Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 245
________________ महाजनक और देवी मणिमेखला का संवाद [‘महाजनक जातक' से संकलित ] निम्नलिखित अवतरण महाजनपदयुग (१००० विक्रम पूर्व से ५०० वि० पू० तक ) की जनता के दृढ़ श्राशावाद और उद्यमशील कर्मण्यता को प्रकट करता है। महाजनक जातक की कहानी में, जब टूटे जहाज का कूपक (मस्तूल ) थामे हुए, अपने साथियों के लहू से लाल हुए समुद्र में सात दिन तक तैरने के बाद भी महाजनक हिम्मत नहीं हारता, तब देवी मणिमेखला उसके सामने अलंकृत रूप में आकाश में प्रकट होकर उसकी परीक्षा करने के लिये इस प्रकार कहती है और दोनों में यह संवाद होता है 'यह कौन है जो समुद्र के बीच, जहाँ तीर का कुछ पता नहीं है, हाथ मार रहा है ? क्या अर्थ जानकर-किसका भरोसा करके-तू इस प्रकार वायाम (= व्यायाम, उद्यम ) कर रहा है ?? 'देवि, मैं जानता हूँ कि लोक में जब तक बने मुझे वायाम करना चाहिए। इसी से समुद्र के बीच तीर को न देखता हुआ भी उद्यम कर रहा हूँ।' - 'इस गंभीर अथाह में जिसका तीर नहीं दिखाई देता, तेरा पुरिसवायाम (पुरुषार्थ ) निरर्थक है; तू तट को पहुंचे बिना ही मर जायगा।' - 'क्यों तू ऐसा कहती है ? वायाम करता हुआ मरूँगा भी तो गर्दा से तो बनूंगा। जो पुरुष की तरह उद्यम (पुरिसकिच्च, पुरुषकृत्य) करता है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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