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बहुजन हिताय बहुजनसुखाय
चरथ भिक्खवे चारिक बहुजनहिताय बहुजनसुखाय लोकानुकम्पाय श्रत्थाय हिताय सुखाय देवमनुरसानं ।
देसेथ भिक्खवे धम्मं श्रादिकल्याणं मज्मेकल्याणं परियोसान कल्याणं सात्थ सव्यञ्जनं केवल परिपुरणं परिसुद्धं ब्रह्मचरिय पकासेथ |
भिक्षु ! जनता के हित के लिये, जनता के सुख के लिये, लोक पर अनुकंपा करने के लिये, देवताओं और मनुष्यों का हित-सुख करने के लिये विचरो । आरंभ में कल्याणकर, मध्य में कल्याणकर, अंत में कल्याणकर धर्म का शब्दों और भावों सहित उपदेश करके, सर्वांश में परिपूर्ण, परिशुद्ध ब्रह्मचर्य का प्रकाश करो ।
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