अनेक शराब, बत्तन और लैंपों की महिमा से कविताएँ आज भी श्रीक तथा जावा - सुमात्रा जानेवाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250