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भारत और अन्य देशों का पारस्परिक सबंध
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प्रचार था । यद्यपि जनता बौद्धधर्मानुयायी है तथापि हिंदूधर्म का हल्का-सा प्रभाव अब भी विद्यमान है । आज भी स्यामी कलाकार यमराज, मार और sit की मूर्त्तियाँ बनाते हैं। शिवपूजा के द्योतक लिंग आज भी मंदिरों में पाए जाते हैं। नामकरण, मुंडन, कर्णवेध यादि संस्कार षोडश संस्कारों के ही अवशेष हैं । इस समय भी स्याम में कुछ ब्राह्मण रहते हैं जो यथापूर्व अपने धर्म का पालन करते हैं । ये लोग अपने को उन ब्राह्मणों के वंशज बताते हैं जो ५वीं व छठी शताब्दि में भारत से आकर स्याम में बसे थे। श्राद्ध, संक्रांति, वर्षावास, चंद्रग्रहण आदि उत्सव स्याम में अब भी मनाए जाते हैं । भारतीय साहित्य भी स्याम में बहुत प्रचलित हुआ । इसमें अधिकांश भाग बौद्ध साहित्य का है। बृहत्तर भारत के अन्य देशों की तरह स्याम भी प्राचीन स्मारकों से भरा पड़ा है। हिंदू स्मारकों की अपेक्षा बौद्ध स्मारक अधिक हैं 1 यहाँ के हिंदू देवालयों में बुद्धप्रतिमा विष्णु के अवतार के रूप में पाई जाती है । प्राचीन नगरों सुखोदय, अयोध्या और देवनगर में बौद्धविहारों, स्तूपों और मंदिरों की भरमार है । यद्यपि आज बृहत्तर भारत के अन्य प्रदेश अपने दीक्षागुरु भारत को भूल चुके हैं, परंतु स्याम अपने गुरु का आज भी स्मरण करता है । स्वामी राजा अपने नाम के पीछे राम शब्द का प्रयोग करता है और चूड़ाकर्म संस्कार के समय अपने हाथ से राजपुत्र के प्रथम बालों को काटता हुआ, ब्राह्मणों द्वारा राजकुमार के सिर पर पवित्र जल छिड़काता हुआ, भारत के अतीत सांस्कृतिक संबंध को आज भी जीवित रख रहा है। वहाँ की भाषा, वहाँ का साहित्य, वहाँ का धर्म और वहाँ के स्मारक भूतकाल के उस भव्य युग that दिखा रहे हैं जब दोनों देश परस्पर स्नेह के स्वर्गीय सूत्र में बँधे हुए थे । स्यामी नगरों और जनता के नाम इस अमर कथा को आज भी सुनाते हैं कि हमने जगद्गुरु भारत से दीक्षा ग्रहण की है ।
मलायेशिया
जिस समय भारतीय आवासक कंबुज में भारतीय संस्कृति की आधारशिला रख रहे थे उसी काल में कुछ साहसी प्रवासी मलायेशिया में भी भारतीय सभ्यता का भवन खड़ा कर रहे थे । मलायेशिया में सब मिलाकर छः सहस्र
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