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भारत और अन्य देशों का पारस्परिक संबंध . २२५ बहुत कम होती थी। इनके अतिरिक्त इंद्र, उमा, सरस्वती, वागीश्वरी, गंगा, श्री, चंडी, गणेश, लक्ष्मी, सूर्य आदि की उपासना भी प्रचलित थी। शैव और वैष्णव संप्रदायों के साथ साथ हीनयान बौद्धधर्म का भी प्रचार था। राजा लोग धार्मिक दृष्टि से सहिष्णु थे। वे सब धर्मों को दान देते थे। एक शिलालेख में शिव, बुद्ध और ब्रह्मा तीनों का एक साथ उल्लेख है। एक अन्य लेख में बोधिद्रुम, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का एक साथ वर्णन है। यह अद्भुत मिश्रण दोनों धर्मों के समन्वय की ओर निर्देश करता है। हिद चीन के प्रदेशों में हिंदुओं के सब से अधिक ध्वंसावशेष कंबुज में पाए जाते हैं। समस्त देश मंदिरों, मूर्तियों और महलों से भरा पड़ा है। मंदिरों की कला दक्षिण भारत की है। पिरामिड आकार के भी कुछ मंदिर उपलब्ध हुए हैं। कई मंदिरों के चारों ओर सांची, बरहुत आदि की तरह प्राकारवेष्टनी भी है। वर्णव्यवस्था और आश्रम-व्यवस्था भी वहाँ प्रचलित थी। सूर्यवर्मा के लेख में इस बात का उल्लेख पाया जाता है कि उसने फिर से वर्णविभाग किया और शैवाचार्य को ब्राह्मण वर्ण का मुखिया बनाया। प्राचीन लेखों में भारतीय साहित्य का उल्लेख बहुत पाया जाता है। लोवक में प्राप्त लेख में अथर्ववेद और सामवेद का वर्णन है। एक अन्य लेख में “वेदान्तज्ञानसारैः, स्मृतिपथनिरतैः अष्टाङ्गयोगप्रकटितकरणैः, चतुर्वेदविज्ञातैः" का उल्लेख है। कई लेखों में मनु के वचन ज्यों के त्यों पाए जाते हैं। कंबुज पर भारतीय संस्कृति का असर इतना प्रबल था कि ९०३ में एक अरब यात्री लिखता है "कबुज भारत का ही हिस्सा है। वहाँ के निवासी भारत से सबध रखते हैं।' ९४३ में मसुही लिखता है-"भारत बहुत विस्तृत देश है। भारत की ही एक जाति बहुत दूर कबुज में बसती है।"
चंपा. जिस समय फूनान का हिंदू राज्य विकासोन्मुख था, लगभग उसी समय चंपा में भी एक हिंदू राज्य अंकुरित हो रहा था। यद्यपि इस राज्य की स्थापना के विषय में तो इतिहास मौन है तथापि, यह निश्चित है कि दूसरी शताब्दि तक भारतीय लोग चपा में बस चुके थे। इस राज्य का
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