Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 236
________________ २२६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका संस्थापक श्रीमार था। ३८० ई० में भद्रवर्मा सिहासनारूढ़ हुआ। चपा के प्राचीन राजाओं में यह सबसे अधिक शक्तिशाली था। इसके लेखों से ज्ञात होता है कि यह चारों वेदों का पंडित था। इसका उत्तराधिकारी गंगाराज अंतिम दिन गंगा के किनारे व्यतीत करने के लिये भारत चला आया था। १२वीं सदी में चपा और कबुज के राजाओं में परस्पर अधिकारलिप्सा के लिये लड़ाइयाँ होती रहीं। इन युद्धों में कबुज का ही हाथ ऊँचा रहा। यद्यपि अनामियों के आक्रमण आरभ से ही हो रहे थे, परतु १९वीं सदी के प्रारंभ में अनामियों ने चपा को सर्वथा समाप्त कर दिया। देश का प्राचीन नाम चपा हटाकर अनाम कर दिया। अनामी लोग बौद्ध थे। अतः अब से बौद्धधर्म का प्रचार होने लगा। वर्तमान समय में भी अनाम का धर्म यही है। . चपा-निवासियों पर भी भारतीय संस्कृति की गहरी छाप लगी थी। प्राचीन लेखों से ज्ञात होता है कि चंपा में गजा की जो स्थिति थी वह मनुस्मृति में वर्णित राजा की दशा से मिलती है। राज्यकर मनुस्मृति के अनुसार उत्पत्ति का छठा अथवा दसवाँ हिस्सा लिया जाता था। यह एक सर्वविदित बात है कि भारतीय उपनिवेशों पर जितना प्रभाव भारतीय धर्म और संस्कृति का पड़ा, उतना और किसी चीज का नहीं। आज जब कि इन प्रदेशों पर भारत का राजनीतिक प्रभाव एक अतीत स्वप्न बन चुका है, भारतीय संस्कृति अपने अविकसित रूप में अब भी विद्यमान है। चंपा का प्रधान धर्म शैवधर्म था। प्राचीन लेखों में शिव की बहुत स्तुति की गई है। भारतीय साहित्य में जो कथानक शिव के विषय में वर्णित हैं, उन सबका उल्लेख चंपा के लेखों में जहाँ-तहाँ पाया जाता है। शिव की पूजा, शिवलिंग और शिवमूर्ति दोनों रूपों में होती थी। मुखलिंग भी उपलब्ध हुए हैं। लिंगपूजा का प्रचार अधिक था। राजा लोग लिंगस्थापना करते हुए उसके साथ अपना नाम भी जोड़ देते थे; यथा भद्रेश्वर, इंद्रभद्रेश्वर, विक्रांतरुद्र श्रादि। अर्धनारीश्वर का विचार भी वहाँ प्रचलित था। चंपा के लोग विष्णु की उपासना पुरुषोत्तम, नारायण, हरि, गोविंद, माधव आदि नामों से करते थे। राजा लोग अपने को विष्णु का अवतार समझते थे। ब्रह्मा की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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